×

आखिर कोरोना वायरस कहां से आया?

चीन की अर्थव्यवस्था को कोरोना की वजह से तगड़ा झटका लगा है। इस तिमाही में चीन की इकॉनमी में 9% की गिरावट आने की आशंका जताई जा रही है। जनवरी-फरवरी में खुदरा बिक्री 23.5% तक गिर गयी। औद्योगिक उत्पादन में 13.5% की गिरावट दर्ज की गई।

SK Gautam
Published on: 1 April 2020 1:05 PM IST
आखिर कोरोना वायरस कहां से आया?
X

मदन मोहन शुक्ला

कोविड-19 का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। ये वायरस मानव जाति के लिए एक बड़ा खतरा बनके उभरा है। अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन, आदि सब इससे पूरी तरह पस्त हैं। दुनिया भर में करीब ढाई अरब लोग लॉक डाउन हैं। इस सबके बीच चीन विलेन के तौर पर उभर के सामने आ रहा है।

अमेरिका ने पूरी तरह चीन को माना दोषी

अमेरिका तो चीन को कोरोना वायरस की महामारी के लिए पूरी तरह दोषी मान रहा है। जी-7 की बैठक में तो अमेरिका कोरोना वायरस को वुहान वायरस का नाम देने का प्रस्ताव लेकर आया था जिसको अन्य देशों ने नहीं माना। बदले में चीन ने अमेरिका पर ये वायरस फैलाने का आरोप मढ़ दिया। सवाल उठता है कि क्या कोरोना वायरस प्रकरण अमेरिका और चीन के बीच वर्चस्व को लेकर लड़ाई है?

ट्रेड वॉर डोनाल्ड ट्रम्प वर्सेज शी जिनफिंग

ट्रेड वॉर डोनाल्ड ट्रम्प वर्सेज शी जिनफिंग में बहुत दिनों से चल रही है। एक थ्योरी यह जन्म ले रही है कि चीन ने अमेरिका को आर्थिक तौर से गहरी चोट पहुंचाने के लिए कोरोना वायरस लैब में विकसित कर केमिकल एक्सपेरिमेंट का षड्यन्त्र रचा। इसका उद्देश्य ये भी था कि चीन अपना आधिपत्य पूरी दुनिया पर जमा सके।

विशेषज्ञ इस थ्योरी में ज़्यादा दम नहीं मानते क्योंकि इस तरह करके चीन पहले अपनी साख पूरी दुनिया से गंवाएगा तथा उसकी जहां जहां मार्केट है या जो उसके मित्र देश हैं, उनसे संबंधों में खटास आएगी। जो उसके विरोधी देश हैं वो उसको बखूबी भुनाएंगे और इस तरह चीन विश्व में अलग थलग पड़ जाएगा। विश्लेषकों का मानना है कि चीन वर्तमान परिस्थिति में कतई ऐसी भूल नहीं करेगा क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति आज बहुत खराब दौर से गुजर रही है। आज चीन के सामने धीमी अर्थव्यवस्था सहित हांगकांग और अमेरिका जैसे मुद्दे शामिल हैं।

ये भी देखें: लॉकडाउन: कन्नौज में सपेरों के ठंडे पड़े चूल्हे, नहीं पहुंची कोई प्रशासनिक मदद

चीन की क्रय शक्ति में अप्रत्याशित 50% गिरावट

चीन की अर्थव्यवस्था को कोरोना की वजह से तगड़ा झटका लगा है। इस तिमाही में चीन की इकॉनमी में 9% की गिरावट आने की आशंका जताई जा रही है। जनवरी-फरवरी में खुदरा बिक्री 23.5% तक गिर गयी। औद्योगिक उत्पादन में 13.5% की गिरावट दर्ज की गई। इसी तरह चीन की जो कमाई का औसत है उसमें इन तीन महीनों में 43% गिरावट दर्ज की गई है तथा चीन की क्रय शक्ति में अप्रत्याशित 50% गिरावट दर्ज हुई है।

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन एक बार वैश्विक मंदी और अमेरिका से ट्रेड वॉर से उभर आया, लेकिन कोरोना से हुआ नुकसान अप्रत्याशित होगा। ग्लोबल इकॉनमी के तार एक दूसरे से जुड़े हैं। अगर अमेरिका और यूरोपियन देश इस महामारी से जूझ रहे हैं तो इसका असर पूरी वर्ल्ड इकॉनमी पर पड़ेगा जिसमें चीन भी है।

