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20 हजार करोड़ की गौ तस्करी, बांग्लादेश का ये आँकड़ा चौंकाने वाला है
पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र मालदा, मुर्शिदाबाद के कच्चे रास्ते से रोजाना हजारों गायें बांग्लादेश पहुंचती हैं। सीबीआई का मानना है कि जिस संख्या में गायों की तस्करी होती है, उसमें सिर्फ पांच फीसदी ही बीएसएफ रोक पाती है।
नीलमणि लाल
लखनऊ। बांग्लादेश से लगी पश्चिम बंगाल की 2,216 किलोमीटर लंबी सीमा गौ-तस्करों के लिए स्वर्ग है। सीमा पार पशुधन सम्गलिंग का धंधा 20 हजार करोड़ का बताया जाता है और इस रैकेट में नेता, अफसर, पुलिस, सुरक्षा बल आदि सब मिले हुये हैं। क्योंकि ये तस्करी पुलिस, सीमा सुरक्षा और कस्टम के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर मुमकिन ही नहीं है। गायों की तस्करी सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल से सटी सीमा से होती है। इसके बाद असम, बिहार, त्रिपुरा आदि राज्य हैं।
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कितने पशुओं की तस्करी
पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र मालदा, मुर्शिदाबाद के कच्चे रास्ते से रोजाना हजारों गायें बांग्लादेश पहुंचती हैं। सीबीआई का मानना है कि जिस संख्या में गायों की तस्करी होती है, उसमें सिर्फ पांच फीसदी ही बीएसएफ रोक पाती है।
साल 2014 में तस्करी करके ले जाए जा रहे करीब एक लाख दस हज़ार पशुओं को बीएसएफ ने ज़ब्त किया था। 2016 तक आते - आते सीमा पर ज़ब्त पशुओं की संख्या एक लाख 69 हज़ार तक पहुंच गई। जब्ती की इस संख्या से इस बात का अंदाज़ नहीं लगाया जा सकता है कि सही मायने में कितने पशुओं की तस्करी हुई।
बांग्लादेश सीमा पार कराने के लिए राजस्थान, हरियाणा, यूपी, बिहार आदि ढेरों राज्यों से गाय भैंस तस्कर ले जाते हैं। इतनी लंबी दूरी पार करने में धरपकड़ जितनी होती है उसका कई गुना साफ निकल जाते हैं। ये बिना लोकल पुलिस मिलीभगत से मुमकिन नहीं है।
बांग्लादेश में इन पशुधन को काट कर पैकेज्ड मीट के रूप में एक्सपोर्ट किया जाता है। इसके अलावा इस मीट को लोकल बाजार में भी बड़े पैमाने पर बेचा जाता है। जानकार बताते हैं कि बांग्लादेश में प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत यही मांस है।
भारत से पशु तस्करी इतने बड़े पैमाने पर होती है कि बांग्लादेश में डेयरी उद्योग ध्वस्त हो गया है। इस कारण बांग्लादेश सरकार भी परेशान है और अपने सीमा सुरक्षा बल को तस्करी रोकने के आदेश दिए हैं। लेकिन तस्करों के साथ मिलीभगत के आगे सब सख्ती फेल साबित हुई है।
फोटो-सोशल मीडिया
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ताजा भंडाफोड़
सीबीआई ने 21 सितंबर को 6 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इनमें सतीश कुमार शामिल है जो बीएसएफ की मालदा स्थित 36वीं बटालियन का 2015 से 2017 तक कमान्डेंट था। सतीश कुमार अभी रायपुर में पोस्टेड है। उसके अलावा एफआईआर में पशु तस्कर सरगना इनामुल हक, अनरुल शेख, मोहम्मद गुलाम मुस्तफा के नाम हैं।
सतीश कुमार और इनामुल हक गिरफ्तार कर लिए गए। सतीश कुमार जमानत पर बाहर भी आ गया है। सीबीआई की एफआईआर में कहा गया है कि सतीश कुमार की पोस्टिंग के दौरान तस्करी कर ले जाये जा रहे 20 हजार पशु पकड़े गए। लेकिन जिन गाड़ियों में उनको ले जाया जा रहा था उनको जब्त नहीं किया गया। कोई तस्कर भी पकड़ा नहीं गया।
