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21 दवाइयां और 4 वैक्सीनें: दो करोड़ संक्रमित, कैसे जीतेंगे जंग
गावी अलायंस ‘कोवैक्स’ वैक्सीन पर काम कर रहा है और इसे उम्मीद है कि वह 2021 के अंत तक पूरे विश्व में 2 अरब डोज़ की सप्लाई कर लेगा। फिलहाल, ये संगठन अमीर - गरीब देशों के लिए अलग अलग कीमत पर वैक्सीन उपलब्ध करने के लिए प्रयास कर रहा है।
नील मणि लाल
नई दिल्ली। कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या दो करोड़ के पास पहुंच रही है जबकि लाखों लोग मारे जा चुके हैं। इस संक्रमण का इलाज तलाशने की दिशा में कोशिशें हो रही हैं। अभी तक कोई परफेक्ट दवा तो नहीं मिली है लेकिन कुछ कारगर दवाइयां सामने आयी हैं। अभी तय नहीं है कि दुनिया के पास कब तक कोरोना की दवा होगी लेकिन दुनिया भर में 150 से ज़्यादा अलग-अलग दवाइयों को लेकर रिसर्च हो चुकी है। इनमें से ज़्यादातर दवाइयां पहले से ही प्रचलन में हैं और इन्हें कोरोना संक्रमित मरीज़ों के इलाज में आजमाकर देखा गया है।
21 दवाएं शार्ट लिस्ट की
अमेरिका में तो विश्व की सभी दवाओं का लैब में कोरोना वायरस पर परीक्षण किया जा रहा है। भारत समेत विश्व के वैज्ञानिकों ने कोरोना के इलाज के लिए 21 दवाएं शार्ट लिस्ट की हैं और इनका मरीजों पर प्रायोगिक परीक्षण किया जा रहा है। इन दवाओं में एच आई वी, कुष्ठ रोग, मलेरिया, एलर्जी, इबोला, स्टेरॉइड आदि दवाएं शामिल हैं। इसी के साथ साथ कोरोना को रोकने के लिए वैक्सीन के डेवलपमेंट का काम सुपरफ़ास्ट स्पीड से जारी है और कामयाबी अब बहुत करीब नजर आ रही है।
वैक्सीन की सप्लाई और दाम तय
अच्छी खबर ये है कि कोरोना वायरस के खिलाफ चार तरह की वैक्सीन ह्यूमन ट्रायल के अंतिम चरण में हैं। इन चार वैक्सीन को डेवलप करने वाली कम्पनियाँ हैं - ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी – अस्ट्रा ज़ेनेका, मोडेरना बायोटेक, फाइजर – बायोएनटेक और चीन की सीनोवाक। इन कंपनियों ने इस साल के अंत तक इन वैक्सीन को बाजार में उतारने की पूरी तैयारी कर ली है।
वैक्सीन लांच करने के प्रति इनका इतना कॉन्फिडेंस है कि अब वैक्सीन के दाम तय करने की प्रक्रिया चालू हो गयी है। साथ ही ये भी तय किया जा रहा है कि वैक्सीन पहले किन देशों को दी जाए। फाइजर, मोडेरना और मर्क कंपनी ने कहा है कि वे वैक्सीन को मुनाफे पर बेचेंगी वहीं जॉनसन एंड जॉनसन समेत कुछ कंपनियों ने ऐलान किया है कि वे अपनी वैक्सीन के दाम में कोई मुनाफ़ा नहीं जोड़ेंगे। जॉनसन एंड जॉनसन का तो कहना है कि वह इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए अपनी वैक्सीन 10 डालर में उपलब्ध करायेगी।
इनसानों के लिए वैक्सीन सुरक्षित और असरदार है कि नहीं इसके बारे में नियामक संस्थाओं का अप्रूवल मिलने से पहले ही कई अमीर देशों ने वैक्सीन निर्माताओं के सतह प्री-परचेज अग्रीमेंट कर लिया है। इसके तहत यही देश सबसे पहले अपने लिए वैक्सीन खरीद सकेंगे।
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ऑक्सफ़ोर्ड – अस्ट्रा ज़ेनेका : 1000 रुपये की डोज़
ऑक्सफोर्ड-अस्ट्रा ज़ेनेका के वैक्सीन की कीमत एक हजार रुपये से कम रहने की उम्मीद है। भारत में ये वैक्सीन ‘कोविडशील्ड’ नाम से मिलेगी। ये वैक्सीन नवम्बर तक लंच हो जाने की उम्मीद है।