शी जिनफिंग की छवि और साख काफी गिरी है

वैसे, अपनी बिगड़ती छवि को लेकर चीन चिंतित भी है। शी जिनफिंग की छवि और साख काफी गिरी है। वेस्टर्न मीडिया इनकी तुलना जोसफ स्टॅलिन, फिदेल कास्त्रो और खमेर रूज़ से कर रहा है जो नर संहारक के प्रतीक माने जाते हैं। क्या शी जिनफिंग इस कड़ी में अगला नाम है? देखने वाली बात होगी।

ये भी देखें: बाप रे बाप, तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना साद के पास है इतने करोड़ की सम्पत्ति

बहरहाल, चीन इस छवि से निकलने की पुरज़ोर कोशिश भी कर रहा है। हाल में चीन ने डब्लूएचओ को 150 करोड़ डॉलर दिए हैं। कई देशों को मेडिकल उपकरण दिये हैं। चीन ने मास्क डिप्लोमेसी के तहत फिलीपींस को एक लाख टेस्टिंग किट सप्लाई किये हैं। 10 विमानों से चेक गणराज्य को दवा और अन्य मेडिकल उपकरणों की सप्लाई की गई।

सर्बिया तो चीनी मदद से बहुत खुश है

इटली, टर्की, जर्मनी और बेल्जियम में डॉक्टरों की टीम के अलावा अन्य मेडिकल उपकरण भेजे गए हैं। लाइबेरिया में 30 लाख मास्क एवं बॉडी सूट की सप्लाई की गई है। सर्बिया तो चीनी मदद से बहुत खुश है साथ ही यूरोपियन यूनियन से उतना ही ख़फ़ा। वहाँ के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर बुची शी जिनफिंग को अपना भाई मानते हैं और यूरोपियन यूनियन को एक झूटी परिकल्पना मानते हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह मदद करके चीन अपनी नाकामियों पर पर्दा डाल रहा है?

दूसरा सवाल जो सोशल साइट्स से लेकर आम आदमी के जेहन में कौंध रहा है कि क्या चीन अपने देश में हुई मौत के आंकड़ों को कम करके बता रहा है? इस बात को बल इसीलिए भी मिलता है क्योंकि मोबाइल सर्विस देने वाली चीन की तीन बड़ी कंपनी ने दो महीने यानी जनवरी-फरवरी के जो आंकड़े दिए उसमें करीब 21 मिलियन यानी 2करोड़ 10 लाख सिम बंद मिले। इसी से आशंका व्यक्त की जा रही है यह सब लोग कोरोना से मारे गए।

ये भी देखें: मरकज के समर्थन में उतरा PFI, बताया मुस्लिमों के खिलाफ साजिश

लेकिन इस थ्योरी में लोचा है क्योंकि इतनी ज्यादा मौतों को छुपाना चीन के लिए आसान नहीं है। चीन की तीन कंपनी चीन मोबाइल लिमिटेड के अनुसार जनवरी-फरवरी में 80 लाख कनेक्शन घटे, चीन यूनीकॉम हांगकांग लिमिटेड के 78 लाख और चीन टेलिकॉम कारपोरेशन लिमिटेड के 56 लाख कनेक्शन कम हुए। इसके जो कारण विशेषज्ञ मान रहे हैं कि चीन ने अभी हाल में सिम खरीदने के नियम में बदलाव किया था। दिसंबर में सिम खरीदने के लिए पासपोर्ट साइज फ़ोटो और पहचान पत्र के अलावा चेहरे की स्कैनिंग का नया कानून लेकर आया।

चीन ने एक नया एप "क्लोज कांटेक्ट डिटेक्टर " जारी किया

एक और अनुमान ये है कि 11 फरवरी को चीन ने एक नया एप "क्लोज कांटेक्ट डिटेक्टर " जारी किया। इसके तहत पहचान से जुड़े डाटा तथा लोकेशन डाटा हिस्ट्री के जरिये कोरोना संक्रमित की पहचान की जा रही थी। लोगों को कोरोना से अलर्ट करने का भी काम इसे एप से किया जा रहा था। चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता सभी लोगों को ये एप डाउन लोड करवा रहे थे। चीन जैसे कम्युनिस्ट देश में प्राइवेसी कोई मायने नहीं रखती। चूंकि इस एप से निगरानी की जा रही थी लेकिन इसलिए मुमकिन हो सकता है कि बहुत से

