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Champaran Satyagraha History: पश्चिमी . चम्पारण के भूमि संघर्ष का दस्तावेज
Champaran Satyagraha History: समारोह की तरह, पश्चिमी चम्पारण के भूमि संघर्ष दस्तावेज एक महत्त्वपूर्ण और गर्व की बात है। यह दस्तावेज उन दिनों के महान भूमि संघर्ष को याद दिलाता है, जब महात्मा गांधी ने भूमि कानूनी अधिकार और किसानों की मांगों की रक्षा के लिए समर्पित हुए।
Champaran Satyagraha History: बिहार का चंपारण जिला गांधी की प्रथम सत्याग्रह भूमि रहा है। उसी की समृद्ध विरासत को लेकर चंपारण भूमि की समस्या को लेकर संपूर्ण क्रान्ति आंदोलन के सिपाही पंकज जी के नेतृत्व में पिछले कई वर्षों से व्यापक जन आंदोलन चलाया जा रहा है। गांधी समिति एवं दर्शन के निदेशक सुश्री मणी माला के साथ चर्चा और सहयोग के फलस्वरूप यह प्रेरणा मिली की चंपारण में चल रहे भूमि आंदोलन की गतिविधियों को समझने एवं उनका दस्तावेज तैयार किया जाये जिससे समाज में उनके चल रहे संघर्ष को समझा जा सके। इस दस्तावेज का आधार आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़े साथियों से बातचीत तथा उपलब्ध सामग्री पर आधारित है। अतः इस कार्य हेतु चंपारण के नौजवान साथी चेतेन्य, सिद्धार्थ वरिष्ठ साथी पंकज जी का सराहनीय सहयोग रहा इसके साथ ही जितेन्द्र, फूलकली देवी, गिरधारी राम, संतराम का आभार जिन्होंने क्षेत्रीय भ्रमण के साथ वहां की वस्तुस्थिति को विस्तार से अवगत कराया। मैं इनका आभार व्यक्त करती हूँ।
- पुतुल
पं. चम्पारण की एक झलक
प्रदेश का यह क्षेत्र उत्तर नेपाल की सीमावर्ती क्षेत्रों से जुड़ा होने के कारण अर्न्तराष्ट्रीय दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है । जिले का पूरा क्षेत्र 5228 वर्ष किलोमीटर है। जिसमें पश्चिम में उत्तर प्रदेश के देवरिया पड़रीना से लगता है। इसका मुख्यलाय बेतिया है, जो पटना से 210 किलोमीटर दूर है। पूरे जिले में 18 विकास खण्ड 315 ग्राम पंचायत और 1483 ग्राम है। शिक्षा की दृष्टि से साक्षरता की दर लगभग 39.6 प्रतिशत है। कुल प्राथमिक पाठशालायें 1340. माध्यमायिक स्कूल 284 हाई स्कूल मात्र 68 और तीन महाविद्यालय है। ग्रामोद्योग यहाँ का जीवनयापन का मुख्य श्रोत कृषि है। इसके चलते कृषि आधारित उद्योगों को पनपने में अपेक्षाकृत कुछ अधिक सफल कहा जा सकता है। बगहा, रामनगर व मझालिया सहित कुल 6 क्षेत्र में गन्ने की चीनी मिल है। उनमें भी चनपटिया और लालिया इकाईयाँ बन्द पड़ी है। इसी भाँति कुछ धान मिल भी चल रही है। जिनसे निकला हुआ माल आस-पास के जिलों में ही खप जाता है। कुटीर उद्योगों के दृष्टि से गुड़ का उत्पादन, रस्सी बटान, टोकरी और चटाई विशेष रूप से लोकप्रिय है। भूमि उपयोग :- जिले का क्षेत्र लगभग 12 लाख एकड़, इनमें कृषि योग्य क्षेत्र लगभग 5.15 लाख एकड़ आंका गया है। जिन पर रवी खरीफ और भदई फसल ली जा रही है। धान, आलू, जो, अरहर, गेहूं वहाँ के मुख्य पैदावार है। परिवहन व संचार व्यवस्था :-निश्चित रूप से इन दोनों संसाधन की कमी की वजह से यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ है। इस जिले को जोड़ने वाला मुख्य राष्ट्रीय राज्य मार्ग 28 वी. हैं । जो कि प्रदेश की राजधानी से इसे जोड़ता है। शेष सभी क्षेत्र रेलमार्ग से जुड़े है।
नदी व सिंचाई व्यवस्था :-
नेपाल की तराई होने के नाते में नदियों का जाल सा बिछा हुआ यह क्षेत्र प्रत्येक वर्ष बाढ़ की त्रासदी भुगतने को अभ्यस्त हो चुके है। गंडक को तटवर्ती इलाकों में रहने के कारण। प्रत्येक वर्ष इन्हें बाढ़ उत्तरने के बाद अपनी जमीन की पहचान करने में बीत जाता है । जिसका सीचा प्रभाव इनके भरण-पोषण की कमी पर पड़ते देखा गया है। ढालवा क्षेत्र होने कारण भूमि की कटान है।
पृष्ठभूमि
दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के शस्त्र का सफल प्रयोग करने के बाद, भारत की धरती पर बिहार का पश्चिमी चम्पारण क्षेत्र महात्मा गांधी के लिए सत्य और अहिंसा के मूल्यों पर अधारित अन्याय व अत्याचार के खिलाफ जन-आंदोलन चलाने के प्रथम प्रयोग भूमि बना । अंग्रेज निहलों के शोषण तथा जुल्म के अन्यायपूर्ण कारोवार को गांधी ने न केवल उजागर किया । बल्कि उन्हें गरीब किसानों व खेतीहर मज़दूरों के अधिकार एवं सम्मान को पुर्नस्थापित करने को बाध्य भी किया। गांधी के नेतृत्व में चम्पारण की तथा सारे देश की जनता ने बुनियादी पाठ सीखा कि कैसे सत्य न्याय व नैतिकता के आधार पर बड़े से बड़े सत्ताधीशों से जीत हासिल की जा सकती है। चंपारण में ही गांधी जी ने अहिंसक जन आंदोलन के साथ-साथ रचनात्मक कार्यों की भी ठोस आधार शिला रखी थी । जिसने लोगों की चेतना जगाने में और उन्हें स्वावलंबी बनाने में बहुत मदद की थीं। गांधी जी के सत्याग्रह का उद्देश्य