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Earthquake Alert: क्या किसी बड़े विनाशकारी भूकंप की आहट है?

Earthquake Alert: नेपाल, अफगानिस्तान, भारत – बीते दिनों में लगातार छोटे-बड़े भूकंप आते जा रहे हैं। कई अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि क्या भूकम्पों का ये सिलसिला किसी बड़ी तबाही का संकेत है? क्या कोई बहुत बड़ा भूकंप आने वाला है? इसका एक ही जवाब है – किसी को कुछ नहीं पता कि कब, कहाँ और कितनी तीव्रता का भूकंप आयेगा।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 6 Nov 2023 1:40 PM GMT
Are there signs of a major devastating earthquake? Special report on earthquake, know the measures to survive here
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 क्या किसी बड़े विनाशकारी भूकंप की आहट है? भूकंप पर ख़ास रिपोर्ट, यहां जानें बचने के उपाय: Photo- Social Media

Earthquake Alert: नेपाल, अफगानिस्तान, भारत – बीते दिनों में लगातार छोटे-बड़े भूकंप आते जा रहे हैं। कई अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि क्या भूकम्पों का ये सिलसिला किसी बड़ी तबाही का संकेत है? क्या कोई बहुत बड़ा भूकंप आने वाला है? इसका एक ही जवाब है – किसी को कुछ नहीं पता कि कब, कहाँ और कितनी तीव्रता का भूकंप आयेगा। हो सकता है कि छोटे भूकंप आते रहें और ये भी मुमकिन है कि छोटे भूकंप न आयें और सीधे कोई बड़ा भूकंप आ जाये। मसला सिर्फ उस बड़े खतरे से निपटने के लिए तैयार रहने का है।

बीते 10 वर्ष में पांच हजार भूकंप के झटके रिकॉर्ड किए जा चुके हैं। छोटे भूकंप इस लिहाज से अच्छे होते हैं कि उनसे बहुत एनर्जी रिलीज हो जाती है और बड़े भूकंप का खतरा टल जाता है। लेकिन जमीन के बहुत नीचे स्थित प्लेटों के लगातर सरकने और उनके घर्षण ज्यादा होने पर बड़े भूकंप की संभावना रहती है। नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन में कहा गया है कि विशाल हिमालयी फाल्ट का पश्चिमी भाग - जो 2015 में नेपाल में आए भूकंप का कारण बना - अभी भी चार्ज है और एक और बड़े बदलाव के लिए तैयार है। यानी किसी भी वक्त बहुत बड़ा ज़लज़ला आ सकता है।

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चूँकि भूकंप के बारे में पहले से बता सकना अभी भी असंभव बना हुआ है इसलिए कोई नहीं बता सकता कि यह बड़ा ज़लज़ला कब और कहाँ आयेगा, इतना तय है कि यह आयेगा जरूर। तमाम वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि भूकंप को रोकना या उसकी पहले से सटीक भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। लेकिन संवेदनशील इलाकों में भूकंपरोधी निर्माण को बढ़ावा देकर और स्थानीय लोगों में जागरुकता अभियान चला कर भूकंप की स्थिति में जानमाल के नुकसान को काफी हद तक कम जरूर किया जा सकता है।

Photo- Social Media

नेपाल में है सबसे खतरनाक हिस्सा

दरअसल, सिन्धु-गंगा का मैदान और शिवालिक हिमालय, जिसमें 50 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं, हिमालय के भूकंपीय क्षेत्र के निकट होने के कारण पृथ्वी पर सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। भूगर्भशास्त्री वैज्ञानिक बताते हैं कि ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, नए भूगर्भिक डेटा और एक अत्याधुनिक संख्यात्मक मॉडल को मिलाकर अध्ययन दिखाते हैं कि पूरा हिमालय बहुत बड़े भूकंप पैदा करने में सक्षम है, जिसकी तीव्रता रेक्टर पैमाने पर 8.5 से अधिक हो सकती है। नेपाली क्षेत्र का सबसे खतरनाक हिस्सा, जो अगले भूकंप से प्रभावित हो सकता है, राजधानी काठमांडू के पश्चिम में स्थित है। उस क्षेत्र में, जहां अतीत में कई भूकंप आए हैं, अब लगभग 500 साल हो गए हैं, इस मेगा-फॉल्ट के साथ जमा होने वाली ऊर्जा जारी नहीं हुई है, जो जारी होनी है।

