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तबाही का सौदा: अगर सच में हो गया ऐसा, तो मच जाएगा देश में हाहाकार

इन दिनों राजनीतिक दलों के बीच आसियान देशों व भारत के क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) को लेकर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है।

Roshni Khan
Published on: 3 Nov 2019 5:17 PM IST
तबाही का सौदा: अगर सच में हो गया ऐसा, तो मच जाएगा देश में हाहाकार
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नई दिल्ली: इन दिनों राजनीतिक दलों के बीच आसियान देशों व भारत के क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) को लेकर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। पीएम मोदी शनिवार 2 नवंबर को थाईलैंड दौरे पर पहुंचे हैं और इस दौरे में इस समझौते को आखिरी रूप दिया जा सकता है।

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क्या है RCEP जिसे भारत के लिए बताया जा रहा है तबाही का सौदा

कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस समझौते को भारतीय इकॉनमी के लिए झटका बताया है। सोनिया ने कहा कि RCEP समझौता भारतीय किसानों, दुकानदारों, छोटे और मध्यम उद्यमियों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत लाएगा। बहुत से अर्थशास्त्री भी इस समझौते को भारत के लिए नुकसानदायक बता रहे हैं। तो आइए हम आपको बतातें हैं आखिर क्या है आरसीईपी जिसे लेकर इतना हंगामा मचा हुआ है।

देशों के प्रमुख संगठन

आरसीईपी दक्षिण एशियाई देशों के प्रमुख संगठन आसियान के 10 देशों (ब्रुनेई, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, विएतनाम) और इसके 6 प्रमुख एफटीए सहयोगी देश चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है।

आरसीईपी के सदस्य देशों की आबादी 3.4 अरब है और इसकी कुल जीडीपी 49.5 ट्रिलियन डॉलर की है जो विश्व की जीडीपी का 39 फीसदी है।

रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप यानी आरसीईपी पर 2012 से चर्चा ही चल रही है। भारत पार्टनर देशों से आने वाले सामान को टैरिफ फ्री रखने समेत इस समझौते के कई पॉइंट्स को लेकर कन्फ्यूजन में है। इस व्यापक समझौते में चीनी आयात की भारतीय बाजार में डंपिंग को लेकर भी चिंता जताई जा रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारतीय बाजार में चीनी वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी।

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वहीँ दूसरी तरफ, किसानों और तमाम संगठन सरकार से इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करने की अपील कर रहे हैं। किसानों की मांग है कि कृषि उत्पादों और डेयरी सेक्टर को आसीईपी से बाहर रखा जाए। ऑल इंडिया किसान सभा ने 4 नवंबर को देशव्यापी प्रदर्शन का भी ऐलान किया है। प्रस्तावित मेगा डील के खिलाफ किसान संगठनों और कृषि क्षेत्र से जुड़ीं गैर-सरकारी संस्थाओं ने मिलकर एक कोऑर्डिनेशन कमिटी भी बना ली है ताकि देश भर में एक साथ विरोध-प्रदर्शन किए जा सके। आरएसएस से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने भी आरसीईपी के खिलाफ इसी महीने विरोध-प्रदर्शन किए थे।

भारतीय अधिकारी सस्ते चीनी आयात के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा की शर्तें शामिल कराने की कोशिश करा रहे हैं ताकि भारतीय उद्योगों और कृषि को नुकसान ना पहुंचे। वैसे तो, आरसीईपी में शामिल होने के लिए भारत को आसियान देशों, जापान, दक्षिण कोरिया से आने वाले 90 फीसदी वस्तुओं पर से टैरिफ हटाना होगा। इसके अलावा, चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से 74 फीसदी सामान टैरिफ फ्री करनी होगी।

विश्लेषकों का कहना है कि आरसीईपी में शामिल होना भारत सरकार के लिए एक बेहद मुश्किल फैसला होगा और अगर यह समझौता होता है तो भारत का बाजार खत्म होने के कगार पर पहुंच सकता है।

पूर्व भारतीय राजदूत राजीव भाटिया ने कही ये बात

पूर्व भारतीय राजदूत राजीव भाटिया ने कहा, आरसीईपी के ड्राफ्ट में कई बदलाव हो सकते हैं। अगर भारतीय नेतृत्व को लगेगा कि यह कुल मिलाकर भारत के लिए फायदेमंद है तो वे इस पर हस्ताक्षर करेंगे, अगर उन्हें लगता है कि साझेदार देश सहयोग करने के लिए तैयार नहीं है तो वे इसे होल्ड कर सकते हैं।

आरसीईपी को लेकर भारत के लिए दो चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती है चीनी बाजार में पहुंच। भारत को सुनिश्चित करना होगा कि चीन के बाजार में अपना सामान भी बड़े पैमाने पर बेचे और उनका सामान भारतीय बाजार में उचित अनुपात में आए। चीनी वस्तुओं के लिए एकदम से पूरा भारतीय बाजार खोलना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा क्योंकि वे हमारी तुलना में ज्यादा प्रतिस्पर्धी हैं।

भाटिया कहते हैं, भारत के लिए यह समझौता राजनीतिक और कूटनीतिक नजरिए से भी अहम है। भारत का पूरा जोर ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी पर है ऐसे में आरसीईपी में शामिल होकर क्षेत्र की आर्थिक व्यवस्था का अहम हिस्सेदार बन सकता है। वैसे तो, आखिर में रणनीतिक महत्व से ज्यादा आर्थिक नजरिए से ही इस मामले पर फैसला किया जाएगा।

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अगर भारत 4 नवंबर को इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करता है तो उस समय में या तो सभी देशों को निगोसिएशन के लिए और वक्त दिया जा सकता है या फिर भारत को छोड़कर बाकी देश इस समझौते पर आगे बढ़ सकते हैं।

भाटिया ने कहा, फिलहाल केवल तीन नतीजे ही सामने आ सकते हैं- भारत इस समझौते पर हस्ताक्षर कर आरसीईपी पर आगे बढ़ सकता है, भारत इससे पीछे हट जाता है और आरसीईपी पर बाकी देश हस्ताक्षर कर आगे बढ़ जाएं और तीसरा- सारे देशों को बातचीत के लिए और वक्त दिया जाए।



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