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रामजी करेंगे बेड़ा पार
लेकिन इन सबके बावजूद अगर मंदिर निर्माण नहीं शुरू होता है तो बहुसंख्यकों में विभाजन को रोक पाना भाजपा के लिए मुश्किल होगा। इकलौता मंदिर निर्माण ऐसा मुद्दा है जो एक बार फिर बहुसंख्यकों द्वारा बहुमत की सरकार बनाने के मोदी के फार्मूले को दोहरा सकता है।
योगेश मिश्र
भारतीय जनता पार्टी का कभी यह लोकप्रिय नारा था-‘रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे।' इसी नारे के कठघरे में भाजपा बीते 26 सालों से लगातार खड़ी की जाती रही है। लेकिन बीते विजयादशमी के अवसर पर अपने 84 मिनट के संबोधन में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह कहा कि सरकार कानून बनाए, कानून बनाकर राम मंदिर बनाए।
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साधु स्वाध्याय संगम में भी श्री भागवत ने राम मंदिर के मुद्दे को फिर से उठाने की अपील की। यही नहीं, विजयादशमी के दिन संघ प्रमुख ने यहां तक कह दिया कि हमारे संत जो कदम उठाएंगे हम उनके साथ हैं। बीते 4 अक्टूबर को संतों-महंतों ने राष्ट्रपति से मिलकर मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने की अपील की थी।
मंदिर निर्माण का पक्ष दिखता है
संघ प्रमुख और संत-महंत ही नहीं, राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रामविलास वेदांती, महंत नृत्यगोपाल दास, साक्षी महाराज, विनय कटियार, भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, उमा भारती तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सब लोग राम मंदिर बनाये जाने को लेकर जो भी बयान दे रहे हैं, उनमें सिर्फ पुनरावृत्ति नहीं है। बल्कि आश्वस्ति भाव भी है। जिसमें मंदिर निर्माण का पक्ष दिखता है।
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पुरातत्व विभाग द्वारा करायी गई खुदाई में मिले अवशेषों ने यह तो साबित कर ही दिया है कि रामजन्मभूमि पर निर्मित मंदिर को तोड़कर मस्जिद तामीर कराई गई थी। अब तक के प्रमाणों के आधार पर एएसआई ने विवादित स्थल के नीचे के उत्खनन की 574 पन्ने की जो रिपोर्ट दी है, उसमें कहा गया है कि पुरातात्वीय साक्ष्य बताते हैं कि तोडे़ गए ढांचे के नीचे 11वीं सदी के हिन्दुओं के धार्मिक स्थल से जुड़े साक्ष्य बड़ी संख्या में मौजूद हैं।
मूर्ति के सबूत भी पेश किये गए
न्यायालय में भगवान शंकर की मूर्ति के सबूत भी पेश किये गए हैं। परिसर का राडार सर्वेक्षण भी कराया गया जिसमें यह तय हुआ कि ढांचे के नीचे एक और ढांचा है। 27 दीवारें मिलीं। दीवारों में नक्काशीदार पत्थर लगे हैं। एक छोटे से मंदिर की रचना मिली जिसे पुरातत्ववेत्ताओं ने 12वीं शताब्दी का हिंदू मंदिर लिखा है।
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उत्खनन की रिपोर्ट बताती है कि जो वस्तुएं मिलीं वे सभी उत्तर भारतीय हिन्दू मंदिर की वस्तुएं हैं। इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के तीनों न्यायमूर्तियों ने माना कि विवादित स्थल का केन्द्रीय स्थल रामजन्मभूमि है। उन्होंने 30 सितंबर, 2010 को अपने आदेश में अयोध्या के विवादित स्थल को 2:1 के अनुपात में हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों के बीच विभाजित कर दिया।
हिन्दू पक्ष को आवंटित किया
