×

भगतसिंह पर विशेष : सदियां बीत जाएंगी तुम्हें भुलाने में

गुलाम भारत में पैदा हुए भगत सिंह ने बचपन में ही देश को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद कराने का ख़्वाब देखा। अपनी जिंदगी की परवाह किये बग़ैर भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी दोस्तों ने ऐसे पराक्रमिक कार्यों को अंजाम दिया, जिनका देश की आजादी में बहुत बड़ा योगदान रहा।

Newstrack
Published on: 29 Sep 2020 2:07 PM GMT
भगतसिंह पर विशेष : सदियां बीत जाएंगी तुम्हें भुलाने में
X
भगतसिंह पर विशेष : सदियां बीत जाएंगी तुम्हें भुलाने में

"दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त,

मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी"

शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उनके पिता सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। हर भारतीय की तरह भगत सिंह का परिवार भी आजादी का पैरोकार था। उनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह भी आजादी के मतवाले थे और करतार सिंह सराभा के नेतृत्व वाली गदर पाटी के सदस्य थे। बचपन सेअपने घर में क्रांतिकारियों की मौजूदगी का भगत सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा। जिसका परिणाम हुआ कि वे बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे।

देश की आजादी में बहुत बड़ा योगदान

गुलाम भारत में पैदा हुए भगत सिंह ने बचपन में ही देश को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद कराने का ख़्वाब देखा। अपनी जिंदगी की परवाह किये बग़ैर भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी दोस्तों ने ऐसे पराक्रमिक कार्यों को अंजाम दिया, जिनका देश की आजादी में बहुत बड़ा योगदान रहा।

ये भी देखें: आ रही राधे मां: अब नजर आएंगी BIG BOSS 14 में, सामने आया वीडियो

छोटी उम्र से ही उन्होंने आज़ादी के लिए संघर्ष किया और स्थापित ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाकर हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए। शहीद हो गए लेकिन अपने पीछे क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गए जो आज तक युवाओं को प्रभावित करती है।

आज भी भगत सिंह की बातें देश के युवाओं के लिए किसी प्रतीक की तरह बनी हुए हैं। 14 वर्ष की उम्र में भगत सिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिए और उसके बाद उनके पोस्टर और विचार गांवों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ प्रतीक बन गए।

भगत सिंह सिर्फ क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं थे बल्कि एक अध्ययनशील विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विस्तृत अध्ययन किया था।

ये भी देखें: मुकेश अंबानी मालामाल: लॉकडाउन में हर घंटे कमाए इतने करोड़, इतनी संपत्ति बनाई

हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले प्रवक्ता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने 'अकाली' और 'किरती'नामक दो अखबारों का संपादन भी किया।

जेल में भगत सिंह करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों का आईना हैं तथा किसी भी कालखंड में क्रांति का बिगुल बजाने के लिए काफी हैं।

शोषण करने वाला चाहे एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है

अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहे एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था 'मैं नास्तिक क्यों हूं'? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।

13 अप्रैल 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर एक अमिट छाप छोड़ी। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना की। 1920 में वो महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन में शामिल हो गए। इस आंदोलन में गांधी जी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर रहे थे।

भगत सिंह महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन के सदस्य थे। लेकिन जब 1921 में हुए चौरा-चौरी हत्याकांड के बाद गांधीजी ने सत्याग्रहियों का साथ नहीं दिया और आंदोलन वापस ले लिया तब भगत सिंह का गांधी जी से मतभेद हो गया। इसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में बने गदर दल में शामिल हो गए।

9 अगस्त, 1925 को सरकारी खजाने को लूटने की घटना में भी उन्होंने अपनी भूमिका निभाई थी। यह घटना इतिहास में काकोरी कांड नाम से मशहूर है। इसमें उनके साथ रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद अशफाकुल्लाह खां जैसे कई क्रांतिकारी शामिल थे। उन्होंने उस दौर में आतंकवाद और साम्प्रदायिकता पर जो लेख लिखे वे आज भी प्रासांगिक है और वे आधुनिक दौर की समस्याओं को समझने में मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं।

ये भी देखें: सोनू सूद हुए सम्मानित: लॉकडाउन में बने सबके मसीहा, जीता लोगों का दिल

चंद्रशेखर आजाद ने उनकी पूरी मदद की

भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकाकी जेपी सांडर्स की हत्या कर दी थी। इस हत्या को अंजाम देने में चंद्रशेखर आजाद ने उनकी पूरी मदद की। अंग्रेजों की सरकार को 'नींद से जगाने के लिए' उन्होंने 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली के सभागार में बम और पर्चे फेंके थे।

इस घटना में भगत सिंह के साथ क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त भी शामिल थे। और यह जगह अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली का सभागार थी।इसे बाद में लाहौर षडयंत्र केस की संज्ञा दी गयी।

लाहौर षड़यंत्र केस में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सजा सुनाई गई और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया। 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई।

फाँसी पर जाने से पहले जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे हैं और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए।

कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - "ठीक है अब चलो।"

फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे -

मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे।

मेरा रँग दे बसन्ती चोला।मेरा रँग दे बसन्ती चोला॥

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को साथ फांसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हंसते-हंसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।

'क्रांतिकारी कार्यक्रम का मसौदा‘में भगतसिंह कहते हैं "वास्तविक क्रांतिकारी सेनाएं तो गांवों और कारखानों में हैं।वे हैं 'किसान और मजदूर‘। क्रांति राष्ट्रीय हो या समाजवादी, जिन शक्तियों पर हम निर्भर हो सकते हैं वे हैं किसान और मजदूर। किसानों और मजदूरों का सक्रिय समर्थन हासिल करने के लिए भी प्रचार जरूरी है।"

ये भी देखें: हाथरस गैंगरेप पर हंगामा: धरने पर बैठे पिता-भाई, पूरे देश भर में आक्रोश

आज किसान और मजदूर नेपथ्य में चला गया है और पूंजीपति/कॉरपोरेट का हित सर्वोपरि है। यदि हमें भगतसिंह के सपनों का समाज बनाना है तो सर्वहारा वर्ग के हित के लिए संघर्षरत होना होगा तथा ऐसी व्यवस्था के खिलाफ खड़ा होना होगा जो इनकी दुश्मन हैं।

डॉ मोहम्मद आरिफ़

9415270416

Newstrack

Newstrack

Next Story