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23 मार्च : भगत सिंह को किताबों से थी ऐसी दीवानगी

आज ही के दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। उन्हें बचाने के लिए देशभर से आवाजें उठ रही थीं तो सरकार ने गुप्त तरीके से उन्हें फांसी देना निश्चित किया। जेल में रहने के बावजूद किताबों से उनकी मोहब्बत बरकरार...

Ashiki
Published on: 23 March 2020 11:13 AM IST
23 मार्च : भगत सिंह को किताबों से थी ऐसी दीवानगी
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देश के इतिहास में वैसे तो कई महत्वपूर्ण घटनाएं 23 मार्च को दर्ज हैं लेकिन भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिया जाना बड़ी व महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वर्ष 1931 में क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च को ही फांसी दी गई थी।

देश की खातिर हुए शहीद

आज ही का वो दिन था, जब भारत के सबसे बड़े क्रांतिकारी ने देश की खातिर अपनी जान गंवा दी थी। हम बता रहे हैं स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के बारे में। इसी दिन उनके साथ सुखदेव और राजगुरु ने भी अपनी जान गंवाई थी।

उनकी जिंदगी से लें प्रेरणा

देश की आजादी के लिए लड़ने वाले बड़े क्रांतिकारी भगत सिंह की जिंदगी किसी को भी प्रेरणा दे सकती है। चाहे वह किसी भी विभाग में हों, किसी भी उम्र के हों। हम आपको उनकी फांसी से जुड़ी ऐसी बातें बता रहे हैं, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं।

भगत को थी कुर्बानी की खुशी

भगत सिंह जानते थे कि देश के लिए उन्हें अपनी जान कुर्बान करनी होगी। कहा जाता है कि करीब-करीब दो साल जेल में रहने के बावजूद, भगत सिंह काफी खुश थे। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि उन्हें खुशी इस बात की थी कि वह देश के लिए कुर्बान होने जा रहे हैं।

उन्हें बचाने के लिए देशभर में प्रदर्शन

एक ओर भगत सिंह अपनी होने वाली फांसी से खुश थे लेकिन दूसरी तरफ उन्हें बचाने के लिए देश में प्रदर्शन हो रहे थे। लाहौर में भारी भीड़ इकठ्ठा होने लगी थी। अंग्रेज जानते थे कि तीनों की फांसी के दौरान उग्र प्रदर्शन होंगे, जिसे रोकने के लिए मिलिट्री लगा दी थी।

किताबों से थी मोहब्बत

कई तथ्यों में मिला है कि भगत सिंह को किताबें पढ़ने का शौक था। किताबों को लेकर उनकी दीवानगी हैरान करने वाली है। वह जब भी किताबें पढ़ते थे तो नोट्स भी बना लेते थे। उनकी यह दीवानगी जेल में रहते हुए भी जारी थी।

फांसी के समय भी...

जिस समय उन्हें फांसी दी जानी थी, उस समय वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। जेल में रहने वाले पुलिसवालों ने उन्हें बताया कि उनकी फांसी का समय हो चुका है। इस पर भगत सिंह बोले, 'रुकिये, पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले'। अगले एक मिनट तक किताब पढ़ी फिर बोले कि अब चलो।

आवाज दबाने को पेश किया बिल

अंग्रेज सरकार दिल्ली की असेंबली में ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ पास करवाने जा रही थी। ये दो बिल थे, जो भारतीयों पर अंग्रेजों का दबाव और भी बढ़ा देते। इससे सिर्फ अंग्रेजों को ही लाभ होता। इससे क्रांति की आवाज को दबाना भी मुमकिन हो जाता। इसीलिए सरकार इसे पास करवाने की जद्दोजहद कर रही थी।

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