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मोदी की किसानों पर नई रणनीति, तिलहन उत्पादन बढ़ाने में हैं ये बड़ी बाधाएं
एमएसपी के लिए जूझ रहे किसानों को क्या लाभ मिलेगा? बीते सात सालों में तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने क्या किया? इस तरह के तमाम सवाल लंबे समय से उत्तर की प्रतीक्षा में हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
भारत को हर साल सत्तर हज़ार करोड़ का खाद्य तेल का आयात करना पड़ता है। आयात का यह आँकड़ा तब है जब देश खाने के तेल की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए तकरीबन 70 फीसदी तेल का आयात करता है। देश के तिलहन की ज़रूरत का केवल तीस फ़ीसदी ही हम घरेलू उत्पादन कर पाते हैं। इस आयात में पाम आयल की मात्रा सबसे ज्यादा होती है। पाम आयल सबसे अधिक इंडोनेशिया और मलेशिया में होता है। विशेषज्ञों की मानें तो यह तेल लोगों की सेहत और देश की अर्थव्यवस्था दोनों को नुकसान पहुंचा रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को तिलहन की खेती की ओर मोड़ना चाहते हैं।
सात साल में तिलहन उत्पादन को बढ़ावा
पर सवाल यह उठता है कि किसान आंदोलन के दौरान इस पर जोर देने की वजहें क्या हैं? एमएसपी के लिए जूझ रहे किसानों को क्या लाभ मिलेगा? बीते सात सालों में तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने क्या किया? इस तरह के तमाम सवाल लंबे समय से उत्तर की प्रतीक्षा में हैं।
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ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि किसानों का रुझान गेहूं और धान के मुकाबले सरसों में कम क्यों है। इसकी वजह यह है कि आमतौर पर किसानों को तिलहन की फसलें समर्थन मूल्य से नीचे या घाटे के सौदे में बेचनी पड़ती हैं।
किसानों को गेहूं व धान की खेती से तिलहन की ओर मोड़ रहे पीएम
2020 के साल कोर्स लिहाज़ से अपवाद कह सकते हैं कि जब सरसों का दाम साल भर एमएसपी से ज्यादा रहा है। इसके दाम चढ़ने की वजह बेमौसम बारिश से इसकी फसल को पहुंचा नुकसान रहा है। सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य-एमएसपी 4425 रुपए प्रति क्विंटल था । जबकि देश की सबसे बड़ी सरसों मंडी भरतपुर में इस साल इसका दाम 5400 रुपये क्विंटल तक था। अभी भी इसका दाम बाजार में एमएसपी से ऊपर ही चल रहा है । लेकिन हर साल ऐसा नहीं होता।
एक बात और है कि अपने देश में खाद्य तेलों में बड़े पैमाने मिलावट होती है , जिस दिन तेलों में मिलावट पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी , उस दिन से सरसों के दाम खुले बाजार में भी एमएसपी से नीचे नहीं आएगा। समझने की बात यह है कि देश में खाद्य तेलों की कीमतों के नियंत्रण में बिजनेस की एक बड़ी लॉबी काम करती है। जब सरसों का प्रोडक्शन होता है तो यही लॉबी कस्टम ड्यूटी घटवा देती है। इसलिए किसान को उचित दाम नहीं मिलता है।
तिलहन की खरीद में तमाम राज्य रुचि नहीं दिखाते हैं, इसीलिए किसान एमएसपी को लेकर चिंतित हैं । क्योंकि उसे खुले बाजार में आमतौर पर एमएसपी जैसा अच्छा दाम नहीं मिलता है।
सरसों का दाम साल भर एमएसपी से ज्यादा रहा
प्रधानमंत्री को यह भी देखना चाहिए कि सरकारी खरीद का राष्ट्रीय औसत लगभग 8 फीसदी ही है। यहां तक कि सबसे ज्यादा उत्पादन के बावजूद राजस्थान सरकार भी उस अनुपात में सरकारी खरीद नहीं करती है। लेकिन सरसों उत्पादन बढ़ाने के लिए मोदी सरकार मिशन मोड में काम करना चाहती है तो इसे यह सब भी देखना पड़ेगा।
देश में खाद्य तेलों में बड़े पैमाने में मिलावट
प्रधानमंत्री की यह बात गलत नहीं है विशेषज्ञों के मुताबिक गेहूं के मुकाबले सरसों के उत्पादन में फायदा ज्यादा है। तिलहन में गेहूं के मुकाबले कटाई की लागत भी कम है। गेहूं की मार्केटिंग ज्यादा होती है । इसलिए किसान तिलहन पर उतना ध्यान नहीं दे पाता है।
सरसों की पैदावार आमतौर पर प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल होती है । जबकि राष्ट्रीय औसत 15 क्विंटल ही है। इसे नीलगाय भी नहीं खाती हैं। दो सिंचाई की ही जरूरत होती है। किसान प्रति हेक्टेयर 35000 की लागत पर सवा लाख रुपये तक कमा सकते हैं। सरकार का फायदा यह है कि खाद्य तेलों में दूसरे देशों पर निर्भरता कम हो जाएगी।
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खाद्य तेलों में दूसरे देशों पर निर्भरता कम हो जाएगी
केंद्र सरकार ने मस्टर्ड मिशन लॉंच किया है, ताकि सरसों की खेती को बढ़ाया जा सके। सरकार ने 70 लाख हेक्टेयर में खेती और 14 मिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। सरकार का फोकस ऐसे प्रदेशों में है , जहां सरसों की खेती लायक स्थितियां मौजूद हैं ।लेकिन वहां पर किसानों का रुझान इस तरफ नहीं है। असम में 12 जिलों में 50 कलस्टर में आईसीएआर की देखरेख में इसकी खेती हो रही है।
फिलहाल, कुल सरसों उत्पादन का 40.82 फीसदी अकेले राजस्थान पैदा करता है। दूसरे नंबर पर हरियाणा है , जहां देश की करीब 13.33 फीसदी सरसों पैदा होती है। इसके उत्पादन में मध्य प्रदेश में की हिस्सेदारी 11.76, यूपी की 11.40 और पश्चिम बंगाल की 8.64 फीसदी है।
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