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घास से महकेंगी गंगा: ये तकनीक है लाजवाब, जल्द होगा असर
अब वह दिन दूर नही होगा, जब मड़िहान के जंगलों में बनी इत्र पूरे प्रदेश को अपनी ओर खिंचेगा। वन विभाग की पहल पर इसका खाका तैयार हो चुका है, और इस खास घास की खेती भी प्रारंभ हो चुकी है।
बृजेंद्र दुबे
मिर्जापुर: अब वह दिन दूर नही होगा, जब मड़िहान के जंगलों में बनी इत्र पूरे प्रदेश को अपनी ओर खिंचेगा। वन विभाग की पहल पर इसका खाका तैयार हो चुका है, और इस खास घास की खेती भी प्रारंभ हो चुकी है। मड़िहान वन रेंज के राजापुर झरी नर्सरी पर वन विभाग के पहल पर खास तरह की खुश्बूदार घास की खेती कराई जा रही है। इसी पौधे की जड़ की रस से इत्र बनाया जाएगा।
पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को रोजगार भी मिलेगा
मड़िहान जंगल की खुश्बू अब इत्र के सहारे पूरे प्रदेश में फैलेगी, वहीं उनको अपनी ओर खिंचेगी। इसके लिए वन विभाग के क्षेत्राधिकारी द्वारा किया गया कवायद अब रंग लाया रहा है। मड़िहान जंगल में इन दिनों खास तरह के घास की खेती कराई जा रही है। इसी घास के रस से इत्र तैयार किया जाता है। पहले चरण में 16 बीघा खेत में कुल एक लाख सत्रह हजार जड़ों को लगाया गया है। यह जड़ अब तैयार होने के करीब है। इसी जड़ को काटकर मशीन में पेराई करके सुगंधित इत्र तैयार किया जाता है। मड़िहान वन क्षेत्र के राजपुर झरी नर्सरी में खास तरह की खेती के बाद न सिर्फ इत्र की खुश्बू ही फैलेगी, बल्कि पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
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पत्थर की दीवार बनाकर खेती किया जा रहा है
इस खेती की पहल वन क्षेत्राधिकारी प्रदीप मिश्रा ने किया था, जिसके बाद 16 बीघा खेत में पत्थर की दीवार बनाकर खेती किया जा रहा है। इस पूरे खेती की निगरानी नर्सरी प्रभारी करते है। पहले चरण में लगाई गई जड़ों की खेती अब पूरी होने वाली है। जिसके बाद इन जड़ो को काट लिया जायेगा। यह जड़ ज्यादा पानी वाली जगह नदी और झील के किनारे खुद ही उग आते है, जिसको पशु भी नही चरते है। हालांकि पैर से दबने से फसल खराब हो जाता है, जिसके लिए बाकायदा पत्थर की दीवार से घेराबंदी कर इसका देखभाल किया जा रहा है।
इत्र ही नही बल्कि यह सुगंधित तेल व साबुन बनाने में आता है काम
नदी और तालाब के किनारे खुद ब खुद उग आने वाले इस घास से न सिर्फ इत्र तैयार किया जाता हैं, बल्कि इसका प्रयोग खुश्बूदार तेल, साबून और कॉस्मेटिक की सामान बनाने में किया जाता है। यह घास गुच्छनुमा होती है, वहीं इसकी लंबाई 5 फीट तक होती है। इस पेड़ को बाकायदा खेती करके पहले तैयार कराया जाता है, जिसके बाद इसकी जड़ को मशीन में पेराई करने के बाद रस निकाला जाता है। इसके रस ठण्डा होता है, जिसका प्रयोग सुगंधित तेल बनाने व सुगन्धित साबुन बनाने में किया जाता है। इसकी खेती से स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा व उनके दिन भी बहुरेंगे।
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ऊपर बचे घास का कूलर में होता है प्रयोग
मड़िहान वन रेंज में हो रही खास तरह की घास की खेती के जड़ों का प्रयोग इत्र बनाने में किया जाता है, बल्कि इनके उपर बचे घासों को उपयोग कूलर में किया जाता है। यह घास काफी ठंडा होता है। इसके रस से बने शरबत पीने से गर्मी के समय में जलन से राहत मिलती है, वहीं दिमाक भी तरों ताजा हो जाता है। पहले के समय में जब जेठ माह में गर्म हवा चलती थी, तब इसी घास का पर्दा बनाकर दरवाजा पर लगाया जाता था।
इस घास से प्रवेश करने वाली हवा काफी शीतल हो जाती थी। जिसके बाद अब हाईटेक समय में इसी घास का प्रयोग कुलर बनाने में किया जाता है। जल को साफ़ करने और कटान रोकने के लिए भी इसी पौधे का प्रयोग किया जाता है। इस घास की खेती के लिए वहां के किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। प्रशिक्षित होने के बाद इन पौधों को किसानों में वितरित किया जाएगा।
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वन क्षेत्राधिकारी (मड़िहान) प्रदीप कुमार मिश्र ने बताया कि मड़िहान वन रेंज में इस घास की खेती कराई जा रही है। पहले चरण में कुल एक लाख सत्रर हजार जड़ लगाई गई है। जिनकी खेती तैयार हो रही है। इस घास की खेती करने के बारे में किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। जिसके बाद उनको यह जड़ प्रदान किया जाएगा। ज्यादातर गंगा किनारे चयनित गाँवो में पहले इस पौधे को लगाया जाएगा।