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नशे की भयावह गिरफ्त में युवा, रोंगटे खड़े कर देगी ये रिपोर्ट

मादक पदार्थों के सेवन का दुष्प्रभाव अत्यन्त व्यापक और गंभीर है। जहाॅं यह मनुष्य की आर्थिक क्षति का प्रमुख कारक है वहीं घातक रोगों की उत्पत्ति, मानसिक विकार, पारिवारिक व सामाजिक विघटन, शारीरिक क्षमता तथा कार्यक्षमता में क्षीणता, चारित्रिक पतन, विविध आपराधिक प्रवृत्ति का जनक, प्रजनन शक्ति का ह्नासकारक भी है।

Rahul Joy
Published on: 22 Jun 2020 7:35 PM IST
नशे की भयावह गिरफ्त में युवा, रोंगटे खड़े कर देगी ये रिपोर्ट
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आनन्द उपाध्याय ’सरस’

नई दिल्ली: प्रख्यात समाज शास्त्री अरस्तु का कथन था कि, ’मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है’। यह कथन भी सही है कि ’’मनुष्य आदतों का पुतला है’’। बुरी आदत उसे अच्छी आदत की अपेक्षा सुगमतापूर्वक आकर्षित करती है। पाशविक प्रवृत्ति मनुष्य को बुराईयों की ओर उन्मुख करती है। विविध बुराईयों की भांति मादक पदार्थों का सेवन और नशाखोरी भी एक बुराई है। यह प्रवृत्ति मौजूदा समय में समूचे विश्व को अपने बर्बर शिकंजे में ले चुकी है। भारत में इसकी गिरफ्त में आज सर्वाधिक संख्या किशोरों और युवाओं की है जो कि एक घातक स्थिति है। भारत मादक द्रव्यों की गिरफ्त में आज गंभीर रूप से संक्रमित हो चुका है।

श्रमिक वर्ग में वीभत्स रूप में फेल चुकी

श्रीमद्भगवत गीता में एक स्थान पर वर्णित है ’बुद्धि नाशात् प्रणश्यति’ अर्थात् बुद्धिनाश विनाश है। नशाखोरी के चलते नशापान करने वाले की बुद्धि विनिष्ट हो जाती है, उसे उचित-अनुचित का भान नहीं रहता, व्यक्ति मान-सम्मान को ताक में रखकर मादक पदार्थों में लिप्त होकर अपनी अन्तरात्मा की हत्या कर मानव से दानव में परिवर्तित होने लगता है।एरिस्टोेक्रेट तबके से लेकर झोपड़पट्टी और विशेषकर श्रमिक वर्ग में यह वीभत्स रूप में फेल चुकी है। मादक पदार्थों का सेवन निर्धन तबकों को न केवल आर्थिक रूप से और कंगाल बना रहा है वरन् उनकी शारीरिक और मनःस्थिति दोनों पर डाका डाल रहा है।

अनुसूचित जातियों, जनजातियों में यह सामाजिक बुराई के तौर पनप कर सामाजिक विघटन का प्रमुख कारक बन रहा है। मादक पेय इन लोगों की कार्यशक्ति को भी क्षीण करता जा रहा है। नशीली दवाओं का दुरूपयोग करोड़ो लोगों में स्वास्थ्य, गरिमा और उम्मीदों के लिए गंभीर खतरा बन पड़ा है। सर्वथा चिन्तनीय पहलू तो यह है कि मादक पदार्थों का प्रयोग व्यक्ति व समाज की जीवनशक्ति और स्वास्थ्य को ही हानि नहीं पहुॅंचाता अपितु देश के सामाजिक-आर्थिक विकास पर भी प्रतिकूल असर डालता है।