सीबीआई ने इस मामले में बंगाल पुलिस के 6 अफसरों को पूछताछ के लिए बुलाया है। तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेता बिनोय कुमार मिश्रा को भी सीबीआई ढूंढ रही है। कुछ प्रभावशाली बिजनेसमैन भी एजेंसी के रडार पर हैं। कम से कम 8 आईपीएस अफसर भी सीबीआई की नजर में हैं।
ऐसे चलता है रैकेट
हर साल दासियों हजार पशु (मुख्यतः गाय) पश्चिम बंगाल से सीमा पार पहुंचाए जाते हैं। बंग्लादेश में यूपी और हरियाणा की नस्ल वाले प्रत्येक पशु की कीमत 80 से 90 हजार और बंगाल की छोटी नस्ल वाले पशु की कीमत 40 से 50 हजार रुपये होती है।
फोटो-सोशल मीडिया
ईद के दौरान बांग्लादेश से एक्सपोर्ट होने वाले पैकेज्ड मीट की डिमांड बढ़ने से कीमतों में भारी बढ़ोतरी हो जाती है। सीबीआई सूत्रों के अनुसार, तस्करी के पशु जब्त करने के बाद बीएसएफ के जब्ती मेमो में उनको वास्तविक आकार से छोटा दिखाया जाता था। इसके चलते नीलामी में उन पशुओं की वैल्यू घट जाती थी। ये नीलामी बीएसएफ और कस्टम विभाग जब्त किए पशु बेचने के लिए आयोजित करता है।
इस नीलामी में सिर्फ उन्हीं चुनिंदा व्यापारियों को कम दाम पर पशु खरीदने की अनुमति दी जाती थी जिनकी बीएसएफ और कस्टम अधिकारियों से मिलीभगत होती थी। जो व्यापारी पशु खरीदते थे वही तस्करी करके उन्हीं पशुओं को बांग्लादेश ले जाते।ॉ
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सीबीआई का कहना है कि तस्कर सरगना इनामुल हक प्रति पशु 2 हजार रुपए बीएसएफ अफसरों को तथा 500 रुपए कस्टम अधिकारियों को देता था। इसके अलावा कस्टम अधिकारी नीलामी की रकम का 10 फीसदी बतौर कमीशन लेते थे।
मोटी रकम वाली पोस्टिंग
तस्करी के रैकेट का एक उदाहरण 2018 की घटना है। उस समय सीबीआई की कार्रवाई को बांग्लादेश के मीडिया ने भी व्यापक कवरेज दिया था। ढाका पोस्ट के अनुसार, सीबीआई ने केरल में बीएसएफ की 83वीं बटालियन के कमांडेंट जिबु डी मैथ्यू को 45 लाख रुपए कैश के साथ पकड़ा था। उसको उस समय गिरफ्तार किया गया जब वह ट्रेन से अलपुझा स्थित अपने घर जा रहा था।
मैथ्यू के जिम्मे बांग्लादेश से लगी 70 किलोमीटर सीमा थी। ये क्षेत्र पशु तस्करी, नकली करेंसी और मानव तस्करी के लिए कुख्यात है। सीमा के इस पास मुर्शिदाबाद है जबकि उस पार राजशाही जिला है। सीमा के दोनों तरफ तस्करों के कई गिरोह सक्रिय हैं। ये गिरोह दोनों तरफ के सुरक्षा बलों को मोटी घूस देते हैं और इसी मलाई की वजह से यहां की पोस्टिंग बहुत लुभावनी होती है।
फोटो-सोशल मीडिया
बताया जाता है कि मुर्शिदाबाद बॉर्डर से विभिन्न प्रकार की तस्करी से होने वाली कमाई का हिस्सा बटालियन कमांडेंट को जाता है। मैथ्यू इस मलाईदार पोजीशन पर पिछले कई महीने से तैनात था। वो अपने साथ जो नकदी ले जा रहा था वो चंद हफ़्तों की कमाई थी।
वो फ्लाइट की बजाए ढाई दिन की ट्रेन यात्रा इसलिए कर रहा था क्योंकि ट्रेन में कोई सुरक्षा जांच नहीं होती है। उसके पास नीले रंग का ट्रॉली बैग था। सीबीआई ने जब उसे अलपुझा स्टेशन पर पकड़ा तब इस बैग में 2 हजार के नोटों के 18 बंडल, 500 के नोटों के 22 बंडल थे।
बहुत बड़ा स्मगलर है इनामुल
पशु तस्कर सरगना इनामुल हक को सीबीआई ने दिल्ली से गिरफ्तार किया था। एक बछड़े की तस्करी से अपना धंधा शुरू करने वाले इनामुल हक के पास कम से कम 2 हजार करोड़ की संपत्ति बताई जाती है। दरअसल इसके पहले इनामुल हक बांग्लादेश से आने वाली नकली करेंसी और सोने के बिस्किट का कूरियर था। उसका काम इन आइटम्स को मुर्शिदाबाद से कोलकाता पहुंचाना होता था।
