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मिले फुटपाथ पर चलने का हक!

Right to Walk on the Pavement: अगर आज महाभारत वाले यक्ष ने पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर से सवाल पूछा होता कि : “भूलोक में सर्वाधिक दुखी मानव कौन है ?” तो ! वेदव्यास-रचित इस महाभारत के वनपर्व के अध्याय 313 की प्रश्नोत्तरी-स्टाइल में कुंतीपुत्र ज्येष्ठ पांडव जवाब देते : “भारत के फुटपाथ पर चलता दो पैरोंवाला इंसान।”

K Vikram Rao
Published on: 1 Sept 2023 2:13 PM IST
मिले फुटपाथ पर चलने का हक!
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Right to Walk on the Pavement SC Decision (Photo: Social Media)

Right to Walk on the Pavement: अगर आज महाभारत वाले यक्ष ने पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर से सवाल पूछा होता कि : “भूलोक में सर्वाधिक दुखी मानव कौन है ?” तो ! वेदव्यास-रचित इस महाभारत के वनपर्व के अध्याय 313 की प्रश्नोत्तरी-स्टाइल में कुंतीपुत्र ज्येष्ठ पांडव जवाब देते : “भारत के फुटपाथ पर चलता दो पैरोंवाला इंसान।” यक्ष भी तत्काल सहमत हो जाता और खुश होकर फिर से अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव के प्राण लौटा देता। कारण ? आज मृत्युलोक में सर्वाधिक शोकाकुल, संतप्त, त्रस्त, अतिउत्पीड़ित प्राणी वही है। फुटपाथ पर बचते, गिरते, पड़ते, धकियाते ये राहगीर बेचारे !

इसी परिवेश में 13 जुलाई, 2023 को उच्चतम -न्यायालय के दो-सदस्यीय खंडपीठ के न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल ने एक अति महत्वपूर्ण फैसले में सुविचारित आदेश दिया : “फुटपाथ का इस्तेमाल लोगों के पैदल चलने के अलावा किसी अन्य गतिविधियों के लिए करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।” शीर्ष न्यायालय ने दिल्ली मेट्रो के डिपो बनाने के लिए अधिग्रहीत जमीन पर बने फुटपाथ पर व्याप्त अतिक्रमण के खिलाफ डीडीए को आवश्यक कार्यवाही करने का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की थी।

दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और मेट्रो ट्रेन डिपो से सटे एक फुटपाथ का इस्तेमाल पैदल यात्रियों के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए करने की अनुमति नहीं दे सकते। भूमि-अधिग्रहण से संबंधित एक मामले पर निर्णय देते हुये मेट्रो डिपो की तस्वीरों को कोर्ट ने देखा और पाया कि इस जगह से सटे फुटपाथ के एक हिस्से पर एक “कार क्लिनिक” और अन्य विक्रेताओं ने कब्जा कर लिया हैन्यायमूर्ति-द्वय भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के 2016 के फैसले के खिलाफ डीडीए द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहे थे। इकसठ-वर्षीय न्यायमूर्ति संजय करोल काफी अनुभवी हैं। उन्होंने पटना, अगरतला और शिमला के फुटपाथों पर राहगीरों की यातनायें देखीं हैं। वे इन तीनों राज्यों में कार्यरत थे। पटना हाईकोर्ट के तो वे मुखिया रहे। तिरसठ-वर्षीय न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका मुंबई की गलीच मार्गव्यवस्था के भुक्तभोगी होंगे। बेंगलुरु के भी, जहां वे कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे।

इस आलेख की बीज-बात यही है कि मजारों, मंदिरों, खोंचेवालों, पार्किंग ड्राइवर वगैरह को जब तक नियम-पालक नहीं बनाया जाएगा, ऐसी मानव यातना मृत्युलोक पर बनी रहेगी ही। करीब हर राज्य में, खासकर उत्तर प्रदेश, केरल, गुजरात आदि में शासकीय और न्यायिक आदेश के बावजूद सार्वजनिक स्थानों पर अवैध-कब्जे बरकरार हैं। इस समस्त प्रकरण में दक्षिणी सागरतटीय राज्य केरल का उल्लेख पहले हो।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित इस प्रदेश में कानूनी निर्देश था कि अब कोई भी नयी मस्जिद निर्मित नहीं होगी। यहां मुस्लिम आबादी 26.56 प्रतिशत है। हिन्दू 54.73 फीसदी तथा ईसाई 18.38 हैं। इसका संदर्भ है कि एक इस्लामी संस्था नुरूल इस्लाम संस्कारिक संगठन ने मुस्लिम-बहुल मल्लपुरम जनपद के नीलाम्बूर क्षेत्र में एक वाणिज्यी भवन को मस्जिद के रूप में अधिकृत कर दिये जाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने कुरान की आयात का हवाला देकर अनुरोध किया है कि हर अकीदतमंद मुसलमान को मस्जिद सुगमता से उपलब्ध हो जाना चाहिये। इसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।

