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बदल गया बॉलिवुडः अब देश प्रेम का पैमाना है दर्शकों की ये पसंद
सिनेमा समाजिक सरोकारों की किताबों का वो सफा (पेज) है जिसमें अतीत और वर्तमान दोनो दर्ज होते हैं। क्यों की सार्थक सिनेमा एक तरफ जहां समाज को आइना दिखाता है तो वहीं देश के प्रति कुर्बान होने वाले शहीदों की शहादत को भी याद दिलाता है।
दुर्गेश पार्थ सारथी
अमृतसर: सिनेमा समाजिक सरोकारों की किताबों का वो सफा (पेज) है जिसमें अतीत और वर्तमान दोनो दर्ज होते हैं। क्यों की सार्थक सिनेमा एक तरफ जहां समाज को आइना दिखाता है तो वहीं देश के प्रति कुर्बान होने वाले शहीदों की शहादत को भी याद दिलाता है।
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समय समय पर देश के नौजवानों में देशप्रेम का जज्बा पैदा करने के लिए भारतीय फिल्मकार देशभक्ति पर आधारित फिल्मों का निर्माण करते रहते हैं। इस तरह की फिल्मों को स्वतंत्रा दिवस और गणतंत्र दिवस पर खास तौर रिलीज किया जाता है ताकि लोगों में देश प्रेम की भावना को जागृत किया जा सके। यदि बात किया जाए देशभक्ति पर आधारित फिल्मों के निर्माता-निर्देशकों की तो मनोज कुमार का नाम पहले आता है। एक समय में मनोज कुमार ने देशप्रेम और सामाजिक समस्याओं पर आधारित एक से बढ़ कर एक फिल्में दर्शकों को दी जिसकी वजह से लोग उन्हें भारत कुमार कहने लगे थे।
'बंधन' थी पहली फिल्म
देशभक्ति पर आधारित फिल्मों के निर्माण की बात की जाय तो इसकी शुरुआत 1940 से मानी जाती है। यह वह दौर था जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। गुलामी की इस बेडि़यों को तोड़ने के लिए देश की जनता कसमसा रही थी। ऐसे दौर में देशभक्ति पर आधारित फिल्म बनाने का साहस किया फिल्मकार ज्ञान मुखर्जी ने। और 'बंधन' का निर्माण किया।
अपने जमाने के मशहूर अभिनेता अशोक कुमार, लीला चिटनिस और सुरेश कुमार जैसे सितारों से सजी फिल्म 'बंधन' ही देशभक्ति पर आधारित संभवत: पहली फिल्म थी, जिसे 9 एमएम के रुपहले पर्दे पर प्रदर्शित किया गया। श्वेत-श्याम इस फिल्म के सभी गीत एक से बढ़ कर एक थे। 'बंधन' के सभी गाने कवि प्रदीप ने लिखे थे। लेकिन इस फिल्म का एक गीत -'' चल-चल रे नौजवान...'' काफी फेमस हुआ था। कवि प्रदीप की यह वह कालजयी रचना थी जिसे आजादी के मतवालों ने अपना स्लोगन बना लिया था।
'किस्मत' से डर गए थे अंग्रेज
'बंधन' के रिलीज होने के करीब तीन साल बाद 1943 में देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत एक फिल्म और आई ''किस्मत'। अशोक कुमार, मुमताज शांति और कनु रॉय जैसे सितारों से सजी इस फिल्म की कहानी लिखी थी ज्ञान मुखर्जी ने और इसका निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। फिल्म 'किस्मत' के गीत भी कवि प्रदीप ने ही लिखे थे। इस फिल्म में एक गीता था जिसके बोल थे- '' आज हिमालय की चोटी से हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनियांवालों यह हिन्दुस्तान हमारा है...''
