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सावधानी से खेलें होली, कोरोना बढ़ रहा है...
होली में कैमिकल वाले रंगों प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसे रंग से त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। होली में सिर्फ प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग करना चाहिए।
डाॅ. देवेश
आयुष विभाग में वरिष्ठ आयुर्वेद विशेषज्ञ डा देवेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि होली का आयुर्वेद की दृष्टि से बहुत ज्यादा महत्व है। जानें स्वास्थ्य की दृष्टि से होली कैसे खेलें, क्या खायें ?
केमिकल रंगो का इस्तेमाल कभी न करें
होली में कैमिकल वाले रंगों प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसे रंग से त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। होली में सिर्फ प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग करना चाहिए। होली के हुडदंग में कभी कभी बड़ा नुकसान भी हो जाता है। ऐसे में सभी लोगों को खुद ही सावधानी बरतनी चाहिए।
होली के हानिकारक रंगो से कैसे बचें
सबसे पहले होली वाले दिन उठते ही सरसों का तेल बेसन व आटा मिला कर चेहरे ,हाथ -पंजे- पैर में उबटन लगायें। फिर होली खलने से पहले सरसों या तिल का तेल बालों व पूरे शरीर में लगा लें।
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घर पर ही हर्बल रंग बनाने का सरल तरीका-डा देवेश (आयुष विभाग)
प्राचीन काल मे सभी लोग प्राकृतिक रंगो से ही होली खेलते थे सभी लोग घर पर ही नारंगी,पीला,लाल हरा रंग बनाये सबसे पहले टेशू का फूल रात में भिगो दें। सुबह बहुत बढ़िया नारंगी रंग तैयार हो जायेगा।
घर की पिसी हल्दी को पानी मे डाल कर उबालें और फिर बाल्टी में पीला रंग तैयार करें,चुकंदर को सिल व या मिक्सी मे डाल कर छानकर एक बाल्टी मे लाल रंग तैयार करें, नीम,पालक की पत्ती पीस कर छानकर बाल्टी मे हरा रंग तैयार करें और अब हर्बल अबीर गुलाल भी घर पर अरारोट और खाने के लाल,हरा,पीला,नीला रंग लाकर उससे भी बना सकते है जो शरीर पर नुक्सान नही करता है, केसर,फूलों की पन्खुरियों से भी होली खेल सकते हैं।
होली का है आयुर्वेदिक महत्व-
होली का त्योहार का धार्मिक महत्व के साथ आयुर्वेदिक महत्व भी बहुत ज्यादा है। स्वास्थ्य की दृष्टी से भी होली खेलने का अपना महत्व है। होली और आयुर्वेद के संबंध में आयुष विभाग के वरिष्ठ चिकित्साधिकारी डा देवेश कुमार श्रीवास्तव का कहना है, वास्तव में वसंतऋतु की आते ही गर्म दिनों की शुरुआत हो जाती है। सर्दियों के बाद तुरंत मौसम में बदलाव होने से शरीर में जमा कफ पिघलना शुरू कर देता है और कफ से संबंधित व पेट की कई बीमारियां होने लगती हैं।
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होली के दिन भले ही कोई कितनी भी कोशिश क्यों न कर ले, लेकिन तली-भुनी चीजों, मिठाइयों और खासकर गुझिया से तो दूर नहीं रह सकता है। लेकिन इन सबमें अपने पेट का भी बहुत ख्याल रखना बेहद जरूरी है। "अतिसर्वत्रवर्जयेत" आयुर्वेद मे कहा गया है सन्तुलित सुपाच्य आहार का सेवन करना चाहिये
होली में आयुर्वेदिक 'काजी बड़ा' पेट का वैद्य-
डा देवेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि होली में मैदे व तेल की चीजों से पेट खराब न हो उसके लिये आयुर्वेद मे वर्णित काजी बड़ा जरूर बनाना चाहिये, जिससे ऋतु परिवर्तन में पेट खराब नही हो पता है।
काजी बड़ा बनाने का सरल तरीका
एक कप मूँग की धुली दाल,1/2 कप उड़द की धुली दाल को रात में भिगोय सुबह मिक्सी या सिल पर पीसे फिर उसको फेटें और दो हरी मिर्च,एक इन्च अदरक पीस कर, हींग दो चुटकी,सेंधा नमक आधा चम्मच डाल कर कढ़ाई मे तेल डाल कर छोटे छोटे बड़े तलें इससे पहले आपको 4-5 दिन पहले काजी बनकर रखना पड़ेगा
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काजी बनाने का सरल तरीका
एक मिट्टी का घड़े मे दो लीटर पानी में दो चम्मच राई(पिसी),1/2 कालानमक,एक चम्मच सेंधानमक,एक चम्मच हल्दी,एक छोटा चम्मच लालमिर्च, दो बड़े चम्मच (20ml) सरसों का तेल डालें रोज चमचे से चलाना जरुरी है 4-5 दिन में काजी तैयार हो जाती है। मिलावट के दौर में गुजिया के लिये खोवा घर पर दूध से बनाएं।
(लेखक आयुष विभाग क आयुर्वेद विशेषज्ञ डा देवेश कुमार श्रीवास्तव हैं। यह डा देवेश का निजी विचार है।)