था कि, आम जनता में यह मनोबल बढ़े, कि 'वे न तो शोषण करेंगे और न करने देंगे । जिससे यहां का सबसे गरीब आदमी भी महसूस कर सके कि इस देश के निर्माण में उसकी आवाज का भी असर है। इसके लिये जरूरी था, सामन्ती चरित्र के समाज में उच्च-निम्न का भेद समाप्त हो। चंपारण में गांधी अप्रैल सन 1917 में आये और वहां की समस्याओं (निहलों का चम्पारण के किसानों पर शोषण) को देखकर उनका विश्वास जागा कि "न्याय और नैतिकता" उनके पक्ष में है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (लखनऊ) के 31 वें अधिवेशन में इसे राजनैतिक मुद्दा बनाने में राष्ट्रीय सहमति बनी। स्वाभाविक था, इस आंदोलन को कुचलने और लालच देकर बड़े किसानों और सामतों को अपने पक्ष में करने के लिये अंग्रेज सरकार का कुचक्र चलता रहा। निश्चित रूप से अंग्रेजी सरकार दबंग और सामन्ती वर्ग का पोषण करना चाहती थी ।.जिससे अंग्रेजी सरकार को निरन्तर लाभ मिलता रहें। लेकिन गांधी जी के अथक प्रयासों एवं हस्तक्षेप से जनजागरण पैदा हुआ, जनता में आशा और उत्साह का संचार हुआ, जिसके परिणामस्वरूप "चम्पारण कृषि समझौता" पारित होने के बाद 'तिन कठिया' समाप्त हुआ। चम्पारण की असलीयत तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत ने इस जिले की आबादी सन् 1911 की जनगणना के अनुसार 19 लाख से कुछ अधिक आंकी थी। जो कि सन् 1944-15 में बढ़कर चौबीस लाख से अधिक हो गई। इसी तरह यहां का कुल रकबा सन् 1911 में लगभग 22 लाख 60 हजार एकड़ आँका गया था जो वर्ष 1944-45 में केवल 3 हजार एकड़ बढ़ पाया और लगभग 22 लाख 63 हजार तक ही सिमतटा रहा। गरीब खेतिहार मजदूरों और किसानों के लिये भरण-पोषण लायक खेती की जमीन जब देखी गयी तो वर्ष 1911 में लगभग 3 लाख 82 हजार एकड़ थी, जो 1944-45 में बढ़ कर 4 लाख 28 हजार हो गयी। आशय यह है कि बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में भरण-पोषण का एकमात्र जरिया भूमि का बढ़ना बहुत ही कम रहा ।परिणामस्वरूप सीमित भूमि पर बढ़ती जनसंख्या के दबाव की भूमिका, वहां की गरीबी को बढ़ाने में स्पष्ट देखने को मिली। यह आँकड़े लोहिया आयोग रिपोट (नवम्बर 1950) से लिये गये हैं। इसे देखकर लगा कि बिहार के इस हिस्से में जब भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। देश का पहला गैर सरकारी आयोग 1950 आजादी के बाद
शोषण से मुक्ति को लेकर लम्बे समय से किये जा रहे संघर्षों के बावजूद चम्पारण के किसानों की स्थिति जैसी थी, आज भी वैसी ही बनी हुई है। रीवा के 'हिन्द किसान पंचायत - (1950) " ने तीन सदस्यीय सरकारी आयोग गठित किया जो बाद में "लोहिया कमीशन" के नाम से जाना गया। लोहिया जी इस आयोग के अध्यक्ष रहे। आयोग ने शुरू में चम्पारण की जमीनी हकीकत जानी और निम्नांकित तीन मुद्दों पर काम किया (1) थोड़े से लोगों के अधिकार में जिले की अधिकतर जमीन की जाँच: (2) लगातार जमीन के किसानों की बेदखली का पता लगाना, (3) क्षेत्र में बड़े कृषि फार्म बनने के तौर तरीकों की खोज । इससे आयोग निष्कर्ष पर पहुँचा कि शोषण मुक्त चंपारण-समाज के लिये निम्नलिखित कार्यवाही जरूरी है। चीनी मिली के निजी स्वामित्व वाले फार्म की सभी जमीनें किसानों को वापस होना जरूरी है, जिस पर सहकारी स्वामित्व बने । सामूहिक सहयोगी खेती के लिये जरूरी है कि सरकार पहले जमीन पर अपना स्वामित्व ले, बाद में एक खेतिहर पलटन बनाकर तेजी से खेती शुरू कराये और निजी भू धारकों के सभी बन्दोबस्त रोकें। इसके लिये आवश्यक हो तो जिले के बाहर के लोगों का जुड़ाव बनाए । ग्राम सभा की जमीनें लोगों ने हथिया रखी है, जिसे रोका जाना चाहिये। फिर सामूहिक उपयोग में ही उसको सुरक्षित रखना होगा।
गाँव की आबादी की जमीन के पास हो और उसका बन्दोबस्त ग्राम समूह ही करें।
प्रत्येक वर्ष फसल के अनुसार मजदूरों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये प्रत्येक 'ग्राम-संसद' को केन्द्र में लाना होना । ताकि स्वामित्व कानूनों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो सके। समतामूलक सभ्यता के रास्ते पर प्रशासनिक और सहकारी गतिविधियों चलाई जाये। साथ ही, कृषि मजदूरी को माध्यमिक शिक्षा पाठ्यक्रम में जोड़ दिया जाय, तभी इस समस्या पर काबू पाया जा सकेगा और विद्यार्थियों व युवको के बीच कृषि कौशल इजाफा हो सकेगा।
