कारगिल के वीर जवान को सिस्‍टम से मलाल

भवानीगढ़ कस्‍बे के एक चौक पर उलझी ट्रैफिक व्‍यवस्‍था को सामान्‍य करते यातायात पुलिस के इस हेड कांस्‍टेबल के अंदाज इसके अन्‍य पुलिस कर्मियों से अलग करते हैं। इस पुलिसकर्मी की वर्दी भी वर्दी पर लगे मेडल भी इसे पंजाब पुलिस के अन्‍य कर्मियों से अलग पहचान दिलाते हैं।

Dharmendra kumar
Published on: 27 July 2019 4:44 PM GMT
कारगिल के वीर जवान को सिस्‍टम से मलाल
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दुर्गेश पार्थसारथी

संगरूर: भवानीगढ़ कस्‍बे के एक चौक पर उलझी ट्रैफिक व्‍यवस्‍था को सामान्‍य करते यातायात पुलिस के इस हेड कांस्‍टेबल के अंदाज इसके अन्‍य पुलिस कर्मियों से अलग करते हैं। इस पुलिसकर्मी की वर्दी भी वर्दी पर लगे मेडल भी इसे पंजाब पुलिस के अन्‍य कर्मियों से अलग पहचान दिलाते हैं। जी हां। हम बात कर रहे हैं वीर चक्र विजेता हवालदार सत्‍पाल सिंह की।

ये वही सत्‍पाल सिंह हैं जिन्‍होंने सेना में रहते हुए 1999 में कारिगल जंग के दौरान पाकिस्‍तान सेना के एक मेजर सहित चार सैनिकों को ढेर कर दिया था। यह सत्‍पाल सिंह की बंदूक से निकली गोली की ही दहशत थी कि दुश्‍मन सेना के पांव उखड़ गए थे। फिलहाल पटियाला के संगरूर रोड स्थित भाखड़ा एनक्‍लेव कॉलोनी रहने वाले हेड कांस्‍टेबल (अब प्रमोट हुए एएसआई) सतपाल सिंह को सिस्‍टम से थोड़ी नाराजगी है।

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वीर चक्र से सम्‍मानित जिस सतपाल सिंह के अदम्‍य साहस को देश सलाम करता है उन्‍हीं सत्‍पाल सिंह को पंजाब पुलिस से सम्‍मान मिलने में दस साल लग गए। सतपाल सिंह कहते हैं राज्‍य सरकार से उन्‍हें थोड़ा रंज जरूर है। पर, हो सकता है सरकार की भी कोई मजबूरी रही हो या इनका अपना कोई रुल हो। बहरहाल उन्‍हें पंजाब गवर्नमेंट से इस बात से शिकवा है कि उनका एमबीए पास बेटा आज बेरोजगार घूम रहा है। सरकार को चाहिए कि वह हम जैसे सैनिकों के बच्‍चों को पंजाब पुलिस में एएसआई भर्ती करे।

भारतीय फौज में 18 वर्ष सेवा देने के बाद रिटायर्ड हुए पटियाला जिले के एक छोटे से गांव फतेहपुर के रहने वाल सत्‍पाल सिंह वर्ष 2010 में पंजाब पुलिस में भर्ती हुए थे। उन दिनों को (कारगिल जंग) याद करते हुए सतपाल सिंह कहते हैं कि उस समय उनकी तैनाती जम्‍मू-कश्‍मीर के द्रास सेक्‍टर थी। लेकिन उन्‍हें यह पता नहीं था कि उन्‍होंने जिसे मारा है वह पाकिस्‍तानी सेना कैप्‍टन शेर खान था। वे बताते हैं- न्‍हें (सतपाल सिंह ) बाद में पता चला कि उन्‍होंने एक पाकिस्‍तानी कैप्‍टन, उसका रेडियोग्राफर दो सैनिकों को मौत की नींद सुला दी है। कैप्‍टन शेर खान के मरते ही पाकिस्‍तानी सेना का हौसला पस्‍त हो गया था। सत्‍पाल सिंह कहते हैं कि उन्‍हें उनकी बहादुरी के लिए सेना सर्वश्रेष्‍ठ मेडलों में से एक वीरता पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया।

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सतपाल सिंह कहते हैं वे पंजाब पुलिस में 13 प्रतिशत पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित कोटे के तहत पुलिस में भर्ती हुए थे। अन्‍य प्रदेशों में यह कोटा करीब 30 प्रतिशत है। पंजाब सरकार को भी यह कोटा बढ़ाया जाना चाहिए।

पिता भी रहे हैं फौजी

इसी साल कारगिल दिवस पर एकही साथ दो-दो प्रमोशन लेने वाले सतपाल सिंह कहते हैं कि उनके पिता भी सेना में थे। वे अपने परिवार के बारे में कहते हैं कि उनका परिवार संयुक्‍त है। एक भाई है जो अपनी पत्‍नी और बच्‍चों के साथ गांव फतेहपुर में रहते हैं और खेती हैं। जबकि, वह अपनी मां, पत्‍नी और तीन बच्‍चों (एक बेटा और दो बेटियों) के साथ पटियाला में रहते हैं।

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एमबीए के बाद भी बेरोजगार है बेटा

वीर चक्र से सम्‍मानित सतपाल सिंह कहते हैं कि एमबीए के बाद भी उनका बेटा बेरोजगार है। जबकि, एक बेटी अंग्रेजी से एमए कर रही है और दूसरी बीकॉम। सतपाल को मलाल इस बात का कि प्रदेश सरकारें उन जैसे बहादुर जवानों के बच्‍चों के बारे में नहीं सोचती हैं। फिलहाल उनका बेटा सेना में अफसर के लिए तैयारी कर रहा है।

65 और 71 के युद्ध बंदियों रिहाई पर भी होनी चाहिए बात

सेना और सेना के जवानों की बेहतरी के लिए केंद्र सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए सतपाल सिंह कहते हैं कि सेंट्रल गवर्नमेंट को 1965 और 71 के युद्ध बंदियों रिहाई के लिए भी कदम उठाने चाहिए। वे कहते हैं भारत सरकार ऐसे सैनिकों को शहीद मानते हुए उनके परिजनों को पेंशन लगा दी है। जबकि पाकिस्‍तान की विभिन्‍न जेलों से छूट कर आने वाले कैदियों के मुताबिक पाकिस्‍तान की जेलों में भारतीय युद्ध बंदी नारकीय जीवन जी रहे हैं। युद्ध बंदियों की संख्‍या कोई ज्‍यादा नहीं बल्कि 20-25 होगी। सरकार को इस दिशा में प्रयास करने चाहिए।

Dharmendra kumar

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