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यह जगह बने प्रमुख केंद्र

मौजूदा दौर में सीमापार पड़ोसी देशों यथा चीन, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका तथा दूरस्थ अफगानिस्तान आदि के जरिये मादक पेयों और पदार्थों का अवैध आवागमन तथा असीमित व्यापार राष्ट्र के लिए एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है। देश के श्रमजीवी व खुशहाल राज्य के रूप में प्रसिद्ध पंजाब प्रान्त, आज सीमावर्ती पाकिस्तान से की जा रही मादक द्रव्यों की तस्करी के जरिये नशाखोरी की भीषण गिरफ्त में आ चुका है। निश्चय ही यह स्थिति राष्ट्रीय मानवशक्ति के शोचनीय क्षरण के रूप में सामने आई है। भारत के पूर्वोत्तर राज्य तथा नेपाल सीमा से लगे उत्तर प्रदेश और बिहार के हिस्से भी मादक पदार्थों की अवैध आवक का प्रमुख केन्द्र बन गये हैं।

तम्बाकू उत्पाद देश के मानव संसाधन के लिए अभिशाप बन चुका

राष्ट्रपिता गांधी मादक पदार्थों के सेवन को राष्ट्र के विकास के लिए बहुत बड़ा गतिरोध व नैतिक दृष्टि से भयंकर पाप मानते थे। विविध मादक पदार्थों के सेवन के साथ ही मद्यपान और तम्बाकू तथा तम्बाकू उत्पादों का बढ़ता प्रचलन भी देश के मानव संसाधन के लिए अभिशाप बन चुका है। देश के सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय, आई.आई.टी., आई.आई.एम. तथा चिकित्सा विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्र-छात्राएॅं मद्यपान, तम्बाकू उत्पादों के सेवन ही नहीं अपितु घातक मादक द्रव्यों के नियमित प्रयोग के आदी होते जा रहे हैं। निश्चय ही यह प्रवृत्ति देश के लिए शर्मनाक ही नहीं अपितु सर्वथा चिन्तनीय स्थिति कही जा सकती है।

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देश के विभिन्न हिस्सों में बेरोकटोक सेवन किये जा रहे

वर्तमान समय में समाज में मादक पदार्थों की एक व्यापक श्रृंखला मौजूद है। प्राचीन काल से प्रयोग किये जाने वाले पारम्परिक मद्यपेयों के अलावा आज अनेक घातक व विषैले प्रवृत्ति वाले मादक पदार्थों की मौजूदगी ने स्थिति को अत्यन्त भयावह बनाकर रख दिया है। यूरोपीय व अफ्रीकन देशों में प्रचलित यह घातक मादक पदार्थ आज धड़ल्ले से देश के विभिन्न हिस्सों में बेरोकटोक सेवन किये जा रहे हैं। आज देश में जिन प्रमुख मादक पदार्थों की श्रृंखला बहुतायत में प्रयोग की जा रही है उनमें से प्रमुख हैं: नार्कोटिक्स, हैल्यूसिनोज्ेन्स स्टिमुलेंट्स (उत्तेजक तत्व), सेडेट्व्सि (शामक), मार्जुआनास, अफीम, हेरोईन, बार्बिटुरेट्स एवं ऐन्फाटेमाइन्स।

इनके अतिरिक्त विविध पदार्थों से बनने वाली शराब, ताड़ी तथा वनवासी और आदिवासी समुदाय वाले क्षेत्रों में प्रयोग किये जाने वाले कतिपय अन्य मादक पेय पदार्थ भी प्रचलन में हैं। प्रकाशित सर्वेक्षण के मुताबिक ब्राउन शुगर नामक अत्यन्त घातक नशीला पदार्थ आज देश के मेट्रो शहरों में भारी मात्रा में कथित रूप से नशे के लिए प्रयोग किया जा रहा है। देश के महानगरों में एक भारी वर्ग विशेषकर युवा समुदाय इसकी गिरफ्त में आ चुका है। इसकी संक्रामकता महानगरों से होते हुए अब देश के मझोले शहरों तक ही नहीं अपितु कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों तक भी पहुॅंचने लगी है।

