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IAS बना गली का छोरा: देखती रह पूरी दुनिया, बन गया सबके लिए मिसाल

जोधपुर के दिलीप प्रताप सिंह शेखावत ने यूपीएससी 2018 में 77वीं रैंक पाई है। दिलीप के जोधपुर की गलियों में क्रिकेट खेलने से लेकर आईएएस बनने का सफर बेहद ही दिलचस्प है। कुछ करने का जूनुन लेकिन पढ़ाई में ऐवरेज होना।

Shreya
Published on: 9 May 2023 1:22 PM IST (Updated on: 9 May 2023 1:33 PM IST)
IAS बना गली का छोरा: देखती रह पूरी दुनिया, बन गया सबके लिए मिसाल
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IAS बना गली का छोरा: देखती रह पूरी दुनिया, बन गया सबके लिए मिसाल

राजस्थान: जोधपुर के दिलीप प्रताप सिंह शेखावत ने यूपीएससी 2018 में 77वीं रैंक पाई है। दिलीप के जोधपुर की गलियों में क्रिकेट खेलने से लेकर आईएएस बनने का सफर बेहद ही दिलचस्प है। कुछ करने का जूनुन लेकिन पढ़ाई में ऐवरेज होना। कुछ पाने की चाह लेकिन कभी बड़े होने का मन नहीं। जी हां, दिलीप के आईएएस बनने का सफर कुछ ऐसे ही गुजरा है।

दिलीप ने यूपीएससी में दो अटेंप्ट कर लिए थे लेकिन हार नहीं माना और तीसरे बारी में उन्होंने यूपीएससी 2018 में 77वीं रैंक पाई। इसी के साथ दिलीप ने वो करके दिखाया जिसका सपना लिए दिलीप जोधपुर से दिल्ली आए थे। दिलीप ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि, हां मैं गली ब्वॉय से आईएएस बना। मैं हमेशा बड़े होन के सवाल पर कहता था कि मुझे बचपन में ही रहना है, मुझे बड़े होने की चिंताएं देखनी ही नहीं है। लेकिन 12वीं के बाद मैंने सोचा मैं क्या करूं?

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इंजीनियरिंग कॉलेज से दिल्ली तक का सफर-

फिर एक मैंने एक इंजीनियरिंग कॉलेज में केमिकल इंजीनियरिंग करने चला गया। लेकिन एक समय था जब लगा कि वापस चला जाऊं। मगर वहां से वापस न आकर मैंने लास्ट ईयर में कैंपस प्लेसमेंट से नौकरी ले ली। मगर यहां सीनियर से सुनने में आया कि आईएएस एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर आप लोगों की सेवा के साथ-साथ एक नोबल जॉब भी कर सकते हैं। लेकिन अपना बैकग्राउंड देखते हुए ये लगा ही नहीं कि मैं ये कर पाऊंगा। उस पर मैं पढ़ने में भी अच्छा नहीं था। कॉलेज में भी कई सब्जेक्ट्स में फेल हुआ था तो ऐसे में घरवालों की मंजूरी भी मिलनी जरुरी थी।

परिवार वालों की मिली मंजूरी-

कॉलेज टाइम से जो ज्वाइनिंग के बीच का जो समय बचा था उसमें जब घरवालों की राय मांगी तो उन्होंने बोला कि जो करना है करो, हम संभाल लेंगे। तब मैंने तय किया कि जिंदगी में रिस्क लिया जाए क्योंकि ये मौका दोबारा नहीं आएगा। उसके बाद वहां से सामान बांधा और दिल्ली चला गया। वहां जाकर मैंने देखा कि यहां पर पहले से ही लाखों की तादाद में लोग हैं।

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जब डगमगा गया हौसला-

मेरे लिए ये अद्भुत अनुभव था। यहां आकर मैं डिप्रेशन में चला गया कि इतने अच्छे-अच्छे घरों से लोग आए हैं। कितना ज्यादा पढ़ें हैं, जब ये नहीं कर पा रहे तो मैं कैसे कर पाऊंगा। फिर सोचा कि अगर मैं वापस चला गया तो खुद को कभी भी आईने में नहीं देख पाऊंगा। हमेशा यहीं सोचता रहुंगा कि मैं कुछ कर नहीं पाया। यहां आया हूं तो एक अटेंप्ट तो जरुर देकर जाऊंगा।

लोगों ने बोला तुमसे ना हो पाएगा-

उसके बाद दिलीप ने अपना पहला प्री अटेंप्ट दिया लेकिन वो पहले अटेंप्ट में फेल हो गए। इसके बाद दिलीप से आसपास के लोगों ने बोला कि तुमसे नहीं हो पाएगा। लेकिन दिलीप ने हिम्मत नहीं हारी और ये कहते हुए आगे बढ़ गए कि अपना टाइम आएगा। इस दौरान दिलीप के घरवालों ने भा उनका खूब साथ दिया।

सेल्फकॉन्फिडेंस की वजह से रह गए पीछे-

पहले अटेंप्ट में फेल होने के बाद बारी आई दूसरे अटेंप्ट की जिसमें दिलीप इंटरव्यू की स्टेज तक पहुंच गए। लेकिन अपने अंदर आत्मविश्वास कम होने के कारण और नर्वसनेस के चलते वो इस बार फिर फेल रहे। लेकिन इस फेलियर से सीख लेते हुए वो आगे बढ़े।

दृढ़ निश्चय ने दिलाई मंजिल-

परिवार का विश्वास डोलने के वक्त जब दिलीप की मां ने कहा कि अब पीछे मत जाओ, एक छलांग मारो और आगे बढ़ जाओ, इस बात से प्रेरित होते हुए दिलीप ने एक बार फिर प्री दिया और उसमें सिलेक्ट हो गए और फाइनल रिजल्ट में दिलीप को 77 रैंक मिली। दिलीप ने कही कि बहुत लोगों ने मुझे बहुत ताने मारे और मेरे परिवार को परेशान करने की कोशिश की। लेकिन मैंने आईएएस बनने का ठान रखा था। अब आगे में पूरी निष्ठा के साथ काम करुंगा।

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