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शिरडी पर जंग: उद्धव सरकार ने लिया ये बड़ा फैसला, अब साईं भक्त...
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिरडी विवाद सुलझाने के लिए आज दोपहर 2 बजे एक बैठक बुलाई है। इस बैठक में शिरडी और पाथरी ग्रामसभा, साईबाबा मंदिर ट्रस्ट के सीईओ, संसद सदाशिव लोखंडे, शिरडी के विधायक राधाकृष्ण विखे पाटिल शामिल होंगे।
शिरडी: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिरडी विवाद सुलझाने के लिए आज दोपहर 2 बजे एक बैठक बुलाई है। इस बैठक में शिरडी और पाथरी ग्रामसभा, साईबाबा मंदिर ट्रस्ट के सीईओ, संसद सदाशिव लोखंडे, शिरडी के विधायक राधाकृष्ण विखे पाटिल शामिल होंगे। बता दें कि अपने एक भाषण के दौरान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पाथरी को जन्मभूमि के तौर पर विकसित करने और जन्मस्थली के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये की निधि देने की घोषणा की थी। इसी के बाद से ही विवाद शुरू हुआ। इस बयान के बाद लोगों में काफी गुस्सा देखा गया।
CM के बयान से नाराज हैं शिरडी के लोग
मुख्यमंत्री के बयान से शिरडी के लोग काफी नाराज हैं। शिरडी के निवासियों का कहना है कि साईं बाबा ने अपने पूरे जीवनकाल में जन्म और धर्म का जिक्र कभी नहीं किया और न ही साईं चरित्र में इसके बारे में कुछ लिखा हुआ है। साईं बाबा हमेशा सभी धर्मों को मानने वाले थे और वह हमेशा अपनी जाति परवरदिगार बताते थे। वहीं मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बयान से नाराज बीजेपी सांसद सुजय विखे पाटिल ने इस मामले में कानूनी लड़ाई की चेतावनी दे दी है।
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रविवार को शिरडी बंद
मुख्यमंत्री के इस निर्णय के खिलाफ रविवार को शिरडी बंद का ऐलान किया गया था। रविवार को शिरडी में दुकानें, भोजनालय और बहुत से प्रतिष्ठान बंद रहे। साथ ही सड़कों पर वाहन भी बहुत कम दिखाई दिए। मंदिर न्यास और अहमदनगर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने बताया कि बंद आधी रात से शुरु हुआ लेकिन शिरडी का साईं मंदिर खुला रहा और श्रद्धालुओं ने वहां जाकर बाबा के दर्शन भी किए।
शिरडी ग्राम सभा ने फैसला किया था कि जब तक सीएम अपना बयान वापस नहीं लेते तब तक बंद जारी रहेगा। हालांकि आज यानि सोमवार को महाराष्ट्र के शिरडी में बंद नहीं है। स्थानीय लोगों ने बंद का फैसला वापस ले लिया है।
विवाद का कारण
दरअसल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने साई बाबा की जन्मस्थली के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये की निधि देने की घोषणा की। इसके बाद से ही विवाद शुरू हुआ। जब अहमदनगर जिले में स्थित शिरडी शहर में ही 19वीं सदी में साई बाबा का पूरा जीवन बीता था और इसी कारण यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।
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साईं मंदिर के पूर्व ट्रस्टी अशोक खांबेकर का कहना है कि साईंबाबा ने कभी भी अपने जन्म, धर्म पंथ के बारे में किसी को नहीं बताया। बाबा सर्वधर्मसमभाव के प्रतीक थे। उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे को गलत जानकरी दी गई है। खांबेकर का कहना है कि मुख्यमंत्री पहले साई सत चरित्र का अध्ययन करें और उसके बाद कोई फैसला लें।
साईं बाबा के बहुत से अनुयायी शिरडी से करीब 275 किलोमीटर दूर मराठवाड़ा के परभणी जिले में स्थित पाथरी गांव को उनकी जन्मस्थली मानते हैं। लेकिन श्री साई बाबा संस्थान और शिरडी शहर के लोग इस दावे के खिलाफ हैं।
ये है साईं बाबा का इतिहास
