TRENDING TAGS :
भारत का कच्चा तेल स्टोरेज बनेगा ये देश, होगा इतना फायदा...
कच्चे तेल का यह भंडारण केवल आपातकाल स्थिति में हीं नहीं, बल्कि कीमत का फायदा उठाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।
नई दिल्ली: पिछले कुछ समय से भारत में लगातार कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में भारत ने अब कुछ बड़ा और अगल करने का विचार बनाया है। भारत अब अमेरिका के रणनीतिक पेट्रोलियम रिज़र्व (SPR) में कच्चे तेल भंडारण की योजना बना रहा है। कच्चे तेल का यह भंडारण केवल आपातकाल स्थिति में हीं नहीं, बल्कि कीमत का फायदा उठाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस बारे में जानकारी देते हुए एक अधिकारी ने बताया कि इस संबंध में दोनों देशों के बीच 17 जुलाई को एक समझौते पर हस्ताक्षर भी हुए हैं।
स्टोरेज के लिए भारत को देना होगा अतिरिक्त खर्च
इसमें सबसे पहली बात ये है कि भारत को अमेरिकी क्रूड रिज़र्व में तेल रखने के लिए स्टोरेज कॉस्ट देना होगा। यह खर्च अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम के अतिरिक्त होगा। एक विकल्प यह भी है कि भारत अपने स्तर पर खुद का रणनीति स्टोरेज तैयार करे। लेकिन, इसमें बड़े स्तर पर पूंजी लगेगी और इसे बनकर तैयार होने में भी कुछ साल लगेंगे। ऐसे में भारत ने अमेरिका में क्रूड ऑयल स्टोर करने का फैसला किया है, ताकि त्वरित रूप से यह काम हो सके।
ये भी पढ़ें- हैलो मैं नरेंद्र मोदी बोल रहा हूं! इन मुख्यमंत्रियों को PM ने लगाया फोन, की ये बात…
अमेरिका में रणनीति पेट्रोलियम रिज़र्व को प्राइवेट कंपनियों ने बनाया है और वही इसकी देखभाल भी करती हैं। अमेरिका में स्टोर किए जाने वाले इस क्रूड का इस्तेमाल भारत अपने इस्तेमाल के लिए कर सकता है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम का फायदा उठाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन, इसमें कच्चे तेल के दाम में गिरावट से नुकसान का भी जोखिम होगा।
अमेरिका में स्टोरेज में हैं कई जोखिम
इस काम में काफी जोखिम भी है। एक बात यह यह भी है कि अगर समुद्री रूट्स पर किसी तरह का व्यावधान आता है तो अमेरिका में क्रूड ऑयल स्टोर करने का लाभ नहीं मिल सकेगा। अमेरिका से भारत तक तेल लाने में महीनों लग जाते हैं। अधिकारी ने बताया कि यह एक तरह का फिजिकल हेजिंग होगा और हर तरह के हेजिंग का अपना जोखिम होता है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि बड़े स्तर पर कच्चे तेल का भंडारण करने के लिए पहले ही पेमेंट करना होगा। ऐसे में कंपनियों को इसके लिए बड़ी पूंजी ब्लॉक करनी होगी।
ये भी पढ़ें- जम्मू कश्मीर: सुंदरबनी सेक्टर में पाकिस्तान ने किया संघर्ष विराम का उल्लंघन
बता दें कि कुछ महीने पहले ही भारत ने अमेरिका में कच्चा तेल स्टोर करने के विकल्प पर विचार करना शुरू किया था। लेकिन कोविड-19 संकट की वजह से इस पर तेजी से काम नहीं हो सका। कच्चे तेल के मांग में भी कमी देखने को मिली थी, लेकिन अब मांग भी बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में अमेरिका में तेल स्टोर करना भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
भारत के बाद आस्ट्रेलिया से भी समझौता करने के मूड में अमेरिका
17 जुलाई को इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद अब भारत अमेरिका के टेक्सास और लुईजियाना शहर में रणनीतिक भंडारण के संभावनाओं पर विचार कर रहा है। मार्च में ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आदेश दिया था कि रणनीतिक पेट्रोलियम रिज़र्व्स को पूरी क्षमता तक भरा जाए। जोकि 714 मिलियन बैरल की है। लेकिन, अमेरिकी कांग्रेस ने कच्चे तेल की खरीद के लिए फंड मुहैया कराने में विफल रही। भारत और अमेरिका के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद अमेरिकी उर्जा सचिव डैन ब्रुइलेट ने अपने बयान में कहा कि भारत के बाद ऑस्ट्रेलिया के साथ भी ऐसा समझौता हो सकता है।
ये भी पढ़ें- पवार का केंद्र पर हमला: कुछ लोग सोचते हैं राम मंदिर बनाने से खत्म हो जाएगा कोरोना
उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया ने अप्रैल में ही इसके लिए 60 मिलियन डॉलर खर्च करने की प्रतिबद्धता जताई है। इस साल के शुरुआत में ही वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के दाम में बड़ी गिरावट देखने को मिली। लेकिन अब यह करीब 43 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर स्थिर नजर आ रहा है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, 'अमेरिका के रणनीति पेट्रोलियम रिज़र्व में भंडारण के लिए हमारी बातचीत एडवांस स्टेज में है।'
भारत में कुल इतना भंडारण
अमेरिका में कच्चे तेल भंडारण की कुल क्षमता 714 मिलियन बैरल है जोकि पूरी दुनिया में रिजर्व है। इसकी तुलना में, भारत में केवल 5.33 मिलियन टन यानी करीब 38 मिलियन बैरल कच्चे तेल का ही भंडारण किया जाता है। देश में तीन जगहों पर जमीन के अंदर यह भंडारण होता है।
ये भी पढ़ें- यहां भड़की हिंसा, कई वाहन आग के हवाले, पुलिस ने दागे आंसू गैस के गोले
एक अनुमान के मुताबिक, यह भारत में 9.5 दिन की खपत को ही पूरा कर सकता है। अंतर्राष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी का अपने सदस्य देशों को सुझाव देती है कि वो कम से कम 90 दिनों के खपत के लिए पेट्रोलियम रिज़र्व रखें।