देश के कस्बों और गांव तक में भी युवा अफीम, गांजा, चरस, स्मैक, हेराईन, कोकीन, एफ्रेडाइन, एलएसडी को न सिर्फ पहचानने लगे हैं वरन् इसका सेवन भी कर रहे हैं, जो कि निश्चय ही एक घातक स्थिति है।

इंजेक्शन के रूप में हो रहा प्रयोग

घातक मादक पदार्थों की लत ने समूचे भारतीय परिवेश को निठल्लेपन और शारीरिक तथा मानसिक पंगुता की ओर ढकेलना शुरू कर दिया है। इन पदार्थों पर प्रारंभिक लत अन्ततः इन पर स्थायी निर्भरता के रूप में परिवर्तित हो जाती है। आज की भौतिकवादी सामाजिक मनोवृत्ति के चलते बेरोजगार ही नहीं अपितु कामकाजी और युवा समुदाय भी कथित ’स्ट्रेस’ व तथाकथित ’एन्जाइटी’ को दूर करने के दावे के साथ अपने वर्तमान को भूल जाने और निश्चिंतता प्राप्ति जैसे छद्म उद्देश्यों की काल्पनिक प्राप्ति के लिए नशाखोरी की गिरफ्त में अपने को डुबोता जा रहा है। वह यह भूल जाता है कि यह क्षणिक व स्वप्निल सुख नितान्त अस्थायी होता है। नशे के प्रभाव के उतरते ही व्यक्ति पुनः उसी दुःख, तनाव और मूल मनःस्थिति में पहुॅंच जाता है। नशाखोरी जीवन की सच्चाई से पलायन करने मात्र का ही अभीष्टबनकर रह जाता है।

नार्कोटिक्स के प्रयोग से मनुष्य की चेतना अस्थायी रूप से शून्य हो जाती है, इस श्रेणी में अफीम, मार्फिया तथा हेरोइन इत्यादि प्रयोग में आते हैं। मार्फिया को रासायनिक क्रिया के जरिये और घातक स्वरूप देकर ब्राउन शुगर में परिवर्तित कर दिया जाता है। जिसे मुॅंह से अथवा इंजेक्शन के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। हेरोइन भी इसी भांति नशाखोरों द्वारा प्रचलन में है। मार्जुआना भी एक विशेष पौधे से प्राप्त किया जाता है जिसे आम बोलचाल की भाषा में गांजा कहा जाता है।

इसी से हशीश तत्व निकालकर नशे के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे नशाखोरी के लिए सिगरेट अथवा चिलम में पिया जाता है। उपरोक्त घातक मादक पदार्थ जहाॅं मानसिक अवसाद को बढ़ाने का प्रमुख कारक बनते हैं वहीं इनके अनवरत प्रयोग से फेफड़ों के संक्रमण, मतिभ्रम, दृष्टिभ्रम ही नहीं अपितु कालान्तर में टीबी और एड्स जैसे अन्य घातक रोग तक होने की प्रबल संभावना बन जाती है।

नशाखोरी के लिए प्रयोग में आने वाला एक घातक हैल्युसिनोजेन्स है

युवा वर्ग में एल.एस.डी. भी नशाखोरी के लिए प्रयोग में आने वाला एक घातक हैल्युसिनोजेन्स है जो कि एक प्रकार की फफॅूंदी के जरिये निकाला जाता है। इसका अभ्यस्त नशे की दशा में एक विलक्षण सुख, उत्तेजना तथा भय दोनों की मिश्रित मनोदशा से गुजरता है। प्रभाव अधिक होने पर हिंसा या फिर आत्महत्या तक की परिस्थिति बन सकती है। सेडेटिक्स श्रेणी के मादक पदार्थ प्रायः नींद लाने की आशा में प्रथमतः ग्रहण किये जाते हैं, लेकिन अन्ततः आदत पड़ जाने पर यह भी घातक प्रभाव डालते हैं।

