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मुसीबत बना उत्तराखंड तबाही: अब चीन से बचना होगा, ग्लेशियर के बाद नई आफत
उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने से आई महातबाही में इलाके से अभी तक 15 लाशें मिली है, जबकि 156-160 लोग अभी तक लापता है। ऐसे में इस आफत से बड़ा नुकसान हो गया है लेकिन अब एक और बड़ी मुसीबत सामने आ गई है।
नई दिल्ली। उत्तराखंड के चमोली जिले में आफत अब और बढ़ते नजर आ रही है। ग्लेशियर फटने से आई महातबाही में इलाके से अभी तक 15 लाशें मिली है, जबकि 156-160 लोग अभी तक लापता है। ऐसे में इस आफत से बड़ा नुकसान हो गया है लेकिन अब एक और बड़ी मुसीबत सामने आ गई है। उत्तराखंड में जहां पर ग्लेशियर फटने की घटना हुई, वह देश की बहुत ही ज्यादा संवेदनशील क्षेत्र है। तो इस घटना के बाद मलारी गांव में पुल टूटटने से मानों चिंताओं और मुसीबतों का सैलाब आ गया है।
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नई मुसीबत
दरअसल उत्तराखंड का ये इलाके बहुत ज्यादा नाजुक है। इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड का यह इलाका दो मामलों में बेहद संवेदनशील है। पहला तो ये है कि प्राकृतिक रूप से और दूसरा सेना बॉर्डर एरिया (Border Area) होने से।
ऐसे में उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल कहते हैं कि चमोली जिले का मलारी गांव इस मामले में बेहद अहम है। मलारी गांव से करीब 60-70 किलोमीटर बाद भारत की तिब्बत से सीमा (Indo-Tibetan Border) लगती है।
फोटो- सोशल मीडिया
साथ ही मलारी नीति वैली में है जो चीनी सीमा (Chinese Border) से जुड़ी है। वहीं, नीति पास (Niti Pass) दक्षिण तिब्बत के साथ व्यापार का प्रमुख प्राचीन मार्ग रहा है। लेकिन अब चिंता की बात है कि मलारी जाने का प्रमुख ब्रिज इस हादसे में टूट गया है।
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असुविधा सैन्य और सामरिक द्रष्टि से भी चिंता
आगे पत्रकार उनियाल कहते हैं कि मलारी के आसपास बसे सात-आठ गांव और हैं, लेकिन वहां तक जाने के लिए इस ब्रिज का ही इस्तेमाल होता रहा है। यहां तक कि भारत की सेना भी इस ब्रिज का इस्तेमाल करती है। पर ऐसे में इसके टूटने से होने वाली असुविधा सैन्य और सामरिक द्रष्टि से भी चिंता पैदा करने वाली है।
और उत्तराखंड में जहां ग्लेशियर फटा है वहां से कुछ दूरी पर इंडो-तिब्बतन बॉर्डर लगता है। तो इस बारे में वे बताते हैं कि बीते साल कोरोना और उसके बाद चीन के साथ भारत के संबंधों में आई हलचल के बाद सीमा क्षेत्र पर किसी भी तरह की अव्यवस्था ठीक नहीं है।
वहीं उत्तराखंड के और भी इलाके हैं जैसे उत्तरकाशी आदि जहां इस तरह की प्राकृतिक आपदा या घटनाएं बहुतायत में होती हैं। इसलिए इन संवेदनशील इलाकों में बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
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