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राजनीति के जय-वीरु: कुछ ऐसी है इनकी अनसुनी कहानी, इतना पुराना है रिश्ता

Shreya
Published on: 22 Oct 2019 7:55 AM GMT
राजनीति के जय-वीरु:  कुछ ऐसी है इनकी अनसुनी कहानी, इतना पुराना है रिश्ता
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राजनीति के जय-वीरु: कुछ ऐसी है इनकी अनसुनी कहानी, इतना पुराना है रिश्ता

पीएम मोदी न केवल भारत के बल्कि दुनिया भर के पसंदीदा नेता हैं। दुनियाभर में प्रधानमंत्री मोदी सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक हैं। अगर पीएम मोदी के राजनीति की बात हो तो अमित शाह का नाम आना लाजमी ही है। दुनियाभर में उनकी जोड़ी को बहुत प्रभावशाली माना जाता है। मोदी-शाह की ये जोड़ी किसी जय-वीरु से कम नहीं है। लेकिन इनकी ये जोड़ी कब बनी, इनकी पहली मुलाकात कब हुई, इन सबके बारे में कम ही लोग जानते हैं। तो चलिए आज आपको बताते हैं कि दोनों कि ये जोड़ी कैसे बनी।

1982 में पहली बार शाह से हुई मुलाकात-

मोदी-शाह का रिश्ता करीब चार दशक पुराना है। सबसे मोदी-शाह से सबसे पहली बार 1982 में संघ की शाखा में मिले थे। उस वक्त अमित शाह महज 17 साल के थे और नरेंद्र मोदी संघ के प्रचारक के तौर पर काम कर रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि सरसंघचालक बालासाहब देवड़ा ने जब मोदी से पहली बार बीजेपी में शामिल होने को कहा था तो शाह ही वो पहले शख्स थे, जिससे मोदी ने अपने बात कही थी। शाह ने भी मोदी को राजनीति की तरफ बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

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अमित शाह ने पार्टी की जीत के लिए किया हर संभव प्रयास-

2014 में जब लोकसभा चुनाव हुआ तो अमित शाह का मोदी और पार्टी में क्या स्थान है सबको पता चल गया। खुद मोदी को अगर जमीनी स्तर का जायजा लेना होता था तो वो शाह पर ही निर्भर रहते थे। अमित शाह भी पार्टी के लिए पूरी तरह से समर्पित थे, इसलिए अमित शाह ने पार्टी को जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। उन्होंने उम्मीदवारों के नाम से लेकर अपना दल जैसी छोटी क्षेत्रीय पार्टी से भी हाथ मिलाया। उस वक्त ये अंदाजा लगाना मुश्किल था कि अमित शाह के इस कदम का असर क्या होने वाला है।

जब शाह को मिली अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी-

बीजेपी पार्टी की जीत के बाद ये तय था कि प्रधानमंत्री पद की शपथ नरेंद्र मोदी ही लेंगे। प्रधानमंत्री का पद संभालते ही मोदी ने अपने सबसे विश्वासपात्र दोस्त अमित शाह को भाजपा का अध्यक्ष पद सौंप दिया। राजनीति में अमित शाह का कोई जवाब नहीं। मोदी के गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री 12 साल के कार्यकाल में अमित शाह के पास सबसे महत्वपूर्ण पद रहे और शाह ने बखूबी अपनी जिम्मेदारियों को संभाला भी। शाह की इस कार्य-कुशलता देख भाजपा के उस वक्त के तत्कालीन अध्यक्ष रहे राजनाथ सिंह ने उन्हें उत्तर प्रदेश में चुनाव के लिए पार्टी की जमीन तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी।

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मोदी से लिए गुरुमंत्र-

शाह के पास मानो लहर का रुख बदलने की कोई तरकीब हो। इसके चलते राजनाथ सिंह ने अमित शाह को दिल्ली भेज दिया और अब वो गुजरात की राजनीति को छोड़कर अब संगठन को मजबूत करने में जुट गए। क्योंकि मोदी निचले स्तर पर संगठन को मजबूत किए जाने का महत्व बखूबी समझते थे इसलिए ये जिम्मेदारी शाह को सौंप दी गई। शाह ने मोदी के राजनीति के कुछ गुरुमंत्र भी अपनाए। गुजरात नीति में आने के बाद शाह ने अपने दुश्मनों को कैसे मुंहतोड़ जवाब देना है ये गुरुमंत्र मोदी से सिखा।

उत्तर प्रदेश में ऐसे हासिल की जीत-

कांग्रेस का गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों, खेल और बैंक संगठनों पर खासा दबदबा था। जिसे देखते हुए मोदी-शाह की जोड़ी ने पहले ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस की साख पर हमला किया। हर चुने गए प्रधान के सामने टक्कर देने के लिए उस प्रधान जितना ही ताकतवर दूसरा व्यक्ति ही होता था, जो चुनाव में हार जाता था। मोदी-शाह ने धीरे-धीरे उन हारे हुए उम्मीदवारों को अपने साथ जोड़ा और थोड़े ही समय के अंदर लगभग 8 हजार प्रधान के खिलाफ लड़ने वाले लोग उनके साथ जुड़ते चले गए। इसी तरह दोनों ने मिलकर खेल और बैंकों में भी अपनी कदम जमा लिए। मोदी से सिखे इस गुरुमंत्र का इस्तेमाल अमित शाह ने उत्तर प्रदेश को जीतने के लिए किया और उसमें वे सफल रहे।

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