मेट्रो शहरों से महानगरों और अब मझोले शहरों तक वैध व अवैध ’पब’ खुलने से युवाओं में शराबखोरी का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। इन पबों में शराब पीकर देर रात युवक-युवतियाॅं नशे की हालत में ही दुपहिया या चार पहिया गाड़ी चलाते हैं फलस्वरूप आये दिन भीषण दुर्घटना तथा रोड-रेज की घटनाएॅं सामने आती हैं। आंकड़े बताते हैं कि 40 प्रतिशत मार्ग दुर्घटनाएॅं नशे में वाहन चलाने से होती हैं। टी0वी0 चैनलों, समाचार पत्र व पत्रिकाओं में कभी सोडा वाटर तो कभी मिनरल वाटर की आढ़ लेकर नशाखोरी का ऐसा प्रचार दिखलाई पड़ता है गोया शराबखोरी साहस और मर्दानगी का जैसे पर्याय हो!

राजस्व की कमाई जान पर भारी पड़ रही

बीते दिनों अनेक बार सुप्रीमकोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट तथा अन्य राज्यों की अदालतों ने भी समय-समय पर शराब की बिक्री व उसके व्यापार को प्रोत्साहित करने वाले विज्ञापनों को गंभीरता से लेते हुए इन पर नाखुशी जाहिर की है। मगर फिर भी वही ढाक के तीन पात की स्थिति पूर्ववत बनी हुई है। राजस्व की कमाई जान पर भारी पड़ रही है। एक अन्य प्रकरण में सुप्रीमकोर्ट ने देश के युवाओं में सिगरेट पीने की तेजी से बढ़ती लत पर भारी अफसोस जताया है। सिगरेट के पैकेट पर वैधानिक चेतावनी दर्ज होने के बावजूद युवा धड़ल्ले से इसका सेवन कर रहे हैं।

आये दिन कभी पुलिस तो कभी नार्कोटिक्स विभाग के कर्मचारी देश के विभिन्न हिस्सों सहित पूर्वोत्तर प्रान्तों, दिल्ली व एन0सी0आर0, पश्चिम उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से लगे राज्यों के जिलों में मादक पदार्थों की तस्करी का खुलासा कर चुके हैं।

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देश में 6़ करोड़ से भी ज्यादा लोग डिप्रेशन का शिकार

इन खुलासों में तस्करों के एजेण्टों ने सामान्यजन को ही नहीं वरन् आई.आई.टी., आई.आई.एम, प्रसिद्ध चिकित्सा विश्वविद्यालयों और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के छात्रों तक को घातक नशे के साधनों को मुहैया कराने की भयावह स्वीकारोक्ति भी की है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मौजूदा समय देश में 6़ करोड़ से भी ज्यादा लोग डिप्रेशन व एन्जाइटी के शिकार हो चुके हैं।जिनमें अधिकांश संख्या युवक-युवतियों व किशोरवय जमात की है। शहरों के मेडिकल स्टोर डाक्टर के पर्चे के बिना भी कमाई के चक्कर में बेधड़क शेड्यूल-एच की दवाओं की खुलेआम बिक्री करते हैं। इन दवाओं का प्रयोग युवा नशे के लिए वैकल्पिक उपाय के तौर पर करते हैं।

यह विडम्बना है कि मनुष्य की बुरी आदतों के कारण देश में अरबों रूपये का नशे का व्यापार फल-फूल रहा है। तम्बाकू व इसके विविध उत्पादों का बिजनेस दिन दूना रात चैगुना बढ़ा है। प्राइमरी के बच्चे तक गुटखा खा रहे हैं। महिलायें भी इसकी गिरफ्त में आ चुकी हैं। विश्व स्वाास्थ्य संगठन के अनुसार सिर्फ धुम्रपान के कारण हर मिनट 10 लोग मौत के मुॅंह में समा जाते हैं। बड़े शहरों में शुरू हुई ’हुक्का बार’ की प्रवृत्ति आज छोटे शहरों तक प्रसारित हो चुकी है।

