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सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी! ब्लैकमेल का धंधा बन गया है RTI कानून

सुप्रीम कोर्ट ने सूचना का अधिकार पर बड़ी टिप्पणी की है, सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई एक्ट के दुरुपयोग पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह कानून ब्लैकमेल का धंधा बन गया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं,

Harsh Pandey
Published on: 16 Dec 2019 3:42 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी! ब्लैकमेल का धंधा बन गया है RTI कानून
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सूचना का अधिकार पर बड़ी टिप्पणी की है, सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई एक्ट के दुरुपयोग पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यह कानून ब्लैकमेल का धंधा बन गया है।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब आरटीआई कानून का इस्तेमाल लोगों को धमकाने या डराने के लिए किया जाता है। इसका दुरुपयोग रोकने के लिए दिशानिर्देश बनाए जाने की जरूरत है।

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चीफ जस्टिस एसए बोबड़े...

चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सोमवार को आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने की गुहार लगाई गई है।

इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने जब मामले में कोर्ट के पूर्व आदेशों का हवाला दिया तो चीफ जस्टिस ने आरटीआई कानून के दुरुपयोग का मामला भी उठाया। कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां इसका इस्तेमाल ब्लैकमेल करने के लिए किया गया है।

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RTI का प्रयोग डराने धमकाने के लिए...

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कानून के कारण लोग निर्णय लेने से डरते हैं। कोई अधिकारी कुछ लिखना नहीं चाहता। इस पर भूषण ने कहा कि अधिकारी तब डरते हैं, जब वह गैरकानूनी काम करते हैं। जवाब में पीठ ने कहा कि हर व्यक्ति हर चीज गैरकानूनी नहीं करता।

उन्होंने कहा कि आरटीआई एक्ट का उद्देश्य ऐसी जानकारियां हासिल करने से होता है, लेकिन हम देख रहे हैं कि जिन लोगों का किसी मुद्दे से कोई सरोकार नहीं होता, वह भी आरटीआई दाखिल कर देता है।

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क्या आरटीआई सक्रियतावाद अब पेशा बन गया है? मुंबई में हमने देखा है कि लेटरहेड पर ऐसा लिखा होता है। यह धारा-506 (आपराधिक धमकी) के तहत आ सकता है। यह बेहद गंभीर मसला है।

आरटीआई के खिलाफ नहीं...

चीफ जस्टिस ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि आरटीआई आवेदन गलत मंशा के साथ भी दाखिल की जाती है। हम आरटीआई कानून के खिलाफ नहीं, लेकिन क्या जरूरी नहीं है कि इसे लेकर कुछ दिशानिर्देश हों? यह बेलगाम अधिकार है।

बताते चलें कि इस पर भूषण ने कहा कि जनहित के लिए जानकारी हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे भ्रष्टाचार उजागर होता है।

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अधिवक्ता भूषण के जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा कि, हम जानना चाह रहे हैं कि इसका दुरुपयोग कैसे रोका जाए, लेकिन आप बहस कर रहे हैं। जनहित याचिकाओं के मामलों में भी हम चौकन्ना रहते हैं। पीठ ने भूषण को दिशा निर्देश बनाने के बारे में विचार करने को कहा।

तीन महीने में हो सूचना आयुक्त की नियुक्ति...

पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को तीन महीने के भीतर केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और राज्य सूचना आयोग (एसआईसी) में सूचना आयुक्त नियुक्त करने का निर्देश दिया है।

पीठ ने इस बात पर गौर किया कि कोर्ट के 15 फरवरी के आदेश के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं की है। पीठ ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह दो हफ्ते के भीतर सर्च समिति के सदस्यों के नाम सरकार वेबसाइट पर डालें, जिन्हें सीआईसी में सूचना आयुक्त चुनने की जिम्मेदारी दी गई है।

Harsh Pandey

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