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High Court Decision: मां-बाप की जगह कोई नहीं ले सकता, दूसरी शादी करने वाले पिता को बेटे से मिलने का हक
High Court Decision: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले देते हुए कहा है कि पहली पत्नी की मौत के बाद पिता अगर दूसरी शादी करता है तो उसे पहली पत्नी से हुए बच्चे से अलग नहीं किया जा सकता।
High Court Decision: बच्चे के पिता को 2010 में दहेज के लिए पत्नी की हत्या के मामले में जेल जाना पड़ा था। तब से बेटा अपने नाना-नानी के साथ रह रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि फैमिली कोर्ट ने पिता को बच्चे की कस्टडी नहीं दी। पिता एक साल तक अपने बच्चे से मुलाकात कर सकेगा। इसके बाद पिता बच्चे से मिलने या उसकी कस्टडी मांगने के लिए कोर्ट में अपील कर सकता है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले देते हुए कहा है कि पहली पत्नी की मौत के बाद पिता अगर दूसरी शादी करता है तो उसे पहली पत्नी से हुए बच्चे से अलग नहीं किया जा सकता। यहां तक की मां-बाप आर्थिक संकट से भी जूझ रहे हों तो उस स्थिति में भी बच्चे के माता-पिता की जगह कोई नहीं ले सकता। कोर्ट ने यह टिप्पणी सोमवार को एक मामले में पिता को बच्चे से मिलने की अनुमति देते हुए किया।
दहेज के लिए पत्नी की हत्या का आरोप
यह मामला 2010 का है, बच्चे की मां की मौत हो गई थी। महिला के परिजन ने दामाद के खिलाफ दहेज हत्या का मामला दर्ज कराया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। दो साल जेल में बिताने के बाद 2012 में कोर्ट ने उसे बरी कर दिया था। इस फैसले को ससुराल के लोगों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है, अपील अभी लंबित है।
मां की मौत के समय दोनों का डेढ़ साल का एक बच्चा था। जो पिता के जेल जाने के बाद से अपने नाना-नानी के साथ रह रहा था। अब नाना-नानी ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर बच्चे की स्थायी कस्टडी मांगी थी। जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
मामले पर हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल शर्मा की बेंच ने सुनवाई की। बेंच ने कहा कि पिता के खिलाफ एक क्रिमिनल केस के अलावा ऐसा कुछ नहीं है, जो उसे बच्चे की कस्टडी के लिए अयोग्य बनाए। याचिका में तर्क दिया गया है कि शख्स ने दूसरी शादी कर ली है, जिससे उसे एक बच्चा है। इसीलिए उसे पहली पत्नी से हुए बच्चे की कस्टडी नहीं दी जा सकती।
बच्चे की कस्टडी किसी और को नहीं दे सकतेः कोर्ट
बेंच ने कहा कि हमने चैंबर में बच्चे (जो अब करीब 15 साल का है) से बात की तो उसने यह बात स्वीकार की कि उसे अपने पिता की याद आती है। बच्चा डेढ़ साल की उम्र से नाना-नानी के साथ रहा है, इसीलिए उसके मन में नाना-नानी के लिए ज्यादा लगाव है। इस सब के बावजूद कोई भी बच्चे के मां-बाप की जगह नहीं ले सकता। यहां तक की मां-बाप आर्थिक संकट से भी जूझ रहे हैं, उस स्थिति में भी बच्चे की कस्टडी किसी और को नहीं दी जा सकती।
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने बच्चे के नाना-नानी की याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि फैमिली कोर्ट ने पिता को बच्चे की कस्टडी नहीं दी। पिता एक साल तक अपने बच्चे से मुलाकात कर सकेगा। इसके बाद पिता बच्चे से मिलने या उसकी कस्टडी मांगने के लिए कोर्ट में अपील कर सकता है।