भाजपा-शासित उत्तर प्रदेश में फुटपाथ पर बने मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश (12 मार्च 2021) जारी कर हिन्दुत्ववादी योगी आदित्यनाथजी ने अपनी सेक्युलर विश्वसनीयता जाहिर कर दी थी। धर्म के नाम पर अतिक्रमण खत्म करने का उनका यादगार निर्णय था। अर्थात नालों पर से शिवालों की भांति, चौराहों पर से मजारें भी हटनीं चाहिये। धर्म की आड़ में धंधा करने वाले भूमाफिया खत्म हों। न्यायालयों के कई आदेश हैं कि सार्वजनिक स्थलों पर धर्मसंबंधी निर्माण कार्य की अनुमति नहीं होगी। मजहब के नाम पर भावनात्मक जोर-जबरदस्ती से सरकारी जमीन पर गैरकानूनी कब्जा करने वाले भूमाफिया लोग जनास्था का व्यापारीकरण करते हैं। भारत का प्रत्येक पैदल चलता व्यक्ति इस तथ्य का गवाह है। लखनऊ में कई नालों को पाटकर शिवाले बनाए गए हैं, जहां पुजारीजी का मुफ्त का मकान, चरस गांजे का व्यापार, चढ़ावे का माल अलग अर्थात् कुल मिलाकर बिना पूंजी लगाए लाभ ही लाभ है !

इस्लामी जमात को भी अब अधिक जागरूक होना चाहिए ऐसे मजहबी सौदागरों से, जो फुटपाथ पर मजार के नाम पर कब्जा करते हैं। ऐशबाग की पाक कब्रगाह की जमीन पर काबिज होकर दुकानें खोल दिये। मुनाफा कमा रहे हैं। उस रकम को बैंक में जमाकर उसके सूद से तिजारत बढ़ाते हैं। कुराने पाक में कहा गया है कि रिबा (ब्याज) हराम है, फिर भी इन मुसलमानों कोई खौफ नहीं होता। अत: यदि आस्था और अकीदे की आड़ में अतिक्रमण खत्म हो जाये तो नगरों का सौष्ठव निखर उठेगा। इसलिये इन नरक (नगर नहीं) से त्राण हेतु योगी सरकार को लोग याद रखेंगे।

राजधानी लखनऊ का एक और वाकया है जिससे मैं जुड़ा रहा था। प्रतिभा सिनेमा के पास सचिवालय के लिये ही एक इमारत बनी है। नाम है बापू भवन! पुराना रायल होटल था। नया भवन बना तो आगे प्रवेश मार्ग पर एक मजार बन गयी। पूर्वी छोर पर एक शिवालय बना है। इसे मैंने खुद कई बार तुड़वाया था। मगर उस माह मैं लखनऊ के बाहर था। मंदिर चुपचाप बन गया। तब प्रमुख सचिव थे श्री नृपेन्द्र मिश्र। मेरी शिकायत पर तहकीकात शुरू हुयी। मिश्रजी जो नरेन्द्र मोदी के प्रमुख सचिव भी रहे का तर्क बड़ा सटीक था: “मंदिर बनवाने वाले की ही सरकार है अतः सड़क की सुविधाहेतु वे अतिक्रमण को हटायें तो उचित ही होगा।” मगर आजतक यह शिवालय टूटा नहीं। बल्कि फैलता ही गया। राहगीरों की व्यथा और असुविधा बढ़ती ही गयी। अब आवश्यकता है कि स्वयं भोले शंकर ही अवतार लें। इन मजहबी डाकूओं को दण्डित करें। शुरुआत ज्ञानवापी और ईदगाह (मथुरा) से ही हो।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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K Vikram Rao

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