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सम्राट अकबर के राजतिलक का रहस्य, सिंहासन पर नहीं यहां हुई थी ताजपोशी
स्वर्गीय विनोद खन्ना की कभी राजनीतिक कर्मभूमि रहा पंजाब का गुरदासपुर जिला अब सिनेस्टार और भाजपा नेता सनी देवोल के संसदीय क्षेत्र के तौर पर पहचाना जाता है, लेकिन इसका इतिहास मुगलिया सल्तनत से भी जुड़ा हुआ है।
दुर्गेश पार्थी सारथी,
अमृतसर: स्वर्गीय विनोद खन्ना की कभी राजनीतिक कर्मभूमि रहा पंजाब का गुरदासपुर जिला अब सिनेस्टार और भाजपा नेता सनी देवोल के संसदीय क्षेत्र के तौर पर पहचाना जाता है, लेकिन इसका इतिहास मुगलिया सल्तनत से भी जुड़ा हुआ है।
गुरदासपुर जिले का कस्बाे कलानौर अपने आगोश में इतिहास की कई भूली-बिसरी यादों को सहेजे हुए है। इस कस्बे से मुगलिया सल्तनत का एक ऐसा कोहिनूर जुड़ा हुआ है, जिस इतिहास जुलालुदीन मोहम्मद अकबर के नाम से जानता है तो दुनिया बादशाह अबकर के नाम से।
मुगलिया सल्तनत के इसी अजीम-ओ-शान से जुड़ा है कलानौर स्थित 'तख्तह-ए-अकबरी'। यह वही तख्त है जिस पर आज करीब साढ़े चार सौ साल पहले 14 फरवरी 1556 शहंशाए-ए-हिंद जलालुदीन मोहम्मद अकबर की हिंदुस्तान के बादशाह के रूप में ताजपोशी हुई थी।
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खेतों के बीच हुई थी अकबर की ताजपोशी
लोग सोचते होंगे कि दिल्लीक के बादशाह हुमायूं के फरजंद अबकर की ताजपोशी राजठाठ के साथ दिल्ली दरबार में हुई होगी। यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि अकबर की ताजपोशी किसी महल या किले के बीच नहीं बल्कि खुले आसमान के नीचे खेतों के बीच एक मिट्टी के चबूरते पर हुई थी। यह चबूतरा आज भी मौजूद है। बेशक आज वक्त के गर्द में ढंके इसके ऐतिहासिक महत्व से लोग महरूम हैं, लेकिन यह चीख चीख कर इस बात की तस्दीक करता है कि मुगलिया सल्तनका का इकबाल बुलंद करने में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
आम लोगों की नजर में ईटों का ढांचा है तख्त-ए-अकबरी
कस्बा कलानौर से करीब दो किलो मीटर की दूरी पर पूरब की दिशा में खेतों के बीच यह तख्त (सिंहासन) आम लोगों के लिए बेशक ईट पत्थरों का ढांचा है, लेकिन ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में यह राष्ट्रीय धरोहर है। और इस तख्त से शुरू हुआ था जलालुदीन मोहम्मद अकबर के अकबर महान बनने का सफर। सभी धर्म-जाति के लोगों को साथ लेकर चलने और उनके तीज-त्योहार और समस्त देश को एक सूत्र में पिरोने का सिलसिला।
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कभी विकसित कस्बा था आज गांव है कलानौर
कहते हैं मुगल काल में गुरदासपुर जिले का यह कस्बा कलानौर कभी बिकसित कस्बा हुआ करता था। इसके बाते में लोकक्तियां है कि यह लाहौर के जैसा सुंदर और उन्नत था। इसके बारे में प्रचित है -'जिसने न देखा हो लाहौर, वह देखे कलानौर'। लेकिन आज का कलानौर एक गांव से ज्यादा कुछ नहीं है।
बैरम खां को कलानौर में मिली थी हुमायूं की मौत की खबर
कहा जाता है 1556 ईसवी में काबुल से हिंदुस्ता न के लिए चला हुमायूं के परिवार का काफिला उसके सेनापति बैरम खां के नेतृत्व में कलानौर तक पहुंचा था कि हुमायूं के मौत की खबर पाकर दूरदर्शी और मुगलिया सल्तनत के वफादार बैरम खां ने तत्काल उसी स्थान पर ईंटों का तख्ता बना कर 13 साल के अकबर की ताजपोशी कर उसे मुगल सल्तनत का उत्तराधिकारी और हिंदुस्तान का शहंशाह घोषित कर दिया।
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कुछ इस तरह का है तख्ता-ए-अकबरी
खेतों के बीच तख्त-ए-अकबरी 100x80 वर्ग फुट के क्षेत्रफल में व्यवस्थित है। इसके चारों तरफ मजबूत लोहे की ग्रिल लगी हुई है। चबूतरे के चारों तरफ दो फुट ऊंची एक गलियरा नुमा परिक्रमा है। इसके बाद इतनी ही ऊंचाई पर बीचों-बीच एक चबूतरा है, जिस पर चढ़ने के लिए पूरब उत्तर एवं दक्षिण दिशा में एक-एक सीढि़यों का युग्म है।
सीढ़ी युग्म के बीच में थोड़ी सी जगह है, जिसमें बेहतरीन नक्काशी की गई है। इस चबूतरे के पश्चिमी किनारे पर स्थित है 'तख्त -ए-अकबरी', जिस पर चढ़ने के लिए एक सीढ़ी बनी है। यह तख्त पर बैठने के बाद आसानी से पैरों के नीचे आ जाती है। तख्त के सामने चबूतरे के मध्य, चौकोर गहरा नक्काशीदार गड्ढा बना है। बताया जाता है कि इसके बीच कभी जल पुष्प लगे होते थे। यह पूरा परिसर शाही गौरव को दर्शाता है।
राष्ट्रीय स्मारक है यह स्थल
अकबर को शहंशाह-ए-हिंद बनाने वाला 'तख्त-ए-अकबरी' भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है। लाखों को रुपये खर्च पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसका जिर्णोद्धा करवाया है। फिर भी यह उपेक्षित है।
लोगों को नहीं है जानकारी
जिस कलानौर स्थित तख्ता-ए-अकबरी से मुगल इतिहास का स्वर्णिम अध्याय शुरू होता है आज वही तख्त-ए-अकबरी अपनी पहचान खो चुका है। इसे समय का फेर कहें या लोगों का अपने इतिहास से मुंह मोड़ना। इस ऐतिहासिक जगह को बहुत कम लोग ही जानते है। यहां तक पहुंचने के लिए न तो कोई रास्ता है और ना ही पंजाब पर्यटन विभाग इस ओर पर्यटकों को लाना चाहता है। इस स्थल तक पहुंचने के लिए कलानौर खेतों के बीच होते हुए पगडंडियों के सहारे जाना पड़ता है।
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