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लाइफ विदाउट एयर कंडीशनर्स, खतरे की चपेट में आबादी

raghvendra
Published on: 9 Nov 2019 9:59 AM GMT
लाइफ विदाउट एयर कंडीशनर्स, खतरे की चपेट में आबादी
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पंडित रामकृष्ण वाजपेयी रामकृष्ण वाजपेयी

भारत में अब वह समय आ गया है जब हमें बिना एयर कंडीशनर भी जीवन है, अभियान से जुड़ जाना चाहिए। लोगों को यह बात अटपटी लग सकती है, लेकिन यह सच है। देश में जिस तेजी के साथ एयर कंडीशनर्स हमारी जरूरत ही नहीं जीवन का अभिन्न अंग बनते जा रहे हैं उसे देखकर लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब एयर कंडीशनर्स के बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल हो जाएगा।

जिस तेजी से धरती गर्म होती जा रही है, हर साल तापमान नए कीर्तिमान बना रहा है, ऐसे में जिनकी क्षमता है वह एसी के बिना जीवन नहीं की कल्पना कर सकते हैं, लेकिन जिनके पास एसी नहीं है उनका क्या होगा। तेजी से गर्म होती धरती के चलते मरेंगे दोनों, एसी वाले भी और बिना एसी वाले भी। कारण स्पष्ट है। हमारा शरीर एसी के लिए नहीं बना है। हम तभी तक स्वस्थ रह सकते हैं जब तक कि प्रकृति के स्वाभाविक घटकों का उपयोग करते हैं। इन्हीं से हमारा शरीर बना है और इनके स्वाभाविक इस्तेमाल से ही शरीर को उसकी जरूरत के हिसाब से पोषण मिलता है। लेकिन जब हम इनका इस्तेमाल ही बंद कर देंगे तो शरीर प्रतिरोधक क्षमता खोता चला जाएगा और इस जीवन का अंत होता चला जाएगा।

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इसी तरह एसी का इस्तेमाल न करने वाली आबादी भी खतरे की चपेट में है। नान एसी यूजर्स की जान खतरे में होने की वजह है एसी का बढ़ता इस्तेमाल। एयर कंडीशनर्स के दिन-प्रतिदिन बढ़ते इस्तेमाल से इनसे निकलने वाली गैसें धरती को गर्म करने में अहम भूमिका निभाती जा रही हैं।

दरअसल जब एसी का ईजाद नहीं हुआ था उस समय भी लोग मौसम के हिसाब से अपने को ढालकर रहा करते थे। घरों की छतें ऊंची-ऊंची होती थीं और घरों में बड़े-बड़े रोशनदान होते थे। घर को अधिकतम खुला रखा जाता था ताकि क्रॉस वेंटिलेशन होता रहे। गर्मी में लोग ठंडी तासीर की चीजों और फलों को खाया करते थे। जाड़े में गरम तासीर की चीजों का सेवन किया करते थे। बरसात का अलग आनंद होता था। लोग बाग नंगे पैर टहलते थे, बच्चे मिट्टी में खेला करते थे, गांव के तालाब में नहाते थे और गाय-भैंस का ताजा दूध पीते थे। घर में बना खाना खाते थे। सब मेहनत करते थे तो खुलकर भूख लगती थी। इससे लोगों की सेहत भी दुरुस्त रहती थी। हमने तरक्की की तो सबसे पहले गाय-भैंस का ताजा दूध पीना बंद किया। पैकेट के दूध का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है। बड़े शहरों में तो लोग पैकेट के दूध के ही सहारे जीवन बिता रहे हैं। बच्चों से लेकर बड़े तक इसी दूध का सेवन कर रहे हैं। घर का नाश्ता लोगों को खराब लगने लगा। बाहर से आया नाश्ता व खाना हमें स्वादिष्ट लगने लगा। बच्चों को मिट्टी-धूल से बचाने के लिए जूते मोजे पहनाकर रखा जाने लगा। एयरकंडीशन्ड सील्ड पैक घरों में जिसमें कहीं से भी ताजा हवा जाने की गुंजाइश नहीं, ऐसे घरों में हमने रहना शुरू कर दिया। नतीजतन बच्चे से लेकर बूढ़े तक, सबका डाक्टर के यहां खाता खुल गया। डॉक्टरों के यहां मरीजों का तांता लग गया। तमाम लोग ऐसे रोगों का शिकार होने लगे जिसकी जिम्मेदार प्रदूषित आबोहवा है। रोगों का शिकार होकर लोग तरह-तरह की दवाइयों का सेवन करने पर मजबूर हो गए।

