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महाराष्ट्र में ठाकरे राज

शिवसैनिकों ने खुशी में जबर्दस्त आतिशबाजी भी की। उद्धव ठाकरे से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि वे ठाकरे परिवार से सीएम बनने वाले पहले नेता हैं। वे शिवसेना से तीसरे और राज्य के 19वें मुख्यमंत्री होंगे। उनके साथ छह मंत्रियों ने शपथ ली। सीएम पद की शपथ लेने के बाद उन्हें पीएम नरेन्द्र मोदी समेत कई नेताओं ने बधाई दी है।

SK Gautam
Published on: 28 Nov 2019 9:38 PM IST
महाराष्ट्र में ठाकरे राज
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विशेष संवाददाता

मुंबई: कई दिनों की सियासी उठापटक के बाद आखिरकार महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की ताजपोशी हो गई। शिवाजी पार्क में समर्थकों की भारी भीड़ के बीच उन्होंने सीएम पद की शपथ ली। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई। भगवा रंग का कुर्ता पहनकर शपथ लेने पहुंचे उद्धव ने शिवाजी महाराज को नमन करते हुए मराठी भाषा में शपथ ली। उनके शपथ लेते ही पूरा शिवाजी पार्क शिवसेना कार्यकर्ताओं के उद्घोष से गूंज उठा।

शिवसैनिकों ने खुशी में जबर्दस्त आतिशबाजी भी की। उद्धव ठाकरे से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि वे ठाकरे परिवार से सीएम बनने वाले पहले नेता हैं। वे शिवसेना से तीसरे और राज्य के 19वें मुख्यमंत्री होंगे। उनके साथ छह मंत्रियों ने शपथ ली। सीएम पद की शपथ लेने के बाद उन्हें पीएम नरेन्द्र मोदी समेत कई नेताओं ने बधाई दी है।

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शिवसेना से खडसे व देसाई ने भी शपथ ली

उद्धव ठाकरे के शपथ लेने के बाद शिवसेना विधायक दल के नेता एकनाथ खडसे और सुभाष देसाई ने पद और गोपनीयता की शपथ ली। इस दौरान भी शिवसेना कार्यकर्ता लगातार नारेबाजी करते रहे। खडसे और देसाई दोनों पूर्व की देवेन्द्र फडणवीस सरकार में भी मंत्री थे। खडसे ठाणे से विधायक हैं जबकि देसाई कोंकण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।

एनसीपी के जयंत पाटिल व भुजबल भी मंत्री बने

इसके बाद अजीत पवार की जगह एनसीपी विधायक दल के नेता बने जयंत पाटिल ने मंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली। पाटिल 1999 से 2008 तक राज्य में वित्त, शिक्षा और ग्रामीण विकास मंत्री का पद संभाल चुके हैं। पाटिल के नाम सबसे ज्यादा 9 बजट पेश करने का रिकॉर्ड है। इसके बाद छगन भुजबल ने शपथ ली। एक समय छगन भुजबल शिवसेना के आक्रामक नेता हुआ करते थे।

वे शिवसेना के विधायक और मुंबई के मेयर भी रहे। 1991 में उन्होंने शिवसेना को छोडक़र कांग्रेस का दामन थामा था। भुजबल को पिछड़ी जाति का मजबूत नेता माना जाता है। छगन भुजबल ऐसे नेता हैं, जो शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी तीनों दलों में रह चुके हैं।

कांग्रेस से थोराट व नितिन को मिली कुर्सी

एनसीपी के बाद कांग्रेस विधायक दल के नेता बाला साहेब थोराट ने पद और गोपनीयता की शपथ ली। थोराट महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं। वे राज्य में राजस्व और कृषि मंत्री का पद संभाल चुके हैं। उनके बाद कांग्रेस नेता नितिन राउत ने पद और गोपनीयता की शपथ ली। नितिन राउत कांग्रेस की एससी यूनिट के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। नागपुर उत्तरी सीट से जीतने वाले नितिन पूर्व की सरकारों में भी कई पदों पर रह चुके हैं।