लोगों ने डर के मारे मोबाइल ही बंद कर दिये होंगे।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन के हूबेई के अलावा पूरे 10 प्रान्तों में पूरा लॉक डाउन एक महीने तक था जिसकी वजह से सारा कारोबार बंद था कोई कार्य नहीं हो रहा था। लिहाज़ा जो कामगार बाहर से आकर काम करते थे वे काम न होने की स्थिति में वापस अपने गांव लौट गए होंगे। अमूमन कामगार दो सिम रखते हैं। एक जहां वो काम करते है उसे एम्प्लॉयर देता है दूसरा अपना व्यक्तिगत होता है। मुमकिन है कि जिन संस्थान में मजदूर काम करते थे वहाँ के सिम बंद कर दिए गए हों। इसीलिये इतने सिम घट गए। बहरहाल, सच्चाई क्या है ये शायद कभी पता नहीं चल पाएगी।

ये भी देखें: कोरोना के खिलाफ सेना की सबसे बड़ी तैयारी, 10 दिनों में कर दिखाया ये काम

कुछ सवाल जिनके जवाब चीन को देने हैं

केनबरा स्थित एक गैर लाभकारी रिसर्च आर्गेनाईजेशन 'चाइना पालिसी सेन्टर' के निदेशक एडम नी ने बताया कि महामारी से ठीक तरह से न निपटने के चलते जिनफिंग की छवि धूमिल हुई है। अब कुछ सवाल जो अनुत्तरित है जिसका जवाब चीन को देना होगा।

  • जब दिसंबर के पहले सप्ताह में कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई तब तत्काल चीन ने इसको दुनिया से क्यों नहीं साझा किया। 31

    दिसंबर 2019 को चीन सरकार ने माना कि एक अनजान वायरस वुहान और आसपास के क्षेत्रों में फैल गया है। चीन ने माना कि 1 करोड़ की आबादी पर गहन खतरा है।

  • चीन ने लॉक डाउन में बेवजह देरी क्यों की? हूबेई में लॉक डाउन 23 जनवरी को किया जाता है, इस बीच लाखों लोग यहां से बाहर पूरी दुनिया में जाते रहे। 13 जनवरी को पहला मामला थाईलैंड में आया, दूसरा केस जापान में 16 जनवरी को आया। इस दौरान यहाँ से करीब पाँच लाख लोग बिना किसी जांच के दुनिया के विभिन्न हिस्सों में गए। चीन ने ऐसा क्यों होने दिया?
  • किसी भी अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए कोई गाइड लाइन जारी करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यह वायरस मानव से मानव में नहीं फैलता है -डब्लू एच ओ ने 11 फरवरी तक क्यों ऐसे ट्वीट करके भ्रमित करता रहा? सोशल डिस्टनसिंग का फार्मूला क्यों नही चीन ने तुरंत साझा किया और डब्लू एच ओ को ये बताने में देर क्यों की?

मानव जाति के अस्तित्व पर मंडरा रहा ख़तरा

सभी अनुत्तरित सवालों के जवाब शायद ही दुनिया को मिल पाएँ क्योंकि यह तो चीन की फितरत है कि वो असलियत पर पर्दा डाले रहता है। लेकिन जो लापरवाही जाने अनजाने चीन ने की है उसकी बहुत बड़ी कीमत दुनिया चुका रही है। मानवता तार तार हो गयी है और मानव जाति के अस्तित्व पर ख़तरा मंडरा रहा है।

ये भी देखें: एनपीपीए ने 883 निर्धारित दवाओं का अधिकतम मूल्य संशोधित/बढ़ाया

जो भी हो पूरी दुनिया को मिल कर चीन को लोकतन्त्र और पारदर्शिता के लिए मजबूर करना चाहिए। चीन में जिस तरह से हर तरह के जीव जन्तु खाये जाते हैं उस पर पूरी दुनिया को मिल कर रोक लगवानी चाहिए। चीन को जब तक सबक नहीं सिखाया जाएगा वह इसी तरह मानवता के साथ खिलवाड़ करता रहेगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

SK Gautam

SK Gautam

Next Story