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केरल से दिल्ली केवल 3,000 कि.मी. दूर ही नहीं, कुछ और फर्क भी है!

कुछ समय पहले केरल के मुख्यमंत्री के किसी चाहने वाले ने सोशल मीडिया पर अपनी भावना व्यक्त की थी कि पिनयारी विजयन को देश का...

Ashiki
Published on: 12 April 2020 6:09 AM GMT

श्रवण गर्ग

नई दिल्ली: कुछ समय पहले केरल के मुख्यमंत्री के किसी चाहने वाले ने सोशल मीडिया पर अपनी भावना व्यक्त की थी कि पिनयारी विजयन को देश का प्रधानमंत्री बना दिया जाना चाहिए। सुदूर दक्षिण में एक छोटे से राज्य के 76-वर्षीय मार्क्सवादी मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बनाने के सुझाव को निश्चित ही ज्यादा ‘लाइक्स’ नहीं मिलनी थीं। उसे बिना ज्यादा खोजबीन के एक ‘पैड सुझाव’ केरल से भी मानकर खारिज कर दिया गया।

ऐसा तो होना ही था! कहां 21 करोड़ का उत्तर प्रदेश, सात करोड़ का गुजरात और कहां केवल साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाला केरल! राजनीतिक नेतृत्व के भक्ति-भाव वाले जमाने में केरल हमारी कल्पना के सोच से काफ़ी परे हैं। चर्चा और विज्ञापनों में इन दिनों केवल मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही हैं। पर हो सकता है कि जो कुछ आज विजयन कर रहे हैं, कल पूरे देश को करना पड़े।

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कागजी नहीं थे सुझाव

मुख्यमंत्रियों की बैठक के लिए केरल की ओर से कुछ ऐसे सुझाव दिए गए थे जो सिर्फ कागजी नहीं, बल्कि उन अनुभवों और तैयारियों से निकले थे जो 2018 तथा 2019 की जबरदस्त बाढ़ों के बचाव कार्यों और निपाह वायरस से सफलतापूर्वक निपटने से प्राप्त हुए थे।

राज्य को रेड, ग्रीन और येलो झोंस में बांटकर हजारों लोगों की जानें बचाई गईं थी। 29 जनवरी को कोरोना का पहला केस सामने आने के बाद केरल किसी समय पहले नम्बर पर था अब तीसरे क्रम पर है। केरल की कुल आबादी में 27 प्रतिशत मुस्लिम हैं।

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केरल की असली ताकत उसकी मजबूत सार्वजनिक चिकित्सा सेवाएं हैं, जिसमें छह हजार डॉक्टर, नौ हजार नर्सें और पंद्रह हजार अन्य सेवाकर्मी हैं। इनमें द्वितीय पंक्ति की सेवाएं जैसे आशा वर्कर, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आदि शामिल नहीं हैं। बताने की जरूरत नहीं कि केरल की नर्सें अगर देश की स्वास्थ्य सेवाओं में नहीं हों तो क्या हाल बनेगा।

केरल से बाहर रहती है बड़ी आबादी

राज्य के कोई सत्रह लाख लोग खाड़ी और अन्य देशों में काम करते हैं और उनकी आय पर केरल के पचास लाख निर्भर करते हैं। ये लोग नियमित आते-जाते रहते हैं। वहीं से पिछली बार लोगों की वापसी पर हालात बिगड़े थे। हवाई यातायात खुलने पर दोबारा बिगड़ सकते हैं। पर तैयारी भी पूरी है। एक लाख से ज्यादा अतिरिक्त बिस्तरों का इंतजाम किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार है।

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ये केवल केरल में ही संभव है

केरल जैसी आबादी और सम्पन्नता वाले और भी राज्य होंगे पर जिस एक चीज से आम आदमी की जिंदगी में फर्क पड़ सकता है। उसकी शायद अन्य जगहों पर कमी है। केरल का एक-एक नागरिक चाहे वह राज्य के भीतर हो या बाहर रहता हो वह राज्य की हरेक आपदा के साथ अपनी आत्मा से जुड़ा है। यह केवल केरल में ही सम्भव था कि 93 वर्ष के पति और उनकी 88 वर्ष की पत्नी को कोरोना से स्वस्थ कर दिया गया। राज्य में इस समय कोई दो लाख लोग स्वास्थ्य कर्मियों की सतत निगरानी में हैं।

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प्रधानमंत्री की शनिवार को मुख्यमंत्रियों के साथ हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बाद इस तरह के संकेत निकले हैं कि कोरोना संकट से निपटने के लिए केरल मॉडल पर सहमति बन रही है। अगर ऐसा होता है तो कम से कम कोरोना को लेकर तो राहुल गांधी को भी प्रधानमंत्री से शिकायतें कुछ कम हो जाएंगी।

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