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पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से बच कर रहना, आतंकी संगठन 'जमात-उल-दावा' से कम नहीं
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक कट्टर इस्लामिक आतंकी संगठन है, जो सोशल मीडिया और पब्लिक में स्वयं को मानव अधिकार, समानता, न्याय, स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के लिए काम करने वाला बताता है। इसके सेवा की आड़ में दुर्दांत षड्यंत्रकारी चहेरे की तुलना पाकिस्तानी आतंकी संगठन 'जमात-उल-दावा' से की जा सकती है। जिसका नेता भारत का नंबर एक दुश्मन 'हाफिज सईद' है।
दीक्षा
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक कट्टर इस्लामिक आतंकी संगठन है, जो सोशल मीडिया और पब्लिक में स्वयं को मानव अधिकार, समानता, न्याय, स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के लिए काम करने वाला बताता है। इसके सेवा की आड़ में दुर्दांत षड्यंत्रकारी चहेरे की तुलना पाकिस्तानी आतंकी संगठन 'जमात-उल-दावा' से की जा सकती है। जिसका नेता भारत का नंबर एक दुश्मन 'हाफिज सईद' है।
PFI एक तरह से SIMI और IM का अघतन रूपांतरण है, परन्तु इसकी संरचना इसके पूर्ववर्ती संगठनो की तुलना में अत्याधिक जटिल है। यह स्लीपर सेल और आतंकी ताकतों का संलयन है, जो छदम आवरण धारण किये हुए है।
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इसकी स्थापना 2006 में केरल के कोझिकोड में SIMI के बचे खुचे आतंकी नेताओ ने की। इसने सबसे पहला कदम ये उठाया कि अपने समान नीति एवं विचार धारा वाले विभिन्न राज्यों के अलग अलग संगठनों को अपने साथ मिलाना शुरू कर दिया। उनमे कुछ प्रमुख संगठन है, राष्ट्रीय विकास मोर्चा, तमिलनाडु के मनीता नेति पासाराई, कर्नाटक के फोरम फॉर डिग्निटी, गोवा के सिटीजन फोरम, राजस्थान की कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसायटी, पश्चिम बंगाल में नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, मणिपुर के लिलोंग सोशल फोरम और आंध्र प्रदेश की एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस के साथ PFI का विलय कर दिया गया। इसके अनुषांगिक संगठनों में रिहैब इंडिया फाउंडेशन, इंडियन फ्रैटर्निटी फोरम, कॉन्फ़्रेडशन ऑफ़ मुस्लिम इंस्टीटूयूशन्स इन इंडिया, मुस्लिम रिलीफ नेटवर्क और सत्य सारिणी जैसे संगठन शामिल हैं।
वर्ष 2018 तक संगठन में दस लाख से अधिक सदस्य हैं और केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और राजस्थान में बहुत सक्रिय हैं। अभी हाल ही में केरल पुलिस ने तीन जिलों में PFI पर सघन कार्यवाही की है, इस कार्यवाही का तात्कालिक कारण कम्युनिस्ट छात्र नेता अभिमन्यु की नृशंस हत्या रही जबकि अभी हाल तक केरल और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों की सरकारे PFI पर किसी ना किसी राजनितिक बहाने से कार्यवाही करने से बचती रही है।
वर्ष 2015 में कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने पुलिस के रिपोर्ट के वावजूद 1600 PFI और KFD अलगावादियों से 175 मुकदमें वापस लिए थे और इसके साथ साथ ही गत कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने खुले आम PFI से चुनाव में समर्थन लिया, जिसके कारण भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह को ये बयान देना पड़ा कि अगर भाजपा कर्नाटक में सत्ता में आती है तो PFI पर बैन लगायेंगी।
वैसे भाजपा नीत झारखंड सरकार ने PFI पर बैन लगा कर आतंरिक सुरक्षा हेतु एक स्वागत योग्य कदम उठाया है इसके लिए मुख्यमंत्री रघुवरदास निःसंदेह बधाई के पात्र है।
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कट्टर इस्लामिक आतंक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