दस साल तक ये काम करने के बाद 2004 में इनामुल ने पशु तस्करी का धंधा पकड़ लिया। जहां बाकी पशु तस्कर गांव के ठेठ लट्ठबाज टाइप के थे वहीं इनामुल सॉफिस्टिकेटेड तरीके वाला था। वो बीएसएफ के लोगों, नेताओं के साथ उठता बैठता था। उसने अपनी इमेज जरूरतमंद लोगों के मददगार के रूप में बना ली। वो दुर्गा पूजा, ईद में समारोह करता और चंदे देता।
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फुटबॉल टूर्नामेंट प्रायोजित करता और लोकल क्लबों को पैसा देता। 2014 आते आते वो बांग्लादेश सीमावर्ती इलाकों में खासे रसूख वाला बन गया। वो जरूरतमंदों को पैसे देता था और रोबिनहुड जैसी छवि बना रखी थी। बदले में गाँव वाले उसको सुरक्षा बालों के मूवमेंट की खबर देते थे। उसे और उसके गुर्गों को पनाह देते थे। इनामुल ने पशु तस्करी में नायाब इनोवेशन भी किये थे।
केले के पेड़ काट कर उसके तनों को गायों में बाँध दिया जाता था और गाय नदी में छोड़ दी जाती थी। सीमा पार इन गायों को कलेक्ट कर लिया जाता। बताया जाता है कि इनामुल रोजाना 5 हजार पशुधन सीमा पार भेजता था। इनामुल का बंगलादेशी सहयोगी था वहां का कुख्यात स्मगलर हुंडी कदीर। हुंडी कदीर सोने और नकली करेंसी में डील करता है।
कानून का हाथ पहुंच ही गया
तस्करी के धंधे में 25 साल बिताने के बाद आखिर इनामुल कानून की गिरफ्त में आ ही गया। उसे नवंबर 2020 में दिल्ली में सीबीआई ने गिरफ्तार किया। उस वक्त इनामुल जमानत पर चल रहा था। दरअसल इनामुल को मार्च 2018 में गिरफ्तार किया गया था और आरोप था बीएसएफ कमांडेंट जिबु टी मैथ्यू को रिश्वत देने का।
मैथ्यू ने सीबीआई को बताया था कि इनामुल हक ने उसे घूस दी थी। उस समय चार महीने बाद ही इनामुल जमानत पर रिहा हो कर जेल से बाहर आ गया था। इसके बाद इनामुल बांग्लादेश की सीमा वाले इलाके में चला गया और वहाँ गाँव वालों को खाना – मिठाई बांटी थी। इनामुल का बाकायदा कोलकाता के पार्क सर्कस एरिया में दफ्तर है।
कोलकाता, मालदा और मुर्शिदाबाद में उसके फ्लैट हैं। उसने सिंगापुर, ढाका, काठमांडू, मलेशिया और दुबई में भी प्रॉपर्टी ले रखी है। इनामुल हवाला के धंधे के अलावा अवैध कोयला खनन के काम में शामिल है। हवाला रैकेट के लिए उसने 15 से ज्यादा फर्जी कम्पनियाँ बना रखी हैं।
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केंद्र की सख्ती
केंद्र सरकार, खासकर गृह मंत्री ने पशु तस्करी पर सख्त रुख अपनाया तो सीबीआई और ईडी सक्रिय हुए। इनामुल की गिरफ्तारी के बाद सतीश कुमार, मोहम्मद गुलाम मुस्तफा और अनारुल की गिरफ्तारी हुई।
मुस्तफा और अनारुल ने पूछताछ में बताया कि वे गायों की सप्लाई के लिए नियमित रूप से यूपी, एमपी, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और बिहार का दौरा करते थे। इन राज्यों से ढाई-तीन हजार रुपये में गाय खरीदी जाती है और फ़ीस उसे बांग्लादेश में 30 हजार रुपये तक में बेचा जाता है।
बहरहाल अब इनामुल से ये जानने की कोशिश की जा रही है कि उसके मददगार कौन लोग हैं। क्योंकि जबतक मददगारों को बेनकाब नहीं जाता तब तक ये रैकेट तोड़ना मुमकिन नहीं है।
भारत बांग्लादेश की कुल सीमा 4096 किलोमीटर की है जो बंगाल, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम और असम से लगी है। इसे कैसे सुरक्षित किया जाएगा ये बहुत बड़ा सवाल है।
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