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नई शिक्षा नीति 2020: शैक्षिक पुनर्जागरण की नींव रखने वाला कदम

नई शिक्षा नीति शिक्षा में पुनर्जागरण अवश्य लाएगी क्योंकि यह निश्चित तौर पर यह ऐसी शिक्षा प्रणाली का विकास करेगी जो मनुष्य को मुनष्य बनाने वाली होगी, मशीन नहीं। एक ऐसा मनुष्य जिसके मूल में राष्ट्रीयता हो और जिसके मर्म में मानव मूल्य हों।

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Published on: 10 Aug 2020 4:09 PM GMT
नई शिक्षा नीति 2020: शैक्षिक पुनर्जागरण की नींव रखने वाला कदम
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नई शिक्षा नीति 2020

डॉ. रहीस सिंह

सरकार का कार्य केवल नीतिगत कमियों की समीक्षा ही नहीं होता, बल्कि उनका समाधान खोजना और भविष्य के भारत की बुनियाद नींव रखने वाली नीतियों का निर्माण करना भी होता है। शिक्षा इस दृष्टि से एक आधारभूत विषय है, क्योंकि शिक्षा न केवल समृद्ध एवं योग्य मानवपूंजी का निर्माण करती है, बल्कि उसे आंतरिक व बाहरी प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार भी करती है।

दूसरे शब्दों में कहें तो डेमाग्रॉफिक डिवीडेंड में वैल्यू एड करती है। जिससे कि भारत की मानवपूंजी समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सके।

आजादी के बाद से प्रयास

हालांकि आजादी के बाद भारत में इस दिशा में बहुत से प्रयास हुए, कई कमीशन गठित किए गये यथा- राधाकृष्णन कमीशन, मुरलीधरन आयोग, राममूर्ति आयोग, कोठारी कमीशन आदि-इत्यादि।

लेकिन शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को हासिल नहीं कर सकी, जो देश की आवश्यकता थे। यही नहीं, 1968 में गठित कोठारी आयोग के अध्यक्ष डॉ. दौलत सिंह कोठारी ने प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रस्तावना में ही लिख दिया था कि दुर्भाग्य है, भारत की शिक्षा व्यवस्था भारत केन्द्रित न होकर यूरोप केन्द्रित है।

के. कस्तूरीरंगन और टीम

फिर तो इस नीति में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता थी। इस दृष्टि से 2015 के बाद से के. कस्तूरीरंगन और उनकी टीम ने लगभग ढाई लाख लोगों से अधिक के सुझाव और अद्वितीय परिश्रम से जो बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश के सम्मुख प्रस्तुत की उसका स्वागत एवं अभिनंदन करना चाहिए।

यह भी मान सकते हैं कि प्रथम शिक्षा नीति के लगभग 34 वर्षों पश्चात एक ठोस निर्णय के माध्यम से और आजादी के 70 वर्षों बाद अब भारत केन्द्रित शिक्षा नीति की शुरूआत होने जा रही है?

कोई भी नीति या नीतिगत निर्णय जब देश के सामने रखा जाता है तो उस पर वैचारिक एवं नीतिगत टिप्पणियां होना स्वाभाविक होती हैं। इसे एक परिपक्व लोकतंत्र की अभिव्यक्ति के रूप में ही देखा जाना चाहिए।

एक्सपर्ट के रूप में देखने की जरूरत

लेकिन एक एक्सपर्ट के तौर पर हमें यह देखने की आवश्यकता होती है कि यह शिक्षा नीति देश के भविष्य, देश की युवा मानव पूंजी में कितने नैतिक, कितने सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों का निर्माण करेगी और उसमें कितनी काम्पिटीटिव पोटैंशियल तथा कितनी वैज्ञानिकता लाएगी।

यह किस तरह की स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी को सुनिश्चित कर पाएगी? हम इसे यदि कुछ आयामों के साथ देखें ज्यादा बेहतर रहेगा।

