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भ्रष्टाचार की दास्तान
बहुत गम्भीर आरोप मढ़ा है नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर (7 फ़रवरी) लोक सभा में। इस बयान का प्रभाव चंद महीने बाद होने वाले सत्रहवीं लोकसभा के आम चुनाव पर पड़ेना तय है। मसलन दसवीं लोक सभा के निर्वाचन में बोफोर्स की खरीद के विवाद से राजीव गांधी हार गये थे। उच्चतम न्यायालय ने हालांकि पाया कि राफेल जहाज के क्रय में सब सही है।
बहुत गम्भीर आरोप मढ़ा है नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर (7 फ़रवरी) लोक सभा में। इस बयान का प्रभाव चंद महीने बाद होने वाले सत्रहवीं लोकसभा के आम चुनाव पर पड़ेना तय है। मसलन दसवीं लोक सभा के निर्वाचन में बोफोर्स की खरीद के विवाद से राजीव गांधी हार गये थे। उच्चतम न्यायालय ने हालांकि पाया कि राफेल जहाज के क्रय में सब सही है। मगर राहुल गांधी ने (8 फरवरी) दुहराया कि रक्षामंत्री ने तथ्यों को छिपाया है। किस्सा अजीब हो गया है। कहाँ समाप्त होगा? नहीं पता।
सच की खोज के लिये राजग और संप्रग सरकारों के रक्षा सौदों में विगत दशकों के ट्रैक रिकॉर्ड को परख लें। तह तक जाना ही उचित होगा। मसलन करगिल युद्ध (1991) में तत्कालीन राजग रक्षामंत्री जार्ज फर्नान्डिस को सोनिया गांधी ने कफन चोर कहा था। शहीदों के शव को सीमा से उनके जन्मस्थल लाने के लिये ताबूत आयात किये गये थे। लागत पड़ी थी पौने दो लाख डालर, पाँच सौ खरीदे गये थे। संसद को कांग्रेस विपक्ष ने चलने नहीं दिया था। जार्ज को बोलने नहीं दिया गया था। आम आदमी के दिल में रक्षा मंत्री के प्रति घृणा पैदा कर दी गयी थी। कफन की चोरी? तौबा, तौबा ! प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सी.बी.आई. की जाँच करायी।
रपट आने के पूर्व ही वाजपेयी की सरकार चली गई। सरदार मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री चुने गये। सोनिया गांधी राजमाता और मालकिन बन गईं। व्यापक और घनी तहकीकात के बाद सीबीआई ने मनमोहन सिंह सरकार को बता दिया कि ताबूत की खरीदी वाजिब दामों पर हुई थी। अंतिम रपट लगा दी। इसी जाँच पर उच्चतम न्यायालय ने (13 अक्टूबर 2015) को निर्णय दिया कि भ्रष्टाचार का मामला नहीं बनता है तथा पूर्व रक्षामंत्री को निर्दोष करार दिया। सोनिया गांधी मौन रह गईं।
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जार्ज फर्नान्डिस पर एक और आरोप लगा था। इसराइल से बराक मिसाइल की खरीदी में। आरोप था कि कमीशन खायी गयी थी। मनमोहन सिंह सरकार ने सी बीआई जाँच बैठा दी। अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी जोड़ दिया गया था। सीबीआई ने चार्जशीट दर्ज करायी थी (10 अक्टूबर 2006 को), जब तत्कालीन रक्षामंत्री, केरल के सर्वाधिक ईमानदार कांग्रेसी ए के एंथोनी थे।
