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क्या धार्मिक आजादी के नाम पर कत्ल से भी खौफनाक सजा जायज है
हलाला प्रथा की आड़ में कई बार औरत की जबरदस्ती दूसरी शादी करवा कर दी जाती है। ताकि उस औरत से फिर से पहला पति शादी कर सके। ऐसे कई मामले पिछले कुछ समय में सामने आए हैं जिसमें देवर, ननदोई या ससुर या किसी अन्य व्यक्ति से हलाला कराने पर स्त्री को मजबूर किया गया।
नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के साथ तीन तलाक के नाम पर महिलाओं के उत्पीड़न से उपजे उनके दर्द को समझा और इसे रोकने के लिए कानून बनाने के प्रभावी उपाय शुरू किये। शुरुआती दौर में कानून बनाने में भारी व्यवधान आए। राजनीतिक दलों की एक लॉबी विशेष ने इसका जोरदार विरोध भी किया। लेकिन मोदी अपने विश्वास पर दृढ़ थे। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस कुप्रथा को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए अध्यादेश जारी किया जिसका जिस ढंग से स्वागत हुआ। इससे एक बात साबित हो गई कि धर्म के नाम पर महिलाओं को सलीब पर टंगना मंजूर नहीं है। लेकिन हलाला निकाह का मामला अभी तक कोर्ट के विचाराधीन है।
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कानून का भय अच्छे संकेत
दूसरे टर्म में प्रचंड बहुमत से वापसी पर सरकार ने संसद से इस पर विधेयक को पारित कराकर अध्यादेश को कानून में बदल दिया। इसने काफी हद तक महिलाओं को मजबूती देने का काम किया। तीन तलाक के मामलों में कमी आई है, ऐसा माहौल दिखने लगा है। कानून का खौफ सभी को होना चाहिए और उसका असर दिख रहा है जो कि एक अच्छी बात है।
लेकिन एक बात अभी भी काबिले गौर है वह है हलाला के नाम पर धार्मिक रूप से मान्य व्यभिचार की खुली छूट। यह एक ऐसा दंश है जो आजीवन किसी महिला को सामान्य नहीं होने देता। वैसे भी हर महिला की मरते दम तक यही इच्छा रहती है कि उसका शरीर उसके पति के अलावा न तो कोई देखे और न ही कोई छुए। दुखद पहलू यह है कि इस कुकृत्य में पीड़िता के माता-पिता परिजनों व ससुराल पक्ष पारिवारिक सदस्यों की मूक या खुले तौर पर सहमति रहती है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय हलाला और बहुविवाह जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ दायर मामले पर विचार कर रहा है।
हलाला, इदद्त, खुला और हुल्ला
आइए जानते हैं हलाला, इदद्त, खुला और हुल्ला क्या होता है। दरअसल एक खास वर्ग को छोड़कर दूसरे लोगों को इन शब्दों के बारे में सही जानकारी नहीं है और लोग अपने अपने कयास लगाया करते हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि इन शब्दों के मायने क्या हैं। इन शब्दों को समझे बिना तीन तलाक को भी आसानी से नहीं समझा जा सकता है।
मुस्लिम महिला को हलाला मंजूर नहीं था तो उठाया ये कदम… बने सब दुश्मन
तलाक़। जैसा की इस लफ्ज से जाहिर हो रहा है कोई अच्छी चीज़ नहीं है। कोई भी इसे पसंद नहीं करता। इस्लाम में भी यह बुरी बात मानी गयी है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि किसी परिस्थिति में यदि यह अनिवार्य हो गया हो तो उस स्थिति में किसी महिला या पुरुष से तलाक़ का हक ही छीन लिया जाए।
ऐसे में किसी भी धर्म की तरह इस्लाम में भी तलाक को वैवाहिक संबंध में बिगाड़ के बाद के आखिरी विकल्प के रूप में देखा जाता है। परिवार सहित सभी रिश्तेदारों पर संबंधों को बचाने की जिम्मेदारी की बात इस्लामिक धर्मग्रंथ भी करते हैं। तलाक के बाद की कठोर शर्तें इसीलिए लगाई गईं थी ताकि कोई भी शख्स सहज ही तलाक लेने या देने से परहेज करे।
