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कितना कारगर योगी शासन!
फुटपाथ पर बने मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश (12 मार्च 2021) जारी कर हिन्दुत्ववादी योगी आदित्यनाथ ने अपनी सेक्युलर विश्वसनीयता जाहिर कर दी।
के. विक्रम राव (K. Vikram Rao)
फुटपाथ पर बने मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश (12 मार्च 2021) जारी कर हिन्दुत्ववादी योगी आदित्यनाथ ने अपनी सेक्युलर विश्वसनीयता जाहिर कर दी। आज (19 मार्च) अपने चार वर्ष के कार्यकाल में धर्म के नाम पर अतिक्रमण खत्म करने का उनका निर्णय यादगार रहेगा। यह आदेश मजार और मस्जिद पर भी लागू हो। वर्ना नेहरु—मार्का तुष्टिकरण लगता।
अर्थात नालों पर से शिवालों की भांति चौराहों पर से मजारें भी हटनीं चाहिये। इससे यातायात भी सुगम हो जाएगा। धर्म की आड़ में धंधा करने वाले भूमाफिया खत्म हो जाएंगे। न्यायालय ने निर्दिष्ट किया है कि सार्वजनिक स्थलों पर धर्मसंबंधी निर्माण कार्य की अनुमति नहीं होगी। मगर भारत के कई शहरों में फुटपाथ और चौरस्तों पर फोड़े-फुंसी की भांति ये कथित आस्था-स्थल उभर आए हैं। उससे ईश्वर पर आस्था रखने वाले और शुचिता एवं पाकीजगी पसंद करने वाले हर धर्मनिष्ठ नागरिक को मार्मिक पीड़ा होती है। मजहब के नाम पर भावनात्मक जोर-जबरदस्ती से सरकारी जमीन पर गैरकानूनी कब्जा करने वाले भूमाफिया लोग जनास्था का व्यापारीकरण करते हैं। भारत का प्रत्येक पैदल चलता व्यक्ति इस तथ्य का गवाह है।
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इसी परिवेश में अहमदाबाद का उदाहरण है। तब नगरपालिका के अध्यक्ष थे सरदार वल्लभभाई झाबेरदास पटेल जो आजाद भारत में प्रथम उपप्रधानमंत्री हुए। उन्हीं वर्षों में इलाहाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष होते थे जवाहरलाल नेहरू। तब राजनीति में लोग स्थानीय संस्थाओं से होकर ऊपर उठते थे। बाद में लोग पैराशूट से उतरकर सीधे प्रधानमंत्री बनते रहे। सरदार पटेल ने अहमदाबाद में फुटपाथों और चौराहों पर के मंदिरों को अपने सामने तुड़वाया। सड़कें चौड़ी करवाईं। हालांकि सरदार पटेल पर आरोप था कि वे घोर हिंदूवादी हैं। उन्हीं ने सोमनाथ के ध्वस्त मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण कराया था।
कुछ वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश विधानसभा में भाजपा-समर्थित सरकार ने ‘सार्वजनिक धार्मिक भवनों और स्थलों का विनियमन विधेयक, 2000’ पारित किया था। इसके उद्देश्य और कारण थे कि किसी भवन या स्थल का सार्वजनिक धार्मिक उपयोग और उस पर निर्माण कार्य को लोक-व्यवस्था में विनियमित किया जाए। यह कानून एक आवश्यक और अनूठा कदम था, मगर विपक्षी दलों ने वोट की लालसा से इस महत्त्वपूर्ण विधेयक का विरोध किया। उसे सतही तौर पर लिया। उसके सर्वांगीण पक्षों पर गौर करना चाहिए था।
