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शिक्षा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति: पहली बार हुआ जड़ से बदलाव का प्रयास

चूंकि शिक्षा, समकर्ती सूची का विशय है, इसलिए केन्द्र सरकार के साथ ही साथ राज्य सरकारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव समय की मांग थी, वह पूरी की गयी है। कोई भी नीति अपने आप में अच्छी है, परन्तु उसका जमीन पर कार्यान्वयन भी अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा।

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Published on: 31 July 2020 3:22 PM IST
शिक्षा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति: पहली बार हुआ जड़ से बदलाव का प्रयास
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ओम प्रकाश मिश्र

शिक्षा क्या है? यह प्रश्न एक शाश्वत प्रश्न है। वस्तुतः शिक्षा, पूर्ण को प्राप्त करने की एक सतत प्रक्रिया है। वैसें तो मनुष्य, जन्म के समय से ही सीखता है, परन्तु औपचारिक शिक्षा का अपना महत्व है। पहले कबीर, तुलसी, नानक, घाघ आदि, बिना औपचारिक शिक्षा के ही, परम विद्धा हो गये थे, परन्तु आज यदि वह असंभव न भी हो तो भी, अत्यन्त कठिन अवश्य है।

शिक्षा का जितना संबंध, व्यक्ति से है, उससे कहीं अधिक समग्र समाज व मानवता एवं पर्यावरण से भी होता है। शिक्षा, हजारों वर्षों से समाज द्वारा अर्जित अनुभव, शिक्षार्थी को हस्तांतरित किये जाने की एक परभाशा ही है। शिक्षा के ही द्वारा, अपनी संस्कृति से जुड़ाव भी होता है।

अस्तु शिक्षा, प्रत्येक पीढ़ी के साथ, समाज की प्राचीन थाती का संरक्षण, संवर्धन व हस्तांतरण को सुगम बनाती है। बिना शिक्षा के ‘समाज’ की कल्पना करना अत्यन्त दुरूह है। शिक्षा व विद्या में मूलभूत अन्तर है। विद्या जीवन मूल्यों, संस्कारों को प्रदान करती है।

शिक्षा ढांचा विद्या प्राण

शिक्षा भौतिक ढांचा है। विद्या उसका प्राण है। ‘सा विद्या या विभुक्तये‘ में (प्रथम स्कन्ध 19-41) यह कहा गया है कि यह वह क्रिया है जो आसक्ति को बढ़ावा नहीं देती है, वह ज्ञान है जो (एक को बन्धन से मुक्त करता है) अन्य सभी ज्ञान केवल एक कौशल/ शिल्प कौशल है। वस्तुतः भारत के संदर्भ में शिक्षा व विद्या का संयोग भौतिक जीवन पर अत्यात्य का संगम है।

प्राचीन भारतीय षिक्षा- पद्धति, मुक्ति व आत्यमबोध का एक महत्वपूर्ण साधन थी। हमारे जीवन मूल्य, स्वावलम्बन तथा आध्यात्मिकता, दोनों का पुट लिये हुए थे। व्यक्ति का समग्र एवं सर्वांगीण विकास करके चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को पूर्णरूप से साधन का माध्यम हमारी शिक्षा का उददेश्य था। शिक्षा चऱित्र निर्माण तथा अनुशासन जैसे गुणों को विकसित करती है।

शिक्षा का लक्ष्य मानव-मस्तिश्क का सर्वोत्तम उपयोग कराना है। शिक्षा के प्रकाश से समस्त विष्व व अखिल ब्रहमाण्ड को आलोकित किया जा सकता है, ऐसी भारतीय मान्यता है। जब संसार के अन्य देषों में व्यवस्थित जीवन की व्यवस्था भी नहीं थी, हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति, शिक्षा उच्च स्तर पर थी।

विद्या का महत्व

भारतीय जीवन परम्परा में विद्या का महत्व इस तथ्य से है कि समाज में ज्ञानी, विद्वान, लगोंटी लगाने वाले, शासक का मार्गदर्शन करते थे। राजसत्ता से ऊपर विद्या की सत्ता थी। विद्या का धन सभी प्रकार की धन सम्पदा से श्रेष्ठ माना गया।