क्रांतिकारी परिवर्तन

इसमें एक आयाम है 10+2+3 से 5+3+3+4 का एक क्रांतिकारी परिवर्तन। दूसरा है शिक्षा और शिक्षक के संदर्भ में ‘बाइ चांस’ नहीं बल्कि ‘बाइ च्वाइस’ का विकल्प जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में व्यापक सुधार आएगा।

तीसरा है उच्च शिक्षा में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम, चौथा है राष्ट्र और राष्ट्रीयता का बोध और पांचवा है ग्लोबल आउटरीच।

शिक्षा के पुराने पैटर्न यानि 10+2+3 के स्थान पर 5+3+3+4 को लाना एक क्रांतिकारी बदलाव जैसा है। इसमें शिक्षा के मतलब को समझते हुए बच्चे को पहले तीन वर्ष आंगबाड़ी/बालवाटिका/प्री-स्कूल के माध्यम से मुफ्त, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (अर्ली चाइल्डहुड केयर एण्ड एजुकेशन) दी जाएगी।

बाल्यावस्था से देखभाल

इसके बाद कक्षा एक और दो के लिए अध्ययन विद्यालय में करना होगा, जहां उन्हें आधारभूत विषयों रंगों, कला, अक्षर एवं अंक ज्ञान बस्ताविहीन एवं गतिवधि आधारित शिक्षा द्वारा दिया जाएगा।

कक्षा 3 से 5 में विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई करायी जाएगी और कक्षा 6 से 8 तक विषयों के साथ-साथ कौशल आधारित शिक्षा दी जाएगी।

कक्षा 9 से 12 तक विद्यार्थी को विषय चयन की स्वतंत्रता रहेगी जहां वह विज्ञान के साथ-साथ साहित्य या संगीत का अध्ययन भी कर सकेगा।

छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे। इसके लिए इच्छुक छात्रों को छठी क्लास के बाद से ही इंटर्नशिप का विकल्प दिया गया है।

रोजगारपरक शिक्षा

इस तरह से कौशल विकास आधारित शिक्षा युवाओं को प्राप्त होगी जिसके फलस्वरूप रोजगार की तलाश करने वाले युवा इन्टरप्रेन्योर बनने का मार्ग पर चलकर रोजगार पैदा करने में समर्थ बनेंगे।

नई शिक्षा नीति में पाश्चात्य मानसिकता और यूरोप अथवा पश्चिम केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था की बजाय भारत केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था को स्थापित करने के उद्देश्य से अंग्रेजी की श्रेष्ठता के मिथक से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया गया है।

भाषा का महत्व

इसमें भारतीय भाषाओं के महत्व को स्थापित करने के लिए त्रिभाषा फार्मूले की बात की गयी है जिसमें कक्षा पाँच तक मातृ भाषा/ लोकल भाषा में पढ़ाई करायी जाएगी।

जहाँ संभव हो, वहाँ कक्षा 8 तक इसी प्रक्रिया को अपनाया जाएगा। संस्कृत भाषा के साथ तमिल, तेलुगू और कन्नड़ भाषा में पढ़ाई पर भी जोर देने की बात इस नीति में की गयी है।

लेकिन साथ ही किसी विदेशी भाषा के अध्ययन की सुविधा विकल्प रहे, इस बात पर ध्यान दिया गया है।

स्ट्रक्चरल परिवर्तन

उच्च शिक्षा में भी स्ट्रक्चरल परिवर्तन किया गया है। इसमें आउटरीच पर विशेष ध्यान रखने के साथ-साथ वैश्विक परिदृश्य के साथ एकरूपता स्थापित करने की पहल की गयी है। पहले ऐसा नहीं था।

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4 वर्षीय स्नातक प्रोग्राम में यदि कोई विद्यार्थी किन्ही कारणों से एक वर्ष की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाता है तो उसका वह वर्ष बर्बाद नहीं होगा बल्कि वह क्रेडिट हो जाएगा और उसे सर्टिफिकेट मिल जाएगा।

