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अकेले सैनिक से कांपा चीन: जवान की आत्मा आज भी सीमा पर तैनात, दुश्मन में खौफ

देश की खातिर शहीद होने वाले जसवंत सिंह रावत ने साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान 72 घंटे तक अकेले लड़ाई लड़ी थी। इसके बाद भारतीय सेना अपना वीर धुरंधर हमेशा हमेशा के लिए खो दिया।

Shreya
Published on: 19 Aug 2020 11:55 AM GMT
अकेले सैनिक से कांपा चीन: जवान की आत्मा आज भी सीमा पर तैनात, दुश्मन में खौफ
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Martyr Jaswant Singh Rawat

लखनऊ: भारतीय सेना के जाबांज हमेशा देश की रक्षा में दुश्मनों का सामना करने के लिए सीमा पर तैनात रहते हैं। देश में सभी नागरिकों की रक्षा करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर हमारे जाबांज जवान भीषण गर्मी और तेज ठंड में भी सरहद पर टिके रहते हैं। भारतीय सेना की ताकत का अंदाजा दुश्मन देशों को भी बखूबी है। देश में ऐसे कई वीर सपूत पैदा हुए, जिनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।

शहीद जसवंत सिंह रावत की ऐसी है कहानी

आज हम आपको आज एक ऐसे ही जाबांज जवान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी बहादुरी के चलते आज भी पूरा देश उनको याद करता है। कहा जाता है कि ये जवान शहीद तो हो गया लेकिन आज भी उसकी आत्मा आज भी देश के पूर्वी छोर की रक्षा करती है। जी हां, हम बात कर रहे हैं शहीद सैनिक जसवंत सिंह रावत की, जिनका शरीर भले ही उनसे जुदा हो गया हो, लेकिन उनकी आत्मा आज भी देश की रक्षा में तैनात है।

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1962 में भारत-चीन युद्ध में हुए शहीद

यही नहीं जसवंत सिंह रावत के बारे में यह भी कहा जाता है कि अगर कोई सैनिक ड्यूटी पर सोता मिलता है तो उसे वो चांटा मारकर जगा देते हैं। बता दें कि देश की खातिर शहीद होने वाले जसवंत सिंह रावत ने साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान 72 घंटे तक अकेले लड़ाई लड़ी थी। इसके बाद भारतीय सेना अपना वीर धुरंधर हमेशा हमेशा के लिए खो दिया। लेकिन आज भी सेना के बीच उनकी बहादुरी के किस्से कही जाती हैं।

jaswant

तो चलिए आज शहीद जसवंत सिंह रावत के जन्मदिन के मौके पर हम आपको उनकी बहादुरी की कहानी बताते हैं।

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आज है भारत के जाबांज शहीद का जन्मदिन

उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले जसवंत सिंह रावत साल 1941 में आज ही के जन्मे थे। चीन से लड़ाई के दौरान 17 नवंबर 1962 को वो शहीद हो गए थे। रावत भारतीय थल सेना के जांबाज सैनिकों में से एक थे। माना जाता है कि आज भी वो युद्ध के मोर्चे पर बनी उसी चेक पोस्ट पर तैनात हैं। वहां पर जसवंत सिंह की एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है। यही नहीं, 24 घंटे उनकी सेवा में सेना के पांच जवान लगे रहते हैं। साथ ही रोजाना उनके जूतों पर पॉलिश की जाती है और कपड़े भी प्रेस होते हैं।

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Jaswant Singh

19 साल की उम्र में सेना में हुए भर्ती

जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त, 1941 को ग्राम बाडयू पट्टी खाटली, पौड़ी (गढ़वाल) में हुआ था। 19 साल की उम्र में 16 अगस्त, 1960 को जसवंत गढ़वाल रायफल लैन्सडाउन में भर्ती हुए थे। जब जसवंत की ट्रेनिंग चल रही थी, उसी दौरान चीन ने भारत के उत्तरी सीमा पर घुसपैठ कर दी। उसके बाद धीरे-धीरे उत्तरी-पूर्वी सीमा पर युद्ध शुरू कर दिया। चीन की इस हरकत के बाद सेना को कूच करने के आदेश दिए गए। चौथी गढ़वाल रायफल नेफा क्षेत्र में चीनी आक्रमण का जवाब देने के लिए भेजी गई।

ट्रेनिंग खत्म होने के बाद किया चीनी सेना का सामना

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 17 नवम्बर 1962 को जब चौथी गढ़वाल रायफल को नेफा यानी अरुणाचल प्रदेश भेजा गया, तब जसवंत सिंह रावत की ट्रेनिंग खत्म ही हुई थी। जसवंत की पलटन को त्वांग वू नदी पर नूरनांग पुल की सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया। उधर, चीनी सेना ने हमला बोल दिया। यह जगह 14 हजार फीट की ऊंचाई पर था। चीनी सैनिकों की संख्या काफी ज्यादा थी। साथ ही उनके पास साजोसामान भी काफी बेहतर थे।