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समारोह में पहुंचे कई दिग्गज

उद्धव ठाकरे के शपथग्रहण समारोह में तमाम दिग्गज शिवाजी पार्क पहुंचे। समारोह में कई बड़े नेताओं एवं बिजनेसमैन मुकेश अंबानी,उनकी पत्नी नीता अंबानी व बेटे अनंत ने भी हिस्सा लिया। समारोह में सबके आकर्षण के केन्द्र उद्धव ठाकरे के भाई राज ठाकरे थे। राज काला कुर्ता पहनकर समारोह में हिस्सा लेने पहुंचे थे। हालांकि उनके कुर्ते को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं भी होती रहीं।

एनसीपी नेता सुप्रिया सुले, अजित पवार, कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खडग़े, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन और पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस भी समारोह में पहुंचे। समारोह में कांग्रेस नेता अहमद पटेल, केसी वेणुगोपाल, कपिल सिब्बल, सुशील शिंदे, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल, शिवसेना के मनोहर जोशी, संजय राउत भी मौजूद थे।

समारोह में नहीं पहुंचे राहुल और सोनिया

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आने की काफी चर्चा थी मगर वे समारोह में नहीं पहुंची और उन्होंने इस बाबत उद्धव को पत्र लिखकर जानकारी दी। राहुल गांधी भी समारोह में नहीं पहुंचे। उद्धव ठाकरे को लिखे पत्र में राहुल गांधी ने कहा कि मुझे खुशी है कि महाराष्ट्र विकास अघाड़ी हमारे लोकतंत्र को कमजोर करने के भाजपा के प्रयास को विफल करने के लिए एक साथ आया है। मुझे खेद है कि मैं समारोह में नहीं आ पाया।

उद्धव के सामने सबसे बड़ी चुनौती

सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने से पहले उद्धव ठाकरे ने कहा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी में बहुत कीलें होती हैं। इससे साफ जाहिर है कि उद्धव ठाकरे के सिर मुख्यमंत्री का ताज कांटों भरा है। सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि उन्हें तीन दलों की गठबंधन सरकार चलानी है। कांग्रेस और एनसीपी के साथ सामंजस्य बनाकर चलना काफी कठिन साबित होगा। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी तीनों दलों की अलग-अलग विचाराधारा और राजनीतिक एजेंडा रहा है।

ऐसे में तीन विपरीत ध्रुवों के साथ तालमेल बिठाकर सरकार चलाना मामूली काम नहीं है। अब देखने वाली बात यह होगी कि ठाकरे कहां तक तालमेल बिठाने में सफल हो पाते हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि सबकुछ ठाकरे की कार्यशैली और विपरीत ध्रुवों से तालमेल की बाजीगरी पर ही निर्भर करेगा। भाजपा भी लगातार यह कह रही है कि तीन पहियों पर चलने वाली इस गाड़ी के पहिए जल्द ही पंक्चर हो जाएंगे। इसके साथ ही उन्हें केन्द्र की मोदी सरकार से तालमेल बिठाने की चुनौती का भी सामना करना पड़ेगा।

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कट्टर हिन्दुत्व की छवि

महाराष्ट्र की राजनीति में शुरू से ही शिवसेना कट्टर हिंदुत्व की छवि को लेकर आगे चली है। शिवसेना की स्थापना करने वाले बाला साहब ठाकरे ने इसी को आधार बनाकर पार्टी को मजबूत किया था। वे इस बात को गर्व से सबके बीच कहा भी करते थे। उनके बाद शिवसेना की कमान संभालने वाले उद्धव ठाकरे भी उसी लाइन पर चलते रहे हैं। उन्होंने वीर सावरकर को भारत रत्न देने की भी मांग की थी। अयोध्या का मुद्दा भी गरमाने में शिवसेना ने बढ़-चढक़र हिस्सा लिया था। पार्टी छत्रपति शिवाजी महाराज को अपना राजनीतिक आदर्श मानती रही है। ऐसे में सियासी जानकारों के साथ ही आम लोगों के बीच भी यह बात कही जा रही है कि उसने सिर्फ सत्ता के लिए ही कांग्रेस और एनसीपी जैसे दलों के साथ हाथ मिलाया है।