'' किस्मत'' महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के कुछ महीने बाद ही रुपहले पर्दे पर आई थी जो अपने ' ...दूर हटो ए दुनियां वालों...' के कारण अमर हो गई। उस समय यह गीत देश के हर गली, हर कूचे में गाया या सुना जाता था। यह गीत इतना पापुलर हो गया था कि आजादी के परवानों को स्वतंत्रा की राह पर बढ़ चलने के लिए उद्वेलित करता था।
उस जमाने में किसी भी फिल्म या गाने को रिलीज करने से पहले ब्रिटिश सेंसर बोर्ड की मंजूरी लेनी पड़ती थी। इसके बाद ही फिल्म या गानों को रिलीज किया जाता था। लेकिन अंग्रेजों के कमजोर भाषायी ज्ञान के कारण फिल्म 'किस्मत' के गानों के रिलीज करने की मंजूरी मिल गई थी जो लोगों में अंग्रेजों के विरोध का चेहरा था। जब तत्कालीन अंग्रेज अधिकारियों को फिल्म की कहानी और उसके गीत-' ... दूर हटो ए दुनियांवालों यह हिन्दुस्तान हमारा है...'' की मूल भावनाओं का पता चला तो उन्होंने इसपर प्रतिबंध लगा दिया था।
संन्यासी आंदोलन को दिखाया 'आनंदमठ' ने
1952 में देशभक्ति पर ही आधारित एक फिल्म और आई ' आनंद मठ' । यह फिल्म मूल रूप से 1882 में बंकीमचंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित थी। आनंद मठ में दिखाया गया था कि देश की आजादी के लिए किसानों के साथ मिल कर सन्यासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ किस तरह से विद्रोह किया था। इस फिल्म का एक गीत ' वंदे मातरम- वंदे मातरम...'' जो फिल्म की नायीका गीता बाली पर फिल्माया गया था। मूल रूप से यह गीत उपन्यास आनंद मठ से ही लिया गया था जो आगे चल कर भारत का राष्ट्रीय गीत बना। यह गीत आज भी 15 अगस्त और 26 जनवरी को खास तौर से गाया और सुना जाता है।
देशभक्ति की अलख जगाती ' काबूलीवाला'
14 दिसंबर 1961 को रिलीज हुई 'काबूलीवाला' मूल रूप से 1892 में गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की कहानी काबूलीवाला पर आधारित थी। इस फिल्म के डायरेकेक्टर हेमेन गुप्ता और प्रोड्यूसर बिमल रॉय थे। बलराज साहनी, अब्दुल रहमान खान , उषा किरण व रमा ने अभिनय किया था।
इसी साल 1961 में ही एक फिल्म और आई ''हम हिंदुस्तानी''। इस फिल्म ने दर्शकों में देश भक्ति की अलख जगाई। फिल्म ''हम हिंदुस्तानी'' का यह गीत-'' छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी, हम हिंदुस्तानी...'' काफी मशहूर हुआ था। इस गीत को प्रेम धवन ने लिखा। इस गीत को लोग आज बड़ी शिद्दत के साथ सुनते हैं।
1965 की 'शहीद' और 'हकीकत' ने छोड़ी अमिट छाप
यह वह दौर था जब भारत देश विभाजन की त्रासदी को भूल कर अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर ही रहा था कि अक्टूबर 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया। इस जंग में भारत को अपनी हजारों वर्गमील जमीन गंवानी पड़ी थी। चीन के हाथों मिली इस हार के सदमें से देश उबर नहीं पा रहा था। ऐस में 1965 में देश के जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए चोटी के दो फिल्मकार मनोज कुमार और चेतन आनंद देशभक्ति पर आधारित दो फिल्में लेकर आए। ये फिल्में थी-'शहीद' और 'हकीकत'।
वेशक इन दोनों फिल्मों की कथावस्तु और कालखंड अलग-अलग थे लेकिन लोगों में देशभक्ति की भावना को जगाने के लिए ये दोनों ही फिल्म्ों किसी संजीवनी से कम नहीं थी। मनोज कुमार के निर्देशन में बनी फिल्म ' शहीद' अमर शहीद भगत सिंह की जीवनी पर आधारित थी।
