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बड़ी खबर सैयद गिलानी ने हुर्रियत से नाता तोड़ा, बताई जा रही ये खास वजह

जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफे दे दिया है। उन्होंने खुद इस बात की घोषणा की है। उन्होंने एक ऑडियो संदेश में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफे देने का एलान किया है।

Shreya
Published on: 29 Jun 2020 9:06 AM GMT
बड़ी खबर सैयद गिलानी ने हुर्रियत से नाता तोड़ा, बताई जा रही ये खास वजह
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जम्मू-कश्मीर: जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफे दे दिया है। उन्होंने खुद इस बात की घोषणा की है। उन्होंने एक ऑडियो संदेश में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफे देने का एलान किया है। सैयद अली शाह गिलानी ने कहा कि उन्होंने खुद को हुर्रियत से दूर कर लिया है। उनका कहना है कि उन्होंने यह फैसला हुर्रियत के मौजूदा हालात को देखते हुए किया है।

मौजूदा हालातों को देखते हुए अलग हुए गिलानी

ऑडियो मैसेज में गिलानी ने कहा कि हुर्रियत के मौजूदा हालात को देखते हुए ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से अलग होने का फैसला लिया है। उन्होंने बताया कि मैंने हुर्रियत के सभी घटकों को अपने फैसले के बारे में सूचित कर दिया है। उन्होंने ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा दे दिया है।

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बीते कुछ महीनों से खराब चल रही गिलानी की तबीयत!

90 साल के अलगाववादी नेता गिलानी कई सालों से घर के भीतर नजरबंद हैं। बीते कुछ महीनों से उनकी सेहत बहुत नाजुक होने की भी खबरें आ रही हैं। इसी साल उन्हें फरवरी में अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था। कई बार उनकी सेहत को लेकर अफवाहें भी उड़ीं।

यह बीते साल पांच अगस्त 2019 के बाद (आर्टिकल 370 हटाने के बाद) जम्मू-कश्मीर में लगातार बदल रहे राजनीतिक हालात के बीच अलगाववादी धड़े की सियासत का सबसे बड़ा घटनाक्रम है।

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क्या है हुर्रियत कॉन्फ्रेंस?

अगर बात करें हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की तो यह 26 अलगाववादी संगठनों ने 26 अलगाववादी संगठनों ने 9 मार्च 1993 को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन किया था। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के सबसे पहले चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारुक रहे। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस में छह सदस्यीय कार्यकारी समिति भी बनाई गई थी। इसी समिति का फैसला अंतिम निर्णय माना जाता है।

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हुर्रियत दो गुटों में बंट गई

उसके बाद मतभेदों के चलते कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी ने 7 अगस्त 2004 को अपने समर्थकों के साथ हुर्रियत का नया गुट बनाया था। इस फैसले से हुर्रियत दो गुटों में बंट गई। सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाली हुर्रियत को कटटरपंथी गुट और मीरवाइज मौलवी उमर फारुक के नेतृत्व वाली हुर्रियत को उदारवादी गुट कहा जाने लगा।

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