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वैलेंटाइन डेः एक दिन का नहीं, महीने भर का है यहां मदनोत्सव
भारतीय परंपरा की बात करें तो मदनोत्सव या वसंतोत्सव का प्रारंभ माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी यानी वसंत पंचमी से होता है। भारतीय संस्कृति के वैलेंटाइन श्रीकृष्ण हैं। कहते हैं इस दिन से गरमी की शुरुआत भी हो जाती है।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: आज वैलेंटाइन डे मनाया जा रहा है। एक सप्ताह से इस दिन की तैयारी में चूर नवयौवन में इठलाते, इतराते, उफनाए युवक युवतियों के झुंड जहां तहां पार्कों, शापिंग माल्स, रेस्तरां में बैठे घूमते नजर आ रहे हैं। भारत में डिजिटल क्रांति के बाद 1992 में जन्मा वैलेंटाइन डे अब गबरू जवान हो चुका है। हिन्दी पत्रकारिता भी 1996 से पहले तक संत वैलेंटाइन को नहीं जानती थी।
जोश है उमरिया में लोच है कमरिया में
हिन्दी में पहली स्टोरी राष्ट्रीय सहारा में युवा पत्रकार अक्षय कुमार सिंह चौहान ने लिखी थी। इसके बाद मीडिया ने इसे हाथों हाथ लपक लिया। अक्षय से पूछने पर वह कहते हैं कि 1996 में भी शाम को जब वह हजरतगंज में अपने मित्र साधु शरण पाठक के साथ खड़े थे तब यह स्टोरी लिखने का आइडिया आया। साधु शरण पाठक ने एक कविता पढ़ी- जोश है उमरिया में लोच है कमरिया में, बंधे हैं घुंघरू भी नचाने वाला चाहिए। इसी लाइन से अक्षय ने अपनी स्टोरी की शुरुआत की।
बाद में तेजी से पांव पसारते बाजार को वैलेंटाइन डे युवाओं को लुभाने के लिए बहुत रास आया और इसे हाथों हाथ लपक लिया। आज की पीढ़ी पर तो इसका नशा सिर चढ़कर बोल रहा है।
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भारतीय संस्कृति के वैलेंटाइन श्रीकृष्ण हैं
भारतीय परंपरा की बात करें तो मदनोत्सव या वसंतोत्सव का प्रारंभ माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी यानी वसंत पंचमी से होता है। भारतीय संस्कृति के वैलेंटाइन श्रीकृष्ण हैं। कहते हैं इस दिन से गरमी की शुरुआत भी हो जाती है। वसंत पंचमी का उत्सव मदनोत्सव पूरी तरह से श्रीकृष्ण और कामदेव को समर्पित है।
कामदेव काम के देवता हैं और रति उनकी पत्नी हैं। कामदेव को देवी श्रीलक्ष्मी के पुत्र और कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का अवतार माना गया हैं। कामदेव के आध्यात्मिक रूप में श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है। जिन्होंने रति के रूप में 16 हजार पत्नियों से महारास रचाया था।
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कामदेव का प्रमुख अस्त्र धनुष है। उनके बाण फूलों से बने हुए हैं। इसका अर्थ यह है कि जब कामदेव किसी पर अपना बाण चलाते हैं तो वह मदहोश हो जाता है। वह जीव कामदेव के बाण से सम्मोहित होकर प्रेमपाश में पड़ जाता है।
प्रेमी प्रेमिकाओं के बीच नयनों के बाण पहले भी चला करते थे आज भी चलते हैं। तभी तो कवि बिहारी कहते हैं-
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं, नैननु ही सों बात।
कामदेव और रति
कामदेव की आंखों को तीर के समान माना गया है। यानी कामदेव की दृष्टि जिसके ऊपर पड़ जाती है। उसका प्रणय या प्यार का जीवन सफल हो जाता है।
हिन्दू धर्म में मान्यता यह भी है कि बसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव हदय में प्रेम एवं आकर्षण का संचार किया था और इसी वजह से इस दिन बसंतोत्सव तथा मदनोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
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कामशास्त्र में ‘सुवसंतक’ नामक उत्सव का उल्लेख मिलता है। ‘सरस्वती कंठाभरण’ में कहा गया है कि वसंतावतार के दिवस को सुवसंतक कहते हैं। यानी वसंत का इस दिन पृथ्वी पर अवतरण माना जाता है।
दशकुमार चरित में होली का उल्लेख
इस उत्सव को रंगों के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। लोकगीतों में कहते है- सरसों के फुलवा खिलन लागे, फागुन में बाबा देवर लागे। इस उत्सव का अंतिम दिन रंगपंचमी के दिन मनाया जाता है। दशकुमार चरित में होली का उल्लेख ' मदनोत्सव ' के रूप में किया गया है। अंत में यही कहेंगे वैलेंटाइन डे न मनाकर मदनोत्सव मनाइये पूरे एक माह आनंद उठाइये।
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