बड़े किसानों के लिये 30 एकड़ जमीन की सीलिंग करके शेष जमीन भूमिहीनों और छोटे किसानों में बाँटकर उनमें सामूहिक सहयोग विकसित करना होगा। लगान कर्ज बकायें की वसूली के फलस्वरूप, निजी जमीन का हस्तारण सीधे ग्राम पंचायत को हो न कि अन्य किसी को । बटाईदारी की प्रथा समाप्त कर निर्धारित मानक दर से लगान वसूली का नियम बने। आज जो बटाई पर खेत जोत रहा है वही मालिक बनाया जाय। चंपारण जिला बोर्ड में लघु ग्राम उद्योगों का जाल बिछाने के लिये एक विभाग गठित किया जाय, जो गेहूं, चावल, तेल की बड़ी मिलों, तथा इख पिराई मिलों में निजी स्वामित्व की जगह, 10 से 20 गाँव समूह की सहकारी स्वामित्व वाली ईकाईया गठित करने की पहल करे। सन् 1947 में आजादी मिली तब कांग्रेस ने अपने वायदे के मुताबिक एवं जनचेतना के दबाव के फलस्वरूप "जमींदारी उन्मूलन कानून" 1950 में बनाया। बिहार “जमींदारी उन्मूलन कानून 1950" बनाने वाला प्रथम राज्य बना। इसी क्रम में बिहार भूमि सुधार कानून एवं "अधिशेष भूमि अर्जन कानून 1961 भी बना जिसकी नियमावली 1963 में बनाई गई। नियमवाली बनने को सात वर्ष पश्चात् सितम्बर 1970 में यह कानून लागू किया गया। Cut of Date ( अन्तिम तिथि) की घोषणा के अन्तर्गत यह तय किया गया कि 9 सितम्बर 1970 तक जो लोग बलिग हो चुके हैं, उनको इसके तहत एक इकाई माना जायेगा। उपर्युक्त कानून बनने के बावजूद आज भी चंपारण की सबसे बड़ी समस्या है-भूमि का पुनर्वितरण"
वर्तमान स्थिति
पश्चिम चंपारण में लगभग 35 हजार परिवार कटाव और विस्थापन के शिकार हैं। इन विस्थापितों और कटाव के शिकार भूमिहीन परिवारों के लिये दिनांक 17.02.2003 को मुख्यमंत्री बिहार की अध्यक्षता में बैठक हुई। (बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र के सभी जिलाधिकारी एवं प्रमंडलीय आयुक्तों को बैठक में होना आवश्यक था) उक्त बैठक में निर्णय लिया गया कि बाद कटाव से विस्थापित परिवारों के संबंध में विस्तृत सर्वेक्षण कर प्रतिवेदन उपलब्ध कराया जाय। 'वैसे परिवार जो नदी के कटाव के फलस्वरूप गृह विहीन एवं भूमिहीन (एक एकड़ से कम खेती योग्य भूमिधारक) हो गए हो, उन्हें ही विस्थापित परिवार माना जाय (देखे परिशिष्ट-1) इन्हीं विस्थापित परिवारों को स्थायी पुर्नवास हेतु भूमि और मकान उपलब्ध कराये जाने का भी निर्णय इसी बैठक में हुआ। इस प्रकार सरकार की ओर से भूमि कटाव ग्रस्त ग्रामीण विस्थापित परिवारों के पुनर्वास की दृष्टि से 04 डिसमिल देने की घोषणा की गयी। पश्चिमी चंपारण में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 56 प्रतिशत खेतिहर मजदूर ऐसे हैं, जिनके पास एक एकड़ से कम भूमि है और रहने के लिये जगह नहीं है। इनकी झोपड़ी जमींदार की जमीन पर है। वर्ष 1947 में प्रिविलेज परसन एक्ट बना। इस कानून के अन्तर्गत जिस भी परिवार के पास एक एकड़ से कम जमीन है और उसकी झोपड़ी किसी किसान की जमीन पर एक वर्ष से अधिक समय से है, तो उसे बसाइत का पर्चा मिलेगा। इससे आम गरीब आदमी आजादी महसूस कर सकेंगे। लेकिन सरकारी का कानून एवं संकल्प पत्र, नीति पत्र जारी हो जाने के बाद भी आजतक यह कानून एवं सरकारी नीतियां (संकल्प पत्र) लागू नहीं हो सकी। इस तरह से भूमिहीन खेतिहर मजदूर के 36 में 10 आदमी ऐसे हैं, जिनके पास मालिकाना हक के कोई कानूनी कागजात नहीं है। गौर करने की बात है कि सरकार द्वारा कानून बनाने (जमीन उन्मूलन 1950, भूमि अधिशेष कानून 1961) और उनको लागू करने के बीच काफी लम्बा अन्तराल है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि भू धारियों को पर्याप्त समय मिल गया। जिसका उन्होंने लाभ उठाने के लिये नीचे दिये तरीके अपनाये:
• फर्जी यूनिट बढ़ा कर जमीन बचायी गयी। • हजारों एकड़ जमीन बेच दी गई, और फर्जी नामों से चुरा ली गई । फलतः आज पश्चिम चंपारण में "अधिशेष भूमि अर्जन" "कानून 1961 के अन्तर्गत 110 मुकदमें निम्नलिखित अदालतों में आज चल रहे हैं ।
क्रम मुकदमा अदालत
1 28 नरकटियागंज
2 8 बेतिया (A.D.M)
3 26 बेतिया (D.M)
4 10 बोर्ड ऑफ रेवन्यू (पटना)
ये मुकदमें भू चारियों , नेग भूमि अधिग्रहण के खिलाफ दायर किये हैं।
पश्चिमी चंपारण में 55432 परिवारों को अधिशेष अर्जन कानून 1961 के अन्तर्गत पर्चा मिला है। इसमें कुल जमीन 26 एकड़ है। गैर-मजुरआमालिक भूमि का सात हजार लोगों को आवंटन का पर्चा मिला। इसमें 16 हजार एकड़ भूमि शामिल है। ये भी दबंगों के कब्जे में है।
संघर्ष के विभिन्न आयाम
वर्ष 1974 के आंदोलन में जन्मी संघपवाहिनी ने आगे के बुनियादी मुद्दों के रूप में भूमि का संघर्ष, काम का अधिकार एवं प्रतिनिधि वापसी अधिकार को मुद्दों के रूप में चुना। सम्पूर्ण क्रान्ति आंदोलन (जे. पी. (आन्दोलन) से निकले एक ऐसे नेता पंकज जी जिन्हें जे. पी. की भावप्रवणता एवं गांधी का 'सत्याग्रहीपन' विरासत में मिला। पंकज जी ने गांधी, लोहिया, जेपी की धारा को आगे बढ़ाने के लिये छात्र युवा संघर्षवाहिनी के पुनर्गठन का प्रयास 1996 शुरू किया। इस कार्य में नूतन, हेमन्त प्रियदर्शी, पटना से आशा और प्रकाश (चनपटिया ने सहयोगी की भूमिका निभाई। इस पुनर्गठन की प्रक्रिया में छात्र-युवा संघर्षवाहिनी ने सर्वप्रथम निम्न मुद्दों को अपने लक्ष्य के रूप में चुना-
(1) विद्यालय एवं स्वास्थ्य केन्द्रों की जनता निगरानी।