न चोर हार्यम् न च राज हार्यम्

न भातृ, भाज्यम न च भारकारी।।

व्ययक कृते वर्द्धत एव नित्यम।

विद्या धनम् सर्व धनम् प्रधानम्।।

अर्थात् विद्या को चुराया नहीं जा सकता, न ही राजा छीन पायेगा, न भाई बांट सकेगा, यह कोई भारी चीज नहीं है, जिसे ढोना पड़े। विद्या का धन सभी धन सम्पदा से श्रेष्ठ है।

आक्रान्ताओं ने किया शिक्षा का नाश

परन्तु कालान्तर में, विदेशी आक्रमणों के कारण समाज में स्थापित शिक्षा-व्यवस्था का क्षरण व नाश सा होता गया। आगे चलकर ब्रिटिश हुकूमत ने भारत की देशज शिक्षा-व्यवस्था को आमूलचूल समाप्त करने का प्रयास किया। ऐसा प्रचार किया गया कि हमारे पुरखे जाहिल थे। तथा अंग्रेजी शिक्षा-व्यवस्था अत्यन्त श्रेष्ठ है।

अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति के विरूद्ध अनास्था का भाव उत्पन्न किया। चूंकि शासक वर्ग, शक्तिशाली होता है। अतः अंग्रेजों ने अपनी भाषा व शिक्षा प्रणाली हमारे यहां आरोपित करने का प्रयास किया। लेकिन उनकी कोशिश केवल काले अंग्रेज पैदा करने की थी, जो भारतीय अपनी संस्कृति से चिढ़ का भाव रखे।

लार्ड मैकाले के शब्दों में ‘ जो रंग और रक्त से तो भारतीय होगी, किन्तु विचारों, आदर्शों और रूचियों में अंग्रेज होगी। बात यहीं तक नहीं थी। उन्होंने भारतीयों के लिए छोटे तथा महत्वहीन क्लर्क सरीखे पदों’ के लिए भारतीयों के लिए शिक्षा-प्रणाली बनायी। श्रेष्ठ प्रकार की शिक्षित पीढ़ी के लिए कोई प्रयास अंग्रेजों ने नहीं किया तथा स्वाभाविक रूप से शासक, कभी भी शासित देश को इतना विकसित करना नहीं चाहता कि वह कभी ठीक से खड़ा भी हो सके।

ऐसी विषम परिस्थितिथियाँ बनाई गई थीं कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी, शिक्षा-व्यवस्था लगभग वैसी ही रही। ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ सरीखे कुछ अपवादों को छोड़़ दिया जाय तो समस्त राष्ट्र की शिक्षा-व्यवस्था वैसी की वैसी ही बनी रही। महामना मदन मोहन मालवीय जी के तपस्वी सरीखे भगीरथ- प्रयास से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की धारा को अग्रसर करती है।

भविष्य की दृष्टि

अंग्रेजों की शिक्षा-व्यवस्था के दोषों को क्रमशः अनेक राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों के द्वारा दूर करने का प्रयास किया गया था, परन्तु आमूलचूल परिवर्तन नहीं दिखा। अभी जो शिक्षा नीति का अन्तिम स्वरूप 29 जुलाई 2020 को आयी, उसमें एक तरफ तो वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप तथा भविष्य को दृष्टि में रखकर नीति बनायी गयी है।

इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) को अंतिम रूप देने में समाज के विभिन्न अंगों, शिक्षा संस्थाओं, शिक्षकों व सभी पक्षों के विचार, प्रस्तावित मसौदे पर आमंत्रित किये गये थे, विस्तृत विचार विमर्श के बाद इसे जारी किया गया।

1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के 34 वर्ष बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति को, शिक्षा-व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आकांक्षा के उददेश्य से एवं 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने का प्रयास किया गया है।

जड़ से बदलेगी शिक्षा

बच्चों को रट्टू तोता बनाने वाली शिक्षा को जड़ से बदलने के लक्ष्य को लेकर यह शिक्षा नीति प्रस्तुत की गयी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदला गया है और अब पुनः इसे शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जायेगा।

1985 में शिक्षा मंत्रालय को मानव संसाधन मंत्रालय का नाम दिया गया था। वस्तुतः मानव संसाधन शब्द में वह स्पषटता नहीं थी, जो ‘शिक्षा‘ में स्पष्ट है। अब ज्ञान परक एवं कौशल विकास ऐसे जोड़ा जायेगा कि सर्वांगीण लक्ष्य प्राप्त हो सके।