वहीं फिल्म 'हकीकत' भारत-चीन युद्ध पर आधारित थी। इस फिल्म का गीत ' कर चले अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों...' और फिल्म 'शहीद' का गीत' मेरा रंग दे बसंती चोला...' काफी पापुलर हुआ था। खासतौर से हमारे सैनिक भाइयों को यह गीत इतना पसंद है कि आज भी ऑल इंडिया रेडियो पर इसे सुनने के लिए उनकी फर्माइस आती रहती है। यही नहीं भारत-पाकिस्तान की सरहद अटारी बार्डर पर सेरेमनी के दौरान जब यह गीत बजता है तो दर्शकों की भुजाएं फड़कने लगती हैं।
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इसकी बाद तो देशभक्ति पर आधारित एक से बढ़ कर एक फिल्में बनी। अभिनेता, निर्माता और निर्देश मनोज कुमार ने तो -'उपकार, पूरब और पश्चिम, रोटी-कपड़ा और मकान व क्रांति'' जैसी कई फिल्में बनाई जिन्हें दर्शक आज भी पसंद करते हैं।
शोहराब मोदी ने बनाई झांसी की रानी
इसी तरह अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरने वाली झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के जीवन पर आधारित फिल्म 'झांसी की रानी' 1953 में आई। शोहराब मोदी के निर्देशन में बनी ब्लैक एंड व्हाइट इस फिल्म को उस दौर के दर्शकों ने काफी पसंद किया। इसके सालों बाद 2019 फिल्म आई ' मणिकर्णिका'। कंगना रनौत अभिनित यह फिल्म भी विरांगना झांसी की रानी के जीवन पर आधारित थी। हलांकि इससे पहले भी रानी लक्ष्मी बाई को लेकर छोटे पर्दे पर धारावाहिक भी आ चुका है।
विदेशियों को भी भाए गांधी
भारतीय फिल्मकार तो भारतीय, विदेशी फिल्मकारों को भी स्वतंत्रता संग्राम के महानाक महात्मा गांधी भाने लगे। वर्ष 1982 में फिल्म आई 'गांधी'। महात्मा गांधी के जीवन पर बनी इस फिल्म का निर्देश रिचर्ड एटनवरोघ ने किया था। इस फिल्म की खास बात यह थी कि इसमें गांधी कि भूमिका बेन किंग्स ले ने निभाई थी। फिल्म के निर्देशक और अभिनेता दोनो को अकादमिक पुरस्कार से नवाजा गया था।
90 के दशक में बदला देशभक्ति पर फिल्में बनाने का नजरिया
वर्ष 1990 का दौर आते-आते देशभक्ति पर फिल्में बनाने का नजरिया बदल गया। इसमें स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ भारत-पाकिस्तान युद्ध, आतंकवाद और सामाजिक सरोकारों पर आधारित फिल्मों को भी शामिल किया जाने लगा।
1997 में जेपी दत्ता की फिल्म आई 'बार्डर' यह फिल्म भारत-पाकिस्तान के 1971 जंग पर आधारित थी। इसमें भारतीय सैनिकों के रण कौशल और उनकी बहादुरी को दिखाया गया था। इस फिल्म का गीत-'संदेशे आते हैं...' इतना पापुलर हुआ कि आज भी इस गीत को भारतीय जवान गुनगुनाते हैं।
15 जून 2001 को रुपहले पर्दे पर 'गदर : एक प्रेम कथा' आई। सनी देवोल और अमीसा पटेल द्वारा अभिनित इस फिल्म का निर्देशन अनिल शर्मा ने किया था। भारत विभाजन पर आधारित इस फिल्म ने सफलता का ऐसा झंडा गाड़ा कि करीब 19 साल बाद भी फिल्म के डॉयलाग और गाने आज भी दर्शकों को याद हैं।
इसी बीच वर्ष 2002 में सरदार भगत सिंह के जीवन पर आधारित फिल्म ' द लेजेंड ऑफ भगत सिंह'' आई। इस फिल्म में अजय देवगन अमर शहीद भगत सिंह की भूमिका में थे, जिसे दर्शकों ने काफी सराहा।
वर्ष 2004 में 'नेता जी सुभाष चंद्रबोस द फॉरगॉटन हीरो'' आई। आजाद हिंद फौज के संस्थापक और अंग्रेजों के पसीने छुड़ाने वाले नेता जी के जीवन पर बनी इस फिल्म का निर्देशन श्याम वेनेगल ने किया था।