इन हुक्का बार में परिपक्व युवा ही नहीं अपितु स्कूली लड़के-लड़कियाॅं धुएॅं के कस के साथ ही हुक्के की गुड़गुड़ाहट का घातक मजा लेते हैं। महानगरों में नशाखोरी का नया अड्डा ’रेव’ के रूप में पनपता जा रहा है। इन रेव के अन्दर तीखा, कर्कस म्यूजिक बजता है जहाॅं नशे में डूबे युवा जोड़े देर रात तक इन नशा घरों में धींगामुश्ती में लिप्त रहते हैं।

मादक पदार्थों के सेवन का दुष्प्रभाव अत्यन्त व्यापक और गंभीर

मादक पदार्थों के सेवन का दुष्प्रभाव अत्यन्त व्यापक और गंभीर है। जहाॅं यह मनुष्य की आर्थिक क्षति का प्रमुख कारक है वहीं घातक रोगों की उत्पत्ति, मानसिक विकार, पारिवारिक व सामाजिक विघटन, शारीरिक क्षमता तथा कार्यक्षमता में क्षीणता, चारित्रिक पतन, विविध आपराधिक प्रवृत्ति का जनक, प्रजनन शक्ति का ह्नासकारक भी है। विश्वविख्यात चिकित्सक डा0 रिज, डा0 डैसेट्री तथा न्यूरोलाॅजी व मनोचिकित्सा के विशेषज्ञ डा0 राबर्ट सेलिंजर ने अपने अध्ययन और शोध के द्वारा विविध मादक दृव्यों तथा शराब में पाये जाने वाले तत्वों के मनुष्य पर पड़ने वाले घातक परिणामों की जो स्टडी रिपोर्ट प्रस्तुत की है निश्चय ही वह रोंगटे खड़े करने वाली है। शोध का निष्कर्ष है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति नशे की गिरफ्त वाले लोगों में ज्यादा देखी गई है।

इस घातक समस्या के निदान का बीड़ा उठायें

नशीली दवाओं और मादक द्रव्यों के इस्तेमाल की समस्या का निदान एक साझी सामाजिक जिम्मेदारी समझी जानी चाहिए। इसके निवारण के लिए समाज के विभिन्न हिस्सों से जुड़े प्रभावी लोगों को सरकार का सहयोग कर पुरजोर, प्रभावी और संवेदनशील पहल पूरी शिद्दत के साथ किये जाने की महति आवश्यकता है।आज समय की मांग है कि राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार के साथ-साथ विविध सामाजिक संगठन, चिकित्सा संस्थान, मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, क्लीनिकल साइकाॅलोजिस्ट, समाजसेवी तथा आमजनता एक समेकित और सम्मिलित सहभागी प्रयास कर इस विकराल भयावह सामाजिक विकृति को सिरे से रोके जाने तथा नशे की गिरफ्त में आ चुके लोगों विशेषकर युवक-युवतियों की प्रभावी काउंसलिंग कराने व इनके पुर्नवासन की दिशा में सार्थक प्रयास एक राष्ट्रीय अभियान के तौर पर पूरी शिद्दत व संजीदगी के साथ फौरी तौर पर प्रारम्भ करें।

सांस्कृतिक संगठनों, राज्यों व केन्द्र सरकार के सूचना व जनसम्पर्क विभागों को भी जन-जागरण के लिए तत्काल आगे आना होगा। आइए आज के इस दिवस पर आमजन, परिवार, समुदाय, सिविल सोसाइटी और राज्यों की सरकारें तथा केन्द्र सरकार एक साथ सम्मिलित प्रयास के जरिये समाज की इस घातक समस्या के निदान का बीड़ा उठायें। अपने राष्ट्र के गौरवशाली अतीत का स्मरण करते हुए देश के नागरिकों विशेषकर किशोरों और युवाओं के समग्र स्वास्थ्य और व्यक्तित्व निर्माण की दिशा में पूरी संजीदगी के साथ कृत संकल्पित होने का प्रयास करें। मौजूदा राष्ट्रीय परिदृश्य में यही समय की मांग है।

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Rahul Joy

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