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हुआ बड़ा सर्वे, इस रज्य की पुलिस सबसे बेकार

अध्ययन का निष्कर्ष रहा कि 2016 के आधार पर भारत की पुलिस फोर्स अपनी निर्धारित क्षमता के 77.4 फीसदी पर काम कर रही थी। यानी पुलिसफोर्स पर काम का अत्यधिक दबाव है। जिन 22 राज्यों का अध्ययन किया गया उनमें से 19, यानी 86 फीसदी ने एससी कोटा को पूरा नहीं किया है।

SK Gautam
Published on: 12 May 2023 10:03 PM IST (Updated on: 12 May 2023 10:51 PM IST)
हुआ बड़ा सर्वे, इस रज्य की पुलिस सबसे बेकार
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हमारे संवाददाता

नई दिल्ली: देश के 22 राज्यों की पुलिस के बारे में किए गए एक विश्लेषण का नतीजा कहता है कि जहां दिल्ली पुलिस टॉप पर है वहीं यूपी पुलिस सबसे घटिया है।

ये विश्लेषण किया है कॉमन कॉज़ और सीएसडीएस नामक एनजीओ ने। इसमें 22 राज्यों की पुलिस के 11 हजार कर्मियों के बारे में उपलब्ध सरकारी डेटा का अध्ययन किया गया। इस डेटा से स्टाफिंग के मानक, इन्फ्रास्ट्रक्चर और बजट के आधार राज्य पुलिस के परफार्मेंस की रैंकिग की गई। अध्ययन में पुलिस इन्फ्रास्ट्रक्चर, ड्यूटी, विभिन्न प्रकार के अपराध और समाज के विभिन्न वर्गों के बारे में पुलिसकर्मियों के विचार जाने गए।

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अध्ययन का निष्कर्ष रहा कि 2016 के आधार पर भारत की पुलिस फोर्स अपनी निर्धारित क्षमता के 77.4 फीसदी पर काम कर रही थी। यानी पुलिसफोर्स पर काम का अत्यधिक दबाव है। जिन 22 राज्यों का अध्ययन किया गया उनमें से 19, यानी 86 फीसदी ने एससी कोटा को पूरा नहीं किया है। 73 फीसदी ने एसटी कोटा व 59 फीसदी ने ओबीसी कोटा को पूरा नहीं किया है। किसी भी राज्य ने पुलिस फोर्स में 33 फीसदी महिलाओं को रखने की अनिवार्यता पूरी नहीं की है। 2007 से 2016 के बीच जहां कुल पुलिस फोर्स में अधिकारियों की संख्या बढ़ी है वहीं महिला अधिकारियों की संख्या घटी है।

कमजोर हैं महिलाएं

पुलिस कर्मियों (41 फीसदी) की धारणा है कि पुलिस के काम के लिए जरूरी शारीरिक मजबूती और आक्रामक व्यवहार महिलाओं के पास नहीं होता है। 32 फीसदी का मानना है कि महिला पुलिस अपराध के जटिल मामलों से निपटने में सक्षम नहीं होती हैं। 51 फीसदी ने कहा कि ड्यूटी के अनियमित समय के कारण महिलाओं के लिए पुलिस का काम उचित नहीं है।

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फोन न वायरलेस

भारत में 267 पुलिस स्टेशनों में टेलीफोन और 129 में वायरलेस की सुविधा नहीं है। प्रत्येक 100 पुलिसवालों पर ड्यूटी के लिए मात्र 8 वाहन उपलब्ध हैं। जिन 22 राज्यों का विश्लेषण किया गया उनमें पुलिस थानों में औसतन 3 कंप्यूटर हैं। दिल्ली में सबसे ज्यादा 16.5 व बिहार में सबसे कम ०.6 कंप्यूटर हैं।

रैंकिंग में दिल्ली टॉप पर

  • दिल्ली
  • केरल
  • महाराष्ट्र
  • नगालैंड
  • उत्तराखंड
  • हिमाचल प्रदेश
  • राजस्थान
  • ओडीशा
  • मध्य प्रदेश
  • तमिलनाडु
  • हरियाणा
  • पंजाब
  • कर्नाटक
  • असम
  • तेलंगाना
  • आंध्र प्रदेश
  • झारखंड
  • पश्चिम बंगाल
  • गुजरात
  • बिहार
  • छत्तीसगढ़
  • उत्तर प्रदेश

अध्ययन से पता चलता है कि राज्यों की पुलिस बजट के उपयोग की तुलना में इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में बेहतर हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर में जो भी कमी है उसकी वजह बजट नहीं बताई जा सकती क्योंकि अधिकांश राज्य अपने बजट का पूरी तरह उपयोग नहीं करते हैं। मिसाल के तौर पर गुजरात और आंध्र प्रदेश अपने बजट का कुछ ही हिस्सा काम में लाते हैं लेकिन अन्य राज्यों की तुलना में इनका इन्फ्रास्ट्रक्चर बढिय़ा है। फिर भी ओवरऑल रैंकिग में दोनों राज्य नीचे हैं। वहीं उत्तराखंड अपने बजट का थोड़ा ही हिस्सा उपयोग में लाता है लेकिन इसके पास बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर और तुलनात्मक रूप से कर्मचारियों की बेहतर संख्या है। इस कारण रैंकिंग में उत्तराखंड काफी ऊपर है।

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समस्याएं काफी

पुलिसकर्मी औसतन रोजाना 14 घंटे काम करते हैं।80 फीसदी कर्मचारी रोजाना 8 घंटे से ज्यादा काम करते हैं। आधे से अधिक पुलिसकर्मी नियमित रूप से ओवरटाइम काम करते हैं। 80 फीसदी को ओवरटाइम का पैसा नहीं मिलता है। 50 फीसदी कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता है। 75 फीसदी पुलिसकर्मियों का मानना है कि काम के बोझ से उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता प्रभावित हो रही है। 24 फीसदी कर्मियों का कहना है कि सीनियर अधिकारी अपने जूनियरों से घर का या निजी काम करवाते हैं। ऐसी शिकायत करने वालों में एससी, एसटी या ओबीसी के कर्मी ज्यादा पाए गए। 40 फीसदी कर्मियों ने कहा कि सीनियर अधिकारी उनसे गाली गलौज वाली भाषा का इस्तेमाल करते हैं। 37 फीसदी कर्मियों ने कहा कि अगर उनके वेतन व भत्ते यूं ही रहे तो वे किसी अन्य धंधे के लिए अपनी नौकरी छोडऩे को तैयार हैं।

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राजनीतिक दबाव सबसे बड़ी बाधा

सर्वे में जिन पुलिसकर्मियों से बात की गई उनमें से 28 फीसदी ने कहा कि अपराधों की जांच में राजनेताओं का दबाव सबसे बड़ी बाधा है। ऐसा दबाव कितनी बार आता है, इस बारे में एक तिहाई पुलिस कर्मियों ने कहा कि किसी अपराध की जांच में राजनीतिक दवाब कई बार झेलना पड़ता है। 38 फीसदी पुलिसकर्मियों ने कहा कि रसूखदारों से संबंधित अपराधों के मामले में राजनेताओं से हमेशा दबाव रहता है। पांच में से तीन कर्मियों ने कहा कि बाहरी दबाव में न झुकने पर उसका परिणाम आम तौर पर ट्रांसफर के रूप में सामने आता है।

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