आखिर क्या है स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट

राष्ट्रीय किसान आयोग के नाम से बहुत लोग वाकिफ नहीं हैं लेकिन उसके अध्यक्ष डॉ स्वामीनाथन को सभी जानते हैं। सो इस आयोग ने किसानों की स्थिति सुधारने के उपाए सुझाते हुए जो रिपोर्ट दी उसे ही स्वामिनाथन रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है।

SK Gautam
Published on: 6 Feb 2021 8:56 AM GMT
आखिर क्या है स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट
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आखिर क्या है स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट

नीलमणि लाल

लखनऊ। भारत को सन 47 में आज़ादी तो मिल गयी लेकिन देश के किसान बदहाल रहे। किसानों और खेती किसानी के हालात कैसे बदले जाएँ इसके लिए बहुत मंथन करने के बाद एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया। वो भी 2004 में यानी आज़ादी के 57 साल बाद।

18 नवम्बर 2004 को कृषि की समस्या को गहराई से समझने और किसानों की प्रगति का रास्ता तैयार करने के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग के चेयरमैन प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामिनाथन थे। प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन एक प्लांट जेनेटिक वैज्ञानिक हैं। तमिलनाडु के रहने वाले इन वैज्ञानिक ने 1966 में मेक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकसित किए थे।

राष्ट्रीय किसान आयोग

राष्ट्रीय किसान आयोग के नाम से बहुत लोग वाकिफ नहीं हैं लेकिन उसके अध्यक्ष डॉ स्वामीनाथन को सभी जानते हैं। सो इस आयोग ने किसानों की स्थिति सुधारने के उपाए सुझाते हुए जो रिपोर्ट दी उसे ही स्वामिनाथन रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है। आयोग ने सिफ़ारिश की थी कि किसानों को उनकी फ़सलों के दाम उसकी लागत में कम से कम 50 प्रतिशत जोड़ कर दिया जाना चाहिए। यानी लागत अगर 100 रुपये है तो दाम 150 रुपये होना चाहिए।

Dr. MS Swaminathan-2

यूपीए सरकार को दीं थीं 5 रिपोर्टें

लगभग दो सालों तक भारत के तमाम कृषि संगठन,जानकार और किसानों से बात करने के बाद आयोग ने अपनी कई महत्वपूर्ण सिफ़ारिशों के साथ कुल पाँच रिपोर्ट तत्कालीन यूपीए सरकार को 2006 में सौंप दी थी। इस रिपोर्ट में मुख्यतः फ़सलों की मूल्य निर्धारण नीति और ऋण नीति पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है। इस आयोग ने अपनी पांच रिपोर्टें सौंपी। अंतिम व पांचवीं रिपोर्ट 4 अक्तूबर, 2006 में सौंपी गयी।

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आयोग की सिफारिशें

-स्वामीनाथन की रिपोर्ट में भूमि सुधारों की गति को बढ़ाने पर खास जोर दिया गया है। आयोग ने अपनी सिफारिश में भूमि बंटवारे को लेकर चिंता जताई थी। इसमें कहा गया था कि 1991-92 में 50 फीसदी ग्रामीण लोगों के पास देश की सिर्फ तीन फीसदी जमीन थी, जबकि कुछ लोगों के पास ज्यादा जमीन थी।

आयोग ने इसके सही व्यवस्था की जरूरत बताई थी। सरप्लस व बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांटना, आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने के हक वास्तविक बनाना व राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाह सेवा की स्थापना आयोग की सिफारिशों में शामिल है।

-डॉ. स्वामीनाथन की सिफारिशों में किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने, सेहत सुविधाएं बढ़ाने व वित्त-बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर भी विशेष जोर दिया गया है।

-एमएसपी औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा रखने की सिफारिश भी की गई है ताकि छोटे किसान भी मुकाबले में आएं। किसानों की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछ ही नकदी फसलों तक सीमित न रहें, इस लक्ष्य से ग्रामीण ज्ञान केंद्र व मार्केट दखल स्कीम भी लांच करने की सिफारिश की गयी है।

-सिंचाई के लिए सभी को पानी की सही मात्रा मिले, इसके लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग और वाटर शेड परियोजनाओं को बढ़ावा देने की बात कही गयी है। इस काम के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में ज्यादा धन आवंटन की सिफारिश की गई है। आयोग ने पानी के स्तर को सुधारने पर जोर देने के साथ ही कुआं शोध कार्यक्रम शुरू करने की बात भी कही थी।