पाकिस्तान की नियत हमेशा से कश्मीर और पंजाब को निगलने की रही है। वास्तव में पाकिस्तान नाम में “पाक” पवित्रता से सम्बद्ध नहीं है, बल्कि पंजाब, अफ़ग़ानिस्तान और कश्मीर के प्रथम अक्षरों के मेल से उपजा शब्द है। सन 1933 में, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने एक पर्चा छपवाया जिसका शीर्षक था Now or Never, Are We to Live or Perish Forever? इसी पर्चे में पाकिस्तान की परिकल्पना पहली बार सामने आई थी। अस्तित्व में आने पर पाकिस्तान ने अपने उसी मौलिक परिकल्पना वाले क्षेत्रों को अपने कब्जे में लेने का पुरजोर प्रयास किया। चाहे सन 1947 में कबायलियों के माध्यम से कश्मीर में उपद्रव हो अथवा बाद में हुए अन्य सारे प्रत्यक्ष और परोक्ष युद्ध। सन 1947 में असफल रहने के बाद, तत्कालीन पाकिस्तानी तानाशाह अयूब खान ने कश्मीर को भारत से छिनने का एक अनोखा षड्यंत्र रचा – और जेम्स बांड की फिल्म “गोल्डफिंगर” से नाम लिया ऑपरेशन गिब्रालटार। इसके तहत पाकिस्तानियों द्वारा घुसपैठ करा कर, कश्मीर में एक विद्रोह को भड़काया जाना था जिसमे पाकिस्तानी हस्तक्षेप की मांग उठती और तब एक दूसरे ऑपरेशन ग्रैंडस्लैम को लांच कर कश्मीर को भारत से अलग किया जाना था। परन्तु यह षड्यंत्र सफल न हो सका और अयूब खान की बेईज्ज़ती हो गयी। ऐसी बेईज्ज़ती हुई कि सन 1969 में अयूब खान, याहया खान के हाथों में सत्ता सौंप गया। इस क्रम में अयूब खान ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की भावनाओं का भी ध्यान न रखा।
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युद्ध की स्थिति में सबसे संवेदनशील स्थिति पूर्वी पाकिस्तान की थी। यह तथ्य इसलिए महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तानी मानसिकता में कश्मीर, पंजाब और अफ़ग़ानिस्तान को हासिल करने के लिए किसी के साथ धोखा करने को तैयार है, फिर चाहे वो उसके अपने ही नागरिक क्यों न हों, चाहे उनकी संख्या कितनी भी क्यों न हो। जो देश अपने नागरिकों से धोखा करने को भी तत्पर हो, वो दूसरों के साथ कैसा व्यवहार रखेगा वो सिर्फ कल्पना की जा सकती है।
याहया खान ने ही सन 1971 में भारत पर पहले हमला किया और उस ऑपरेशन का नाम दिया चंगेज़ खान। बाकी का इतिहास सभी जानते हैं। परन्तु उस हार से पाकिस्तान ठंडा नहीं पडा। उसने अपने लक्ष्य पूरे कश्मीर और पूरे पंजाब को अभी भी अपने आँखों में पाल रखा है।
पाकिस्तान जो अब तक समझ चुका था की पारंपरिक युद्ध से उसके लक्ष्य सिद्ध नहीं हो सकते, उसने आगे चल कर Operation Tupac लांच किया। ये जो नाम है वो अट्ठारहवी शताब्दी के पेरू के क्रांतिकारी ट्युपैक अमरु के नाम से लिया गया था। इस ऑपरेशन के तीन लक्ष्य तय किये गए: भारत को विखंडित करना, जासूसी नेटवर्क का प्रयोग हिंसक घटनाओं के लिए करना, और नेपाल और बंगलादेश के साथ लगभग खुली सीमा का प्रयोग अपने अड्डे बनाने और गतिविधियों को संचालित करने के लिए प्रयोग करना।
यह Operation Tupac अभी भी चल ही रहा है और विश्व के विद्वानों के बीच इसको ले कर मतैक्य है। अपने इन्हीं लक्ष्यों के लिए पाकिस्तान, भारत के अंदर कई प्रकार की विघटनकारी गतिविधियों को प्रोत्साहित करता रहता है। सिमी और अन्य संगठन की भूमिका यहाँ से स्पष्ट होने लगती है। इसी परिप्रेक्ष्य में पौपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को देखे जाने की आवश्यकता है। इस संगठन का उद्भव सन 2006 में तीन संगठनों के विलय से माना जाता है।
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ये तीनो संगठन थे – केरल का National Development Front, कर्नाटक का Forum for Dignity और तमिल नाडू का Manitha Neethi Pasarai। आगे चल कर इसमें कई राज्यों से एक एक संगठन का विलय हुआ – गोवा का Citizen’s Forum, राजस्थान का Community Social and Educational Society, पश्चिम बंगाल का Nagarik Adhikar Suraksha Samiti, मणिपुर का Lilong Social Forum और आंध्र प्रदेश का Association of Social Justice। तो इस प्रकार सन 2010 तक इस संगठन की जमीन भारत के आठ राज्यों – केरल, कर्नाटक, तमिल नाडू, गोवा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, मणिपुर और आंध्र प्रदेश तक फ़ैल चुकी थी।