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Martyr Jaswant Singh

चीनी सेना का लूटा मशीनगन

चीनी सेना के पास साजोसामान बेहतर होने की वजह से भारतीय सैनिक हताहत हो रहे थे। वहीं चीनी सेना के पास एक मीडियम मशीनगन भी थी, जिसे वे पुल के समीप लाने में कामयाब रहे। इस एलएमजी से पुल व प्लाटून दोनों की सुरक्षा खतरे में आ गई। ये सब देख बहादुर जवान जसवंत सिंह रावत ने पहल की और वो मशीनगन लूटने के मकसद से आगे बढ़े। उनके साथ लान्सनायक त्रिलोक सिंह व रायफलमैन गोपाल सिंह भी थे।

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अकेले दम पर 72 घंटे तक रोकी रही चीनी सेना

जसवंत सिंह रावत, लान्सनायक त्रिलोक सिंह व रायफलमैन गोपाल सिंह ने जमीन पर रेंगते हुए मशीनगन से 10-15 गज की दूरी पर रुक गए। जिसके बाद उन्होंने चीनी सेना पर हमला कर दिया और उनकी एलएमजी पर कब्जा जमा लिया, फिर उसी से गोली बरसानी शुरू कर दी। जसवंत सिंह ने बहादुरी दिखाते हुए बैरक नं. 1, 2, 3, 4 एवं 5 से लगातार गोलियों की बरसाते हुए दुश्मन सेना को लगातार 72 घंटे यानी तीन दिन तक रोके रखा।

Jaswant Singh Rawat

इस युद्ध में शहीद हुए थे 162 जवान

इसमें स्थानीय महिला शीला ने उनकी काफी मदद की। वो उन्हें गोला बारूद और खाद्य सामग्रियां लगातार उपलब्ध कराती रही। इस दौरान जसवंत सिंह रावत की ताकत देखते ही बनती थी। वहीं चीनी सेना को यह लग रहा था कि पूरी भारतीय सेना उन पर गोलियों की बौछार कर उन्हें रोकने का प्रयास कर रही है। इस युद्ध में भारतीय सेना के 162 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। जबकि चीनी सेना ने एक हजार 264 सैनिकों को कैद कर लिया।

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मठ के गद्दार ने दी जानकारी

इस दौरान वहां पर मठ के गद्दार लामा ने चीनी सेना को बता दिया कि एक सैनिक ने आपकी ब्रिगेड को 72 घंटे से रोके रखा है। ये खबर मिलने के बाद चीनी सेना ने चौकी को चारों ओर से घेर लिया। वे जसवंत सिंह रावत का सर कलम करके अपने सेनानायक के पास ले गए। लेकिन चीनी सेना का कमांडर खुद भी इस सैनिक की वीरता का कायल हो गया।

देवता की तरफ पूजती नेफा की जनता

बता दें कि नेफा की जनता आज भी जसवंत सिंह रावत को देवता की तरफ पूजती है और उन्हें 'मेजर साहब' कहती है। जसवंत सिंह रावत के सम्मान में जसवन्त गढ़ भी बनाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि आज भी उनकी आत्मा देश की रक्षा में तैनात है। कहा ये भी जाता है कि अगर कोई सिपाही ड्यूटी के दौरान सोते हुए दिखता है तो वो उसे थप्पड़ मारकर चौकन्ना कर देते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि उनकी आत्मा आज भी भारत की पूर्वी सीमा की रक्षा कर रही है।

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आज के दिन मनाया जाता है 'नूरानांग दिवस'

बता दें कि हीरो ऑफ नेफा जसवंत सिंह रावत को मरने के बाद 'महावीर चक्र' प्रदान किया गया। सेना उनकी याद में हर साल आज ही के दिन 'नूरानांग दिवस' मनाकर अमर शहीदों को याद करती है। यहां शहीद जसवंत के हर सामान को संभालकर रखा गया है। उनके रोज जूतों में पॉलिश की जाती है। यहां तक कि उनके पहनने-बिछाने के कपड़े प्रेस किए जाते हैं। इस काम के लिए सिख रेजीमेंट के पांच जवान तैनात किए गए हैं।

इसके साथ ही रोज सुबह और रात की पहली थाली उनकी प्रतिमा के सामने परोसी जाती है। कहा जाता है कि जब सुबह-सुबह उनकी चादर और अन्य कपड़ों को देखा जाता है तो उनमें सिलवटें नजर आती हैं और उनके जूते पॉलिश के बावजूद बदरंग हो जाते हैं।

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