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चलिऐ मूल बिंदु पर आते हैं। क्या आपको पता है कि एयर कंडीशनर का ईजाद कब, किसने और क्यों किया था। एक सदी पहले, शायद कुछ लोगों ने इसकी भविष्यवाणी की हो, लेकिन एयर कंडीशनर की ईजाद का श्रेय विलिस कैरियर को जाता है। कैरियर एक हीटिंग और वेंटिलेशन कंपनी में काम करता था। वह एक अमेरिकी इंजीनियर था। कैरियर को 1902 में ब्रूकलिन प्रिंटिंग कारखाने में आर्द्रता (नमी) को कम करने के लिए कुछ करने का काम सौंपा गया था। तो इस तरह कैरियर ने इसका प्रारंभिक आविष्कार किया। अपने अस्तित्व के पहले 50 सालों तक एयर कंडीशनिंग मुख्य रूप से कारखानों और सार्वजनिक स्थानों के मुट्ठीभर के लिए ही प्रतिबंधित थी। आज हम यह समझते हैं कि एयर कंडीशनिंग का उद्देश्य गर्मी कम करना है, लेकिन उस समय इंजीनियर कैरियर का यह आविष्कार केवल तापमान कम करने से संबंधित नहीं था। वह औद्योगिक उत्पादन के लिए सबसे स्थिर स्थिति बनाना चाहते थे जिसमें एक प्रिंट फैक्ट्री में कागज की नमी से ढकी चादरों और स्याही की बदबू को सोखना शामिल था।

इंजीनियर कैरियर ने महसूस किया कि कारखाने की हवा से गर्मी हटाने से आर्द्रता कम हो जाएगी और इसलिए उसने नवजात प्रशीतन उद्योग से प्रौद्योगिकी उधार ली जो आज भी फ्रिज में इस्तेमाल होती है। उद्योग जगत के लिए यह अविष्कार एक बड़ी सफलता थी। कपड़ा, गोला-बारूद और दवा कारखाने, इसका इस्तेमाल शुरू करने वालों में प्रमुख थे। बाद में एयर कंडीशनर्स ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू किया। 1928 में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने एयर कंडीशनिंग अपनाया। इसके बाद 1929 में व्हाइट हाउस और सीनेट ने भी इसे अपना लिया। बाद में अमेरिका ने थिएटर या डिपार्टमेंट स्टोर जैसे स्थानों पर एयर कंडीशनिंग को अपनाया और लोगों ने इसे रमणीय नवीनता के रूप में खुशी-खुशी अपनाया।

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1970 के दशक तक एसी का इतना प्रसार नहीं हुआ था। इसकी वजह शायद बिजली की सीमित उत्पादन क्षमता भी थी। बाद में तरक्की के बढ़ते ग्राफ के साथ एयर कंडीशनर्स का एक बड़ा घरेलू उपभोक्ता बाजार खड़ा हो गया। आज भारत में एयर कंडीशनर उसी तरह जरूरत बन गया है जैसे कभी पंखा बना था। लोग पंखे की तरह एसी खरीद रहे हैं। अब भारत में एयर कंडीशनिंग फैल रही है। फ्रॉस्ट और सुलिवान के अनुसार, भारतीयों ने 2017 लगभग 5 मिलियन रूम एसी खरीदे। एयर कंडीशनिंग का बाजार सालाना 10 से 12 प्रतिशत की वृद्धि के साथ बढ़ रहा है। मौजूदा दौर में कुछ कंपनियां आक्रामक क तेजी से विस्तार में जुटी हैं। अंतरराष्ट्रीय विक्रेता भारत के विशाल बाजार के एक हिस्से के लिए मर रहे हैं। जापान की फुजित्सु और एमिरती कंपनी ईटीए के बीच एक संयुक्त उद्यम जनरल हाइपर ट्रॉपिकल लाइन को 125 डिग्री तक के तापमान के लिए बेच रहा है, जिसका उसने बॉलीवुड प्रदर्शन के साथ अनावरण किया था। जापानी कंपनी डेकिन ने राजस्थान में एक फैक्ट्री खोली है जिसमें एक साल में आधा मिलियन यूनिट्स की पम्पिंग होती है और उत्पादन दोगुना करने की योजना है। उद्योग जगत अच्छी तरह से जानता है कि बढ़ता तापमान उनके लिए शुभ संकेत है और यह बाजार में एसी की मांग और बढ़ाएगा।

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वस्तुत: हम बाजारवाद का खिलौना बन चुके हैं। उपभोक्ताओं के बीच अमीर-गरीब की जंग की तरह एसी यूजर्स और नॉन एसी यूजर्स की जंग छिड़ चुकी है। एसी कार, एसी बस, एसी ट्रेन, एसी दफ्तर, एसी घर कुल मिलाकर कोई भी जगह बिना एसी की नहीं बच रही है। मानो हर किसी में एसी लगवाकर अपनी जिंदगी को और आरामतलब बनाने की जंग छिड़ी हुई है। किसी को यह चिंता नहीं है कि इससे हमारा कितना नुकसान होगा। हमारे बच्चों की स्थिति क्या होगी? मानव जाति का क्या होगा? इसलिए इस मुद्दे पर गहराई से सोचने की जरुरत है। अगर हम इस मामले में अभी सचेते नहीं हुए तो हमारा आने वाला कल काफी खतरनाक हो सकती है। इसलिए आज जरूरत है लाइफ विदाउट एसी कैम्पेन अभियान से जुडऩे की। इस अभियान से जुडक़र हम अपनी और अपने नौनिहालों की जिंदगी को सुरक्षित बना सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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