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अगर यह सारी ऊर्जा एक बार में जारी की जाती है, तो यह 8.5 से अधिक तीव्रता वाला भूकंप उत्पन्न कर सकता है। हिमालय क्षेत्र में अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा है कि भारतीय प्लेट के ऊपर स्थित यूरेशियन प्लेट के नीचे लगातार बड़े पैमाने पर ऊर्जा जमा होना चिंता का विषय है। हाल के दिनों में भारत और नेपाल के कुछ हिस्सों में भूकंप के कई झटके आये हैं। ये सब थोड़ी थोड़ी एनर्जी रिलीज़ होने की वजह से हैं।

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सिर्फ पहले से तैयार रहना होगा

भीषण भूकंप की स्थिति में जान-माल का नुकसान कम से कम हो इसके लिए पहले से बेहतर तैयारी जरूरी है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी है कि भूकंप के प्रति संवेदनशील इलाकों में वृद्धि के कारण हिमालय क्षेत्र की जनसांख्यिकी में भी बदलाव आ सकता है। यानी आबादी वाले क्षेत्र नेस्नाबूद हो सकते हैं। विशेषज्ञ इस मामले में जापान की मिसाल देते हैं। बेहतर तैयारियों के कारण लगातार मध्यम तीव्रता के भूकंप की चपेट में आने के बावजूद वहां जान-माल का ज्यादा नुकसान नहीं होता है।

डेढ़ सौ साल में चार बड़े भूकंप

बीते डेढ़ सौ वर्षों के दौरान हिमालयी क्षेत्र में चार बड़े भूकंप दर्ज किए गए हैं। इनमें वर्ष 1897 में शिलांग, 1905 में कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल और 1950 में असम में आए भूकंप शामिल हैं। उसके बाद वर्ष 1991 में उत्तरकाशी, 1999 में चमोली और 2015 में नेपाल में भी भयावह भूकंप आया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप से बचाव की ठोस रणनीति बनाने की स्थिति में जानमाल के नुकसान काफी हद तक कम किया जा सकता है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ने उत्तराखंड को भूकंप के प्रति संवेदनशीलता के लिहाज से जोन चार और पांच में रखा गया है। संस्थान ने भूकंप और उसके कारण होने वाले भूस्खलन पर केंद्र सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी है। उसके पहले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) ने भी वर्ष 2013 की आपदा के बाद पैदा हुई स्थिति पर एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी। वाडिया संस्थान की रिपोर्ट में भूस्खलन और बादल फटने के कारण आने वाली आपदा से बचने के लिए आबादी को वहां से हटाने की सिफारिश की गई है।

आईआईटी कानपुर की चेतावनी

आईआईटी, कानपुर के वैज्ञानिकों की एक टीम ने भी अपनी शोध रिपोर्ट में कहा है कि हिमालयन रेंज यानी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कभी भी रिक्टर स्केल पर 7.8 से 8.5 की तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है। उत्तराखंड के रामनगर इलाके में तीव्र भूकंप का खतरा मंडरा रहा है जहाँ आने वाले समय में 7.5 से लेकर 8 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाला भूकंप आने की आशंका है। रामनगर इलाके में वर्ष 1803 में भूकंप आया था। उस दौरान भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर संभवतः 7.5 रही होगी। उसके बाद धरती के नीचे ऊर्जा लगातार एकत्रित हो रही है। इसलिए बड़े पैमाने पर भूकंप आना तय है। हिमालय अभी पूरी तरह से शांत है। यह तूफान के आने से पहले वाली शांति भी हो सकती है।