भाशा की दृष्टि से मातृभाषा के महत्व से कोई भी इन्कार नही कर सकता। अब कक्षा पांच तक अनिवार्य रूप से मातृभाषा और स्थानीय भाषा में पढ़ाई होगी।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई राश्ट्रीय शिक्षा नीति पर कहाकि ‘नई शिक्षा नीति...... शिक्षा के क्षेत्र में बहुप्रतीक्षित सुधार है, जिससे लाखाों लोगों का जीवन बदल जायेगा। एक भारत, श्रेष्ठ भारत के तहत इसे संस्कृत समेत भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जायेगा।’

संस्कृत का विकल्प मिलेगा

भारतीय परम्परा की दृष्टि से महत्वपूर्ण यह है कि स्कूल व उच्च शिक्षा में संस्कृत का विकल्प मिलेगा। सकेन्डरी लेवल पर कोरियाई स्पेनिश, पुर्तगाली, फ्रेंच, जर्मन, जापानी व रूसी आदि भाषाओं में से चुनने का अवसर हाेगा।

नई शिक्षा नीति में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि फीस पर भी नियंत्रण का प्राविधान होगा। कौन संस्थान किस कोर्स की कितनी अधिकतम फीस रख सकता है। इसका भी एक मानक बनाया जायगा। साथ ही अधिकतम फीस भी तय की जायेगी।

उच्च शिक्षा तथा स्कूली शिक्षा के लिए यह कैपिंग (फीस की अधिकतम सीमा) रहेगी। अभी कुछ संस्थानों (विषेशतः निजी संस्थान) की फीस बहुत ज्यादा है।

अस्तु अब अधिकतम फीसी की सीमा के दायरे में सरकारी तथा निजी, दोनों प्रकार के संस्थान आयेंगे। फीसी की सीमायें कुछ इस तरह से तय की जायेगी कि विद्यार्थियों तथा उनके परिवारजनों को आर्थिक दृष्टि से ज्यादा बोझ न पड़े।

बदलेगा मौलिक स्वरूप

स्कूली शिक्षा के स्वरूप को मौलिक रूप से बदला जायेगा। 10़2 की प्रणााली के बजाये 5़3़3़4 के चार स्तर की प्रणाली होगी। पांच साल के पहले चरण में तीन वर्श तक आंगनबाडी या प्री स्कूल और दो वर्श पहली व दूसरी कक्षा की पढ़ाई होगी। इसके उपरान्त तीसरी से पांचवी कक्षा, छठवीं से आठवी कक्षा और नौंवी से 12वीं काक्षा के तीन स्तर होंगे।

महत्वपूर्ण बात यह है कि तीसरी, पांचवीं और आठवीं कक्षा में संबंधित प्राधिकारी द्वारा परीक्षाओं का आयोजन किया जायेगा। यह स्वागत योग्य कदम है। 10वीं व 12वीं की परीक्षाएं होती रहेंगी।

स्कूलों की गुणवत्ता के सुधार की आवष्यकता को देखते हुए राज्य के स्तर पर स्कूल स्टैन्डडर्स प्राधिकारी का गठन किया जायेगा। हर जगह कुकुरमुत्तों की जगह स्कूलों पर दृश्टि रहेगी।

राज्य तैयार करेंगे अपना पाठ्यक्रम

एक और स्वागत योग्य बात यह है कि राजय की विषेशताओं व जानकारी के आधार पर सभी राज्य अपना पाठ्क्रम तैयार करेंगे।

उच्च शिक्षा में इसके स्तर को उच्च करने हेतु तथा षोध की संस्कृति एवं क्षमता को बढ़ाने के लिए सर्वोच्च संस्थान के रूप में राश्ट्रीय षोध फाउन्डेषन का गठन किया जाना है यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

