सेना का खूंखार डाॅग: ऐसे होता है इनका प्रमोशन, जानिए रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी

इन डॉग्स को सैनिकों की तरह ही सेना में भर्ती किया जाता है, डॉग के लिए भी ये देखा जाता है कि वे शारीरिक तौर पर मजबूत और चुस्ती-फुर्ती से भरे-पूरे हैं कि नहीं। आमतौर पर इसके लिए लेब्राडोर, बेल्जियन मैलिनॉयस और जर्मन शेफर्ड को चुना जाता है। ये तेज-तर्रार तो होते ही हैं।

SK Gautam
Published on: 9 Feb 2021 9:23 AM GMT
सेना का खूंखार डाॅग: ऐसे होता है इनका प्रमोशन, जानिए रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी
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सेना का खूंखार डाॅग: ऐसे होता है इनका प्रमोशन, जानिए रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी

नई दिल्ली: पुलिस हो या सेना खोजी कुत्तों का रोल काफी अहम होता है। भारतीय सेना द्वारा चलने वाले आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में प्रशिक्षित कुत्तों की यूनिट को डॉग स्कवाड कहा जाता है जिनका बड़ा योगदान रहा है। ये डॉग ट्रेनिंग के बाद अपनी तेजी जैसी कई खूबियों के कारण सेना का अहम अंग बने हुए हैं। आपको बता दें कि इन आर्मी डॉग्स की अहमियत का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि उन्हें सेना में रैंक भी दी जाती है। लेकिन जानकर यह दुःख होगा कि रिटायरमेंट के बाद आमतौर पर उन्हें दयामृत्यु दे दी जाती रही।

ये डॉग होते हैं काफी तेज-तर्रार

इन डॉग्स को सैनिकों की तरह ही सेना में भर्ती किया जाता है, डॉग के लिए भी ये देखा जाता है कि वे शारीरिक तौर पर मजबूत और चुस्ती-फुर्ती से भरे-पूरे हैं कि नहीं। आमतौर पर इसके लिए लेब्राडोर, बेल्जियन मैलिनॉयस और जर्मन शेफर्ड को चुना जाता है। ये तेज-तर्रार तो होते ही हैं, साथ ही कम समय में ज्यादा सीख पाते हैं।

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नियुक्ति के बाद लंबी ट्रेनिंग

नियुक्ति के बाद इनकी लंबी ट्रेनिंग होती है। इस दौरान जिस भी खास ऑपरेशन के लिए इन्हें नियुक्त किया जाता है, उसके हिलाब से प्रशिक्षण मिलता है। जैसे अगर बम दस्ते में डॉग की भर्ती हुई हो तो जमीन या वस्तु सूंघकर दूर से ही विस्फोटक का पता कैसे लगाया जाए, ये सिखाया जाता है।

नेशनल ट्रेनिंग सेंटर फॉर डॉग (NTCD)देता है प्रशिक्षण

इस तरह के प्रशिक्षण के लिए नेशनल ट्रेनिंग सेंटर फॉर डॉग (NTCD) काम करता है। इसके ट्रेनर न केवल विस्फोटकों का पता लगाने, बल्कि सर्च और रेस्क्यू अभियान चलाने से लेकर खदानों का पता लगाने और यहां तक कि भीड़ नियंत्रण जैसे कामों के लिए इन्हें ट्रेनिंग देते हैं।

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इन्हें अवाज की बजाए आंखों के इशारे से समझना और काम करना सिखाया जाता है। हैंडलर उन्हें इस हद तक प्रशिक्षित कर देते हैं कि मुसीबत के समय डॉग्स को कमांड देने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि वे बिना बोले काम शुरू कर देते हैं।

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सेना में इन्हें न भौंकने की तक ट्रेनिंग

खास ऑपरेशन जैसे सर्च और बचाव अभियान या फिर आतंकियों का सुराग लेने के दौरान छोटी से छोटी आहट मुश्किल ला सकती है। यही कारण है कि सेना में इन्हें न भौंकने की तक ट्रेनिंग मिलती है। इससे वे बेखटके काम कर पाते हैं।

ज्यादा आक्रामक न सीख पाने पर ट्रेनिंग से अलग कर दिया जाता है

आर्मी डॉग की ट्रेनिंग की शुरुआत बेहद ख़ास तरीके से होती है लगभग 15 दिनों के लिए ये अपने ट्रेनर के साथ ही रहते हैं। इस दौरान चौबीसों घंटे साथ रहने को कई बार marrying-up भी कहा जाता है। इस दौरान कुत्ते अगर ज्यादा आक्रामक हों या फिर उन्हें किसी कारण से सीखने में कोई परेशानी हो या फिर शारीरिक तौर पर उतने फिट न लगें तो उन्हें ट्रेनिंग से अलग कर दिया जाता है।

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भारतीय सेना के पास लगभग 1000 आर्मी डॉग्स

बता दें कि भारतीय सेना के पास ऐसे लगभग 1000 आर्मी डॉग्स हैं। इनमें से लगभग सभी अलग-अलग कामों के लिए प्रशिक्षित हैं लेकिन सर्च और बचाव अभियान में सबको महारथ हासिल है। यहां तक कि उन्हें कई ऑपरेशन्स को जान पर खेलकर अंजाम देने के लिए वीरता पुरस्कार भी मिलते रहे हैं। Remount Veterinary Corps (RVC) में एक शौर्य चक्र और वीरता के लिए मिले ढेरों दूसरे सम्मान सजे हुए हैं। इसके अलावा अवॉर्ड जीतने वाले कुत्तों को हर महीने 15,000 से लेकर 20,000 रुपये मिलते हैं जिसे उनके खाने से लेकर सेहत तक पर खर्च किया जा सके।

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सेना में डॉग का प्रमोशन भी होता है

आर्मी डॉग अपने ट्रेनिंग के बाद ऑपरेशनों से जुड़ जाते हैं और एक समय के साथ उनकी सेना में पोजिशन भी ऊपर होती जाती है। किसी अभियान के दौरान बेहद बहादुरी दिखाने पर डॉग को प्रमोशन भी मिलता है। इसी तरह से इनका रिटायरमेंट भी होता है, जो आमतौर पर 8 से 10 साल के दौरान हो जाता है।

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बुरी तरह से घायल या रिटायरमेंट के बाद दयामृत्यु

आर्मी में सेवा के दौरान अगर कोई डॉग इस दौरान घायल हो जाए और इलाज के बावजूद ठीक न हो सके तो उसे दयामृत्यु दी जाती है। इसके बाद सेना के अधिकारी की तरह सम्मान से ही उनका अंतिम संस्कार किया जाता है। रिटायरमेंट के बाद आर्मी डॉग को दया मृत्यु देना काफी समय से विवादों में रहा। हाल ही में इसमें बदलाव हुआ है। इन्हें सेवानिवृति के बाद डॉग्स के लिए बने ओल्ड-एज होम में दिया जा सकता है। मेरठ के वॉर डॉग ट्रेनिंग स्कूल में ऐसे ओल्ड एज होम की शुरुआत भी हो चुकी है।

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