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भंवरा बड़ा नादान है! मिला नई प्रजाति का भौंरा भी, जानिए भौंरों के रहस्यमयी जीवन को

इन पराग कणों पर वैसे ही लक्षण हैं जो किसी कीट के संपर्क में आने के लिए आवश्यक होते हैं। यह पराग कण यूडीकोट्स नामक फूलों की प्रजाति के हैं, जो आज भी सामान्य तौर पर मिलती है।

SK Gautam
Published on: 16 Dec 2019 10:18 AM GMT
भंवरा बड़ा नादान है! मिला नई प्रजाति का भौंरा भी, जानिए भौंरों के रहस्यमयी जीवन को
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लखनऊ: यह जानकार आपको हैरानी होगी कि पृथ्वी पर पहली बार कीटों द्वारा पारागण करीब 9.9 करोड़ वर्ष पूर्व किया गया था। यह दावा वैज्ञानिकों द्वारा बर्मा में पेड़ की राल से बने फूल और भौंरे का जीवाश्म के आधार पर अध्ययन के बाद किया गया है। इससे पहले माना जाता था कि कीटों द्वारा परागण 5 करोड़ वर्ष पूर्व शुरू हुआ था।

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जीवाश्म में मिले भौंरे के पांव पर पराग कण मिलने की पुष्टि

अमेरिका के विज्ञान जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में इस विषय पर प्रकाशित लेख में एक जीवाश्मीकृत फूल और भौंरे की खोज को आधार बनाया गया है। जीवाश्म में मिले भौंरे के पांव पर पराग कण होने की पुष्टि की गई है। यह जीवाश्म पेड़ की राल से बना है और उत्तरी म्यांमार में एक खदान में पाया गया है।

इसे लेकर इंडियाना विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ता डेविड डेल्चर ने करीब 62 पराग कण मिलने की पुष्टि की है। इन पराग कणों पर वैसे ही लक्षण हैं जो किसी कीट के संपर्क में आने के लिए आवश्यक होते हैं। यह पराग कण यूडीकोट्स नामक फूलों की प्रजाति के हैं, जो आज भी सामान्य तौर पर मिलती है। डिल्चर के अनुसार यह बहुत ही दुर्लभ बात है कि एक ही जीवाश्म में भौंरा और पराग कण संरक्षित अवस्था में मिल जाएं।

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कॉन-फोकल लेजर माइक्रोस्कोपी तकनीक का किया गया इस्तेमाल, कीट के बालों में तलाशे कण

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार पराग कणों की खोज आसान नहीं थी। इन्हें भौंरे के बालों के बीच खोजा गया। इसके लिए कॉन-फोकल लेजर माइक्रोस्कोपी तकनीक का उपयोग किया गया। इसमें फ्लोरासेंस लाइट इस्तेमाल होती हैं, जिसकी वजह से पराग कण कीट के गहरे शल्क में अलग से चमकते नजर आते हैं।

राल के जीवाश्म में मिला भौंरा, नई प्रजाति का

राल के जीवाश्म में मिला भौंरा भी नई प्रजाति का है। इसे एंजीमोरडेला बर्मीटीना नाम दिया गया है। उसकी शारीरिक संरचना, पराग कण ग्रहण करने वाले मुंह के हिस्से आदि दर्शाते हैं कि वह परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। इस भौंरे के विश्लेषण के लिए वैज्ञानिकों ने एक्स-रे माइक्रो-कंप्यूटेड टोमोग्राफी तकनीक का उपयोग किया।

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इस खोज का क्या महत्व

वैज्ञानिकों के अनुसार यह खोज दर्शाती है कि पौधों और जीवों ने एक दूसरे का सहयोग करते हुए अपना विकास किया है। इसे एक सबसे पुराने और सपाट साक्ष्य के तौर पर देखा जा रहा है।

SK Gautam

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