(2) ग्राम-समा सशक्तिकरण अभियान । वाहिनी के नौजवान कार्यकर्ताओं ने अपने वरिष्ठ साथियों के सहयोग से बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की तत्कालीन अध्यक्ष सुश्री शुभ्रा शर्मा I.A.S. के द्वारा 'गोवरहियोदोन' के जंगल में स्थित राजेन्द्र स्मारक उच्च विद्यालय का औचक निरीक्षण कराया। जहां इस विद्यालय के आठ शिक्षक पिछली 10 वर्ष की अवधि में 30 बार आये। वे झण्डोतोलन 26 जनवरी, 15 अगस्त एवं सरस्वती पूजा के अवसर पर विद्यालय आया करते थे। अध्यक्ष के जांच रिपोर्ट के उपरांत बिहार शिक्षा विभाग के सचिव द्वारा उनके निलम्बन की कार्यवाही हुई। इस कार्यवाही से संगठन की ताकत मिली एवं संगठन के कार्यकताओं के अन्दर आत्मविश्वास बढ़ा। अतः संगठन सघन रूप से सरकारी विद्यालयों एवं स्वास्थ्य केन्द्रों की जनता निगरानी एवं ग्राम पंचायत सशक्तिकरण अभियान हेतु नौतन प्रखण्ड के नौतन एवं कीतरहा ग्राम पंचायत को केन्द्र बनाया। इस तरह से छात्र युवा संघर्षवाहिनी का सघन क्षेत्र सर्वप्रथम नौतन एवं योगापट्टी रहा। आज यह बढ़कर ब्लाक बगहा-1, रामनगर, चनपटिया, मझवलिया तक फैल गया है। जहां संगठन लोगों के बीच कार्य कर रहा है। जो गांधी, लोहिया और जयप्रकाश नारायण की विरासत को आगे बढ़ाने एवं समता मूलक समाज की रचना में अन्तिम व्यक्ति को मित्र बनाकर शांतिमय आंदोलन को गति दे रहा है। नौतन व योगापट्टी कार्यक्षेत्र के केन्द्रों में विजय मांझी और फूलकली देवी के रूप में स्थनीय नेताओं को पहचान मिली। संगठन के जनजागरण एवं उपर्युक्त मुद्दों के फलस्वरूप जनता गोलबन्द हुई। परिणामतः सर्वप्रथम बिहार भूमि सुधार एवं अधिशेष अर्जन कानून 1961 सिलसिले में दो महत्वपूर्ण बाते सामने आई :
(1) छात्र-युवा संघर्षवाहिनी ने एक बैठक में यह तय किया कि आवश्कता एवं समस्या आधारित संगठनों का गठन उपयोगी होगा, जिसमें पूरे 20 हजार से ज्यादा विस्थापितों को जोड़ा जा सके। इस तरह से • 2002 में विस्थापित संघर्षवाहिनी और 2007 में पर्चाधारी संघर्षवाहिनी का गठन हुआ। संगठन बन जाने के पश्चात् सर्वप्रथम विस्थापितों को भूमि आंवटन के संदर्भ में सन् 2002 में विजय मांझी (बनकटता के विस्थापितों के नेता) के नेतृत्व में, पहला आवेदन आवंटित भूमि के कब्जा दिलाने के संदर्भ में अंचलाधिकारी नौतन को दिया गया।
(2) 'राजनीति' और 'नेता' की जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिये, जनता एवं गरीब लोगों द्वारा ओजार के रूप में 'चुनाव' को हथियार बनाया गया।
इस तरह विस्थापित परिवारों के पुर्नवास हेतु वर्ष 2003 और वर्ष 2004 मार्च तक संगठन अपनी रणनीति के तहत संदर्भित अधिकारी को आवेदन, धरना, उपवास और पद्यात्रा चलते रहे। लेकिन उन आवेदनों पर न कोई कार्यवाही हुई और न सरकारी तौर-तरीकों पर कोई फरक पड़ा। (देखे परिशिष्ट-2)
नौतन
दिसम्बर 2004 मार्च के महीने में छात्र-युवा संघर्षवाहिनी ने संयुक्त बैठक में यह निर्णय लिया कि आगामी लोकसभा एवं विधान सभा चुनावों में प्रमुख राजनैतिक दल के उम्मीदवारों के बीच 'बाढ़ और विस्थापन' के सवाल को चुनाव का मुद्दा बनाकर अभियान चलाया जाय। अतः वर्ष 2005 के विधान सभा चुनावों में नौतन, वेरिया और योगापट्टी के तीन प्रखण्डों में सघन अभियान चला। गांव में उम्मीदवारों ने घोषणा की, कि हम चुनाव जीतेंगे तो बाढ़-कटाव और विस्थापितों के सवालों पर काम करेंगे। इस प्रकार विस्थापितों के सवाल लोक सभा और विधान सभा के चुनावी मुद्दे बने। चुनावी मुद्दा बन जाने के पश्चात् संगठन के अन्दर यह चर्चा हुयी के चुनावी मुद्दों पर वातारण तो बन गया इसके आगे क्या इस संदर्भ में साथी हेमन्त (पटना) से चर्चा की गई। तदुपरांत संगठन इस नतीजे पर पहुँचा कि उम्मीदवारों से जुबानी वायदे से काम नहीं चलेगा। अब लिखित बायदे का अभियान चलाना पड़ेगा। अक्टूबर और नवम्बर 2005 में हुये चुनावों में इस नारों के साथ लिखित वादे का सघन अभियान चलाया गया। नारे थे : -
(1) "अठ्ठावन साल जुबानी देखा लिखित बाबा लेंगे हम"
(2) "जुबानी पर भरोसा नहीं लिखित वादा लेगें । हम लिखित वायदा अभियान के इसी क्रम में नातन विधानसभा के निवर्तमान "जनता दल यू" के उम्मीदवार बैजनाथ प्रसाद महतो और बहुजन समाज पार्टी के नारायण साह के नौतन मठ में जनसभा को सम्बोधित किया विस्थापितों के पुर्नवास के संदर्भ में जनता ने सवाल किया तो बैजनाथ प्रसाद महती ने मंच से कहा कि "अगर मैं चुनाव जीत गया और मेरी पार्टी की सरकार बन गई तो मैं वादा करता हूं कि 2 वर्षों के अन्दर नातन और बेरिया प्रखण्डों के सभी विस्थापितों की पुर्नवासित कर दूंगा, अगर ऐसा नहीं कर सका तो विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दूँगा "। मंच की इस घोषणा के पश्चात विस्थापितों के नेता विजय मांझी ने कहा आपने जो घोषणा की है वह हमें