साईं बाबा के अद्भुत चमत्कारों की चर्चा चारों तरफ होती है। साईं बाबा के भक्त पूरी दुनिया में है। हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग उनकी पूजा करते हैं। शिर्डी साईं बाबा को मानने वाले उन्हें योगी, संत, फकीर पुकारते हैं। शिर्डी साईं बाबा के धर्म और जन्म को लेकर लोगों में विरोधाभास है। कुछ लोग उन्हें हिन्दू मानते हैं तो कई लोग उन्हें मुस्लिम। साईं बाबा कहते थे कि सबका मालिक एक है।
साईं बाबा को भारत में एक महान संत के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि ये अद्भुत शक्तियों से सम्पन्न थे। बताया जाता है कि साईं एक युवास्था में फकीर के रूप में सबसे पहले शिरडी गए और जीवनभर वहीं रहे।
जन्म स्थान को लेकर हैं अनेकों मत
मान्यता है कि जो भी उनसे मिलने आया उसका जीवन बदल गया। साईं बाबा के जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों और विद्वानों में अलग-अलग मत हैं। कुछ लोग कहते हैं कि इनका जन्म महाराष्ट्र के पाथरी गांव में 28 दिसंबर के दिन साल 1835 में हुआ था। हालांकि उनके जन्म को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
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साईं सत्चरित्र नामक किताब के मुताबिक साईं 16 साल की अवस्था में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शिर्डी गांव पहुंचे थे। जहां वे एक सन्यासी का जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे हमेशा एक नीम के पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर भक्ति में लीन रहते थे। धीरे-धीरे लोग इनके उपदेशों को अपनाने लगे और इस तरह इनकी ख्याति आसपास के गांवों में बढ़ती गई।
साईं बाबा ने अपने जीवन का एक पुरानी मस्जिद में रहते थे जिसे वह द्वारका माई कहा करते थे। सिर पर सफेद कपड़ा बांधे हुए फकीर के रूप में साईं शिरडी में धूनी रमाए रहते थे। इनके इस रूप के कारण कुछ लोग इन्हें मुस्लिम मानते हैं। जबकि द्वारिका के प्रति श्रद्घा और प्रेम के कारण कुछ लोग इन्हें हिन्दू मानते हैं। लेकिन साईं ने कभी भी अपने को जाति बंधन में नहीं बांधा।
यहां साईं बाबा की है समाधि, दर्शन करने से होता है हर पाप का नाश
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शिर्डी गांव में साईं का मंदिर स्थित है। इस मंदिर से आज भी लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इस मंदिर में साईं के दर्शन के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। यहां साईं बाबा की समाधि है।
सांईं बाबा ने शिर्डी में 15 अक्टूबर दशहरे के दिन 1918 में समाधि ली थी। बताया जाता है कि 27 सितंबर 1918 को साईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने अन्न-जल सब कुछ छोड़ दिया।
बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पहले तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि जिंदा रहना मुमकिन नहीं लग रहा था। लेकिन उसकी जगह सांईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन विजयादशमी (दशहरा) का दिन था।
राष्ट्रपति भी साईंबाबा के जन्मस्थान को लेकर दे चुके हैं बयान
अशोक खांबेकर ने बताया इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी साईंबाबा के जन्मस्थान को लेकर ऐसा बयान दे चुके हैं। राष्ट्रपति 1 अक्टूबर 2018 को साई बाबा समाधि शताब्दी समारोह का उद्धघाटन करने आए थे। उन्होंने भी कहा था कि पाथरी गांव साईंबाबा का जन्मस्थान है और इसके विकास के लिए मैं काम करूंगा। उस समय भी राष्ट्रपति के इस वक्तव्य का विरोध किया गया था।
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पाथरी भी जाएंगे और लोगों से बात करेंगे।वहीं बीजेपी नेता और विधायक राधाकृष्ण विखे पाटिल ने शिरडी ग्राम सभा के बंद के आह्वान को समर्थन दिया है।
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