मोदी-शाह की साजिश नाकाम : सोनिया

इस बीच कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में मोदी सरकार को लेकर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में भाजपा ने बेशर्मी से सरकार बनाने का प्रयास किया। पीएम मोदी और अमित शाह की साजिश महाराष्ट्र में नाकाम हो गई है। कांग्रेस नेता ने जम्मू-कश्मीर में यूरोपीय सांसदों को भेजे जाने पर भी केंद्र पर निशाना साधाा।

उन्होंने कहा कि देश के राजनेताओं को जम्मू-कश्मीर में जाने की इजाजत नहीं है, लेकिन कुछ यूरोपीय सासंदों को भेजा गया। यह नरेंद्र मोदी और अमित शाह का शर्मनाक कृत्य था। उन्होंने कहा कि मुनाफा कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को नरेंद्र मोदी के दोस्तों को बेचा जा रहा है। सोनिया ने व्हाट्सएप जासूसी कांड को लेकर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार हमारे मौलिक अधिकारों को छीन रही है।

कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर चलेगी उद्धव सरकार

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार बनने से पहले महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की ओर से कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की घोषणा की गई। प्रोग्राम की प्रस्तावना में ही कहा गया है कि यह सरकार अपने सेक्युलर मूल्यों पर अडिग रहेगी। इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस व एनसीपी को संतुष्ट करने के लिए शिवसेना हिन्दुत्व के रास्ते को छोड़ देगी। न्यूनतम साझा कार्यक्रम में किसानों के मुद्दों को भी महत्व दिया गया है।

इसके साथ ही बेरोजगारी को दूर करने पर भी जोर दिया गया है। किसानों को देंगे मदद: न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत किसानों को जल्द से जल्द मदद मुहैया कराई जाएगी, साथ ही उनकी कर्ज मुक्ति भी की जाएगी। इसके अलावा किसानों को लेकर फसल बीमा योजना पर तीनों दलों की सहमति बन गई है। किसानों के लिए फसल बीमा योजना में बदलाव किए जाएंगे यानी फसल खराब होने पर किसानों को मुआवजा मिलेगा।

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बेरोजगारों को देंगे नौकरियां

ठाकरे सरकार खाली पड़े सरकारी नौकरियों के पदों को जल्द से जल्द भरने का प्रयास करेगी। शिक्षित बेरोजगारों को भत्ता भी दिया जाएगा। इसके अलावा नौकरियों में महाराष्ट्र के लोगों के लिए 80 फीसदी नौकरियां आरक्षित की जाएंगी। सरकार ने इस प्रोग्राम में गरीब बच्चियों को मुफ्त शिक्षा दिए जाने की बात भी कही है। राज्य में शिक्षा के स्तर को उठाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। कृषि मजदूरों के बच्चों और निम्न वर्ग से आने वाले छात्रों को जीरो फीसदी ब्याज दर पर लोन मुहैया कराया जाएगा।

महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता

महिलाओं की सुरक्षा सरकार की पहली प्राथमिकता होगी। निम्न वर्ग से आने वाली लड़कियों को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी। शहरों और जिला मुख्यालयों में वर्किंग वुमन हॉस्टलों का निर्माण कराया जाएगा। महिला सशक्तिकरण पर जोर देते हुए स्वयंसेवा समूहों में काम करने वाली महिलाओं को सशक्त किया जाएगा।

सडक़ों की हालत सुधारेंगे

शहरी इलाकों में सडक़ों की हालत को ठीक करने के लिए मुख्यमंत्री ग्राम सडक़ योजना की जैसी ही एक स्कीम की शुरुआत की जाएगी। नगर पंचायत, म्युनिसिपल काउंसिल और म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में सडक़ों की हालत के सुधार के लिए अलग आर्थिक इंतजाम किए जाएंगे। मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य इलाकों में स्लम में रहने वाले लोगों को अभी के 300 स्क्वायर फीट इलाके के बजाए 500 स्क्वायर फीट का इलाका देगी।

एक रुपये में इलाज

आम लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एक रुपये वाले क्लीनिक शुरू किए जाएंगे। साथ ही तालुका स्तर पर पैथोलॉजिकल टेस्ट की व्यवस्था होगी। सभी जिलों में सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल बनाए जाएंगे। राज्य के हर नागरिक को हेल्थ इंश्योरेंस कवर भी मुहैया कराया जाएगा। उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की छूट दी जाएगी और अनुमति की प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा। आईटी सेक्टर में नए निवेशों के लिए पॉलिसी में जरूरी बदलाव किए जाएंगे।