कांग्रेस का इल्जाम था कि प्रत्येक हेलीकाप्टर (262 खरीदे गए थे) पर जार्ज फर्नान्डिस ने कमीशन निगली है। जाँच सात साल तक चली। उस बीच मनमोहन सिंह दोबारा सत्ता पर विराजे थे। उनके रक्षामंत्री एंथोनी ने (23 दिसम्बर 2013) घोषणा की कि कमीशन खाने का सबूत नहीं मिला। जार्ज निर्दोष हैं। सीबीआई ने जाँच बंद कर दी। इस बीच मानसिक पीड़ा से जार्ज रुग्ण हो गये कि संभल नहीं पाये। निधन हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी को भी स्मृति लोप हो गया। वे भी इहलोक छोड़ चले।
रक्षा सौदों में निरपराध तो वाजपेयी सरकार दो बार साबित हो गई। वह भी कांग्रेसी सरकार द्वारा नियंत्रित सीबीआई की जाँच के बाद। गनीमत है कि कोयला घोटाला, टू-जी घपला, बोफोर्स कमीशनखोरी, आदर्श गृहयोजना की साजिश, कुद्रेमुख लौह अयस्क की ईरान को निर्यात में रिश्वतखोरी, राष्ट्रमंडल खेल (सांसद कलमाड़ी) घोटाला, सूची लम्बी थी। सबूत भी मिले। किन्तु त्रासदी यही है कि इन घपलों में सोनिया, मनमोहन सिंह किसी भी अपराधी को सजा नहीं दिला पाये।
राजग और संप्रग के घोटालों की तुलना करना सहज है। वे सब हाल ही के हैं, जबसे सोनिया गांधी ने असली सत्ता पायी और संप्रग की अध्यक्षा बनीं। मगर भारत के वोटरों का अधिकार है कि वे जानें कि राष्ट्रीय सुरक्षा सरीखे संवेदनशील और आवश्यक क्षेत्र में नेहरू–सोनिया राज में क्या-क्या हुआ था। इससे शुचिता पुनर्स्थापित होगी। आज जबकि चीन और पाकिस्तान गम्भीर सैनिक संकट सरजा रहे हैं, यदि सीमा पर तैनात सैनिक समझें कि वे जान दे रहे हैं और दिल्ली में सत्तासीन लोग मलाई काट रहे हैं तो वे क्या युद्ध कर सकेंगे?
तब भारत नया नया, युगों के बाद स्वाधीन हुआ था। लन्दन-स्थित भारतीय दूतावास में जवाहरलाल नेहरु के परम सखा, विश्वस्त और धाकड़ राजनेता वी.के. कृष्ण मेनन उच्चायुक्त थे। भारतीय सेना को जीप गाड़ी की तीव्र आवश्यकता पड़ी। मेनन ने (1948 में) 1500 जीप अस्सी लाख रूपये में खरीदे (तब गेंहू एक रूपये में चालीस सेर मिलता था)। हालांकि ब्रिटेन ने केवल 155 जीप भेजे थे। भुगतान पहले कर दिया गया था। मेनन कोई बचाव नहीं कर पाये और भारतीय सेना वाहन के अभाव में पैदल ही रही। तुर्रा यह कि दोषी मेनन को नेहरू ने अपना रक्षामंत्री (3 फ़रवरी 1956) नियुक्त कर लिया। गुनहगार को पुरस्कृत कर दिया। तभी महात्मा गांधी के निजी सचिव रहे यू. वी. कल्याणन ने कहा था कि भ्रष्ट (मेनन) को अपना काबीना मंत्री बनाकर प्रधानमंत्री नेहरू ने दुराचारी को सम्मानित कर दिया।
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नेहरू राज का सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा तो अक्टूबर 1962 में पूर्वोत्तर सेना कमांड के साथ हुआ। कम्युनिस्ट चीन की आधुनिक शस्त्रों से लैस जनमुक्ति सेना ने अरुणांचल और अक्साई चीन (लद्दाख) पर हमला बोल दिया। नेहरू ने अपने रिश्तेदार जनरल बृजमोहन कौल को आदेश दिया कि “चीनी घुसपैठियों को खदेड़ दो।” और स्वयं श्रीलंका किसी सम्मलेन में शिरकत करने रवाना हो गये। इन जनरल कौल को रणभूमि का अनुभव नहीं था। केवल माल सप्लाई कमान में आजीवन नौकरी बजाते रहे। क्या कर पाते वे? आज यह आम बात है कि चीन ने भारत को न केवल पराजित किया वरन अड़तीस हजार वर्ग किलोमीटर हमारा भूभाग भी कब्जिया लिया। तभी लता मंगेशकर ने मशहूर गाना (कवि प्रदीप की पंक्तियाँ) “ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी” गाया था। नेहरू ने मान लिया और केवल आँसू टपकाये।