न्यायालय ने गुम्बद क्षेत्र को जहां अस्थायी ढांचे में रामलला विराजमान है, हिन्दू पक्ष को आवंटित किया। ध्वस्त ढांचे के निकट का राम चबूतरा और सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया। सुन्नी वक्फ बोर्ड को विवादित जमीन का बाहरी एक तिहाई हिस्सा मिला। बीते दिनों सर्वोच्च अदालत ने अपने एक फैसले में यह साफ कर दिया है कि मस्जिद नमाज का अभिन्न हिस्सा नहीं, यानी विवादित स्थल पर नमाज नहीं पढ़ी जा सकती है।
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सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से हिन्दू पक्ष राम मंदिर बनने की उम्मीद का पाठ पढ़ सकता है। सर्वोच्च अदालत में राम मंदिर की विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर रोजाना सुनवाई होने जा रही है। फिर भी संघ प्रमुख और मंदिर आंदोलन से जुड़े लोगों का मंदिर बनना शुरू किये जाने का बयान और लोकसभा चुनाव में उतरने की भाजपा की तैयारी के बीच यह समझना आसान हो जाता है कि भाजपा के शक्ति केन्द्र अयोध्या, मथुरा, काशी से ही उसे संजीवनी मिलने की उम्मीद नजर आने लगी है।
अयोध्या ही उम्मीद की किरण है
हालांकि मथुरा और काशी भाजपा के एजेंडे में नेपथ्य में हैं। हाल फिलहाल अयोध्या ही उम्मीद की किरण है। क्योंकि राहुल गांधी भी साफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ बैठे हैं। यह कहा जाने लगा है कि एससी-एसटी एक्ट के लिए सरकार अध्यादेश ला सकती है पर 2014 के चुनावी घोषणा पत्र के 41वें पेज पर मंदिर बनाने के संकल्प को पूरा करती नहीं दिख रही है। मराठा, पटेल, जाट असंतोष के साथ ही एससी-एसटी एक्ट के चलते सवर्णों की नाराजगी।
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पदोन्नति में आरक्षण के चलते सरकारी कर्मचारियों का गुस्सा। पेट्रोल की बढ़ती कीमतें, अर्थव्यवस्था की अनपेक्षित स्थिति 2014 में चुनाव के समय भाजपा ने जो कुछ कहा था उसके पूरा न होने के हालात यह चुगली करते हैं कि मोदी के नाम और काम के अलावा केंद्र सरकार की उपलब्धियों को भाजपा शासित राज्य सरकारों की अनुपलब्धियां पलीता लगाने के लिए काफी हैं।
चार कदम पीछे खींच लेंगी
मोदी दो कदम आगे बढ़ेंगे तो उनकी राज्य सरकारों के कारनामे उन्हें चार कदम पीछे खींच लेंगी। जनता के लिए राज्य और केंद्र सरकार के कामकाज को अलग-अलग देखना और उसका मूल्यांकन करना आसान नहीं है। यही नहीं शिवसेना भी मंदिर निर्माण के मसले को लेकर उत्तर प्रदेश कूच करने की तैयारी में है। ताकि वह भाजपा को मंदिर निर्माण न किये जाने के लिये आईना दिखा सके।
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जिस तरह जातीय राजनीति भाजपा कर रही है। ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देकर ओबीसी को दो से अधिक भागों में बांटने के लिए गठित रोहिणी कमीशन के कार्यकाल को बढ़ाने और 2021 की जनगणना में ओबीसी की गिनती कराने को मान बैठी है। उससे सवर्ण का मोहभंग होना लाजिमी है। हालांकि भाजपा हाल-फिलहाल सवर्ण आयोग भी गठित करेगी।
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लेकिन इन सबके बावजूद अगर राम मंदिर निर्माण नहीं शुरू होता है तो बहुसंख्यकों में विभाजन को रोक पाना भाजपा के लिए मुश्किल होगा। इकलौता मंदिर निर्माण ऐसा मुद्दा है जो एक बार फिर बहुसंख्यकों द्वारा बहुमत की सरकार बनाने के मोदी के फार्मूले को दोहरा सकता है। संघ प्रमुख, विहिप, साधु-संत और भाजपा के राम मंदिर आंदोलन से जुड़े नेता मोदी सरकार को यही बता और चेता रहे हैं।