अस्ट्रा जेनेका कंपनी ने भारत और अन्य माध्यम व निम्न आय वाले देशों के लिए वैक्सीन की एक अरब डोज़ बनाने के लिए भारत के सीरम इंस्टिट्यूट के साथ साझेदारी की है। कंपनी ने शुरुआती तीन करोड़ डोज़ बनाने के लिए ब्राजील सरकार के साथ करीब 13 करोड़ डालर की डील की है। कंपनी को अमेरिका से 1.2 अरब डालर की शुरुआती फंडिंग मिली थी सो उसके बदले में अमेरिका को 30 करोड़ डोज़ डी जायेंगी।
मोडेरना बायोटेक : 4500 रुपये का कोर्स
अमेरिका की मोडेरना बायोटेक की योजना अपनी वैक्सीन के पूरे कोर्स का दाम 3700 से 4500 रुपये के बीच रखने की है। इसकी एक डोज़ का दाम 1800 से 2300 रुपये के बीच रहेगा। मोडेरना कंपनी का इरादा दिसंबर तक बाजार में वैक्सीन ले आने का है।
अमेरिकी सरकार ने मोडेरना को वैक्सीन डेवलप करने के लिए 50 करोड़ डालर दिए हैं। मोडेरना ने वैक्सीन की शुरुआती 10 करोड़ डोज़ के निर्माण के लिए कैटालेंट नामक दवा निर्माता कंपनी से करार किया है। इसके अलावा स्पेन और स्विटज़रलैंड की कंपनियों के अलावा इजरायल सरकार के सतह भी करार किये गए हैं।
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फाइजर – बायोएनटेक : 300 रुपये की एक डोज़
अमेरिका कि दिग्गज दवा कंपनी फाइजर, जर्मनी की बायोटेक फर्म बायोएनटेक के साथ मिल कर वैक्सीन डेवलप कर रही है।फाइजर को उम्मीद है कि वह अक्टूबर में नियामक अप्रूवल की स्टेज में पहुँच जायेगा और साल के अंत तक बाजार में वैक्सीन आ जायेगी।
अमेरिका की ट्रंप सरकार ने 10 करोड़ डोज़ के लिए फाइजर के साथ 2 अरब डालर का करार किया है। यूके की सरकार ने 3 करोड़ डोज़ का करार किया है। नीदरलैंड, जर्मनी, फ्रैंक और इटली के साथ भी डील हो चुकी हैं। फाइजर के वैक्सीन के दाम नीदरलैंड, जर्मनी, फ़्रांस और इटली में 225 से 300 रुपये प्रति डोज़ रहने की संभावना है। अमेरिका में दो डोज़ के कोर्स का दाम करीब 2900 रुपये रहने का अनुमान है।
गावी अलायंस : 4 हजार रुपये की डोज़
गावी अलायंस नामक अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी संगठन विश्व में वैक्सीन डेवलप करने और उपलब्ध करने का काम करता है और भारत भी इसका सदस्य है। गावी कोरोना की वैक्सीन के लिए काम कर रहा है और भारत ने इस काम के लिए डेढ़ करोड़ डालर दिए हुए हैं।
गावी अलायंस ‘कोवैक्स’ वैक्सीन पर काम कर रहा है और इसे उम्मीद है कि वह 2021 के अंत तक पूरे विश्व में 2 अरब डोज़ की सप्लाई कर लेगा। फिलहाल, ये संगठन अमीर - गरीब देशों के लिए अलग अलग कीमत पर वैक्सीन उपलब्ध करने के लिए प्रयास कर रहा है। अलायंस का कहना है कि वह अमीर दशों के लिए कोविड वैक्सीन के दाम 40 डालर (करीब 3 हजार रुपये) तय करने का लक्ष्य रखे है।
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कोरोना के खिलाफ दवाओं का जखीरा
डेक्सामेथासोन : कोरोना की दवा के मामले में ब्रिटेन में दुनिया का सबसे बड़ा क्लिनिकल ट्रायल चला रहा है, जिसे रिकवरी ट्रायल कहा जा रहा है। इस ट्रायल में ही पहली बार पता चला कि डेक्सामेथासोन से मरीजों की जान बच सकती है। इसके अलावा कौन सी दवा कारगर है या नहीं है, इसका पता भी इस ट्रायल में चला है।
रिकवरी ट्रायल के विशेषज्ञों का कहना है कि कम मात्रा में इस दवा का उपयोग कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक बड़ी कामयाबी की तरह सामने आया है। इस दवा का इस्तेमाल पहले से ही सूजन को कम करने में किया जाता रहा है और अब ऐसा लगता है कि यह कोरोना वायरस से लड़ने में शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली को मदद पहुँचाने वाली है। अब तक इसका इस्तेमाल अधिक जोख़िम स्थिति वाले मरीज़ों के लिए ही किया जा रहा है। हल्के लक्षण वाले संक्रमितों पर इसका असर नहीं दिखा है।