आइए सबसे पहले समझते हैं इद्दत क्या है
इस्लामिक नियमों के मुताबिक तलाक के बाद लड़की मायके वापस आती है। इसी के साथ शुरू हो जाती है इद्दत की अवधि। इद्दत की अवधि तीन महीने की होती है जिसे तलाक के बाद लड़की किसी पराए आदमी के सामने आए बिना पूरा करती है ताकि अगर लड़क़ी गर्भवती है तो ये बात सभी को पता चल जाए। जिससे उस औरत के 'चरित्र' पर कोई उंगली न उठा सके और उसके बच्चे को नाजायज़ न कहा जा सके।
तलाक से जुड़ा दूसरा शब्द है हलाला
हलाला जिसे 'निकाह हलाला' भी कहा जाता है। शरिया के मुताबिक अगर एक पुरुष ने औरत को तलाक दे दिया है तो वो उसी औरत से दोबारा तब तक शादी नहीं कर सकता जब तक वह औरत किसी दूसरे पुरुष से शादी करके उससे भी तलाकशुदा न हो चुकी हो।
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यानी मोटेतौर पर यह सिद्ध हो गया कि एक बार तलाक हो जाने के बाद पूर्व पति अपनी तलाकशुदा पत्नी से कोई वास्ता रख ही नहीं सकता। लेकिन तलाक के बाद यदि उस महिला का दूसरी जगह निकाह हो गया है और किसी वजह से वहां से भी उसका तलाक हो चुका है तो पहला पति चाहे तो उससे निकाह कर सकता है। मुझे लगता है कि इस स्थिति में वह अपनी तलाकशुदा स्त्री से नहीं बल्कि दूसरे की तलाकशुदा स्त्री से शादी कर रहा होता था इसलिए मान्य था।
हिन्दू तलाक के बाद उसी पत्नी से कर सकता है सीधे शादी
जबकि हिन्दू विवाह में यदि पति पत्नी में तलाक हो भी जाए तो तलाक चाहे पत्नी ने लिया हो या पति ने लेकिन यदि दोनो साथ रहना चाहते हैं तो तलाक की डिग्री के बाद भी सीधे दोबारा शादी कर साथ रह सकते हैं।
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लेकिन इस्लाम के इस सख्त नियम का पाबंद होना कठिन था। जरूरत इस बात की थी कि सहज तलाक की व्यवस्था ही न हो। तमाम इस्लामी देश भी तुरंत तलाक की इस व्यवस्था को नहीं मानते। बावजूद इसके भारत में परंपरा के तौर पर यह गलत रवायत चली आ रही थी।
लेकिन इस्लाम के मुताबिक भी तलाक के बाद दोबारा विवाह के लिए जान बूझ कर या योजना बना कर किसी और मर्द से हलाला निकाह करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले शौहर से दोबारा निकाह जायज़ हो सके, यह साजिश नाजायज़ है। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसी साजिश करने को गलत बताया है।
आइए जानें क्या है निकाह हलाला
तलाकशुदास्त्री की दूसरी शादी को 'निकाह हलाला' कहते हैं। कहा जाता है कि औरत के दूसरे मर्द से शादी करने और संबंध बनाने से उसके पहले पति को दुख पहुंचता है और अपनी गलती का एहसास होता है। इसलिए ऐसी परिस्थितियों के बारे में सोच कर ही व्यक्ति इतना डर जाएगा कि वह अपनी पत्नी को तलाक देने से परहेज करेगा।
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लेकिन हलाला प्रथा की आड़ में कई बार औरत की जबरदस्ती दूसरी शादी करवा कर दी जाती है। ताकि उस औरत से फिर से पहला पति शादी कर सके। ऐसे कई मामले पिछले कुछ समय में सामने आए हैं जिसमें देवर, ननदोई या ससुर या किसी अन्य व्यक्ति से हलाला कराने पर स्त्री को मजबूर किया गया।
हलाला पर क्या है कुरान में
इस्लाम में असल हलाला का मतलब होता है कि एक तलाकशुदा औरत अपनी मर्जी से किसी दूसरे मर्द से शादी करे और इत्तिफाक से अगर उनका भी रिश्ता निभ न पाया हो और वो दूसरा शौहर भी उसे तलाक दे-दे या मर जाए तब ऐसी स्थिति में ही वह औरत पहले पति से दोबारा निकाह कर सकती है। ये असल इस्लामिक हलाला है। पर इसमें अपनी सहूलियत के हिसाब से काजी-मौलवी के साथ मिलकर लोग प्रयोग करते रहे हैं। इसी की एक उपज है- हुल्ला।