लिखित में दें। जब जुबानी वायदे पर भरोसा नहीं करेंगे। गाँव-गाँव से आये विस्थापितों के इक्कट्ठे मतदाताओं के प्रभाव में वैजनाथ महतो ने मंच पर कही बात लिखकर कर दे दी। बैजनाथ जीत गये जीर उनकी पार्टी 'जद बू' की सरकार भी बन गई। बैजनाथ को मंत्री पद हासिल हुआ। विस्थापितों की उम्मीद जग गई। समय बीतने के साथ-साथ महतों जो को याद दिलाना शुरू हुआ। उन्होंने इस विषय पर ध्यान नहीं दिया। देखते-देखते एक वर्ष बीत गये। अगली कार्यवाही के लिये संगठन ने बैजनाथ महतो को अपना वायदा पूरा न कर पाने के कारण, इस्तीफा देने के संबंध में एक रजिस्टर्ड पत्र भेजा जिसका विषय था 18 नवम्बर 2005 की नौतन में विस्थापितों की सभा ने आपके द्वारा दी गई घोषणा के अनुसार विधानसभा से इस्तीफा देने के संबंध में उस रजिस्टर्ड पत्र की एक-एक कापी बिहार के मुख्य मंत्री श्री नीतिश कुमार' तथा पार्टी के अध्यक्ष श्री शरद यादव को भेज दी गई। (देखे परिशिष्ट-4) संगठन के द्वारा मंत्री को घेर कर इस्तीफे की मांग का अभियान शुरू हुआ। इसी बीच 8 दिसम्बर 2007 को रमन्ना के मैदान (स्टेडियम) में मेडिकल कालेज के शिलान्यास के मौके पर आयोजित जन सभा में मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार के साथ बैजनाथ महतों जी भी आये। लगभग 100 विस्थापित अपने बैनर को छुपाये हुये सभा में उपस्थित रहे। जैसे ही बैजनाथ महतो मंच पर माइक के सामने जायें वैसे ही इन विस्थापितों ने गुस्से में बैनर के साथ नारा लगाना शुरू किया कि विस्थापितों को पुनर्वासित करने का वादा पूरा न करने वाला बैजनाथ महतो 'इस्तीफा दो इस्तीफा दो। मुख्य वक्ता के रूप में जब नीतिश कुमार जी ने अपने सम्बोधन में कहा जब आपने लिखित वादा किया था और वायदा पूरा नहीं कर सके तो आपको इस्तीफा दे देना चाहिये था। इसके उपरान्त भरी सभी में मुख्यमंत्री ने जिला प्राधिकारी को यह आदेश दिया कि एक सप्ताह के अन्दर इन्हें पुनवासित किया जाय। दिनांक 14 दिसम्बर 2007 को जिलाधिकारी बेतिया सदर पुलिस अधिक्षक 200 जवानों के साथ बनकटका पहुंचे और सवा 9 एकड़ जमीन को नाजायज कब्जे से मुक्त करा कर 162 परिवारों को पुनर्वासित करने पर प्रति परिवार 4 डिसमिल जमीन दी गई।
सिसवा मंगलपुर
योगापट्टी अंचल के ग्राम राज सिसवा मंगलपुर, मुसहर टोला, के 66 परिवारों को भू ह्द बन्दीं कानूनी के अन्तर्गत जमीन का पर्चा वर्षो पहले मिला था। काफी भागदौड़ के बावजूद इन परिवारों को जमीन पर कब्जा नहीं मिल पाया था। जबकि सभी जमानी पर्चे वाली जमीन पर कब्जे की मांग पिछले अनेक वर्षों से करते आ रहे थे। अपने मांग को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए निम्न सामूहिक प्रयास हुए -
(1) 18 मई 2007 योगापट्टी अंचल कार्यालय के समक्ष धरना ।
(2) 26 जून 2007 को जिला मुख्यालय बेतिया में जिलाधिकारी कार्यालय 9. (12. ) जुलाई 2007 को आयुक्त तिहत प्रमण्डल को मांग पत्र सौंपा गया। के समक्ष धरना दिया। (4) 12 जुलाई 2007 अनुमण्डल पदाधिकारी बेतिया को पर्चे वाली जमीन पर कब्जा कराने की मांग को लेकर मांग पत्र दिया गया। उपर्युक्त प्रयासों के बावजूद पर्चाधारियों कब्जा कराने के सवाल पर शासन का मौन और न्यायिक पद्धति से विवश होकर संगठन ने 26 जनवरी य, 2008 को राष्ट्रीय ध्वजा के साथ उक्त भूमि पर सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। इस संदर्भ में माननीय मुख्यमंत्री बिहार, पटना को सत्याग्रह कार्यक्रम करने की सूचना 10 दिसम्बर, 2007 को स्पीड पोस्ट के द्वारा दे दी गई। देखे परिशिष्ट-
1) दिनांक 25/01/2008 को संगठन के प्रतिनिधि मंडल से प्रशासन के उच्चाधिकारियों के साथ समझौता कि शासन तीन महीना के अन्दर मंगलपुर मुसहर टोला के 66 परिवारों को हाई कोर्ट के फैसले के ऊपर समझौते के पश्चात आंदोलनकारियों ने जमीनों पर राष्ट्रीय झण्डा गाड़ने का कार्यक्रम स्थगति कर दिया। लेकिन सत्याग्रह मार्च घोषित रूप से हुआ। अधिकारियों ने प्रतिनिधि मंडलों को आश्वासन दिया कि तीन महीने के अंदर पर्चाधारियों की समस्या का निराकरण कर दिया जायेगा। (देखे परिशिष्ट-5) दिनांक 26/01/2008 को घोषित कार्यक्रम के अनुरूप, गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय झण्डे के साथ योगापट्टी अंचल कार्यालय परिसर में स्वतंत्रता सेनानियों के शिला पर (स्मारक) फूल माला अर्पित कर वहाँ से पांच किलोमीटर पदयात्रा करते हुए पर्चे वाली जमीन पर पहुंचे। पदयात्रियों ने संगठन द्वारा आयोजित संकल्प सभा में भाग लिया, जिसकी अध्यक्षता श्रीमती फूलकली देवी ने की। यह संकल्प सभा में सभी आंदोलनकारियों ने सर्वसम्मति से निम्न प्रस्ताव पारित किये गये। (देखें परिशिष्ट-0) इसके उपरान्त फूलकली देवी ने पत्र द्वारा अधिकारी को याद दिलाते हुए कि 26 अप्रैल, 2008 को समयावधि तीन महीना 26 अप्रैल , 2008 को पूरा हो जायेगा । अतः समयावधि के पहले समस्या को हल कर ले। नहीं तो पुरा समुदाय सत्याग्रह को लिये बाध्य हो जायेगा। लेकिन प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया तदुपरांत संगठन ने दिनांक एक मई से 5 मई, 2008 को चंपारण के मुख्यालय में संगठन ने सत्याग्रह स्वरूप उपवास किया। उपवास के अंतिम दिन संगठन ने घोषित किया कि, संगठन, सिसवा मंगलपुर मुसहर टोला के 60 पर्चाधारियों के साथ जून, 2008 को राष्ट्रीय झण्डा लेकर जमीन पर कब्जा किया जायेगा। देखे परिशिष्ट-7) एक माह बाद दिनांक 5 जून य, 2008 को मुसहर टोला के पचधारी प्रशासन के मौजूदगी में राष्ट्रीय झण्डे के साथ, फूलकली देवी के नेतृत्व में मुख्य 66 पर्चाधारी परिवारों ने मानव श्रृंखला बनकर 35 एकड़ जमीन पर कब्जा किया। फूलकली देवी ने दबंगों के कब्जे की जमीन पर अपना हक लेते हुये पहला फावड़ा चलाया। उच्चाधिकारियों और आरक्षी बल की उपस्थिति में जमीन के द्वारा पैमाइश एवं लट्ठा गाड़कर भूमिहीनों के लिये मुरुद बंदी कानून के अन्तर्गत अधिशेष भूमि को चिह्नित किया गया। दिनांक 8 जून, 2008 को भूमि जीतने के समय दबंगों ने ट्रैक्टर ड्राइवर को जान से मारने की धमकी दी और झूठे मुकदमें भी दर्ज किये। लेकिन पर्चाधारियों ने उनका डट कर मुकाबला किया ।.प्रशासन से सहयोग के लिये आवेदन दिया । आवेदन पर कार्यवाही करते हुए प्रशासन से जनता का पूरा साथ दिया। परिवारों का लम्बे अवधि के बाद कब्जा प्राप्त हुआ।
तुरहापट्टी
न्यायलय के आदेश के बावजूद चनपटिया के तुरापड़ी, गुरवलिया, तौरिया, बगहा , नदवा एवं बढ़िया के पर्चाधारियों को भूमि पर मालिकाना हक के लिये संघर्ष में संगठन के नेता 'संतराम' ने बातचीत के दौरान बताया कि वर्ष 1983-84 में तुरहापट्टी के लोगों को अधिशेष भूमि अर्जन कानून के तहत पर्चा मिल गया था। आवंटित भूमि पर कब्जा दिलाने के लिये अंचलाधिकारी को आदेश दिया गया कि सभी पर्चेधारियों का आवंटित भूमि पर कब्जा दिला दिया जाय। लेकिन दबंग, राजनैतिक रूप से शक्तिशाली सामंती प्रवृति एवं बाहुबलियों के कब्जे में जमीन होने के कारण सरकारी अमला उनकी तरफ हो जाता है। अंत में गरीब जनता भय और निराशा में घिर कर बैठ गयी। (दिखे परिशिष्ट-4) तुरहापट्टी के पर्चाधारियों ने 2007 तक लगातार कई बार संबंधित अधिकारियों को कब्जा दिलाने के लिये आवेदन दिये। आवेदन पर आदेश तो हो जाता था। लेकिन संबंधित अधिकारी कब्जा दिलाने में समर्थ नहीं होता। इस क्रम में वर्ष 2008 में सामाजिक कार्यकता दर्शनलाल के माध्यम से वरिष्ठ साथी पंकज जी से संतराम का सम्पर्क हुआ ।.साथी पंकज ने पर्चाधारियों की समस्या से अवगत होने के पश्चात् पचाधारियों को समझ कर बैठक निश्चित हुयी। उस बैठक में सभी पर्चाधारियों के साथ गहन चिन्तन के बाद यह निर्णय हुआ कि संगठन का निर्माण हो, तभी संघर्ष को गति देकर समस्या का समाधान किया जा सकता है। संगठन का निर्माण हुआ 'पर्चाधारी संघर्षवाहिनी' संगठन के निर्माण के पश्चात् दिनांक 21 06. 2008 को अंचलाधिकारी चनपटिया का संगठन के तरफ से आवेदन दिया गया कि तुरहापट्टी के पर्चाधारियों को 60 एकड़ जमीन पर कब्जा दिया जाय । आवेदन पर कार्यवाही करते हुये जिलाधिकारी ने संबंधित अधिकारी को आदेश दिया कि 15 दिन के अन्दर पर्चाधारियों को आवंटित भूमि पर कब्जा दिला दिया जाय। एक महीने तक कार्यवाही न होने पर दिनांक 21 अगस्त, 2008 को अंचलाधिकारी को अपना (पक्ष दिया तो कब्जा दो इन नारो के साथ) कर्तव्य निमाने के लिये पर्चाधारियों ने एक दिवसीय धरना दिया। इसे करने के बाद जिलाधिकारी ने पुनः आदेश कर दिया। लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई । दर्जनों कारी पुलिस अधीक्षक को दिये जा चुके ।.लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुयी। अन्त में संगठन ने मजबूर होकर पास वाले भूमि पर मालिकाना हक के लिये समाहरणालय गेट के पास 48 घंटे का सामूहिक उपवास छात्रा संघर्ष वाहिनी और परचाधारी संघवाहिनी के संयुक्त तत्वाधान में प्रारंभ कर दिया, यह उपवास दिनांक 0 अप्रैल 2010, 11 अप्रैल 2010 सुबह 9 बजे तक चला। उपवास करने वालों में विफी देवी, जोनी देवी, संतराम, दर्शनराम, गिरधारी राम, कादिर आदि सहित दर्जनों पर्चाधारी शामिल थे। (देखे परिशिष्ट) उपवास समाप्ति के बाद एक शिष्टमंडल पश्चिम चंपारण के पदाधिकारी से मिलकर मांग पत्र जिलाधिकारी को सौंपा। जो निम्न है -
(1) दिनांक 30:10,2009 न्यायलय समाहत के आदेश को लागू किया जाय। (2) भू हद बंदी कानून से संबंधित 100 से ज्यादा मामले पश्चिम चंपारण में के विभिन्न अदालतों में विगत 50-35 वर्षों से लंबित है। जिनपर शीघ्र कार्यवाही हो।
