रेलवे ने तोड़ा रिकॉर्ड: एक महीने में कर दिखाया ये गजब का काम, ट्रेन है कि कमाल

भारतीय रेलवे ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। देश के लिए ये उपलब्धि कपूरथला स्थित रेल कोच फैक्ट्री द्वारा मिली है। रेल कोच फैक्ट्री ने जुलाई 2020 में 151 एलएचबी कोच बनाए हैं।

Newstrack
Published on: 2 Aug 2020 6:49 AM GMT
रेलवे ने तोड़ा रिकॉर्ड: एक महीने में कर दिखाया ये गजब का काम, ट्रेन है कि कमाल
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नई दिल्ली। भारतीय रेलवे ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। देश के लिए ये उपलब्धि कपूरथला स्थित रेल कोच फैक्ट्री द्वारा मिली है। रेल कोच फैक्ट्री ने जुलाई 2020 में 151 एलएचबी कोच बनाए हैं। ये बीते साल की इसी अवधि की अपेक्षा में करीब 3 गुना है। जानकारी के लिए बता दें, इस कोच फैक्ट्री का ये अब का सबसे अधिक उत्पादन है। इस कोच फैक्ट्री ने सन् 2002 में एलएचबी कोच का प्रोडक्शन शुरू होने से अब तक एक महीने में सबसे बड़ा प्रोडक्शन है। बड़ी उपलब्धि की ये जानकारी रेलवे मंत्रालय ने ट्वीट कर दी है।

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LHB कोच के क्या हैं फायदे

रेलवे में एलएचबी कोच पारंपरिक कोच की अपेक्षा में 1.5 मीटर लंबे होते हैं। इसके कारण ये यात्री वहन क्षमता में वृद्धि हो जाती है। जिससे दुर्घटना की स्थिति में एलएचबी कोच पारंपरिक कोच के हिसाब से कम क्षतिग्रस्त होते हैं। इनकी सेल्फ लाइफ भी पारंपरिक कोच के हिसाब से ज्यादा होती है।

रेल के इन कोचों में बड़ी खिड़कियां, आरामदायक सीट, बॉयो टॉयलेट्स, और सामान रखने की ज्यादा जगह भी है। जिससे यात्री सफर का आनंद कई गुना बढ़ जाएगा।

बता दें, एलएचबी एक जर्मनी तकनीक है। एलएचबी कोच का प्रयोग तेज गति वाली ट्रेनों में किया जाता है। इनमें क्षमता होती है कि ये 160 से 180 किमी प्रति घंटे की स्पीड में दौड़ सके।

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डिब्बे स्टेलनेस स्टील और एल्यूमिनियम के बने

इन सभी LHB कोच में एंटी टेलीस्कोपिक सिस्टम होता है, जिसके कारण इसके डिब्बे आसानी से पटरी से नहीं उतर पाते हैं। वहीं दूसरी तरफ इसके डिब्बे स्टेलनेस स्टील और एल्यूमिनियम के बने होते है। एलएचबी कोच में डिस्क ब्रेक सिस्टम होता है जिससे ट्रेन को जल्दी रोका जा सकता है।

इन कोचों में माइक्रोप्रोसेसर से कंट्रोल होता है। इसमें एयर कंडीश्निंग सिस्टम होता है जो कोच के तापमान को नियंत्रित करता है। जिससे ट्रे्न सुरक्षित रहती है। एलएचबी कोच में दो डिब्बे अलग तरह से कपलिंग की जाती है जिससे दुर्घटना होने पर डिब्बे एक के ऊपर एक नहीं चढ़ते हैं।

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