इसी तरह 2005 में '' मंगल पांडे : द राइजिंग'' आई। सन 1857 के विद्रोह पर आधारित यह फिल्म ब्रिटिश फौज के सिपाही मंगल पांडे के जीवन पर बनी पहली फिल्म थी। केतन मेहता के निर्देशन में बनी इस फिल्म में आमीर खान ने मंगल पांडे का किरदार निभाया था।
वर्ष 2007 में भारत-पाक जंग पर आधारित एक और फिल्म आई। मनोज बाजपेयी और रविकिशन अभिनित इस फिल्म में दिखाया गया था कि पाकिस्तानी सेना द्वारा बंदी बनाए गए 6 हिंदुस्तानी सैनिक उनके कैद से कैसे भाग निकलते हैं। यह फिल्म सर्वेश्रेष्ठ हिंदी फीचर फिल्म का नेशनल अवार्ड हासिल कर चुकी है।
फिर बदला फिल्मों का ट्रेंड
वर्ष 2000 आते-आते एक बार फिर से फिल्मों का ट्रेंड बदला। अब देशभक्ति की फिल्मों में पाक प्रायोजित आतंकावाद, भारतीय जासूसो की बहादुरी से होते हुए खलों पर आधारित फिल्मों के जरियों युवाओं में भारतीय फिल्मकारों ने युवाओं में देशभक्ति के जज्बे को जगाना शुरू किया। इनमें प्रमुख फिल्में हैं- लगान, चक दे इंडिया, एक था टाइगर, टाइगर जिंदा है, राजी, भाग मिल्खा भाग, मैरीकॉम, सुल्तान, दंगल, बजरंगी भाईजान आदि। वहीं सामाजिक सरोकारों और अंदरूनी मसलों से जुड़ी फिल्मों की बात की जाय तो- रंगदे बसंती, ए वेडनेस डे, सरफरोश, द हीरो, और उरी जैसी फिल्में भी देशभक्ति की भावना को जगाती हैं। इसी बीच वर्ष 2019 में फिल्म 'केसरी' और 2020 में आई ऐतिहासिक फिल्म ' तान्हा जी' ने भी दर्शकों में देशभक्ति का जज्बा कायम किया।
भोजपुरिया सिनेमा ने भी जगाया अलख
हिंदी फिल्मकारों की तरह भोजपुरी फिल्में बनाने वाले फिल्मकार भी देशभक्ति की भावना को जगाने में पीछे नहीं रहे। यदि देशभक्ति पर आधारित फिल्मों की बात की जाए तो गत दस वर्षों में भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर अनगिनत फिल्में बन चुकी हैं। इन फिल्मों में - हिंदुस्तान की कसम, ट्रेन टू पाकिस्तान, हिंदुस्तान मेरी जान, तिरंगा, गदर, पटना से पाकिस्तान, हम हैं इंडियन, जान से प्यारा हिंदुस्तान, शेर है अपना हिंदुस्तान, फौजी हिंदुस्तान, जय हिंद, कश्मीर, मां तुझे सलाम, इंडिया-पाकिस्तान आदि प्रमुख है। भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ, पवन सिंह और खेसारी लाल अभिनित ये सभी फिल्में देशभक्ति की भावना को जगाती हैं।
पंजाबी फिल्मकार भी पीछे नहीं
1947 में देश विभाजन की त्रासदी हो या फिर पाकिस्तान के साथ दो दो लड़ाइयां। पंजाब हमेशा अग्रिम मोर्चे पर रहा है। ऐसे में पंजाबी फिल्मकार भी लोगों में देशभक्ति की भावना को जगाने में पीछे नहीं रहे। अगर देशभक्ति पर आधारित पंजाबी फिल्मों की बात की जाए तो इनमें प्रमुख हैं- शहीद करतार सिंह सराभा, शहीद-ए-आजम, सरदार-ए-आजम भगत सिंह, सुबेदार जोंगिंदर सिंह और दिलजित दोसांझ द्वारा अभिनित फिल्म 'सज्जन सिंह रंगरूट' जो भारती सैनिक के जीवन पर आधारित है।
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इस वर्ष आ सकती हैं ये फिल्में
इस वर्ष देश भक्ति पर बनी फिल्मों में- ''83'', ''अटैक'' और '' भुज'' हैं जो 15 अगस्त पर रिलीज की जा सकती हैं। इसमें ''83'' फिल्म वर्ष 1983 में भारतीय टीम के कैप्टन कपीलेदव के नेतृत्व में खेले गए क्रिकेट वर्ल्ड पर आधारित है। इसके अलावा '' सरदार उधम सिंह'' और पृथ्वी राज चौहान'' जैसी फिल्में में अक्टूबर तक सिनेमा घरों में रिलीज हो सकती हैं।
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