(3) योगापट्टी अंचल के ग्राम बलुआ सूरत राय गैर मजुरूआ मालिक जमीन, रकथा 14 एकड़ 96 डिस्मील 1999-98 में 30 भूमिहीनों के बीच बन्दोबस्त हुई थी। बार-बार अनुरोध आवेदन धरना उपवास के बाद लोकसेवक कार्यवाही नहीं कर रहे। कार्यवाही की जाय।
( 4) पर्चाधारियों एवं विस्थापितों की समस्या समाधान हेतु पूर्व के जिलाधिकारी द्वारा संबंधित पदाधिकारी एवं संघर्षवाहिनी के सदस्यों की नियमित बैठक बुलाने के क्रम को फिर से शुरू हो उपयुक्त मांगे दिनांक 25 मई, 2010 तक जिला प्रशासन नहीं मानती है तो 5 जून, 2010 को सभी पंचाचारी चनपटिया के बुरहापट्टी के पर्चेवाली भूमि पर राष्ट्रीय झंडे के साथ न्याय के लिये संघर्ष तेज करेंगे। संगठन को अंचलाधिकारी ने आश्वासन दिया कि 35 जून को कब्जा दिला दिया जायेगा एवं पर्चाधारियों के साथ नियमित बैठक का क्रम पुनः शुरू किया जायेगा । मई, 2010 में पं. चम्पारण के चनपटिया अंचल में 5 जून को होने वाली भूमि सत्याग्रह की तैयारी जोरों पर थी। 30 मई को भू हदबंदी कानून के अन्तर्गत अधिशेष भूमि का परवाना प्राप्त पर्चाधारियों ने गाँव से अंचल मुख्यालय चनपटिया तक साइकिल यात्रा निकाल कर 5 जून के सत्याग्रह की सूचना समाज और शासन को दे दी। 30 मई की शाम को अंचलाधिकारी के बुलाने पर पर्चाधारी संघर्ष वाहिनी का एक प्रतिनिधि मंडल संतराम, गिरधारी राम, संजय राम और जितेन्द्र को नेतृत्व में उनसे मिला। उन्होंने पर्चे की भूमि पर मालिकाना एक के संबंध में बातचीत करने के लिये 31 मई को दिन 10 बजे अपने कार्यालय में बुलाया। मई 81 को अंचलाधिकारी की अध्यक्षता में बैठक हुई। बैठक में पचाधारियों के प्रतिनिधियों के साथ थाना अध्यक्ष सहित कुल 13 व्यक्ति शामिल हुए। अंचलाधिकारी ने 6 जून के भूमि सत्याग्रह को स्थगित करने की सलाह दी। उन्होंने 2 से 5 जून तक योग गुरू रामदेव और माननीय राज्यपाल के बेतिया आगमन में प्रशासन पुलिस की व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा कि जून माह में ही कब्जा दिला दिया जायेगा। पर्चाधारियों ने यह सब लिखकर देने को कहा। तब उन्होंने बैठक की कार्यवाही के दो पृष्ठ लिखे। उपस्थिति व्यक्तियों के हस्ताक्षर हुए।
(देखे परिशिष्ट 1) भूमि वितरण का कार्यक्रम बना 15 जून की पूर्वा तुरहापट्टी में 10 पर्चाधारियों और 22 जून को कुड़वा मठिया में 50 पर्चाचारियों को भूमि पर कब्जा दिलाने की तारीख तय हुई। सिरसिया पंचायत में 25 जून को ग्राम सभा में भूमिहीनों की सूची तय कर उन्हें पर्चा देना भी तय है हुआ। पर्चाधारी एक विश्वास के साथ लिखित फैसले की छायाप्रति लेकर लौटे। भूमि सुधार उपसमाहर्ता, बेतिया ने भी पर्याव्यारी संघर्ष के वाहिनी को बताया कि अंचलाअधिकारी उनसे मिले थे और 31 मई बैठक की सायाप्रति देते हुए भूमि वितरण के कार्यक्रम की जानकारी दी । भूमि वितरण के इस लिखित कार्यक्रम के बाद सत्याग्रह की तैयारी ठप हो गयी। पर्चाधारी 15 और 22 जून का इंतजार करते हुए खेत को जोतने-बोने की तैयारी में लग गये।
इसी बीच अपर समाहर्ता प. चम्पारण ने अंचल अधिकारी, चनपटिया को पत्र संख्या 1138, दिनांक 11 जून, 2010 के द्वारा पूर्वी तुरहापट्टी में भूमि वितरण को रोक देने का आदेश जारी कर दिया। उन्होंने पत्र में भूधारी द्वारा समाहर्ता के फैसले के खिलाफ राजस्व पर्षद में पुनरीक्षण वाद दायर किए जाने को भूमि वितरण पर रोक का आधार (या बहाना बनाया।
( देखे परिशिष्ट-11) पर्चाधारी संघर्षवाहिनी के प्रतिनिधि 14 जून को समाहतां से मिले। उन्होंने बिना स्टे ऑर्डर के मात्र वकील की चिट्ठी को आधार बनाकर भूमि वितरण को रोकने के फैसले पर अपनी असहमति व्यक्त की। इतना सुनते ही उन्होंने कहा कि अभी-अभी यह सूचना मिली है कि मदन प्रसाद तिवारी (मृत) हाल सुरेश प्रसाद तिवारी बाली जमीन के बाद में भी राजस्व मंत्री के कोर्ट में पुनरीक्षण वाद दायर हुआ है। उसका वितरण भी रोक दिया जायेगा। समाहर्ता ने बताया कि 1 जुलाई , 2010 को राजस्व मंत्री के कोर्ट में उसकी तारीख है। पर्चाधारियों के साथ एक बार फिर छल हुआ। पर्चाधारी सन्न रह गये। उन्होंने जिला प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ 15 एवं 16 जून को समाहरणालय के मुख्य द्वार पर 32 घंटे तक धरना दिया। 15 को तो डी. एम. या ए. डी. एम. कोई भी समाहरणालय आए ही नहीं। 16 को भी डी. एम. नहीं आए। ए. डी. एम. जाए तो पर्चाधारियों ने उन्हें कार्यालय कक्ष में घेर लिया। उनसे पर्चाधारियों ने चार सवाल पूछे
1. दो वर्ष पहले मदन प्रसाद तिवारी के सिलिंग बाद का फैसला समाहर्ता न्यायालय ने किया था। अधिसूचना भी निकाली। उसे लागू क्यों नहीं किया गया?
2. सात माह पहले निर्मला देवी के सिलिंग वाद का फैसला समाहर्ता न्यायालय ने किया। अधिसूचना जारी हुई बार-बार मांग करने पर भी लागू क्यों नहीं किया गया ?
3. क्या आपको दोनों मामले में ऊपरी अदालत में पुनरीक्षण बाद दायर करने वाली अधिवक्ताओं की चिट्ठी का इंतज़ार था?
