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पंजाब: महिलाओं ने संभाली ड्रग तस्करी की कमान

raghvendra
Published on: 29 Nov 2019 1:08 PM IST
पंजाब: महिलाओं ने संभाली ड्रग तस्करी की कमान
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दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: पंजाब के दामन पर नशे का ऐसा दाग लग चुका है कि वह छुड़ाए नहीं छूट रहा है। यहां पर नशे का कारोबार चरम पर है। हालत यह है कि सूबे में करीब दो तिहाई से अधिक लोग नशे की चपेट में हैं। चाहे वह नशा शराब का हो या अफीम का। या फिर हेरोइन हो या चरस। मौत बांटते इस नशे को गांव से शहर और शहर से दूसरे शहर पहुंचाने में महिला तस्कर अच्छी खासी भूमिका निभा रही हैं। पुलिस को उन पर जल्दी संदेह भी नहीं होता और वे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह नशे की खेप पहुंचा देती हैं। कई मामलों में महिलाएं तस्करों के लिए कुरियर का काम करती हैं तो कई ऐसी भी मामले सामने आए हैं जिनमें महिलाएं खुद नशा तस्करी की कमान संभाले हुए हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ये महिलाएं चूल्हा-चौका छोडक़र बर्बादी का सामान बांटने में लगी हैं।

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महिला तस्करों की हुई गिरफ्तारी

पिछले आठ महीने के दौरान लुधियाना में 18, अमृतसर में दो, तरनतारन में तीन, फिरोजपुर में पांच महिला नशा तस्करों की गिरफ्तारी बता रही है कि पुरुष तस्करों के साथ-साथ महिला तस्कर भी पूरी तरह सक्रिय हैं। हालांकि पंजाब पुलिस इन तस्करों पर नकेल कसने में कोई कस नहीं छोड़ रही हैं। फिर भी तस्कर हैं कि मानते नहीं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक अभी तक पकड़ी गई महिलाओं में किसी का पति तो किसी का बेटा या किसी की मां नशे के कारोबार से जुड़े हुए हैं। उनके पकड़ जाने पर घर खर्च चलाने या फिर नशे का नेटवर्क टूटने न पाए इसे जोड़े रखने के लिए इन महिलाओं ने खुद इस धंधे को संभाल लिया। पुलिस के मुताबिक जेल जा चुकी महिलाओं का कहना है कि उन्हें ड्रग्स तस्करी में कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि नशा कहां से लाना है, किसे देना है, यह सारे लिंक पहले से ही मौजूद थे।

ऐसे चलता है ड्रग्स का खेल

नशे के कारोबार में लगीं ये महिलाएं दिल्ली में बैठे बड़े नाइजीरियन तस्कर से जुड़ी रहती हैं। तस्करों का एक कोड होता है। नशा तस्कर पुरुषों के पकड़े जाने के कुछ महीने या साल बाद यह कोड नाइजीरियन तस्कर किसी माध्यम से घर की महिलाओं तक पहुंचा देते हैं। फिर इसी कोड के जरिए महिलाएं इन तस्करों से जुड़ जाती हैं और तस्करी का धंधा शुरू हो जाता है।

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निजी अंगों में छुपा कर लातीं हैं नशा

पुलिस सूत्रों के मुताबिक ड्रग्स तस्करी से जुड़ी ये चतुर महिलाएं अपने निजी अंगों में सौ-दो सौ ग्राम की पुडिय़ा छुपा कर बड़ी आसानी से लेकर जाती हैं ताकि पुलिस को इन पर शक न हो। पुलिस ने ऐसे कई मामले पकड़े हैं। महिला पुलिस कर्मियों ने जब उनकी जांच की तो उन्हें नशा बरामद हुआ। इसके साथ ही नशा तस्करी के धंधे से जुड़ी महिलाएं अपने निजी साधनों के बजाय ऑटो या बस में आती-जाती हैं ताकि पुलिस नाकों पर उन्हें पकडऩे में कामयबा न हो सके।

पुलिस भी हुई सख्त

महिला ड्रग्स तस्करों से कैसे निपटा जाए, इस सवाल पर पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नाकों पर पुरुष और महिला दोनों पुलिस कर्मी तैनात होते हैं। पुलिस कहीं कोई नरमी नहीं बरत रही है। महिला हो या पुरुष, संदेह होने पर सभी की जांच की जाती है। जरुरत पड़ी तो महिला पुलिस कर्मी संदिग्ध महिला को थाने ले जाकर चेक करती हैं। नशे पर नकेल कसना पंजाब पुलिस की पहली प्राथमिकता है।

खुद नशे की आदी हैं महिलाएं

पंजाब के विभिन्न जिलों में पकड़ी जा रही नशा तस्कर महिलाओं में 22 वर्ष की युवतियों से लेकर 65 वर्ष तक की महिलाएं शामिल हैं। इनमें खास बात ये है कि ये महिलाएं खुद अफीम, चूरापोस्त, हेरोइन और स्मैक जैसे नशे की आदी हैं। नशे के लिए बदनाम बस्तियों में तरनातरन की मुहल्ला सिंगल बस्ती, पठानकोट और हिमाचल की सीमा पर स्थित छन्नीबेली, लुधियाना में सलेमटाबरी आदि शामिल हैं। पिछले दिनों लुधियाना में धांधरा रोड पर 40 ग्राम हेरोइन के साथ पकड़ी गई 60 वर्षीय महिला ने पुलिस को बताया कि उसका अपने पति से तलाक हो चुका है। उसकी दो बेटियां और एक बेटा है। परिवार का पेट पालने के लिए उसे इस धंधे में उतरना पड़ा। नशा तस्करी के आरोप में पकड़ी जा रही सभी महिलाओं की अपनी-अपनी कहानी है।

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धंधे में पकड़े गए पति तो पत्नी जुटी तस्करी में

मौत के इस खेल से जुड़ी महिलाओं में अधिकांश वो महिलाएं शामिल हैं, जिनके पति, पुत्र या घर का कोई अन्य सदस्य नशा तस्करी करते हुए पकड़ा गया और अब जेल की सलाखों के पीछे हैं या फिर नशे की भेंट चढ़ गए। ऐसे में परिवार के भरण-पोषण के लिए उन्होंने इस धंधे को शुरू कर दिया। महिलाओं का इस धंधे से जुडऩा पुलिस के लिए किसी मुसिबत से कम नहीं हैं। यह खुलासा नशा तस्करी के आरोप में पंजाब की विभिन्न जेलों में बंद महिला कैदियों के आंकड़ों और हाल फिलहाल हुई उनकी गिरफ्तारी से हुआ है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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