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असली सरदार शरद पवार

महाराष्ट्र के इस सियासी खेल में सबसे बड़े नेता के रूप में शरद पवार उभरे हैं। गैरभाजपाई दलों के पास महाराष्ट्र की राजनीति के भीष्म पितामह के रूप में शरद पवार थे तो भाजपा के पास उनकी टक्कर का कोई दूसरा नेता नहीं था। महाराष्ट्र के इस पूरे नाटक में अगर कोई व्यक्ति अपनी रौ में खेलता दिखा तो वह शरद पवार ही हैं। इस खेल में शरद पवार का कद एक बार फिर ऊंचा हुआ है।

पवार के कारण ही बन सका गठबंधन

जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शरद पवार के बाद नंबर दो की हैसियत रखने वाले नेता अजित पवार ने राज्यपाल को एक लिस्ट सौंप कर भाजपा को समर्थन का ऐलान कर दिया तो कोहराम मच गया। रातों रात राकांपा, कांग्रेस और शिवसेना एकजुट हो गए। यह शरद पवार की कूटनीति का ही नतीजा था कि विश्वासमत का सामना करने से पहले ही डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा देकर अजित पवार वापस एनसीपी के खेमे में लौट गए और फडणवीस सीएम पद छोडऩे पर मजबूर हो गए।

इसके बाद तीन दलों के विपक्षी गठबंधन ने बिना समय गंवाए उद्धव ठाकरे को नेता चुन लिया। अगर देखा जाए तो महाराष्ट्र के सियासी खेल में शरद पवार असली मराठा सरदार बनकर उभरे हैं। राजनीतिक हलकों में अब इस पर खुलकर चर्चा शुरू हो गई है कि यह शरद पवार का ही राजनीतिक कौशल था जिसके चलते शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के अस्वाभाविक माने जा रहे गठबंधन को आकार मिल गया।

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युवावस्था में ही दिखाई थी बानगी

संकट के दौर में जिस सियासी महारत की जरूरत होती है, उसे पवार ने कर दिखाया। इस बात को शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के इस बयान से भी समझा जा सकता है कि अजित पवार इस गठबंधन में एक बड़ी भूमिका में होंगे। देखिए कितना बड़ा काम करके आए हैं। मतलब साफ है कि अजीत पवार भाजपा की गोद में प्लांट किये गए थे ताकि गठबंधन को तेजी के साथ आकार दिया जा सके। शरद पवार शुरुआत से ही दलीय निष्ठा से परे रहे हैं। इसकी पहली बानगी 1978 में उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु यशवंत राव चव्हाण से किनारा कर जनता पार्टी का दामन थाम कर दिखाई थी। तब वे 34 साल की उम्र में राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे।

मुश्किलों में भी बचाए रखा वजूद

1980 में जब वह युवा थे उस समय उन पर एक बढ़ा संकट तब आया जब दोबारा सत्ता में आईं इंदिरा गांधी ने महाराष्ट्र में उनकी सरकार बर्खास्त कर दी। उनकी मुश्किल तब और बढ़ गई थी, जब 1980 में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीता और ए.आर.अंतुले की सरकार बनी। अंतुले ने पवार के 58 में से करीब 50 विधायक तोड़ लिए उस समय पवार ने चंद्रशेखर को पकड़ा और अपना वजूद बचाए रखा।

हालांकि, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर के चलते 1985 में कांग्रेस को अभूतपूर्व जीत मिली। पवार को एक बार फिर झटका लगा। उनकी पार्टी कांग्रेस-एस से बड़ी संख्या में लोग कांग्रेस में चले गए, लेकिन पवार ने फिर पैतरा बदला और राजीव की अगुवाई वाली कांग्रेस में शामिल हो गए और एक बार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए। ये पवार का ही करिश्मा है कि सोनिया गांधी से नाता तोडऩे के बावजूद महाराष्ट्र में डेढ़ दशक तक कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन चलाने में कामयाब रहे। वह केंद्र में 10 साल तक यूपीए सरकार का हिस्सा रहे।

