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सिंधु जल समझौते पर बातचीत करेंगे भारत-पाकिस्तान, लेकिन यहां फंसा पेंच

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते लगातार बिगड़ते ही जा रहे हैं। कश्मीर मसले पर पाकिस्तान दुनिया भर से मदद की गुहार लगाकर थक चुका है। लेकिन उसे  कही से भी कोई मदद नहीं मिली है।

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Published on: 9 Aug 2020 2:54 PM GMT
सिंधु जल समझौते पर बातचीत करेंगे भारत-पाकिस्तान, लेकिन यहां फंसा पेंच
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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की फ़ाइल फोटो

नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के रिश्ते लगातार बिगड़ते ही जा रहे हैं। कश्मीर मसले पर पाकिस्तान दुनिया भर से मदद की गुहार लगाकर थक चुका है। लेकिन उसे कही से भी कोई मदद नहीं मिली है।

सिंधु जल समझौते पर भी कुछ ऐसा ही हुआ है। विश्व बैंक ने पाकिस्तान को बड़ा झटका देते हुए भारत के साथ सालों से चल रहे उसके जल विवाद में मध्यस्थता करने से इनकार कर दिया है।

जिसके बाद खुद भारत ने दरियादिली दिखाते हुए सिंधु जल समझौते पर पाकिस्तान के सामने एक बार फिर से बातचीत करने के लिए प्रस्ताव रखा है।

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत ने पाकिस्तान से सिंधु जल आयोग की आभासी बैठक बुलाने को कहा है। भारत की तरफ से ये प्रस्ताव मिलने के बाद पाकिस्तान ने कहा है कि दोनों देशों के बीच वार्ता अटारी बॉर्डर पर होनी चाहिए। जबकि भारत चाहता है कि बातचीत वर्चुअल तरीके से हो।

सिन्धु जल समझौते की प्रतीकात्मक फोटो सिन्धु जल समझौते की प्रतीकात्मक फोटो

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वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान से कही ये बात

बता दे कि वर्ल्ड बैंक ने 8 अगस्त को पाकिस्तान से कहा कि दोनों देशों को किसी न्यायालय मध्यस्थता की नियुक्ति पर विचार करना चाहिए। इस विवाद में हम कुछ नहीं कर सकते हैं।

इस्लामाबाद में अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने पर विश्व बैंक के पाकिस्तान मामलों के पूर्व निदेशक पेटचमुथु इलंगोवन ने कहा कि इस विवाद को हल करने के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों को साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

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सिन्धु नदी की फ़ाइल फोटो सिन्धु नदी की फ़ाइल फोटो

कब हुआ सिंधु जल समझौता?

19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ। पानी को लेकर जब भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद ज्यादा बढ़ गया तब 1949 में अमेरिकी विशेषज्ञ और टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल ने इसे तकनीकी रूप से हल करने का सुझाव दिया।

उनके राय देने के बाद इस विवाद को हल करने के लिए सितंबर 1951 में विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने मध्यस्थता करने की बात स्वीकार कर ली। जिसके बाद ये समझौता हो पाया।

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