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भारत का संवेदनशील क्षेत्र

भारत के भूकंपीय क्षेत्र के नक्शे के मुताबिक देश की लगभग 59 प्रतिशत भूमि मध्यम या गंभीर भूकंप के खतरे की चपेट में है। यानी कोइ 30.4 करोड़ घरों में से लगभग 95 प्रतिशत अलग-अलग क्षमता वाले भूकंप के खतरे की चपेट में आ सकते हैं। देश के भूकंपीय जोनिंग मैप के अनुसार भूकंप के सर्वाधिक खतरे वाले इलाकों यानी जोन 5 में कश्मीर, पश्चिमी और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रण और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के इलाके शामिल हैं। इस इलाके में बड़े और विनाशकारी भूकंपों की आशंका लगातार बनी रहती है। जबकि जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, गंगा के मैदानों के कुछ हिस्से, उत्तरी पंजाब, चंडीगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई, बिहार का एक बड़ा हिस्सा, उत्तर बंगाल, सुंदरवन और देश की राजधानी दिल्ली जोन 4 में आती है।

क्या होगा दिल्ली का?

दिल्ली-एनसीआर उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्र में आता है। सितंबर 2017 और अगस्त 2020 के बीच, एनसीआर में कुल 26 भूकंप महसूस किए गए, जिनकी तीव्रता तीन और उससे अधिक थी। एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली तीन सक्रिय भूकंपीय फॉल्ट लाइनों के पास स्थित है : सोहना, मथुरा और दिल्ली-मुरादाबाद। विशेषज्ञों का कहना है कि गुरुग्राम दिल्ली-एनसीआर में सबसे जोखिम भरा क्षेत्र है क्योंकि यह सात फाल्ट लाइनों पर स्थित है। यदि ये सक्रिय हो जाते हैं, तो उच्च तीव्रता का भूकंप आसन्न है। ऐसा भूकंप कहर बरपाएगा। सीस्मोलॉजिस्ट का कहना है कि चूंकि दिल्ली-एनसीआर हिमालय के करीब है, इसलिए टेक्टोनिक प्लेट्स में होने वाले बदलावों को महसूस करता है। हिमालयी बेल्ट में कोई भी भूकंप दिल्ली-एनसीआर को प्रभावित करता है।

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26 जनवरी, 2001 को भुज में आये 8.1 तीव्रता के भूकंप ने दिल्ली-एनसीआर को भी हिला दिया था भले ही इसका केंद्र बहुत दूर था। इसके पहले 27 अगस्त, 1960 को 5.6 तीव्रता के भूकंप ने राष्ट्रीय राजधानी को दिल्ली-गुरुग्राम को हिला दिया था और उस आपदा में कई लोग मारे गए थे। बीते हफ्ते नेपाल में आये भूकंप ने दिल्ली-एनसीआर को हिला दिया। समस्या ये है कि दिल्ली-एनसीआर की तमाम बिल्डिंगें भूकंप-प्रतिरोध के लिए निर्धारित बीआईएस मानकों के अनुरूप नहीं हैं। यदि क्षेत्र में 6 तीव्रता का भूकंप आता है, तो यह आशंका है कि ये इमारतें ताश के पत्तों की तरह ढह जाएंगी।

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हल्का भूकंप भी होता है खतरनाक

हाल ही में नेपाल में जुमला क्षेत्र में भूकंप ने व्यापक तबाही मचा दी है और सैकड़ों लोग मारे गए। जबकि इस भूकंप की तीव्रता 6.6 की थी। इस तीव्रता के भूकम्प से आमतौर पर इमारतों और अन्य संरचनाओं को हल्की क्षति होने की संभावना होती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि फाल्ट रेखाओं से निकटता, भूकंप की गहराई और असुरक्षित बुनियादी ढाँचे अपेक्षाकृत हल्के भूकंप का भयानक साबित हो सकते हैं, और नेपाल में यही हुआ है। लेकिन तबाही की कोई न्यूनतम लिमिट नहीं है।

Shashi kant gautam

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