हलाला का नया रूप है 'हुल्ला'
अक्सर होता ये है कि तीन तलाक की आसानी के चलते बिना सोचे-समझे मर्द तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोल कर तलाक दे देता था। बाद में जब गलती का एहसास होता था तो वे अपना संबंध फिर से उसी औरत से जोड़ना चाहते हैं। जिसके लिए हलाला निकाह हो कर तलाक हो चुका हो यह जरूरी है। लेकिन इस्लाम के हिसाब से जानबूझ कर या योजना बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले शौहर से निकाह जायज हो सके, यह साजिश नाजायज है।
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पर इसकी भी एक काट निकाल ली गई कि अगर मौलवी हलाला मान ले तो समझें हलाला हो गया। इसलिए मौलवी को मिलाकर किसी ऐसे इंसान को तय कर लिया जाता है जो निकाह के साथ ही औरत को तलाक दे देगा। इस प्रक्रिया को ही हुल्ला कहते हैं। यानी हलाला होने की पूरी प्रक्रिया 'हुल्ला' कहलाती है।
मुस्लिमों में एक रिवाज खुले का भी है
इस्लाम के मुताबिक सिर्फ पति ही तलाक नहीं दे सकता अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे तो उसे शौहर से तलाक मांगने का हक है। जाहिर है अगर शौहर तलाक नहीं चाहता होगा तो वो अपनी बीवी को समझाने की कोशिश करेगा और अगर वह फिर भी न माने तब उसका पति उसे तलाक दे देगा। लेकिन अगर पत्नी के तलाक मांगने के बावजूद उसका पति उसे तलाक नहीं देता तो बीवी के लिए इस्लाम में यह आसानी रखी गई है कि वो शहर काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शौहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे। इस्लाम ने काज़ी को यह हक़ दे रखा है कि वो उनका रिश्ता ख़त्म करने का ऐलान कर दे तो तलाक हो जाएगा, कानून में इसे खुला कहा जाता है।
किस तरह दुरुपयोग
समय समय पर कई इमामों ने कबूला है कि वे हलाला से एक रात का शौहर बनते हैं। 20 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक फीस वसूलते हैं। महिलाओं संग रात गुजारते हैं और अगली सुबह तलाक दे देते हैं। तलाक के बाद वह औरत अपने पहले शौहर संग निकाह कर सकती है। इसके अलावा जबर्दस्ती की घटनाएं भी सामने आई हैं।
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पिछले दिनों सीतापुर की एक घटना चर्चा में आई थी जिसमें सीतापुर के सकरन थाना क्षेत्र के एक गांव में दहेज में बाइक न मिलने पर एक महिला को पहले उसके पति ने तीन तलाक दे दिया, इसके बाद हलाला के नाम पर उसे दूसरे युवक से संबंध बनाने के लिए एक कमरे में बंद कर दिया। आरोप है कि उस युवक ने पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया। मामले में पीड़िता की तहरीर पर पुलिस ने पति, सास, देवर सहित पांच लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।
इसी तरह बरेली की एक घटना सामने आई थी जिसमें तलाक शुदा महिला हलाला निकाह के जाल में फंस गई थी। इस मामले में हलाला निकाह करने वाले 65 साल के बुड्ढे ने बाद में तलाक देने से मना कर दिया था।
इस तरह के मामलों को देखने के बाद इस बात की जरूरत महसूस होती है कि गलत परंपराओं धर्म के नाम पर ढोया नहीं जाना चाहिए और समय के साथ उन्हें खारिज किया जाना चाहिए। इसी लिए सर्वोच्च न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है। उम्मीद है कि जल्द ही वह इस मामले पर अपना फैसला देगा।