UP में पहले से ही हो रहा नई शिक्षा नीति की दिशा में काम: बेसिक शिक्षा मंत्री

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पांच महत्वपूर्ण स्तम्भ का उल्लेख किया है। उन्होंने ट्वीट करके पांच स्तम्भ बताये हैं। एक्सेस (सभी तक पहुंच) 2. इक्विटी (समता, सभी के लिए भागीदारी) 3. क्वालिटी (गुणवत्ता) 4. अर्कोडेबिलिटी (किफायती) और 5. एकाउन्टेबिलिटी (जवाबदेही)। वस्तुतः इन पांचों स्तम्भों पर ही नई शिक्षा नीति बनायी गयी है, जिससे राश्ट्र का सर्वांगीण विकास होगा।

शिक्षकों के लिए एक समान मानक बनाये जायेंगे। यह मानक राष्ट्रीय स्तर के होंगे। शिक्षकों के लिए अगले दो वर्शों के लिए न्यूनतम डिग्री बी.एड. होगी, जो उनकी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर एक से चार साल की होगी। एम.ए. के बाद एक साल और इण्टरमीडिएट के बाद चार साल की शिक्षा व्यवस्था होगी।

हर साल मिलेगी डिग्री

अब तीन साल के अनिवार्य बी.ए. के स्थान पर छात्रों को हर साल की डिग्री मिलेगी और किसी कारण से बीच की पढ़ाई छूट जाने पर, अपनी सुविधानुसार पुनः पढ़ाई शुरू करने का प्राविधान भी रहेगा। यह उन विद्यार्थियों के लिए विषेशतः लाभप्रद होगा जो आर्थिक कारणों से पढ़ाई मजबूरन बीच में छोड़ देते हैं।

नई शिक्षा नीति: शिक्षाविदों ने कही यह बड़ी बात, आएगी नयी क्रांति

उच्च शिक्षा को नियमित रूप से गुणवत्ता सुनिष्चित करने के लिए ‘भारत का उच्च शिक्षा आयोग’ का गठन किया जायेगा। यह आयोग कानून व मेडिकल शिक्षा की शिक्षा को छोड़कर, समस्त उच्च शिक्षा में गुणवत्ता व नियमन की जिम्मेदारी होगी। अब पूरी प्रणाली केसलेस तथा ऑनलाइन होगी। व्यक्तिगत भेदभाव बचाने हेतु वार्षिक निरीक्षण की व्यवस्था नहीं रहेगी।

सरकार ने अगले 15 वर्षों में उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या दुगना करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। डिग्री कालेजों की संबद्धता के लिए धीरे-धीरे काॅलेजों के विश्वविद्यालयों से संबद्ध होने की प्रणाली को समाप्त करके उन्हें डिग्री प्रदान करने वाला स्वायत्त संस्थान बनाया जायेगा।

15 साल बाद कोई कालेज संबद्ध नहीं होगा

अगले 15 वर्षों के उपरान्त कोई कालेज संबद्ध नहीं होगा। वह या तो स्वायत्त होगा या फिर किसी विश्वविद्यालय के आधीन होगा।

अभी कोरोना जैसी महामारी के कारण उत्पन्न स्थिति को ध्यान में रखते हुए नीति में यह प्रस्ताव है कि जहां शिक्षा पारंपरिक तरीके से संभव न हो, वहां वैकिल्पक माध्यमों (जैसे आनलाइन शिक्षा) को बढ़ाया जायेगा।

नई शिक्षा नीति-2020: मैथेमैटिक्स गुरू ने किया स्वागत, अब होगा सर्वांगीण विकास

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्राविधान,शिक्षा पर समग्र राश्ट्रीय उत्पाद (जी.डी.पी.) का 6 प्रतिषत व्यय करने की नीति का है। यदि यह हो सका तो शिक्षा का स्तर, गुणवत्ता सभी श्रेष्ठ होगी।

चूंकि शिक्षा, समकर्ती सूची का विशय है, इसलिए केन्द्र सरकार के साथ ही साथ राज्य सरकारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव समय की मांग थी, वह पूरी की गयी है। कोई भी नीति अपने आप में अच्छी है, परन्तु उसका जमीन पर कार्यान्वयन भी अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा।

-ओम प्रकाश मिश्र

पूर्व प्राध्यापक, अर्थशास्त्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं पूर्व रेल अधिकारी

66, इखो संगम वाटिका, देव प्रयागम, झलवा

प्रयागराज, उ.प्र. पिन-211015

मोबाइल 7376582525



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