कट्टर विरोधियों का भी समर्थन लेने में महारथी है शिवसेना

महाराष्ट्र में अपना सीएम बनवाकर शिवसेना ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है क्योंकि जिस दिन के लिए उसने सबकुछ किया, वह क्षण आ गया है। बेशक उसके अपने बूते नहीं कांग्रेस और राकांपा की बैसाखी से उसे यह उपलब्धि हासिल हो सकी है। वास्तव में शिवसेना अपनी शुरुआत से ही लक्ष्य हासिल करने के लिए किसी से भी सहयोग लेने में परहेज नहीं करती रही है। शिवसेना के लिए कोई भी त्याज्य नहीं है। पूर्व का इतिहास देखें तो मुस्लिम लीग से हाथ मिलाना पड़े तो वह उसके लिए भी तैयार दिखी है। वास्तव में शिवसेना सिर्फ अपने हित पर केंद्रित रहती है और इसके लिए जिस किसी का सहयोग या मदद लेनी हो, वह उसके लिए हमेशा तैयार रहती है।

कांग्रेस ओ से गठबंधन

कांग्रेस के साथ शिवसेना का गठबंधन अगर आपको चौंका रहा है तो इतिहास को खंगालिए। शिवसेना की स्थापना 19 जून 1960 में एक राजनीतिक कार्टूनिस्ट बालासाहेब ठाकरे ने की थी। इस पार्टी का वास्तविक उभार तब आया जब पार्टी ने दूसरे राज्यों से महाराष्ट्र आने वाले लोगों के मुकाबले महाराष्ट्र के मूल निवासियों को तरजीह दिए जाने का आंदोलन चलाया। इस आंदोलन ने इस पार्टी को मराठा मानुस की पार्टी बना दिया।

शिवसेना ने 1971 में कांग्रेस ओ से गठबंधन किया। यह कांग्रेस का इंदिरा गांधी विरोधी गुट था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन) या कांग्रेस (ओ) का गठन तब हुआ था जब इंदिरा गांधी के निष्कासन के बाद कांग्रेस विभाजित हुई थी। कांग्रेस ओ को अनौपचारिक रूप से सिंडिकेट और इंदिरा गुट को इंडीकेट कहा जाता था। कामराज और बाद में मोरारजी देसाई कांग्रेस(ओ) के नेता थे।

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इमरजेंसी का समर्थन

1971 में ठाकरे ने शिवसेना के टिकट पर लोकसभा चुनावों में तीन प्रत्याशियों को उतारा था जिनमें से कोई भी नहीं जीता। 1975 में जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी घोषित की तो बाल ठाकरे ने इसे सही ठहराया। 1977 के चुनावों में कांग्रेस को समर्थन दिया। इसके बाद 1980 में भी शिव सेना ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को समर्थन दिया। कह सकते हैं कि शिवसेना के लिए कांग्रेस कभी त्याज्य नहीं रही।

मुस्लिम लीग का भी लिया समर्थन

शिवसेना जो अपनी कट्टर हिन्दुत्ववादी विचारधारा और मुसलमानों के खिलाफ तीखे बयानों के लिए जानी जाती है, एक जमाने में अपनी दुश्मन इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन कर राजनीतिक आकाओं को चौंका चुकी हैं। नगरपालिका चुनाव में बाल ठाकरे ने मुसलमानों के वंदेमातरम न गाने के मुद्दे पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें पूरा बहुमत नहीं मिला। स्थायी समिति के अध्यक्ष के चुनाव के लिए उन्हें दो-तीन वोटों की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के अध्यक्ष बनातवाला का समर्थन ले लिया।

मतलब दस दिन पहले तक वो मुसलमानों और मुस्लिम लीग को गाली दे रहे थे, लेकिन जब उन्हें उनके समर्थन की दरकार हुई तो ये नहीं कहा मै लीग से समर्थन नहीं लूंगा। यही हाल मुस्लिम नेता गुलाम मोहम्मद बनातवाला के साथ मंच साझा करने में भी रहा। जबकि बनातवाला शिवसेना खासकर बाल ठाकरे मुखर आलोचकों में गिने जाते थे। इन बातों को देखकर ये बिल्कुल साफ हो जाता है कि बात सत्ता की मलाई खाने की हो तो शिवसेना किसी भी हद तक जा सकती है।



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