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फेमस तेजपुर की लीची: बेहद ख़ास है ये फल, मिला #GI टैग का दर्जा

असम के तेजपुर की लीची को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिलने इस वस्तु को राज्य में उसकी उत्पत्ति का एक विशिष्ट उत्पाद बनाता है, जो इसे इससे मिलते-जुलते उत्पाद से बचाता है। तेजपुर की लीची को उत्कृष्ट गुणवत्ता, सुखद स्वाद, आकर्षक लाल रंग के साथ रसदार गूदे के लिए जाना जाता है।

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Published on: 23 Dec 2020 5:53 PM IST
फेमस तेजपुर की लीची: बेहद ख़ास है ये फल, मिला #GI टैग का दर्जा
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फेमस तेजपुर की लीची: बेहद ख़ास है ये फल, मिला #GI टैग का दर्जा

नई दिल्ली: असम के तेजपुर की लीची को उसकी गुणवत्ता, एक विशेष स्वाद, आकर्षक लाल रंग के साथ रसदार गूदे के लिए जाना जाता है। इसकी इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए असम की तेजपुर लीची को #GI टैग का दर्जा प्रदान किया गया है। इसके अलग-अलग आकार, रंग, स्वाद और रसदार गूदे से बनी, तेजपुर लीची को प्रतिष्ठित भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग मिला, जो इस मद को राज्य में उनकी उत्पत्ति का एक अप्रमाणिक प्रमाण बनाता है और उन्हें अन्यत्र उत्पादन से बचाता है।

असम के तेजपुर की लीची

असम के तेजपुर की लीची को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिलने इस वस्तु को राज्य में उसकी उत्पत्ति का एक विशिष्ट उत्पाद बनाता है, जो इसे इससे मिलते-जुलते उत्पाद से बचाता है। तेजपुर की लीची को उत्कृष्ट गुणवत्ता, सुखद स्वाद, आकर्षक लाल रंग के साथ रसदार गूदे के लिए जाना जाता है।

Geographical Indication (GI) tag to Teetpur's litchi-2

जीआई टैग सूची में लीची का नाम 2015 से शामिल

बता दें कि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agriculture and Processed Food Products Export Development Authority) ने असम की तेजपुर लीची को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग दिए जाने की घोषणा की है, हालांकि जीआई टैग सूची में लीची का नाम 2015 से शामिल था। जीआई टैगिंग के लिए 28 अगस्त 2013 को उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय कृषि विपणन निगम लिमिटेड (North Eastern Regional Agricultural Marketing Corporation Ltd) द्वारा आवेदन किया गया था।

gi tag

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क्या है "जीआई" टैग या भौगोलिक संकेत

किसी भी भौगोलिक संकेत का उपयोग विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति के एक उत्पाद पर किया जाता है जो इसकी उत्पत्ति के स्थान के कारण इसकी विशिष्टता या प्रतिष्ठा के लिए दिया है। इसके लिए पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क के नियंत्रक जनरल के कार्यालय में आवेदन दाखिल करना होगा। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत एक शीर्ष निकाय कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) द्वारा इसकी पुष्टि की गई है, जो कृषि उत्पादों के निर्यात संवर्धन के लिए जिम्मेदार है।

जीआई टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग कब हुआ पारित

भारतीय संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग्स का काम उस खास भौगोलिक परिस्थिति में पाई जाने वाली वस्तुओं के दूसरे स्थानों पर गैर-कानूनी प्रयोग को रोकना है।

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किसको मिलता है

किसी भी वस्तु को जीआई टैग देने से पहले उसकी गुणवत्ता, क्वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है। यह तय किया जाता है कि उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिगिनल पैदावार निर्धारित राज्य की ही है। इसके साथ ही यह भी तय किए जाना जरूरी होता है कि भौगोलिक स्थिति का उस वस्तु की पैदावार में कितना हाथ है। कई बार किसी खास वस्तु की पैदावार एक विशेष स्थान पर ही संभव होती है। इसके लिए वहां की जलवायु से लेकर उसे आखिरी स्वरूप देने वाले कारीगरों तक का हाथ होता है।

basmati rice

बासमती चावल के साथ इन उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग

भारत में जीआई टैग किसी खास फसल, प्राकृतिक और निर्मित सामानों को दिए जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि एक से अधिक राज्यों में बराबर रूप से पाई जाने वाली फसल या किसी प्राकृतिक वस्तु को उन सभी राज्यों का मिला-जुला GI टैग दिया जाए। यह बासमती चावल के साथ हुआ है। बासमती चावल पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों का अधिकार है।

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gi tag on rasgulla

रसगुल्लों पर भी हुआ था जीआई टैग का विवाद

रसगुल्लों की मिठास से शायद ही कोई अछूता रहा हो लेकिन यह मिठास पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच खटास का कारण बन गई थी। ये दोनों राज्य साल 2015 से इस विवाद में थे कि रसगुल्लों का जीआई टैग उनके प्रदेश को दिया जाना चाहिए। पश्चिम बंगाल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि रसगुल्ले को सबसे पहले नोबिन चंद्र दास नाम के हलवाई ने 1860 के दशक में बनाया था, वहीं ओडिशा का कहना है कि 12वीं शताब्दी से जगन्नाथ पुरी मंदिर में भोग लगाने के लिए रसगुल्लों का प्रयोग किया जाता था। बनारसी साड़ी, मैसूर सिल्क, कोल्हापुरी चप्पल, दार्जिलिंग चाय इसी कानून के तहत संरक्षित हैं।

gi tag on kadaknath murga

कड़कनाथ मुर्गे को जीआई टैग दिया गया है

कड़कनाथ मुर्गे को मिलाकर भारत में अभी तक 272 वस्तुओं को GI टैग दिया गया है। ये लिस्ट हर दो सालों अपडेट की जाती है। 2016 से अबतक इस लिस्ट में 12 वस्तुएं शामिल की गईं जिनमें उत्तराखंड की तेजपात, सोलापुर के अनार और कश्मीर की हाथ से बुनी गई कारपेट शामिल है। कर्नाटक एक ऐसा राज्य है जिसके पास सबसे अधिक 40 वस्तुओं के जीआई अधिकार है।

जीआई टैग के अधिकार हासिल करने के लिए ऐसे करते हैं अप्लाई

जीआई टैग के अधिकार हासिल करने के लिए चेन्नई स्थित GI-डेटाबेस में अप्लाई करना पड़ता है। इसके अधिकार व्यक्तियों, उत्पादकों और संस्थाओं को दिए जा सकते हैं एक बार रजिस्ट्री हो जाने के बाद 10 सालों तक यह GI टैग मान्य होते हैं, जिसके बाद इन्हें फिर रिन्यू करवाना पड़ता है। पहला GI टैग साल 2004 में दार्जिलिंग चाय को दिया गया था।

gi tag on banarsi sadi

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जीआई टैग के फायदे

जीआई टैग मिलने के बाद अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में उस वस्तु की कीमत और उसका महत्व बढ़ जाता है। इस वजह से इसका एक्सपोर्ट बढ़ जाता है। साथ ही देश-विदेश से लोग एक खास जगह पर उस विशिष्ट सामान को खरीदने आते हैं। इस कारण टूरिज्म भी बढ़ता है। किसी भी राज्य में ये विशिष्ट वस्तुएं उगाने या बनाने वाले किसान और कारीगर गरीबी की रेखा के नीचे आते हैं। GI टैग मिल जाने से बढ़ी हुई एक्सपोर्ट और टूरिज्म की संभावनाएं इन किसानों और कारीगरों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाती हैं।

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