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कोरोना वैक्सीन की नई तकनीक कैंसर का करेगी सफाया

कोरोना के खिलाफ बनी सबसे असरदार वैक्सीन में ‘नुक्लेइक एसिड्स’ का इस्तेमाल किया गया है, जिसे मेसेंजर आरएनए या एमआरएनए कहते हैं। एमआरएनए पर आधारित वैक्सीन को फाइजर-बायोएनटेक, मॉडर्ना और क्योरवैक कंपनियों ने डेवलप किया है।

Shreya
Published on: 11 Jan 2021 9:48 AM GMT
कोरोना वैक्सीन की नई तकनीक कैंसर का करेगी सफाया
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कोरोना वैक्सीन की नई तकनीक कैंसर का करेगी सफाया

नीलमणि लाल

नई दिल्ली: कोरोना से जंग के लिए आई वैक्सीन ने एक भयानक अँधेरे में उजाले की किरण दिखाई है। इस वैक्सीन से अवश्य ही कोरोना को हराया जा सकेगा। सबसे बड़ी बात ये है कि कोरोना को हराने के लिए वैक्सीन की जिस नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया है वो आने वाले समय में इनसानों के लिए बहुत बड़ी उम्मीद है। अब ऐसा लगने लगा है कि नई वैक्सीन कैंसर तक को परास्त करेगी।

क्या है नई तकनीक

कोरोना के खिलाफ बनी सबसे असरदार वैक्सीन में ‘नुक्लेइक एसिड्स’ का इस्तेमाल किया गया है, जिसे मेसेंजर आरएनए या एमआरएनए कहते हैं। एमआरएनए पर आधारित वैक्सीन को फाइजर-बायोएनटेक, मॉडर्ना और क्योरवैक कंपनियों ने डेवलप किया है।

मआरएनए वैक्सीन इम्यूनिटी रिस्पॉन्स को जेनरेट करने के लिए ट्रेडिशनल मॉडल का इस्तेमाल नहीं करता है। बल्कि, एमआरएनए वैक्सीन वायरस के सिंथेटिक आरएनए के जरिये शरीर में प्रोटीन बनाने के लिए मॉलेकुलर इंस्ट्रक्शंस को फॉलो करता है।

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मैसेंजर आरएनए दरअसल एक डीएनए टेम्प्लेट पर एक जीन से ट्रांसकोड किया गया है, जो कि जानकारी को राइबोसोम द्वारा प्रोटीन संश्लेषण के लिए दिशा निर्देश देता है। मानव जीनोम में 25,000 से 30,000 जीनों में से प्रत्येक आपके शरीर की अधिकांश कोशिकाओं में मौजूद हैं, लेकिन प्रत्येक कोशिका उनमें से केवल एक छोटा सा अंश व्यक्त करती है। मैसेंजर आरएनए का क्षरण कोशिकाओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले तरीकों में से एक है कि कौन सा जीन व्यक्त किया जाता है और कब रेगुलेट किया जाता है।

vaccine (फोटो- सोशल मीडिया)

सामान्य वैक्सीन

सामान्य वैक्सीन में असक्रीय या कमजोर वाइरसों को इस्तेमाल किया जाता है। जब ये शरीर में इंजेक्ट किया जाते हैं तो फिर प्रतिरोधक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। यही प्रतिक्रिया बाद में जीवित विषाणु के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है। इस प्रक्रिया में तमाम तरह के केमिकल और कोशिका कल्चर की जरूरत पड़ती है। इसमें बहुत समय लगता है और संक्रमण होने की आशंका रहती है।

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एमआरएनए वैक्सीन में ऐसी समस्या नहीं आती। मेसेंजर आरएनए शरीर को निर्देश देते हैं कि वह स्वयं अक्रमंकारी प्रोटीन बनाना शुरू कर दे। कोरोना के मामले में ये वही प्रोटीन है जो कोरोना वायरस के आरएनए के चरों ओर लिपटा होता है। एमआरएनए के निर्देश पर इम्यून सिस्टम वायरस के एंटीजन पर फोकस करता है और उस समय के लिए तैयार रहता है जब कोरोना वायरस का हमला होता है। एमआरएनए का यही कमाल है कि वो हमारे शरीर के सेल्स को बता सकता है कि वे कौन से प्रोटीन बनायें। इनमें कोरोना के अलावा कई अन्य बीमारियों के एंटीजन शामिल हैं।

एक वैज्ञानिक का हौसला

सत्तर के दशक से शोधकर्ताओं को एहसास था कि एमआरएनए तकनीक का इस्तेमाल सभी तरह की बीमारियों से लड़ने के लिए किया जा सकता है। शुरू में तो इस तक्नेके पर काफी उत्साह रहा लेकिन 90 का दशक आते आते वह ठंडा पड़ गया। लेकिन हंगरी की एक वैज्ञानिक जो 80 के दशक में अमेरिका आ कर बस गयी थी वो लगातार अपने काम में जुटी रही। कतालिन कारीको ने अपना पूरा करियर एमआरएनए को समर्पित कर दिया। 90 के दशक में कतालिन की फंडिंग बंद कर दी गयी, उनका वेतन रोक दिया गया, और तमाम अन्य मुश्किलें कर दीं गयीं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

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CORONA-VACCINE (फोटो- सोशल मीडिया)

एमआरएनए तकनीक में थोड़ा बदलाव और सकारात्मक नतीजा

2000 के दशक में कतालिन और उनके रिसर्च पार्टनर ने एमआरएनए तकनीक में थोड़ा बदलाव किया जिसका बेहद सकारात्मक नतीजा सामने आया। उनकी स्टडी को स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डेरिक रोस्सी ने पढ़ा। डेरिक ही वो शख्स हैं जिन्होंने बाद में मॉडर्ना कंपनी की स्थापना की। कतालिन की स्टडी पर उगुर साहिन और ओज्लेम तुरेची पर ध्यान गया।

इन दोनों ने जर्मनी में बायोएनटेक कंपनी की स्थापना की, कतालिन की तकनीक लाइसेंस लिया और उनको अपने यहाँ काम पर रख लिया। ये सभी कैंसर का इलाज ढूँढने में लग गए। बीते साल जब कोरोना वायरस आया तब उसी एमआरएन तकनीक का इस्तेमाल वैक्सीन बनाने के लिए किया गया और नतीजा आज सबके सामने है।

कतालिन, उगुर साहिन और ओज्लेम की मूल रिसर्च कैंसर का इलाज ढूँढने के लिए थी और अभी यह जारी है। अब एमआरएनए की क्रांतिकारी सफलता से कैंसर के इलाज की उम्मीद जगी है।

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