बात पुरानी है किंतु नागरिक विकास की दृष्टि से अहम है। प्रयागराज की जगह लखनऊ तब नई नवेली राजधानी बनने वाला था। सरकार प्रयाग से अवध केंद्र में आ रही थी। उस दौर की यह बात है। अमीनाबाद पार्क, (जो तब सार्वजनिक उद्यान था) में पवनसुत हनुमान का मंदिर प्रस्तावित हुआ। मंदिर समर्थक लोग कानून के अनुसार चले। नगर म्यूनिसिपालिटी ने 18 मई 1910 को प्रस्ताव संख्या 30 द्वारा निर्णय किया कि अमीनाबाद पार्क के घासयुक्त (लाॅन) भूभाग से दक्षिण पूर्वी कोने को अलग किया जाता है ताकि मंदिर तथा पुजारी का आवास हो सके। तब म्यूनिसिपल चेयरमैन थे आईसीएस अधिकारी उपायुक्त मिस्टर टीएएच वेये, जिन्होंने सभा की अध्यक्षता की थी। मंदिर के प्रस्ताव के समर्थकों में थे खान साहब नवाब गुलाम हुसैन खां। एक सदी पूर्व अवध इस इतिहास का साक्षी रहा। यही अमीनाबाद पार्क देश के विभाजन पर पाकिस्तान से आए शरणर्थियों के कब्जे में चला गया। हरियाली की जगह टीन, गुम्मे और सीमेंट छा गए। शहर की अस्मिता मिट गई। मंदिर बना था सार्वजनिक अनुमति से, मगर बाद में दुकानें बन गईं निजी लाभ हेतु।
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शीघ्र ही लखनऊ में नालों को पाटकर शिवाले बनाए गए हैं, जहां पुजारीजी का मुफ्त का मकान, चरस गांजे का व्यापार, चढ़ावे का माल अलग अर्थात् कुल मिलाकर बिना पूंजी लगाए लाभ ही लाभ है। बेचारे एक कमिश्नर साहब थे अजय विक्रम सिंह जिन्होंने अपने लखनऊ वाले मंडलायुक्त कार्यालय में एक अनधिकृत मंदिर को तुड़वा दिया। मगर शिक्षित वर्ग के लोगों ने हायतौबा मचा दी। परिणाम में मंदिर पुनर्निर्माण हुआ तथा उसमें और आधी सड़क पुजारी के आवास ने घेर ली। अब पड़ोस से गुजरती मोटरकारों तथा अन्य वाहनों की गंदगी और चीख उस मंदिर की आरती का हिस्सा हो गई हैं। पुराना रायल होटल बापू भवन के नाम से बना तो उसके आगे की तरफ मजार और पीछे की तरफ मंदिर बन गए। बेशकीमती जमीन फोकट में हथिया ली गई।
इतना ही नहीं, बिजली के तारों में कटिया फंसाकर मुफ्त में ऊर्जा भी इन उपासकों ने ले ली। मजाल है लखनऊ विद्युत उपक्रम (लेसा) के किसी अफसर की जो छापा मारे और इनका तार हटाए? इसी तरह ब्लंट स्क्वायर मोहल्ले में अतिक्रमण विरोधी अभियान में एक अनधिकृत शिवाला तोड़ा गया। अचानक लखनऊ नगर महापालिका के दस्ते ने पाया कि साक्षात नागराज फन फैलाए प्रगट हो गए। जांच पर उस समय के नगर विकास मंत्री और हिंदूवादी नेता सांसद लालजी टंडन ने उस सपेरे को पकड़ा जिसने पुजारी के रुपयों से ऐसा चमत्कार संभव कर दिखाया था। बात बिगड़ी नहीं क्योंकि लालजी टंडन ने अयोध्या में विशाल राम मंदिर बनाने की कसम खाई थी।
इस्लामी जमात को भी अब जागरूक होना चाहिए ऐसे मजहबी सौदागरों से, जो फुटपाथ पर मजार के नाम पर कब्जा करते हैं। ऐशबाग की पाक कब्रगाह की जमीन पर काबिज होकर दुकानें खोल दिये। मुनाफा कमा रहे हैं। उस रकम को बैंक में जमाकर उसके सूद से तिजारत बढ़ाते हैं। कुराने पाक में कहा गया है कि रिबा (ब्याज) हराम है, फिर भी इन मुसलमानों कोई खौफ नहीं होता।
अत: यदि आस्था और अकीदे की आड़ में अतिक्रमण खत्म हो जाये तो नगरों का सौष्ठव निखर उठेगा। इसलिये इन नरक (नगर नहीं) से त्राण हेतु योगी सरकार को लोग याद रखेंगे।
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)