4. कोर्ट के स्टे ऑर्डर के बिना सिर्फ वकील की चिट्ठी को आधार बना कर भूमि वितरण के कार्यक्रम पर रोक लगा दी । पर पटना उच्च न्यायालय और राजस्व परिषद के आदेश पर काम क्यों नहीं होता? 1991 में राजस्व परिषद के द्वारा मठिया (लौरिया) के एक भू. ह. पुनरीक्षण बाद में समाहर्ता को तीन माह में निष्पादित करने के आदेश का क्या हुआ ? 1999 में पटना उच्च न्यायालय ने मदन प्रसाद तिवारी के सिलिंग बाद में पर्चाधारियों के पक्ष में फैसला देते हुए तीन माह में भूमि वितरण का आदेश दिया था। आज 10 साल बाद भी लागू क्यों नहीं हुआ? बरगजवा (रामनगर) में भूधारी रणविजय शाही के सिलिंग बाद में पटना उच्च न्यायालय के आदेश (6 माह में नए सिरे से सुनवाई कर निष्पादित करना) को लागू करने से कौन रोक रहा है? फूलकली देवी, जिनिया, बियफी, जितेन्द्र, संजय, गिरधारी, विनोद आदि के पूछे गए इन चार लिखित सवालों को पढ़कर ए. डी. एम. गुस्से में आ गए। अनपढ़, गंवार, गरीब पर्चाधारियों के ये प्रश्न उन्हें अंदर से हिला गए। फिर तो उन्होंने इसका जवाब देने और पर्चाधारियों से बात करने से इनकार कर दिया। उन्होंने पुलिस बुलवाई। सैप के जवान आए ताकत का प्रदर्शन हुआ। ए. डी. एम. तो पर्चाधारियों के घेरे से मुक्त करा लिए गए। पर क्या इन चार सवालों के घेरे में समाहर्ता, पश्चिम चम्पारण, प्रधान सचिव, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग और विभागीय मंत्री मुक्त हो सकेंगे? राजस्व मंत्री और प्रधान सचिव की पहल पर ही 5 जून, 2008 को भूधारी मदन प्रसाद तिवारी की 32.99 एकड़ भूमि 66 मुसहर परिवारों को मिली पर उसी भू-धारी और एक ही बाद (17/74-75 ) की शेष 49.09 एकड़ जमीन क्यों नहीं बटी ? पुलिस अधिकारी (S.D.P.O) ने भी समस्या की गम्भीरता को समझा। संगठन ने बोर्ड ऑफ रेवन्यू के सूचना के अधिकार के अन्तर्गत पूछा की जिलाधिकारी के फैसले के खिलाफ दायर रिविजन पिटीसन पर क्या आपने कोई स्टे आर्डर किया है? वहां से जवाब आया कि वहां से कोई स्टे आर्डर नहीं दिया गया। (देखे परिशिष्ट-1 है ) यह जानने के पश्चात् संगठन की तरफ से संतराम और उनके साथियों ने पुनः जिलाधिकारी को आवेदन देकर मांग की बोर्ड ऑफ रेवन्यू के आदेश पर कब्जा दिलाया जाय। यह आवेदन दिये हुवे लगभग तीन माह हो गये हैं। सरकारी तंत्र से इसका कोई जवाब नहीं है। अतः न्याय के लिए सतत संघर्ष के आवाह्न के साथ पर्चाधारी संगठन एकजुट हो रहा है। छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथ पर्चाधारी एवं विस्थापित वाहिनी का संघर्ष अभी जारी है। चंपारण में हजारों विस्थापित पत्राचारी हैं, जिन्हें भू हदबन्दी एवं अविशेष अर्जन कानून के अन्तर्गत जमीन पर कब्जा नहीं प्राप्त हो पाया है अतः इस दिशा में संघर्ष की शुरुआत ही मानी जायेगी और संघर्ष वाहिनी के छात्र नौजवान गाँव-गाँव में भूमिहीनों एवं विस्थापितों को भूमि पर अभी भी बेदखल पर्चाचारियों, गरीब गुरबों, महादलितों तथा अति पिछड़ों की संगठित कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि संगठन के वरिष्ठ साथी पंकज जी और उनके साथियों ने सत्याग्रह की एक नायाब तस्वीर पेश की है । इस तस्वीर को वहां के कार्यकता और ग्रामीण जनता- "तिरंगा सत्याग्रह" के नाम से 'जानते हैं। “तिरंगा सत्याग्रह'" यानी तिरंगे झण्डे को (राष्ट्रीय झण्डे) कंधे पर ढोते हुए उस जमीन पर गाड़ देते हैं। जिस जमीन पर भू पतियों ने अवैध कब्जा कर रखा है। इस पूरी प्रक्रिया में स्थानीय नेतृत्व जो उमर कर आया फूलकली देवी, विजय माझी, पतासो खातून, गिरधारीराम, संतराम यहीं वाहिनी के नियोजित व शांति पूर्ण आंदोलन की उपलब्धि है। हमारे लोकतंत्र में प्रति पांच वर्ष पर जनता की भूमिका बोट देने तक ही सीमित है। लेकिन इस आंदोलन ने मतदाता की भूमिका बढ़ायी। उम्मीदवारों से लिखित वादा लेकर अपनी समस्याओं का समाधान निकाला। साथ ही, अपने नेताओं को जन समस्याओं के प्रति जवाबदेही भी बनाया। दिसम्बर महीने के अन्दर ही बैजनाथ महतों मंत्री मंडल से हटा दिये गये। संगठन के द्वारा संघर्ष के लिये सभी सत्याग्रहों, धरना, और प्रदेशन में तिरंगा झण्डों को उपयोग किया जाता है। उसकी मूल भावना है कि जिस आजादी के लिये तिरंगे के नीचे संघर्ष हुआ था, वह आजादी आज भी अधूरी है। इसलिये सम्पूर्ण सामाजिक एवं राजनैतिक आजादी के लिये तिरंगे झण्डे को प्रतीक बनाया गया। आज मी सत्याग्रह की जो भावना है, जो उसकी प्रक्रिया है, उसको आत्मसात करना शेष है। इसका बड़ा कारण यह है, कि राजनीति, समाज और शिक्षण संस्थाओं में जिस रास्ते से चलकर अंग्रेजी दासता से मुक्ती मिली उस पर कभी कोई चर्चा-पाठ और प्रयोग नहीं हुये।
रणनीति
सन 2002 से शुरू किए जिनके घर आ जा रहे हैं और आज भी बन रहे है। लेकिन प्रभावित परिवार आज भी बदहाली तथा दुर्दशा की दशा में जी रहे हैं। इसमें मुख्य बात यह है कि करने वाले लोग बहुत शांतिर है। सरकार की भ्रष्ट नीतियों को समझ कर आंदोलनकारी नेतृत्व ने अपनी भावी रणनीति बनाई है :
• अधिक से अधिक लोगों को आदोलन से जोड़ना।
• सरकार व नौकरशाही पर दबाव बनाने के लिए अपने सत्याग्रह को धारदार बनाना। चूंकि संघर्ष वाहिनी के प्रिय पंकज जी स्वयं संपूर्ण क्रांति आंदोलन की उपज है। इसलिए वे शांति रूप से की गई रणनीति को बखूबी समझते हैं । इसलिए उन्होंने तथा नेतृत्व के रूप में भूमि आदोलनकारियों ने संकल्प लिया है कि उक्त रणनीति पर लगातार अमल करते हुए तब तक चुप नहीं बैठेंगे जब तक चंपारण जिले के एक-एक भूमिहीन को उनके हिस्से की जमीन नहीं मिल जाती। जो अलख चंपारण की शक्ति ने जलाई है ।.उसकी आँच अब घर-घर में दूर-दूर तक महसूस की जाने लगी है। और आंदोलन के सिपाहियों का दम-खम व संकल्प देखते हुए यह निश्चित लगता है कि संघर्ष वाहिनी के ये समर्पित व जुझारू सेनानी अपनी मंजिल को पाए बिना चैन से नहीं बैठेंगे।
(साभार गांधी स्मृति दर्शन समीति, राजघाट, दिल्ली)