डॉ. राममनोहर लोहिया ने तब माँग की थी कि नाकाम वजीर-ए-आजम को त्यागपत्र दे देना चाहिये। आज के कांग्रेसी नेता जिन्हें नरेंद्र मोदी राफेल जहाज खरीदी में कमीशनखोर लगता है, को चीन से पराजय के कारण खोजने चाहिए। जनरल हेंडरसन ब्रुक्स और गोरखपुर के जन्मे परम वीरचक्र विजेता जनरल प्रेमेन्द्र सिंह भगत की संयुक्त जाँच रपट के अनुसार सूती मोज़े और साधारण स्वेटर पहन कर भारत सैनिक बर्फीले हिमालयी सीमा पर चीन से लड़े थे। कई शहीद हुए। प्रधानमन्त्री नेहरु ने बजाय अपना त्यागपत्र देने के केवल रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन को हटा दिया।
लोकसभा में एक प्रश्न पूछा गया था कि क्या कम्युनिस्ट चीन द्वारा हथियाई भूमि को मुक्त करा लिया गया है? तब विपक्ष के एक सांसद ने व्यंग्य किया कि “बर्खास्त रक्षा मंत्री (मेनन) के अवैध कब्जे से उनका दिल्ली वाला बंगला भी नेहरू सरकार वापस नहीं ले पायी है।” आज भी तिब्बत से सटी भारतीय भूमि का बहत्तर हजार वर्ग मील का भाग चीन के कब्जे में है। कैलाश-मानसरोवर जाने में व्यवधान होता है। अपनी तीर्थ यात्रा पर राहुल गांधी ने स्वयं देखा होगा कि यह उनके दादी के पिता के शासनकाल की विरासत है।
नरेंद्र मोदी द्वारा राहुल गांधी की पार्टी पर भारतीय वायुसेना को कमजोर करने के आरोप में पर्याप्त दम है। भारतीय वायुसेना के कई चीफ एयर मार्शल लगातार कह चुके हैं कि उनके जवानों की मारक क्षमता पर्याप्त नहीं है। इसीलिये फ्रांस से बमवर्षक जहाज का करार हुआ है। राफेल जहाज से वायुसेना की ताकत बढ़ी है। मगर कांग्रेस विपक्ष ने सेना का मनोबल गिराने और उनके शौर्य को कमतर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सर्जिकल स्ट्राइक (28 सितम्बर 2016) के विषय तक पर संदेह पैदा किया। उरी सेक्टर की महत्ता पर ध्यान नहीं दिया। नतीजन सेना को जलील किया गया।
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हर सेना विशेषज्ञ जानता है कि वायुसेना का प्रत्येक युद्ध में निर्णायक रोल होता है। पाकिस्तान से हुए तीनों युद्ध में भारतीय वायुसेना का करतब आकाशीय आक्रमण से दिखा।
अतः समग्रता से विश्लेषण करें तो भारतीय सैन्य नीति पर कांग्रेस के हल्केपन से संदेह होता है कि वोट पाने के लिये सैनिक मुद्दों को भी चुनाव में हथियार बना सकते हैं। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथ विपक्ष कठपुतली बन गया है। यह राष्ट्रघाती होगा। तो लगता है सेना फिर एक बार आम भारतीय वोटर की सोच पर प्रभाव डालेगी। जैसा 1989 में हुआ था । तब राहुल के पिताश्री को सत्ता से हटाया गया था।
के विक्रम राव