यदि वह 2 वर्ष की पढ़ाई के बाद आगे जारी नहीं रख पाता है तो उसे डिप्लोमा मिल जाएगा और यदि 3 वर्ष तक पढ़ायी जारी रखता है तो डिग्री हासिल हो जाएगी। उसका क्रेडिट चौथे वर्ष तथा हायर स्टडीज में भी मिल सकेगा।

रिसर्च और नौकरी का ध्यान

जो छात्र रिसर्च करना चाहते हैं उनके लिए चार वर्ष का डिग्री प्रोग्राम होगा। जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वे तीन वर्षीय डिग्री प्रोग्राम ही करेंगे लेकिन जो रिसर्च की तरफ जाना चाहते हैं उन्हें एक वर्ष के एमए के साथ चार वर्ष के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी में प्रवेश मिल जाएगा, उन्हें एम.फिल करने आवश्यकता नहीं होगी।

उच्च शिक्षा में एक जो सबसे अहम बात लगती है, वह यह है कि अब कोई भी विद्यार्थी अपनी इच्छानुसार एक क्रेडिट कोर्स जैसे मानविकी या साहित्य में कर सकेगा।

गुणात्मक परिवर्तन

यह तरीका उच्च शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन लाने वाला साबित होगा। वास्तविकता यह है कि दूसरे विषय का ज्ञान पहले विषय को और ज्यादा मजबूत करता है।

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उदाहरण के तौर पर यदि विज्ञान का विद्यार्थी मानव विज्ञान या समाजविज्ञान न पढ़े तो उसका सोचने और समझने का नजरिया मानवीय नहीं बल्कि यांत्रिक अधिक होगा।

आज की सिविल सेवा में इस पक्ष की व्यापक कमी देखी जा सकती है क्योंकि अब लोग नैतिक मूल्यों का निर्माण नहीं करते बल्कि एक पेपर के तौर पर उसे पढ़ या रट लेते हैं।

मानवीय मूल्यपरक शिक्षा

वे देशज, सांस्कृतिकी, परम्परा और सामाजिक व मानवीय मूल्यों से परे यांत्रिक या बाजारवादी मूल्यों के प्रतिनिधि अधिक होते हैं। इसी वजह से सम्पूर्ण तंत्र यांत्रिक अधिक हो जाता है मानव मूल्यों से चलने वाली व्यवस्था कम।

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नयी नीति से विद्यार्थियों की प्रगति के साथ-साथ मानव मूल्यों का निर्माण होने की संभावनाएं बढ़ेंगी। नई शिक्षा नीति में एक घटक गवर्नेंस का भी है। इस नीति में किए गये प्रावधान के तहत तमाम प्रशासकीय व्यवस्थाओं को समाप्त करके उसे सिंगल सिस्टम के रूप में विकसित किया जाएगा।

सांस्कृतिकता के साथ वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर फोकस

कुल मिलाकर इस नई शिक्षा नीति में भारतीय सांस्कृतिक जड़ों को स्वीकार करने के साथ-साथ वैश्विक परिदृश्य में उपजने वाली प्रतिस्पर्धा को भी ध्यान में रखा गया है।

इसमें भारत के बोध को महत्वपूर्ण स्थान देकर स्थानीयता से राष्ट्रीयता तक सम्पूर्णता केन्द्रीय तत्व के रूप में रखा गया है लेकिन ग्लोबल आउटरीच और विश्व व्यवस्था के साथ सादृश्यता को भी महत्व दिया गया है।

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हम यह तो नहीं कह सकते यह शिक्षा नीति भारत में एक यूनिवर्सल मैन का निर्माण करेगी लेकिन यह शिक्षा में पुनर्जागरण अवश्य लाएगी क्योंकि यह निश्चित तौर पर यह ऐसी शिक्षा प्रणाली का विकास करेगी जो मनुष्य को मुनष्य बनाने वाली होगी, मशीन नहीं। एक ऐसा मनुष्य जिसके मूल में राष्ट्रीयता हो और जिसके मर्म में मानव मूल्य हों।

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