-फसली बीमा के लिए रिपोर्ट में बैंकिंग व आसान वित्तीय सुविधाओं को आम किसान तक पहुंचाने पर विशेष ध्यान दिया गया है। सस्ती दरों पर फसल लोन देने की सिफारिश की गयी है और ब्याज़ दर अधिकतम 4 प्रतिशत करने की बात कही गयी है।

-स्वामीनाथन ने लोन के वसूली में नरमी लाने की भी सिफारिश की थी। जब तक किसान कर्ज़ चुकाने की स्थिति में न आ जाए तब तक उससे कर्ज़ न वसूला जाए। किसानों को प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में बचाने के लिए कृषि राहत फंड बनाने की बात कही गयी है।

-भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही खेती के लिए ढांचागत विकास संबंधी उपाए भी रिपोर्ट में सुझाये गए हैं। इनके तहत मिट्टी की जांच व संरक्षण पर जोर दिया गया है। इसके लिए मिट्टी के पोषण से जुड़ी कमियों को सुधारने और मृदा टेस्टिंग लैबों का बड़ा नेटवर्क तैयार करने की बात कही गयी है।

-स्वामीनाथन आयोग ने खेती से जुड़े रोजगारों को बढ़ाने की बात कही थी। आयोग ने कहा था कि साल 1961 में कृषि से जुड़े रोजगार में 75 फीसदी लोग लगे थे जो कि 1999 से 2000 तक घटकर 59 फीसदी हो गया। इसके साथ ही आयोग ने किसानों के लिए ‘नेट टेक होम इनकम’ को भी तय करने की बात कही थी।

-आयोग का कहना था कि कृषि में सुधार की जरूरत है। इसमें लोगों की भूमिका को बढ़ाना होगा। इसके साथ ही आयोग ने कहा था कि कृषि से जुड़े सभी कामों में जन सहभागिता की जरूरत होगी, चाहे वह सिंचाई हो, जल-निकासी हो, भूमि सुधार हो, जल संरक्षण हो या फिर सड़कों और कनेक्टिविटी को बढ़ाने के साथ शोध से जुड़े काम हों।

-खाद्य सुरक्षा के लिए प्रति व्यक्ति भोजन उपलब्धता बढ़े, इस मकसद से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आमूल सुधारों पर बल दिया गया है। कम्युनिटी फूड व वाटर बैंक बनाने व राष्ट्रीय भोजन गारंटी कानून की संस्तुति भी की गयी है।

स्वामीनाथन ने यूनिवर्सल सार्वजनिक वितरण प्रणाली बनाने की वकालत की है जिसके लिए जीडीपी के 1% हिस्से की जरूरत होगी। साथ ही विदेशों में फसलों को भेजने की व्यवस्था की बात कही गई थी। फसलों के आयात और उनके भाव पर नजर रखने की व्यवस्था बनाने की भी सिफारिश की गई थी।

आखिर क्या है स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट-(courtesy-social media)

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रिपोर्ट की अन्य प्रमुख सिफारिश

-कृषि को राज्यों की सूची के बजाय समवर्ती सूची में शामिल किया जाए जिससे केंद्र व राज्य दोनों किसानों की मदद के लिए आगे आएं और समन्वय बनाया जा सके।

-किसानों को कम दामों में क्वालिटी बीज मुहैया कराए जायें।

-गांवों में विलेज नॉलेज सेंटर या ज्ञान चौपाल बनाया जायें।

-महिला किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड मिले।

-खेतिहर जमीन और वनभूमि को गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए कॉरपोरेट को न दिया जाए।

-फसल बीमा की सुविधा पूरे देश में हर फसल के लिए मिले।

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कौन हैं स्वामीनाथन

-एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को कुम्भकोणम, तमिलनाडु में हुआ था। एमएस स्वामीनाथन पौधों के जेनेटिक वैज्ञानिक हैं। स्वामीनाथन भारत की ‘हरित क्रांति’ में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए विख्यात हैं। उन्होंने 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकसित किए थे।

-‘हरित क्रांति’ कार्यक्रम के तहत ज़्यादा उपज देने वाले गेहूं और चावल के बीज ग़रीब किसानों के खेतों में लगाए गए थे। इस क्रांति ने भारत को दुनिया में खाद्यान्न की सर्वाधिक कमी वाले देश के कलंक से उबारकर 25 वर्ष से कम समय में आत्मनिर्भर बना दिया था।

-स्वामीनाथन को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1967 में पद्मश्री, 1972 में पद्म भूषण और 1989 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

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