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ब्रिटिश इंजीनियरिंग का नायाब नमूना हैं ये चालीस कुएं, जानिए इनकी कहानी

इतिहास बन चुके चालीस खुह के स्‍वर्णीम इतिहास से जल्‍द ही गुरु नगरी के साथ-साथ देश विदेश से आने वाले पर्यटक भी रू-ब-रू होंगे।

Ashiki
Published on: 29 May 2020 6:14 PM GMT
ब्रिटिश इंजीनियरिंग का नायाब नमूना हैं ये चालीस कुएं, जानिए इनकी कहानी
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इतिहास बन चुके चालीस खुह के स्‍वर्णीम इतिहास से जल्‍द ही गुरु नगरी के साथ-साथ देश विदेश से आने वाले पर्यटक भी रू-ब-रू होंगे। इससे न केवल लोगों को 118 पहले होने वाली वाटर सप्‍लाई सिस्‍टम के बारे में पता चलेगा बल्कि ब्रिटिश इंजीनियरिंग का उम्‍दा नमूना भी देखने को मिलेगा। शहर के जोड़ा फाटक के पास स्थित लगभग पचास एकड़ में स्थित इन चालीस कुओं से कभी अमतसर में पानी की सप्लाई की जाती थी।

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अंग्रेज अधिकारी डब्‍ल्‍यू एम जंग ने करवाया था निर्माण

अंग्रेजों की गजेटियर के मुताबिक इन कुओं का निर्माण म्यूनिसिपल कारपोरेशन के तत्कालीन सेक्रेटरी मिस्टर डब्ल्यू एम जंग ने सन 1902 में करवाया था। डब्ल्यू एम जंग की उम्दा सोच के चलते वाल सिटी (wall city) में वाटर सप्‍लाई के लिए पाइपें बिछवाई गईं। इन पाइपों के जरिए शहर के एक खास वर्ग के लोगों (जो तत्कालीन समय में राय बहादुर, शाह बहादुर आदि उपाधियों से नवाजे गए थे) और अंग्रेज अधिकारियों को पीने के पानी की सप्‍लाई की जाती थी। इसके अलावा शहर के आम आदमी अपनी-अपनी बीरादरी के कुंओं से पीने का पानी भरते थे।

भाप इंजन खिंचता था पानी

बताया जाता है कि इन चालीस कुओं से पानी निकालने के लिए भाप इंजन का इस्तेमाल किया जाता था। इसके लिए एक बड़ा टैंक और लगभग 70 फुट ऊ़ची चिमनी बनवाई गई थी। इसके अलवा इंजीनियरों के रहने के लिए एक चतुष्‍कोणीय बंगले का निर्माण करवाया गया। कहा जाता है कि इसी बंगले में बैठक कर तत्‍कालीन इंजीनियर मिस्टर डब्ल्यू एम जंग वाटर सप्लाई की इस व्यवस्था का जयजा लेते थे। हलांकि भाप इंजन से पानी खींचे जाने का कोई पुख्‍ता उल्‍लेख नहीं मिला है। लेकिन यहां बने वाटर टैंक और चिमनी को देख कर लोग यही कयास लगाते हैं।

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1902 से 1972 अमृतसर वासियों की जीवन रेखा थी चालीस खुह

1902 से 1972 तक अमतसर वासियों की जीवन रेखा थी चालीस खुह। वर्तमान में इन चालीस कुओं को बंद करवा कर नगर निगम ने 1980 में यहां रोज गार्डन बनवा दिया था। लेकिन ब्रिटिस इंजीनियर डब्ल्यू एम जंग द्वारा बनवाया गया वाटर सप्लाई का यह केंद्र वक्त के थपेड़ों को सहते हुए आज भी उसकी उम्‍दा सोच व वर्तानवी वास्तुकला और इंजीनियरिंग की मिशाल पेश करता है। वर्तमान में आसमान से बातें करती बनाई गई चीमनी दरख्तों की ओट से उचक-उचक कर अपना स्‍वर्णीम इतिहास बताने की कोशिश करती है जिस आज बिसार दिया गया है।

वर्ष 2005 तक गुलजार था जंग का कार्यालय

ब्रिटिस इंजीनियर जंग का यह कार्यालय 2005 तक गुलजार रहा। जंग का यह कार्यालय में नगर निगम के तत्‍कालीन ज्वाइंट कमिश्‍नर डीपी गुप्ता से लेकर एसडीओ केवी राय के निवास स्थान के रूप में प्रयोग होता रहा। इन अधिकारियों के जाने के बाद से यह स्थान एक दम से वीरान हो गया और कभी वाटर सप्लाई का प्रमुख केंद्र रहा यह स्थान झाड़ियों से ढंक गया। और तो और समय से संघर्ष करती ये इमारतें उपेक्षा के कारण दरकने लगी थीं। लेकिन हृदय प्रोजेक्‍ट (मनिस्‍ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अरबन अफेयर्स भारत रसरकार) के तहत इस ऐतिहासिक धरोहर को दोबारा पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।

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कमाल का था वाटर सप्‍लाई का सिस्‍टम

इंजी. जंग के बंगले में लगभग दस साल तक रह चुके नगर निगम के पूर्व ज्वाइंट कमिश्‍नर डीपी गुप्ता कहते हैं कि करीब बीस एकड़ में ये सभी चालीस कुएं 16 24 के बनाए गए हैं। प्रत्येक कुआं पहले कुंए से जुड़ा हुआ है। वे कहते हैं कि वारट सप्लाई का यह सिस्टम कमाल का था। यहां पानी का स्‍तर 45 फुट था। वे कहते हैं 28 कुएं उत्‍तर दिशा की ओर खोदे गए थे और 12 कुएं उनकी दक्षिण दिशा में खोदे गए थे। सभी 40 कुओं को आपस में जोड़ा गया था। जिससे एक बड़े टैंक में पानी एकत्र कर शहर में पंप से सप्‍लाई किया जाता था।

125 हार्स पॉवर के पंप से होती थी सप्‍लाई

पूर्व संयुक्‍त संयुक्‍त कमीश्‍नर कहते हैं कि भाप इंजन का तो पता नहीं। लेकिन यहां पंप हाउस के पास बने वृत्‍ताकार कमरे में लगे 125 हार्स पॉवर के इंजन से वाटर सप्‍लाई के सभी पाइपें जोड़ी गई थी। इन्‍हीं पाइपों को जरिए पुराने अमृतसर शहर में पानी की सप्‍लाई होती थी। उस समय शहर की गलियों में सांझे कुएं होते थे। कुछ लोगों के घरों में अपने नीजी कुएं भी होते थे। जिससे लोगों की पानी की जरूरते पुरी होती थी। डॉ: डीपी गुप्‍ता कहते हैं आज भी जोड़ा फाटक के पास स्थित चालीस खुह में ब्रिटिश इंजीनियरिंग की बेमिशाल कृति को देखा जा सकता है।

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