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निर्भया केस: दोषियों की फांसी पर SC के पूर्व जज ने खड़े किए सवाल, कहा- क्या फांसी पर...
पुरे देश को हिला कर रख देने वाले निर्भया मामले में दोषियों को फांसी की सजा सुना दी गयी है। चरों दोषियों को 20 को फांसी होनी है। वहीँ फांसी टालने के लिए दोषियों और उनके वकील द्वारा तमाम पैंतरे अजमाए जा रहे हैं। अब जब निर्भया गैंगरेप और हत्या के दोषियों को फांसी पर लटकाने का वक्त करीब आ गया है, तब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जोसफ कुरियन ने इस फैसले पर सवाल उठाया है।
नई दिल्ली: पुरे देश को हिला कर रख देने वाले निर्भया मामले में दोषियों को फांसी की सजा सुना दी गयी है। चरों दोषियों को 20 को फांसी होनी है। वहीँ फांसी टालने के लिए दोषियों और उनके वकील द्वारा तमाम पैंतरे अजमाए जा रहे हैं। अब जब निर्भया गैंगरेप और हत्या के दोषियों को फांसी पर लटकाने का वक्त करीब आ गया है, तब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जोसफ कुरियन ने इस फैसले पर सवाल उठाया है।
जस्टिस कुरियन ने उठाया सवाल-
जस्टिस कुरियन ने बुधवार को सवाल किया कि इन दोषियों को फांसी पर लटकाने से क्या इस तरह के अपराध कम हो जाएंगे? साथ ही उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐस दोषियों को हमेशा के लिए जेल भेज देना चाहिए। इस तरह से समाज को बताया जा सकता है कि अगर कोई भी इस तरह के अपराधों में लिप्त होता है तो वह हमेशा के लिए सलाखों के पीछे होगा। उन्होंने कहा कि फांसी दे देने पर लोग अपराध को भूल जाएंगे।
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बच्चन सिंह केस का दिया हवाला-
पूर्व जज कहा कि फांसी देने से क्या इस तरह के गुनाह रुक जाएंगे? वहीँ बच्चन सिंह केस का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा था कि फांसी की सजा तभी दी जाए, जब मामला काफी दुर्लभतम हो और सजा देने का कोई दूसरा विकल्प न बचा हो।
फांसी की जगह उम्र भर जेल में रहें ऐसे अपराधी-
उन्होंने कहा कि अगर ऐसे जघन्य अपराधियों को ताउम्र जेल में रखा जाए तो समाज के लिए यह याद रखने वाली बात होगी जबकि फांसी के बाद लोग घटनाओं को भूल जाते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि चारों दोषियों को फांसी पर लटका देने से निर्भया के माता-पिता को न्याय मिल जाएगा। पीड़ित के पैरंट्स के प्रति हमारी सहानुभूति जरूर है। मुझे सच में बुरा लगता है।
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दंड का मतलब प्रतिशोध नहीं-
कुरियन ने कहा कि दंडित करने का मकसद प्रतिकार, क्षतिपूर्ति और सुधार होता है। उन्होंने कहा, 'मेरे हिसाब से कोर्ट ने अगर दया याचिका पर विचार करते हुए इन सभी पक्षों को नजरअंदाज कर दिया तो राष्ट्रपति और सरकार का कर्तव्य है कि इनमें कुछ पहलुओं पर विचार करे।' उन्होंने कहा कि जस्टिस का मतलब जान के बदले जान नहीं होता है।
फांसी से बचने के लिए दोषी अजमा रहे पैंतरे-
बता दें कि दोषी फांसी टालने के लिए लगातार नए-नए पैंतरे अपना रहे हैं। चार दोषियों में से एक अक्षय कुमार सिंह की पत्नी ने मंगलवार को बिहार के औरंगाबाद जिले की कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई। उसने याचिका में कहा- मेरे पति को 20 मार्च को फांसी होने वाली है। मैं विधवा की तरह नहीं जीना चाहती। मेरा पति निर्दोष है। मैं चाहती हूं कि फांसी से पहले कानूनी तौर पर हमारा तलाक हो जाए। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 19 मार्च तक स्थगित कर दी है। वहीँ दोषी पवन, अक्षय और विनय ने फांसी पर रोक लगाने के लिए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में अपील की है।
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