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बिजनेसमैन रतन टाटा ने कोरोना के बढ़ते मामलों के लिए इनको ठहराया जिम्मेदार
रतन टाटा को इस बात का मलाल है कि वह एक आर्किटेक्ट (Architect) के तौर पर अपने काम को लंबे समय तक जारी नहीं रख पाए। टाटा ने कहा कि मैं हमेशा से आर्किटेक्ट बनना चाहता था।
नई दिल्ली: देश के जाने-माने बिजनेसमैन रतन टाटा ने शहरों में डेवलपरों (developers) और आर्किटेक्ट्स (Architects) के मौजूद झुग्गी-झोपड़ियों को अवशेष की तरह इस्तेमाल करने पर अपनी नाराजगी जाहिर की। साथ ही उन्होंने इन झुग्गी झोपड़ी कॉलोनियों को तेजी से कोरोना के बढ़ते मामलों की एक बड़ी वजह बताई है।
हाउसिंग नीतियों पर खड़े किए सवाल
उन्होंने कहा कि बिल्डरों और आर्किटेक्टर्स ने एक तरह से वर्टिकल स्लम तैयार कर दिए हैं, जहां पर न तो साफ हवा है, न साफ-सफाई की व्यवस्था और न ही खुला स्थान। साथ ही उन्होंने झुग्गी-झोपड़ियों की बढ़ती संख्या के लिए हाउसिंग नीतियों पर सवाल उठाते हुए सतर्क हो जाने की हिदायत दी है। भविष्य के डिजाइन और निर्माण विषय पर एक ऑनलाइन चर्चा के दौरान रतन टाटा ने ये सब बातें कहीं।
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रतन टाटा को है इस बात का मलाल
इसके अलावा रतन टाटा को इस बात का मलाल है कि वह एक आर्किटेक्ट (Architect) के तौर पर अपने काम को लंबे समय तक जारी नहीं रख पाए। टाटा ने कहा कि मैं हमेशा से आर्किटेक्ट बनना चाहता था। उन्होंने कहा कि मेरी उस फिल्ड में काफी रुचि थी, मुझे वास्तुशिल्प से बहुत प्रेरणा मिलती है। लेकिन मेरे पिता हमेशा से मुझे इंजीनियर बनाना चाहते थे, इसलिए मैंने दो साल इंजीनियरिंग की।
1959 में हासिल की थी डिग्री
रतन टाटा ने कहा कि उसके बाद मुझे उन दो सालों में मालूम हो गया है कि मुझे आर्किटेक्ट ही बनना है। साल 1959 में टाटा ने कॉरनैल यूनिवर्सिटी से इसकी डिग्री हासिल की। उसके बाद भारत लौटकर टाटा अपने परिवार के बिजनेस को संभालने से पहले लॉस एंजिलिस में एक आर्किटेक्ट के कार्यालय में भी कुछ वक्त काम भी किया।
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पढ़ाई के बावजूद मैं आर्किटेक्ट नहीं बन सका
उन्होंने कहा कि 'दो साल अमेरिका के लॉस एंजिल्स में इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बावजूद मैं आर्किटेक्ट नहीं बन सका, इसका पछतावा है।' उन्होंने कहा कि मुझे आर्किटेक्ट बन पाने का दुख कभी नहीं रहा, लेकिन इस बात का मलाल रहा है कि मैं अधिक समय तक इस काम को जारी नहीं रख सका।
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