संभावना यही है कि इन सभी राज्यों में ये सभी संगठन अलग अलग बनाए ही गए थे इसी उद्देश्य से कि बिना किसी के नज़र में आये अपना प्रभाव बढ़ाए और एकाएक विलय कर एक बड़ा संगठन बन जाएँ। नयी सूचना के अनुसार अब ये झारखंड में भी प्रवेश कर चुका है। परन्तु झारखंड की सरकार ने इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए त्वरित कार्रवाई की है और इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इसके लिए झारखंड की सरकार बधाई की पात्र है। इसके उदभव के समय से ही इस संगठन पर देश में व्यापक स्तर पर धोखे से धर्मांतरण, हिंसा और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने के आरोप लगते रहे हैं। इसके शिविरों में छापे में अवैध हथियार, अल-कायदा और लश्कर के साहित्य बरामद होते रहे हैं। इसका अध्यक्ष अब्दुल रहमान पहले प्रतिबंधित संगठन सिमी का राष्ट्रीय सचिव था, केरल राज्य सचिव अब्दुल हमीद मास्टर सिमी का राज्य सचिव था। इसके अधिकतर कार्यकर्ता का संबंध सिमी से पाया गया। तो हम बिलकुल स्पष्टता से कह सकते हैं कि यह सिमी का ही दुसरा नाम है। सिमी पाकिस्तानी ISI द्वारा पोषित थी, यह सुरक्षा एजेंसियां कई बार कह चुकी हैं।
सन 2012 में केरल की तत्कालीन सरकार ने केरल उच्च न्यायालय में हलफनामा दे कर बताया की पौपुलर फ्रंट की गतिविधियाँ राष्ट्रविरोधी हैं, देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं और यह कि ये संगठन सिमी का ही पुनर्गठित रूप है। परन्तु जहां झारखंड की सरकार ने इस पर प्रतिबन्ध लगाया, केरल के मुख्यमंत्री का बयान आया कि “It is not the Kerala government’s policy to ban any communal or terrorist outfit। If any outfit that creates riots in India and divides society on communal lines needs to be banned, then it should be the RSS first।”
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ये अपने आप में ग़ज़ब का विरोधाभास है, लेकिन ये भारत में जिस प्रकार की अवसर वादी राजनीति चलती है यह उसका ही एक परिणाम है लेकिन राजनेताओं को इतनी तो शर्म करनी चाहिए की तत्कालीन चुनावी हितो से ऊपर देश की सुरक्षा है।
अब ममता बनर्जी नीत पश्चिम बंगाल में इस संगठन पर अवैध रोहिंग्याओं को बसाने के आरोप लगे। परन्तु मिडिया रिपोर्ट में आया कि रोहिंग्याओं के शिविर चलाने वाले ने दावा किया की ममता बनर्जी अवैध रोहिंग्या घुसपैठियों को अपना भाई मानतीं हैं, और वो इन्हें हर तरह से मदद को तत्पर हैं। मतलब पौपुलर फ्रंट के षड्यंत्र को सहयोग को तत्पर हैं। ये निहायत ही शर्म नाक बात है, राजनेताओ को अगले चुनाव में हर हाल में जीत सुनिश्चित करने के वजाये अगली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित करने पे ज्यादा ध्यान देना होगा, हमारी पार्टी अगला चुनाव किसी भी तरह जीत जाये और हमारा देश हार जाये ये सोच अपने आप में ही आत्मघाती है। इससे दिखता है कि आतंकवादी और राष्ट्रविरोधी तत्वों से निपटने को ले कर कैसी मतभिन्नता है। केरल की सरकार साफ़ साफ़ कहती है की वो आतंकवादियों पर भी प्रतिबन्ध लगाने को तैयार नहीं। भारत सरकार को भी सुरक्षा एजेंसियों ने इस संगठन को ले कर अपनी रिपोर्ट दी है।
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हमे ख़ुशी है कि तमिलनाडू मे पीएमके कार्यकर्ता रामलिंगम की हत्या के हिन्दू संघर्ष समिति के दिल्ली मे किये गये धरने प्रदर्शनों के बाद जब हमने इसमें खुलकर PFI की संलिप्तता का भंडाफोड़ किया तब जाके NIA ने इस मामले में पांच PFI कार्यकर्ताओं पर मामला दर्ज किया पर अभी सफ़र बहुत लंबा है और हमें PFI के बुरे इरादों के बारे मे हर स्तर पर जागरूकता फैलाये।