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कांग्रेस को झटके पर झटका
मध्यप्रदेश में लगे झटके से अभी कांग्रेस उबर नहीं पाई है और अब उसे गुजरात में दूसरा झटका बर्दाश्त करना पड़ रहा है। गुजरात के पांच कांग्रेसी विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
मध्यप्रदेश में लगे झटके से अभी कांग्रेस उबर नहीं पाई है और अब उसे गुजरात में दूसरा झटका बर्दाश्त करना पड़ रहा है। गुजरात के पांच कांग्रेसी विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है। उन्हें भाजपा या किसी अन्य पार्टी ने किसी होटल में घेरकर नहीं बैठा रखा है। वे खुले-आम घूम रहे हैं और उन्हें जो बोलना है, वह बोल रहे हैं।
अब उसके सिर्फ 68 सदस्य ही रह गए हैं
उन्होंने भाजपा में भी शामिल होने की बात नहीं कही है। उन्होंने यह इस्तीफा देकर गुजरात के अपने कांग्रेसी नेताओं को यह संदेश दे दिया है कि उनके द्वारा नामजद राज्यसभा के दो सदस्य जीत नहीं पाएंगे। कांग्रेस अब सिर्फ एक सदस्य को ही भेज पाएगी, क्योंकि 182 सदस्यों की विधानसभा में अब उसके सिर्फ 68 सदस्य ही रह गए हैं।
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पता नहीं क्या गुल खिलेंगे?
इन पांचों बागी सदस्यों की जमात में अभी पता नहीं कितने सदस्य और भी शामिल हो जाएंगे। राज्यसभा के लिए चुनाव 26 मार्च को होने हैं। अगले 8-10 दिन में पता नहीं क्या गुल खिलेंगे? एक बात जरुर अच्छी हो रही है कि जो कांग्रेसी विधायक अपनी पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवार का समर्थन नहीं कर रहे हैं, वे अपने पद से इस्तीफा दे रहे हैं लेकिन इस्तीफे के बाद वे क्या करेंगे?
कांग्रेस पार्टी का भविष्य खतरे में
पार्टी ने तो उन्हें मुअत्तिल कर दिया है। वह उन्हें निकाल बाहर भी करेगी। तब उनके पास भाजपा-प्रवेश के अलावा चारा क्या बचा रहेगा ? उनका भविष्य जो भी होगा, फिलहाल कांग्रेस पार्टी का भविष्य खतरे में जाता दिखाई पड़ रहा है। जो हाल इस पार्टी का मप्र में हो रहा है, वही हाल राजस्थान में भी होगा, ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं। सचिन पायलट को सिंधिया की तरह भाजपा में मिलाने के लिए ही केंद्र की भाजपा सरकार ने सचिन के ससुर फारुक अब्दुल्ला को रिहा कर दिया है।
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कांग्रेस ने उसकी नई पीढ़ी का मोह-भंग कर दिया है
यह अनुमान निराधार भी हो सकता है लेकिन यह सत्य है कि कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व की शून्यता ने उसकी नई पीढ़ी का मोह-भंग कर दिया है। नई पीढ़ी के लोग डूबते जहाज से कूद-कूदकर बाहर आ रहे हैं। मप्र में चला दंगल अब सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है, उसका फैसला जो भी हो, अब भोपाल में कमलनाथ-सरकार का टिके रहना मुश्किल है। मप्र में चल रही नौटंकी ने भारतीय लोकतंत्र के माथे पर काला टीका जड़ दिया है। बाहरी शहरों की होटलों में कैदियों की तरह पड़े हुए ये विधायक क्या जनता के प्रतिनिधि होने के लायक हैं ?
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