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अलविदा सुषमा स्वराज: इन 10 बातों के लिए हमेशा की जाएंगी याद
देश की पूर्व विदेश मंत्री और भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। दिल्ली के एम्स अस्पताल में सुषमा स्वराज ने अंतिम सांस ली। दुनियाभर की हस्तियों ने दिवंगत पूर्व विदेश मंत्री के निधन पर दुख जताया है।
नई दिल्ली: देश की पूर्व विदेश मंत्री और भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। दिल्ली के एम्स अस्पताल में सुषमा स्वराज ने अंतिम सांस ली। दुनियाभर की हस्तियों ने दिवंगत पूर्व विदेश मंत्री के निधन पर दुख जताया है।
सुषमा स्वराज को उनकी सादगी, स्नेहपूर्ण व्यवहार, उनके भाषण और विदेशमंत्री के तौर पर हर छोटी से छोटी बात पर ध्यान देने के लिए अगर याद किया जाएगा। आईए जानते हैं उन दस बातों को जिनके लिए सुषमा स्वराज हमेशा याद की जाएंगी।
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सादगी
-सुषमा स्वराज का राजनीति करियर करीब 42 साल का था। उन्होंने 1977 में हरियाणा विधानसभा का पहला चुनाव लड़ा और जीतीं। तब से लेकर वह कई पदों पर रहीं, लेकिन इतने लंबे समय में उनकी सादगी हमेशा कायल करने वाली रही। वो हर किसी से अपनत्व से मिलती थीं। उनकी बातें सुनती थीं। उनका जीवन हमेशा सादगी वाला रहा। कहीं कोई आडंबर नहीं और न ही किसी तरह का कोई घमंड। उनकी वेशभूषा और जीवन हमेशा ऐसा रहा, जिससे कोई भी प्रेरणा ले सकता है।
ओजस्वी भाषण
सुषमा स्वराज अपने कॉलेज की भाषण प्रतियोगिताओं में अपनी खास बोलने की शैली से लोगों को प्रभावित करती थीं। इसके बाद जब वो चंडीगढ़ में कानून की पढ़ाई करने पहुंचीं तो उनकी भाषण कला में और निखार आया। यहीं उन्होंने छात्र राजनीति में प्रवेश किया। उनके ओजस्वी भाषण से लोग काफी प्रभावित होते थे। इसके बाद लगातार सियासत में जब वो आगे बढ़ती गईं तो उनके भाषणों की भी धाक जमती गई। चाहे यूएन में भाषण देना हो या फिर चुनावी सभा में बोलना हो या संसद में अपनी बात कहनी हो, वो हर जगह अपनी खास शैली और विषय पर पकड़ से पक्ष या हो विपक्ष सभी को प्रभावित कर लेती थीं।
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मेहनती
सुषमा स्वराज ने हमेशा अपने लंबे सियासी करियर में यही सिखाया कि कहीं कोई शार्टकट नहीं होता। जिस भी मुकाम पर पहुंचना हो उसके लिए पर्याप्त मेहनत करनी होती, ये उन्हें पग-पग पर सिखाया भी। चाहे वो दिल्ली में मुख्यमंत्री रही हों या फिर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री या मोदी सरकार-1 में विदेश मंत्री, उनके बारे में हमेशा कहा जाता था कि वो लंबे समय तक आफिस में रहती थीं। अपना होमवर्क बहुत बारीकी से करती थीं।
आत्मविश्वास
सुषमा स्वराज ने जब हरियाणा विधानसभा के लिए अपना पहला चुनाव लड़ा, तो मतदाताओं को उन्होंने अपनी कम उम्र के बाद भी आत्मविश्वास से प्रभावित किया। वो जनता पार्टी के टिकट पर चुनी गईं। उस समय उनकी उम्र केवल 25 साल की थी। उनके आत्मविश्वास को देखकर ही उन्होंने सुषमा स्वराज को अपने मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाया। इससे लोगों को हैरानी भी हुई कि केवल पहला चुनाव जीतकर आई सुषमा को क्यों मंत्री बना दिया गया, जबकि उनकी उम्र भी कमोवेश बहुत कम थी, लेकिन देवीलाल यही कहते थे कि इस लड़की में गजब का आत्मविश्वास है, देख लेना ये खुद को बहुत जल्दी साबित भी कर देगी।
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मीडिया को डील करना
जब 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वंस हुआ तो उस समय वह बीजेपी की प्रवक्ता थीं। उस समय मीडिया को डील करना आसान नहीं था, लेकिन जिस तरह सुषमा मीडिया से मुखातिब होती थीं, उससे उनकी अपनी पार्टी के सीनियर लीडर भी उनके कायल हो गए।
तुरंत कार्रवाई
विदेश मंत्री के रूप में जो भी उन्हें देखा है और उनके काम को देखा है, वो हर शख्स कहता है कि अगर वो कभी उनके पास किसी काम के लिए गया है तो वो उस पर तुरंत कार्रवाई करती थीं। ट्विटर पर जो भी शख्स मैसेज भेजता था, वो चाहे देश का नागरिक हो या फिर विदेश का-उस पर वो तुरंत हरकत में आती थीं। जवाब भी देती थीं और आवश्यक कार्रवाई भी करती थीं। हमेशा मदद के लिए तैयार रहती थीं। ऐसे एक नहीं कई मामले हुए हैं जब सुषमा ने ट्विटर पर आए संदेश के बाद मुसीबत में फंसे लोगों की मदद की।
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व्यक्तित्व
सुषमा स्वराज का व्यक्तित्व ऐसा था कि कोई भी उनके संपर्क में आकर उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। इसलिए हर पार्टी का नेता या आमजन भी जो उनसे एक बार मिल लेते थे, उनसे प्रभावित हो जाते थे। वो हर किसी की समस्या को ध्यान से सुनती थीं। जब कोई उन्हें धन्यवाद करता तो उनका हमेशा यही जवाब होता था कि इसकी जरूरत नहीं, ये तो उनका काम है।
अच्छी कम्युनिकेटर
सुषमा ऐसी राजनीतिज्ञ थीं, जो हमेशा शानदार कम्युनिकेटर थीं। वो धाराप्रवाह अंग्रेजी और हिंदी बोल सकती थीं। वह संस्कृत भी बोलती थीं। इंटरनेशनल मीटिंग्स में भी वो जिस तरह लोगों से मुखातिब होती थीं और अपनी टीम से भी संवाद करती थीं, उससे हर बात बहुत स्पष्ट हो जाती थी। जब वो एक बार बेल्लारी से सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा तो उन्होंने कन्नड़ भी सीख ली।
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सेंस ऑफ ह्यूमर
उनका सेंस ऑफ ह्यूमर गजब का था। अक्सर गंभीर माहौल में वो चुटकी लेकर उसे हल्का कर देती थीं। उनके पास शेरो-शायरी का भी खजाना था, जो अक्सर माहौल को बदलने में बड़ा काम आता था।
विषय पर पकड़
सुषमा ने अपने लंबे सियासी करियर में उन सभी की बारीक बातों को भी बखूबी समझा जिसका असर ये हुआ कि वो जहां कहीं रहीं और जिस भी भूमिका में रहीं, उसमें उन्होंने बखूबी काम को अंजाम भी दिया।