रेमडेसिवीर : इबोला वायरस के इलाज के लिए खोजी गई दवा रेमडेसिवीर के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे उत्साहवर्धक रहे हैं। अमेरिकी नेतृत्व में इस दवा का क्लिनिकल ट्रायल दुनिया भर में किया जा रहा है। रेमडेसिवीर उन चार दवाओं में शामिल है जिनको लेकर सॉलडरिटी ट्रायल चल रहा है। इस दवा को बनाने वाली कंपनी गिलिएड इसके ट्रायल का आयोजन भी करा रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर ब्रुस आइलवर्ड का कहना है कि चीन के दौरे बाद उन्होंने पाया कि रेमडेसिवीर एकमात्र ऐसी दवा है जो असरदायी नज़र आती है।
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एचआईवी की दवा : एच आई वी की दवाओं को लेकर बहुत बातें की जा रही हैं लेकिन इस बात के प्रमाण नहीं मिले हैं जिससे यह कहा जाए कि एचआईवी की दवा लोपीनावीर और रिटोनावीर कोरोना वायरस के इलाज में असरदायी साबित हुई हैं। लैब में किए परीक्षण में ज़रूर इस बात के प्रमाण मिले हैं कि यह काम कर सकती हैं लेकिन लोगों पर किए गए ट्रायल में निराशा हाथ लगी है।
मलेरिया की दवा : मलेरिया की दवा को लेकर भी काफ़ी चर्चा रही है, लेकिन अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प या ब्राज़ील के बोलसरेनो भले कुछ कहें, इस दवा का स्पष्ट जवाब अभी भी नहीं है। वैसे, मलेरिया की दवा सॉलिडैरिटी ट्रायल और रिकवरी ट्रायल दोनों ही प्रयासों का हिस्सा है। क्लोरोक्वीन और उससे बने हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्विन में वायरस प्रतिरोधी और इंसानों की प्रतिरोधक प्रणाली को शिथिल करने के गुण मौजूद हैं।
ट्रायल से बाहर किया
यह दवा उस वक़्त बड़े पैमाने पर चर्चा में आई जब राष्ट्रपति ट्रंप ने कोरोना वायरस के इलाज में इसकी संभावनाओं की बात कही लेकिन अब तक इसके असरदार होने को लेकर बहुत कम प्रमाण मिले हैं। हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल अर्थराइटीस में भी किया जाता है क्योंकि यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को नियमित करने में मदद कर सकता है। लेकिन आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिकवरी ट्रायल से यह मालूम हुआ है कि हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन कोविड-19 के इलाज में कोई मदद नहीं पहुंचाता है। इसके बाद इसे ट्रायल से बाहर कर दिया गया।
ब्लड प्लाज़्मा : जो मरीज़ कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो गए हैं उनके शरीर में इसका एंटीबॉडी होना चाहिए जो वायरस के खिलाफ असरदायी हो सकता है। ये एक क्लिनिकल सिद्धांत है।
इसके तहत, ठीक हुए मरीज़ के ख़ून से प्लाज्मा (जिस हिस्से में एंटीबॉडी है) निकाल कर बीमार पड़े मरीज़ में डालते हैं। भारत समेत कई देशों में ये प्रयोग किया जा रहा है। यह तरीका दूसरी बीमारियों में तो कारगर साबित हुआ है, लेकिन कोरोना वायरस में इस तरीके से पूरी कामायबी नहीं मिली है। इसके अलावा बहुत से रिकवर्ड मरीजों के ब्लड प्लाज़्मा में एंटी बॉडी नदारद पाई गई हैं।
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